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  • ईश्‍वरीय शिक्षा विजयी होती है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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ईश्‍वरीय शिक्षा विजयी होती है

“तुम अपनी आंखों से अपने महान उपदेशक को देखोगे। और पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा: ‘मार्ग यही है। हे लोगों, इसी पर चलो।’”—यशायाह ३०:२०, २१, NW.

१. यहोवा के उपदेश को उचित रीति से ईश्‍वरीय शिक्षा क्यों कहा जा सकता है?

यहोवा परमेश्‍वर किसी भी व्यक्‍ति द्वारा प्राप्त की जा सकनेवाली सर्वोत्तम शिक्षा का स्रोत है। यदि हम सुनें जब वह बोलता है, ख़ासकर अपने पवित्र वचन के द्वारा, तब वह हमारा महान उपदेशक होगा। (यशायाह ३०:२०) इब्रानी बाइबल पाठ उसे “वह ईश्‍वरीय व्यक्‍ति” भी कहता है। (भजन ५०:१) इसलिए, यहोवा का उपदेश ईश्‍वरीय शिक्षा है।

२. यह किस अर्थ में सच है कि केवल परमेश्‍वर ही बुद्धिमान है?

२ संसार अपनी अनेक शैक्षिक संस्थाओं पर गर्व करता है, लेकिन उन में से एक भी संस्था ईश्‍वरीय शिक्षा प्रदान नहीं करती है। क्यों, यहोवा की असीम बुद्धि पर आधारित ईश्‍वरीय उपदेश की तुलना में युगों की सांसारिक बुद्धि कुछ भी नहीं है। रोमियों १६:२७ कहता है कि केवल परमेश्‍वर ही बुद्धिमान है, और यह इस अर्थ में सच है कि केवल यहोवा ही परम बुद्धि रखता है।

३. क्यों यीशु मसीह वह सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है जो कभी पृथ्वी पर रहा?

३ परमेश्‍वर का पुत्र, यीशु मसीह बुद्धि का प्रतिमान है और वह सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है जो पृथ्वी पर कभी रहा। इसमें कोई आश्‍चर्य की बात नहीं! युगों से यहोवा स्वर्ग में उसका शिक्षक रहा था। असल में, ईश्‍वरीय शिक्षा तब आरंभ हुई जब परमेश्‍वर ने अपनी पहली सृष्टि, अर्थात्‌ अपने एकलौते पुत्र, को उपदेश देना आरंभ किया। यीशु इसलिए कह सकता था: “जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।” (यूहन्‍ना ८:२८; नीतिवचन ८:२२, ३०) बाइबल में लिपिबद्ध स्वयं मसीह के शब्द ईश्‍वरीय शिक्षा के हमारे ज्ञान को काफ़ी ज़्यादा बढ़ाते हैं। यीशु ने जो सिखाया उसे सिखाने के द्वारा, अभिषिक्‍त मसीही अपने महान उपदेशक की आज्ञा का पालन करते हैं, जिसकी इच्छा यह है कि “परमेश्‍वर का नाना प्रकार का ज्ञान” कलीसिया के द्वारा प्रकट किया जाए।—इफिसियों ३:१०, ११; ५:१; लूका ६:४०.

बुद्धि की तलाश

४. मस्तिष्क की क्षमता के बारे में क्या कहा गया है?

