मिट्टी के बने होने के बावजूद, आगे बढ़िए!
“वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।”—भजन १०३:१४.
१. क्या बाइबल यह कहने में वैज्ञानिक रूप से सही है कि मनुष्य मिट्टी से बनाए गए हैं? समझाइए।
शारीरिक रूप से, हम मिट्टी हैं। “यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।” (उत्पत्ति २:७) मनुष्य की सृष्टि का यह सरल वर्णन वैज्ञानिक सच्चाई के सामंजस्य में है। मानव शरीर ९० से भी ज़्यादा तत्त्वों से रचा गया है। ये सभी तत्त्व “भूमि की मिट्टी” में पाए जाते हैं। एक रसायनज्ञ ने एक बार दावा किया कि, एक प्रौढ़ मानव शरीर ६५ प्रतिशत ऑक्सीजन, १८ प्रतिशत कार्बन, १० प्रतिशत हाइड्रोजन, ३ प्रतिशत नाइट्रोजन, १.५ प्रतिशत कैल्सियम, और १ प्रतिशत फ़ॉस्फ़ोरस, और बाक़ी अन्य तत्त्वों से बना है। ये अनुमान पूरी तरह यथार्थ हैं या नहीं यह महत्त्वहीन है। तथ्य यही है: “मनुष्य मिट्टी ही हैं”!
२. जिस तरीक़े से परमेश्वर ने मनुष्यों की सृष्टि की, उससे आपके मन में कैसी प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, और क्यों?
२ यहोवा के अलावा, कौन ऐसे जटिल प्राणियों की सृष्टि सिर्फ़ मिट्टी से कर सकता था? परमेश्वर के काम परिपूर्ण और दोषरहित हैं। सो उसका इस तरीक़े से मनुष्य की सृष्टि करने का चुनाव करना निश्चित ही शिकायत का कोई कारण नहीं है। वाक़ई, महान सृष्टिकर्ता मनुष्य की सृष्टि ज़मीन की मिट्टी से एक भयानक और अद्भुत तरीक़े से करने में समर्थ रहा, यह उसकी असीम शक्ति, कौशल और व्यावहारिक बुद्धि के लिए हमारी क़दरदानी बढ़ाता है।—व्यवस्थाविवरण ३२:४, NW फुटनोट; भजन १३९:१४.
परिस्थितियों का परिवर्तन
३, ४. (क) मिट्टी से मनुष्य की सृष्टि करने में, परमेश्वर का इरादा क्या नहीं था? (ख) भजन १०३:१४ में दाऊद किस बात का उल्लेख कर रहा था, और इसका संदर्भ हमें इस नतीजे पर पहुँचने में किस तरह मदद करता है?
३ मिट्टी के प्राणियों की सीमाएँ होती हैं। बहरहाल, परमेश्वर का इरादा यह कभी नहीं था कि ये भारी या अति प्रतिबंधक हों। ये निरुत्साहित करने या दुःख में परिणित होने के लिए नहीं थीं। तथापि, जैसे भजन १०३:१४ में दाऊद के शब्दों का संदर्भ सूचित करता है, मनुष्य जिन सीमाओं के अधीन हैं, वे निरुत्साहित कर सकती हैं और दुःख में परिणित हो सकती हैं। क्यों? जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर की अवज्ञा की तब वे अपने भावी परिवार के लिए परिवर्तित स्थिति लाए। मिट्टी के बने होने ने फिर नए अर्थ लिए।a
४ दाऊद उन स्वाभाविक सीमाओं के बारे में बात नहीं कर रहा था जो मिट्टी से बने परिपूर्ण मनुष्यों की भी होतीं। बल्कि वह उन मानवी दुर्बलताओं की बात कर रहा था जो विरासत में प्राप्त अपरिपूर्णता के कारण होती हैं। वरना उसने यहोवा के बारे में नहीं कहा होता: “जो तेरे सब अधर्मों को क्षमा करता और तेरे सब रोगों को चंगा करता; जो तेरे प्राण को गड्ढे में से उबारता . . . उसने हमारे पापों के अनुसार हमसे व्यवहार नहीं किया, न हमारे अधर्म के अनुसार हमें बदला दिया।” (भजन १०३:२-४, १०, NHT) मिट्टी के बने होने के बावजूद, अगर परिपूर्ण मनुष्य वफ़ादार रहे होते, तो उन्होंने कभी ग़लती या पाप न किया होता, ताकि क्षमा की ज़रूरत हो; ना ही उन्हें ऐसे रोग होते जिन्हें चंगा करने की ज़रूरत होती। सबसे बढ़कर, उन्हें कभी मौत के गड्ढे में न उतरना पड़ता, जहाँ से उन्हें सिर्फ़ पुनरुत्थान के द्वारा फिर से उठाया जा सकता था।
५. हमारे लिए दाऊद के शब्दों को समझना कठिन क्यों नहीं है?