४ उस बुद्धि को प्राप्त करने के लिए जो ईश्‍वरीय शिक्षा से परिणित होती है, हमारी परमेश्‍वर-प्रदत्त विचार क्षमताओं के परिश्रमी प्रयोग की ज़रूरत है। यह संभव है क्योंकि मानव मस्तिष्क में अत्यधिक क्षमता है। दी इन्क्रेडिबल्‌ मशीन पुस्तक कहती है: “जिन जटिल से जटिल कम्‌प्यूटरों की हम कल्पना कर सकते हैं, वे भी मानवी मस्तिष्क की क़रीब-क़रीब असीम पेचीदगी और लचीलेपन की तुलना में अपरिष्कृत हैं—वे गुण जो उसके विद्युत्‌ रासायनिक संकेतों के पेचीदा, अंशांकित तंत्र द्वारा संभव बनाए गए हैं। . . . किसी एक क्षण में आपके मस्तिष्क में तत्क्षण प्रसारित होनेवाले लाखों संकेत अद्‌भुत मात्रा में जानकारी का भार संप्रेषित करते हैं। वे आपके शरीर के भीतरी और बाहरी वातावरण के बारे में सूचना लाते हैं: आपके पैर की उँगली में मरोड़, या कॉफ़ी की महक, या एक मित्र की हास्यकर टिप्पणी। जैसे-जैसे अन्य संकेत जानकारी को तैयार करते और उसका विश्‍लेषण करते हैं, वे कुछ विशेष जज़बात, यादें, विचार या योजनाएँ पैदा करते हैं, जिनके कारण निर्णय लिया जाता है। लगभग फ़ौरन ही, आपके मस्तिष्क में से संकेत आपके शरीर के अन्य भागों को बताते हैं कि क्या करना है: अपने पैर की उँगली को हिलाना, कॉफ़ी पीना, हँसना, या शायद एक विनोदपूर्ण उत्तर देना। इसी बीच आपका मस्तिष्क आपके श्‍वसन, रक्‍त-रसायन, ताप, और उन अन्य अनिवार्य प्रक्रियाओं की भी जाँच कर रहा है जिनके प्रति आप सचेत नहीं हैं। यह ऐसे आदेश भेजता है जो आपके वातावरण में निरंतर परिवर्तन के बावजूद आपके शरीर को सुस्थिर रखते हैं। यह भविष्य की ज़रूरतों के लिए भी तैयारी करता है।”—पृष्ठ ३२६.

५. शास्त्रीय अर्थ में, बुद्धि क्या है?

५ जबकि इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव मस्तिष्क में अद्‌भुत क्षमता है, हम मन को सर्वोत्तम ढंग से कैसे प्रयोग कर सकते हैं? अपने आपको केवल भाषा, इतिहास, विज्ञान, या तुलनात्मक धर्म के कठिन अध्ययन में तल्लीन करके ही नहीं। हमें अपनी विचार क्षमताओं को मुख्यतः ईश्‍वरीय शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रयोग करना चाहिए। मात्र यही असली बुद्धि में परिणित होती है। लेकिन सच्ची बुद्धि क्या है? शास्त्रीय अर्थ में, बुद्धि यथार्थ ज्ञान और वास्तविक समझ पर आधारित ठोस निर्णय पर ज़ोर देती है। समस्याओं को सुलझाने, ख़तरों से बचने या निवारण करने, दूसरों की मदद करने, और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बुद्धि हमें ज्ञान और समझ का सफलतापूर्वक प्रयोग करने के लिए समर्थ करती है। दिलचस्पी की बात यह है कि बाइबल बुद्धि की विषमता मूर्खता और मूढ़ता के साथ करती है—ऐसे लक्षण जिनसे हम निश्‍चय ही बचना चाहते हैं।—व्यवस्थाविवरण ३२:६; नीतिवचन ११:२९; सभोपदेशक ६:८.

यहोवा की महान पाठ्य-पुस्तक

६. यदि हमें सच्ची बुद्धि प्रदर्शित करनी है, तो किस चीज़ का अच्छा प्रयोग किया जाना चाहिए?

६ हमारे चारों ओर सांसारिक बुद्धि बहुतायत में है। (१ कुरिन्थियों ३:१८, १९) क्यों, यह संसार स्कूलों और पुस्तकालयों से भरा हुआ है, जिनमें लाखों पुस्तकें हैं! इनमें से अनेक पाठ्य-पुस्तकें हैं जो भाषा, गणित, विज्ञान, और ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान करती हैं। लेकिन महान उपदेशक ने वह पाठ्य-पुस्तक प्रदान की है जो सभी अन्य पाठ्य-पुस्तकों से श्रेष्ठ है—उसका उत्प्रेरित वचन, बाइबल। (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) यह केवल इतिहास, भूगोल, और वनस्पति विज्ञान जैसे विषयों से सम्बन्धित बातों का ज़िक्र करते समय ही यथार्थ नहीं है, बल्कि भविष्य के बारे में पूर्वबताने में भी यथार्थ है। इसके अतिरिक्‍त, यह ठीक अभी सबसे आनन्दित और लाभकारी जीवन व्यतीत करने के लिए हमारी मदद करती है। निःसंदेह, यदि हमें “परमेश्‍वर की ओर से सिखाए हुए” लोगों की तरह सच्ची बुद्धि प्रदर्शित करनी है, तो जैसे एक सांसारिक स्कूल में विद्यार्थियों को अपनी पुस्तकें इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है, वैसे ही हमें भी परमेश्‍वर की महान पाठ्य-पुस्तक के साथ अच्छी तरह से परिचित होना चाहिए और उसे इस्तेमाल करना चाहिए।—यूहन्‍ना ६:४५.

७. आप क्यों कहेंगे कि बाइबल के अन्तर्विषय से प्रज्ञात्मक परिचय काफ़ी नहीं है?

७ लेकिन, बाइबल के साथ प्रज्ञात्मक परिचय सच्ची बुद्धि और ईश्‍वरीय शिक्षा का पालन करने के समान नहीं है। उदाहरण के लिए: सा.यु. १७वीं शताब्दी में, कॉरनीलियस्‌ वॉन डर स्टेन नामक एक कैथोलिक पुरुष ने जेसुइट बनने की कोशिश की लेकिन उसे अस्वीकार किया गया क्योंकि वह बहुत ही नाटा था। मानफ्रेट बारटल अपनी पुस्तक द जेसुइटस्‌—हिस्ट्री एण्ड लेजेंड ऑफ द सोसाइटी ऑफ जीज़स में कहता है: “कमेटी ने वॉन डर स्टेन को सूचित किया कि वे क़द की माँग हटाने के लिए तैयार थे, लेकिन केवल इस शर्त पर कि वह पूरी बाइबल मुँह ज़बानी बोलना सीखेगा। यह कहानी बताने योग्य नहीं होती, यदि वॉन डर स्टेन ने इस एक क़िस्म की अक्खड़ माँग का अनुपालन न किया होता।” पूरी बाइबल को याद करने में कितनी मेहनत लगी! लेकिन, निश्‍चय ही, परमेश्‍वर के वचन को याद करने से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है उसे समझना।

८. ईश्‍वरीय शिक्षा से लाभ उठाने और सच्ची बुद्धि प्रदर्शित करने में क्या चीज़ हमारी मदद करेगी?

८ यदि हमें ईश्‍वरीय शिक्षा से पूरा लाभ उठाना है और सच्ची बुद्धि प्रदर्शित करनी है, तो हमें शास्त्रवचनों के यथार्थ ज्ञान की ज़रूरत है। हमें यहोवा की पवित्र आत्मा, या सक्रिय शक्‍ति द्वारा भी मार्गदर्शित होना चाहिए। यह हमें गहरी सच्चाइयों, अर्थात्‌ ‘परमेश्‍वर की गूढ़ बातों’ को सीखने के लिए समर्थ करेगा। (१ कुरिन्थियों २:१०) इसलिए, आइए हम यहोवा की महान पाठ्य-पुस्तक का परिश्रमपूर्वक अध्ययन करें और पवित्र आत्मा द्वारा उसके मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें। नीतिवचन २:१-६ के सामंजस्य में, आइए हम बुद्धि पर ध्यान दें, विवेक-क्षमता की ओर अपना हृदय लगाएं, और समझ के लिए पुकारें। हमें इसे इस प्रकार करने की ज़रूरत है मानो हम गुप्त धन की खोज कर रहे हों, क्योंकि केवल तब ही हम ‘यहोवा के भय को समझेंगे, और परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्त करेंगे।’ ईश्‍वरीय शिक्षा की कुछ विजय और लाभों पर विचार करना परमेश्‍वर-प्रदत्त बुद्धि के लिए हमारा मूल्यांकन बढ़ाएगा।