५ अपरिपूर्ण होने के नाते, हम सब ने उन बातों का अनुभव किया है जिन के बारे में दाऊद ने कहा। हम अपरिपूर्णता की वजह से अपनी सीमाओं के प्रति नित्य सचेत हैं। हम दुःखी हो जाते हैं जब ये यहोवा के साथ या हमारे मसीही भाइयों के साथ हमारे रिश्ते को कभी-कभी क्षति पहुँचाती प्रतीत होती हैं। हमें अफ़सोस है कि हमारी अपरिपूर्णताएँ और शैतान के संसार के दबाव हमें निराशा में धकेलते हैं। क्योंकि शैतान का शासन तेज़ी से समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, उसका संसार आम लोगों पर और ख़ासकर मसीहियों पर पहले से कहीं अधिक दबाव डाल रहा है।—प्रकाशितवाक्य १२:१२.
६. कुछ मसीही निरुत्साहित क्यों महसूस कर सकते हैं, और इस तरह की भावना का शैतान कैसे फ़ायदा उठा सकता है?
६ क्या आप को लगता है कि एक मसीही जीवन जीना अधिक कठिन हो रहा है? कुछ मसीहियों को टिप्पणी करते सुना गया है कि, जितने ज़्यादा समय वे सच्चाई में हैं, उतने ज़्यादा वे अपरिपूर्ण बनते प्रतीत होते हैं। बहरहाल, हो सकता है कि बात सिर्फ़ इतनी है कि वे अपनी ख़ुद की अपरिपूर्णताओं के बारे में ज़्यादा सचेत हुए हैं। साथ-ही-साथ यहोवा के परिपूर्ण स्तरों के जितना वे अनुकूल बनना चाहते हैं, उतना बनने में अपनी असमर्थता के बारे में भी अधिकाधिक सचेत हुए हैं। लेकिन, असल में, यह संभवतः यहोवा की धार्मिक माँगों के ज्ञान और उसकी क़दर में नित्य बढ़ते जाने का परिणाम है। यह अनिवार्य है कि हम कभी ऐसी किसी सचेतना को हमें उस हद तक निरुत्साहित न करने दें कि हम वो करें जो इब्लीस हम से करवाना चाहता है। सदियों से उसने बार-बार निरुत्साहन से लाभ उठाने की कोशिश की है, ताकि यहोवा के सेवकों को सच्ची उपासना त्यागने के लिए प्रेरित करे। फिर भी, परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम, साथ ही इब्लीस के प्रति “पूर्ण बैर” ने उनमें से ज़्यादातर लोगों को ऐसा करने से रोका है।—भजन १३९:२१, २२; नीतिवचन २७:११.
७. हम किस तरह कभी-कभी अय्यूब के समान हो सकते हैं?
७ फिर भी, यहोवा के गवाह कभी-न-कभी निरुत्साहित महसूस कर सकते हैं। अपनी ख़ुद की उपलब्धियों पर असंतुष्टि भी एक कारण हो सकता है। शारीरिक कारण या परिवार के सदस्यों, दोस्तों, अथवा सहकर्मियों के साथ मनमुटाव भी सम्मिलित हो सकता है। वफ़ादार अय्यूब इतना निरुत्साहित हुआ की वह परमेश्वर से गिड़गिड़ाया: “भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता।” अब, अगर कठिन परिस्थितियों से दबकर अय्यूब, ‘एक निर्दोष और खरा, तथा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने वाला’ समय-समय पर निरुत्साहित हो सकता था, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं की वही बात हमारे साथ भी हो सकती है।—अय्यूब १:८, १३-१९, NHT; २:७-९, ११-१३; १४:१३.