क्रमिक समझ

९, १०. जैसा उत्पत्ति ३:१५ में अभिलिखित है, परमेश्‍वर ने क्या कहा, और उन शब्दों की उचित समझ क्या है?

९ यहोवा के लोगों को शास्त्रवचनों की एक क्रमिक समझ प्रदान करने के द्वारा ईश्‍वरीय शिक्षा विजयी होती है। उदाहरण के लिए, हमने सीखा है कि अदन में शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस था जिसने साँप के द्वारा बात की और जिसने झूठा आरोप लगाया कि परमेश्‍वर ने झूठ बोला जब उसने कहा कि वर्जित फल खाने का दंड मृत्यु होगी। फिर भी, हम देखते हैं कि यहोवा परमेश्‍वर के प्रति अवज्ञा मानवजाति पर निश्‍चय ही मृत्यु लाई। (उत्पत्ति ३:१-६; रोमियों ५:१२) फिर भी, परमेश्‍वर ने मानवजाति को आशा दी जब उसने साँप से, और इस प्रकार शैतान से कहा: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”—उत्पत्ति ३:१५.

१० उन शब्दों में एक भेद सम्मिलित था जो क्रमिक रूप से ईश्‍वरीय शिक्षा द्वारा प्रकट हुआ है। यहोवा ने अपने लोगों को सिखाया है कि वंश के ज़रिए उस की सर्वसत्ता का दोषनिवारण ही बाइबल का प्रमुख विषय है। यह वंश राज्य शासकत्व का कानूनी अधिकारी, इब्राहीम और दाऊद का वंशज था। (उत्पत्ति २२:१५-१८; २ शमूएल ७:१२, १३; यहेजकेल २१:२५-२७) हमारे महान उपदेशक ने हमें यह सिखाया है कि यीशु मसीह “स्त्री,” अर्थात्‌ परमेश्‍वर के विश्‍व संगठन का मुख्य वंश है। (गलतियों ३:१६) शैतान द्वारा उस पर लाई गई प्रत्येक परीक्षा के बावजूद, यीशु ने मृत्यु तक खराई बनाए रखी, वंश का एड़ी पर डसा जाना। हमने यह भी सीखा है कि शैतान, अर्थात्‌ उसी “पुराने सांप” के सिर को कुचलने में मसीह के साथ मानवजाति में से १,४४,००० राज्य संगी वारिस भाग लेंगे। (प्रकाशितवाक्य १४:१-४; २०:२; रोमियों १६:२०; गलतियों ३:२९; इफिसियों ३:४-६) परमेश्‍वर के वचन के ऐसे ज्ञान का हम क्या ही मूल्यांकन करते हैं!

परमेश्‍वर की अद्‌भुत ज्योति में

११. यह क्यों कहा जा सकता है कि ईश्‍वरीय शिक्षा लोगों को आध्यात्मिक ज्योति में लाने के द्वारा विजयी होती है?

११ लोगों को आध्यात्मिक ज्योति में लाने के द्वारा ईश्‍वरीय शिक्षा विजयी होती है। अभिषिक्‍त मसीहियों को १ पतरस २:९ की पूर्ति में यह अनुभव हुआ है: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्‍वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्‌भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।” आज परमेश्‍वर-प्रदत्त ज्योति का आनन्द एक “बड़ी भीड़” भी ले रही है, जो एक परादीस पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहेगी। (प्रकाशितवाक्य ७:९; लूका २३:४३) जैसे-जैसे परमेश्‍वर अपने लोगों को सिखाता है, नीतिवचन ४:१८ सच साबित होता है: “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” यह क्रमिक रूप से सीखने की प्रक्रिया ईश्‍वरीय शिक्षा की हमारी समझ को बेहतर बनाती है, जैसे कि एक अध्यापक की अच्छी मदद से व्याकरण, इतिहास, या किसी अन्य विषय का अध्ययन करते समय विद्यार्थी प्रगति करते हैं।

१२, १३. ईश्‍वरीय शिक्षा ने यहोवा के लोगों को किन सैद्धान्तिक ख़तरों से बचाया है?

१२ ईश्‍वरीय शिक्षा की एक और विजय यह है कि यह अपने विनम्र प्रापकों को “दुष्टात्माओं की शिक्षाओं” से बचाती है। (१ तीमुथियुस ४:१) दूसरी ओर, मसीहीजगत को देखिए! वर्ष १८७८ में, रोमन कैथोलिक धर्माधिकारी जॉन हेनरी न्यूमैन ने लिखा: “फिर, दुष्टता के संदूषण का प्रतिरोध करने और पिशाच-उपासना की वस्तुओं तथा अभ्यासों को बदलकर सुसमाचार सम्बन्धी प्रयोग के लिए मसीही धर्म की शक्‍ति में विश्‍वास करते हुए, . . . प्रारंभिक समय से ही गिरजों के शासक, ज़रूरत पड़ने पर, जनता के प्रचलित अनुष्ठानों और प्रथाओं तथा शिक्षित वर्ग के तत्त्वज्ञान को अपनाने, या अनुसरण करने, या मंज़ूर करने के लिए तैयार थे।” न्यूमैन ने आगे कहा कि पवित्र जल, पादरीय परिधान, और मूर्तियाँ “सभी ग़ैर-मसीही मूल से थे, और उन्हें गिरजों में अपनाए जाने के द्वारा पवित्र बनाया गया है।” परमेश्‍वर के लोग सचमुच आभारी हैं कि ईश्‍वरीय शिक्षा उन्हें ऐसे धर्मत्याग से बचाती है। यह हर प्रकार के पिशाचवाद पर प्रबल होती है।—प्रेरितों १९:२०.

१३ ईश्‍वरीय शिक्षा प्रत्येक तरीक़े से धार्मिक ग़लतियों पर विजयी होती है। उदाहरण के लिए, परमेश्‍वर द्वारा सिखाए हुए व्यक्‍ति होने के नाते हम त्रियेक में विश्‍वास नहीं करते हैं, बल्कि यह स्वीकार करते हैं कि यहोवा परमप्रधान है, यीशु उसका पुत्र है, और पवित्र आत्मा परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति है। हम नरक की आग से नहीं डरते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि बाइबलीय नरक मानवजाति की सामान्य क़ब्र है। और जबकि झूठे धर्मानुयायी कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा अमर है, हम जानते हैं कि मरे हुए लोग कुछ भी नहीं जानते। ईश्‍वरीय शिक्षा द्वारा प्राप्त सच्चाइयों की सूची बढ़ती जाती है। झूठे धर्म के विश्‍व साम्राज्य, बड़ी बाबुल के आध्यात्मिक बंधन से मुक्‍त होना क्या ही आशीष है!—यूहन्‍ना ८:३१, ३२; प्रकाशितवाक्य १८:२, ४, ५.

१४. परमेश्‍वर के सेवक आध्यात्मिक ज्योति में क्यों चलते जा सकते हैं?