८. कभी-कभी होनेवाला निरुत्साह एक सकारात्मक चिह्न क्यों हो सकता है?
८ यह जानना कितना दिलासा देता है कि यहोवा हृदयों को देखता है और अच्छे अभिप्रायों को नज़रअंदाज़ नहीं करता! जो उसे प्रसन्न करने के लिए पूरी निष्कपटता से प्रयास करते हैं उन्हें वह कभी अस्वीकार नहीं करेगा। दरअसल, कभी-कभी होनेवाला निरुत्साह शायद एक सकारात्मक चिह्न हो सकता है, जो यह सूचित करता है कि हम यहोवा के प्रति अपनी सेवा में लापरवाह नहीं हैं। इस दृष्टिकोण से देखते हुए, जो निरुत्साह से कभी संघर्ष नहीं करता, वह आध्यात्मिक रूप से अपनी कमज़ोरियों के बारे में शायद उतना अवगत न हो जितना कि दूसरे अपनी कमज़ोरियों के बारे में अवगत हैं। याद रखिए: “जो समझता है, कि मैं स्थिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े।”—१ कुरिन्थियों १०:१२; १ शमूएल १६:७; १ राजा ८:३९; १ इतिहास २८:९.
वे भी मिट्टी के ही बने थे
९, १०. (क) मसीहियों को किस के विश्वास का अनुकरण करना चाहिए? (ख) मूसा ने अपनी कार्य-नियुक्ति के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
९ इब्रानियों अध्याय ११ में कई मसीही-पूर्व यहोवा के गवाहों की सूची है जिन्होंने मज़बूत विश्वास रखा। पहली सदी के और आधुनिक समय के मसीहियों ने भी ऐसा ही किया है। उन से सीखे जानेवाले सबक़ बहुमूल्य हैं। (इब्रानियों १३:७ से तुलना कीजिए।) उदाहरण के लिए, मसीहियों के अनुकरण के लिए मूसा से बढ़कर किसका विश्वास हो सकता है? उसे अपने समय के सबसे शक्तिशाली विश्व शासक, अर्थात मिस्र के फ़िरौन को न्याय के संदेशों को घोषित करने के लिए कहा गया था। आज, यहोवा के गवाहों को झूठे धर्म के विरुद्ध और ऐसे अन्य संगठनों के विरुद्ध, जो मसीह के स्थापित राज्य के विरोध में हैं, समान न्याय के संदेश घोषित करने हैं।—प्रकाशितवाक्य १६:१-१५.
१० इस आदेश को पूरा करना कोई आसान कार्य-नियुक्ति नहीं है, जैसे मूसा ने दिखाया। “मैं कौन हूं जो फ़िरौन के पास जाऊं, और इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले आऊं?” उसने पूछा। हम उसकी अपर्याप्तता की भावनाओं को समझ सकते हैं। वह इस बारे में भी चिन्तित था कि संगी इस्राएली कैसी प्रतिक्रिया दिखाएँगे: “यदि वे मेरा विश्वास न करें या मेरी बात न मानें।” (NHT) यहोवा ने फिर उसे समझाया कि किस तरह वह अपने प्राधिकरण को साबित कर सकता है, लेकिन मूसा को एक और समस्या थी। उसने कहा: “हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा; मैं तो मुंह और जीभ का भद्दा हूं।”—निर्गमन ३:११; ४:१, १०.
११. मूसा की तरह, हम ईश्वरशासित बाध्यताओं के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं, लेकिन विश्वास रखने के द्वारा हम किस बात के लिए निश्चित हो सकते हैं?