१४ क्योंकि ईश्‍वरीय शिक्षा धार्मिक ग़लती पर विजयी होती है, यह परमेश्‍वर के सेवकों को आध्यात्मिक ज्योति में चलने के लिए समर्थ करती है। वस्तुतः, पीछे से उनके कानों में यह वचन सुनाई पड़ता है: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह ३०:२१) परमेश्‍वर की शिक्षा उसके सेवकों को झूठे तर्क से भी बचाती है। जब कुरिन्थुस की कलीसिया में “झूठे प्रेरित” समस्याएँ उत्पन्‍न कर रहे थे, तब प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्‍वर के द्वारा सामर्थी हैं। सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्‍वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।” (२ कुरिन्थियों १०:४, ५; ११:१३-१५) कलीसिया में नम्रता से दिए गए उपदेश द्वारा और बाहर के लोगों को सुसमाचार प्रचार करने के द्वारा ईश्‍वरीय शिक्षा के विरुद्ध तर्क ढाए जाते हैं।—२ तीमुथियुस २:२४-२६.

आत्मा और सच्चाई से उपासना

१५, १६. आत्मा और सच्चाई से यहोवा की उपासना करने का क्या अर्थ है?

१५ जैसे-जैसे राज्य-प्रचार कार्य आगे बढ़ता है, नम्र लोगों को यह दिखाने में कि परमेश्‍वर की उपासना किस प्रकार “आत्मा और सच्चाई से” करनी है, ईश्‍वरीय शिक्षा विजयी होती है। सूखार नगर के पास याकूब के कुएं पर, यीशु ने एक सामरी स्त्री से कहा कि वह ऐसा जल प्रदान कर सकता है जो अनन्त जीवन देता है। सामरियों की ओर संकेत करते हुए, उसने आगे कहा: “तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; . . . वह समय आता है, बरन अब भी है जिस में सच्चे भक्‍त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही भजन करनेवालों को ढूंढता है।” (यूहन्‍ना ४:७-१५, २१-२३) यीशु ने फिर अपनी पहचान मसीहा के तौर पर की।

१६ लेकिन हम परमेश्‍वर की उपासना आत्मा से कैसे कर सकते हैं? परमेश्‍वर के लिए प्रेम से भरे आभारी हृदयों से शुद्ध उपासना करने के द्वारा, जो उसके वचन के यथार्थ ज्ञान पर आधारित है। धार्मिक झूठ को ठुकराने और यहोवा की महान पाठ्य-पुस्तक में प्रकट की गई ईश्‍वरीय इच्छा पूरी करने के द्वारा हम उसकी उपासना सच्चाई से कर सकते हैं।

संकटों और संसार पर विजयमान

१७. आप कैसे साबित कर सकते हैं कि ईश्‍वरीय शिक्षा ने यहोवा के सेवकों को संकटों का सामना करने में मदद दी है?

१७ जब परमेश्‍वर के लोग संकटों का सामना करते हैं, तब ईश्‍वरीय शिक्षा बार-बार विजयी होती है। इस पर विचार कीजिए: सितम्बर १९३९ में द्वितीय विश्‍वयुद्ध के आरंभ में, यहोवा के सेवकों को उसकी महान पाठ्य-पुस्तक में विशेष अंतर्दृष्टि की ज़रूरत थी। नवम्बर १, १९३९ की द वॉचटावर के एक लेख ने काफ़ी मदद की, जिसमें मसीही तटस्थता के मामले में स्पष्ट रूप से ईश्‍वरीय शिक्षा प्रस्तुत की गई थी। (यूहन्‍ना १७:१६) उसी प्रकार, १९६० की दशाब्दी के प्रारंभ में, सरकारी “प्रधान अधिकारियों” के प्रति सापेक्ष अधीनता पर वॉचटावर लेखों ने सामाजिक अशांति की स्थिति में ईश्‍वरीय शिक्षा का पालन करने के लिए परमेश्‍वर के लोगों की मदद की।—रोमियों १३:१-७; प्रेरितों ५:२९.

१८. सामान्य युग दूसरी और तीसरी शताब्दी में तथाकथित मसीहियों ने अपभ्रष्ट मनोरंजन को किस दृष्टि से देखा, और उस सम्बन्ध में आज ईश्‍वरीय शिक्षा क्या मदद देती है?

१८ ईश्‍वरीय शिक्षा प्रलोभनों पर विजयी होने के लिए हमारी मदद करती है, जैसे कि अपभ्रष्ट मनोरंजन खोजने के प्रलोभन। ध्यान दीजिए कि हमारे सामान्य युग की दूसरी और तीसरी शताब्दी के तथाकथित मसीहियों ने क्या कहा था। टर्टुलियन ने लिखा: “बोलने, देखने या सुनने में सर्कस के पागलपन, रंगशाला की निर्लज्जता, अखाड़े की क्रूरता के साथ हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है।” उस समय के एक और लेखक ने पूछा: “जबकि एक वफ़ादार मसीही बुराई के बारे में शायद सोच भी नहीं सकता, वह इन अपभ्रष्ट मनोरंजनों के बीच क्या करता है? कामुकता के चित्रणों में वह क्यों आनन्द प्राप्त करता है?” जबकि ये लेखक पहली-सदी मसीहियों से कुछ वर्षों बाद के थे, उन्होंने अपभ्रष्ट मनोरंजनों की निन्दा की। आज, ईश्‍वरीय शिक्षा हमें अश्‍लील, अनैतिक, और हिंसात्मक मनोरंजन से दूर रहने की बुद्धि देती है।

१९. संसार पर विजय पाने में ईश्‍वरीय शिक्षा हमारी मदद कैसे करती है?

१९ ईश्‍वरीय शिक्षा का पालन करना हमें स्वयं संसार पर विजयी होने के लिए समर्थ करता है। जी हाँ, अपने महान उपदेशक की शिक्षा को लागू करने से हम शैतान के वश में पड़े इस संसार के दुष्ट प्रभावों पर विजयी होते हैं। (२ कुरिन्थियों ४:४; १ यूहन्‍ना ५:१९) इफिसियों २:१-३ कहता है कि परमेश्‍वर ने हमें जिलाया है हालाँकि हम अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे, जब हम आकाश के अधिकार के हाकिम के अनुसार चलते थे। हम यहोवा का धन्यवाद करते हैं कि सांसारिक अभिलाषाओं पर, और उसके तथा हमारे शत्रु—मुख्य-धोखेबाज़, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस—से उत्पन्‍न होनेवाली आत्मा पर विजयी होने के लिए ईश्‍वरीय शिक्षा हमारी मदद करती है!

२०. किन प्रश्‍नों पर और विचार किया जाना चाहिए?

२० तो फिर, स्पष्ट रूप से, ईश्‍वरीय शिक्षा अनेक तरीक़ों से विजयमान है। वास्तव में, इसकी सभी विजयों का उल्लेख करना असंभव प्रतीत होगा। यह संसार भर में लोगों को प्रभावित करती है। लेकिन यह आपके लिए क्या कर रही है? ईश्‍वरीय शिक्षा आपके जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

आपने क्या सीखा है?

▫ सच्ची बुद्धि की परिभाषा कैसे दी जा सकती है?

▫ उत्पत्ति ३:१५ के सम्बन्ध में परमेश्‍वर ने क्रमिक रूप से क्या प्रकट किया है?

▫ आध्यात्मिक बातों में ईश्‍वरीय शिक्षा कैसे विजयी हुई है?

▫ आत्मा और सच्चाई से परमेश्‍वर की उपासना करने का क्या अर्थ है?

▫ ईश्‍वरीय शिक्षा ने यहोवा के सेवकों को संकटों और संसार पर विजय पाने में कैसे मदद दी है?

[पेज 10 पर तसवीरें]

यीशु ने मृत्यु तक खराई बनाए रखी —वंश का एड़ी पर डसा जाना

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