११ कभी-कभी, हम मूसा की तरह महसूस कर सकते हैं। हालाँकि हम अपनी ईश्वरशासित बाध्यताओं को पहचानते हैं, फिर भी शायद सोच सकते हैं कि हम इन्हें कभी पूरा भी कर पाएँगे। ‘मैं कौन हूँ कि मैं लोगों के पास जाऊँ, जिनमें से कुछ ऊँचे सामाजिक, आर्थिक, या शैक्षिक वर्ग के होंगे, और उन्हें परमेश्वर के मार्गों में शिक्षा देने का साहस करूं? जब मैं मसीही सभाओं में टिप्पणियाँ देता हूँ, या ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में मंच से प्रस्तुतियाँ पेश करता हूँ, तो मेरे आध्यात्मिक भाई कैसी प्रतिक्रिया दिखाएँगे? क्या वे मेरी अपर्याप्तता को नहीं देखेंगे?’ लेकिन याद रखिए, यहोवा मूसा के साथ था और उसे उसकी कार्य-नियुक्ति के लिए सुसज्जित किया क्योंकि मूसा ने विश्वास रखा। (निर्गमन ३:१२; ४:२-५, ११, १२) अगर हम मूसा के विश्वास का अनुकरण करेंगे, तो यहोवा हमारे साथ होगा और हमारे काम के लिए हमें सुसज्जित भी करेगा।
१२. पापों या कमियों के कारण निरुत्साहित होने की परिस्थिति में दाऊद का विश्वास हमें किस तरह प्रोत्साहित कर सकता है?
१२ यदि कोई पापों या कमियों की वजह से कुंठित या निरुत्साहित महसूस करता है, तो उसकी स्थिति दाऊद की तरह हो सकती है, जब उसने कहा: “मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।” यहोवा से गिड़गिड़ाते हुए, दाऊद ने यह भी कहा: “अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सारे अर्धम के कामों को मिटा डाल।” लेकिन, उसने निरुत्साह को कभी भी यहोवा की सेवा करने की उसकी इच्छा छीनने नहीं दी। “मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर।” दाऊद स्पष्टतः “मिट्टी” था, लेकिन यहोवा ने उससे मुंह नहीं फेरा, क्योंकि दाऊद ने यहोवा के वचन में विश्वास रखा कि वह ‘टूटे मन’ का तिरस्कार नहीं करेगा।—भजन ३८:१-९; ५१:३, ९, ११, १७.
१३, १४. (क) हमें मनुष्यों के अनुयायी क्यों नहीं बनना चाहिए? (ख) पौलुस और पतरस के उदाहरण किस तरह दिखाते हैं कि वे भी मिट्टी के ही बने थे?
१३ फिर भी, नोट कीजिए कि हालाँकि हमें ‘गवाहों के ऐसे बड़े बादल’ को ‘वह दौड़ जिस में हम दौड़ रहे हैं, धीरज से दौड़ने’ के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में देखना है, हमें उनके अनुयायी बनने के लिए नहीं कहा गया है। हमें “विश्वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु” के पदचिह्नों का अनुगमन करने के लिए कहा गया है, अपरिपूर्ण मनुष्यों का नहीं—यहाँ तक कि पहली शताब्दी के विश्वासयोग्य प्रेरितों का भी नहीं।—इब्रानियों १२:१, २; १ पतरस २:२१.
१४ मसीही कलीसिया के खंभे, प्रेरित पौलुस और पतरस ने कभी-कभी ठोकर खाई। “जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूं,” पौलुस ने लिखा। “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं!” (रोमियों ७:१९, २४) और पतरस ने अति-विश्वास के एक क्षण में यीशु से कहा: “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएं तो खाएं, परन्तु मैं कभी भी ठोकर ना खाऊंगा।” जब यीशु ने पतरस को चिताया कि वह उसका तीन बार इनकार करेगा, तब पतरस ने अपने स्वामी का अहंकार से विरोध किया, यह शेखी मारते हुए: “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तौभी मैं तुझ से कभी न मुकरूंगा।” फिर भी, उसने यीशु का इनकार किया, एक ऐसी ग़लती जिससे वह फूट-फूट कर रोया। जी हाँ, पौलुस और पतरस मिट्टी के बने थे।—मत्ती २६:३३-३५.
१५. इस तथ्य के बावजूद कि हम मिट्टी के बने हैं, हमारे पास आगे बढ़ने के लिए कौन-सी प्रेरणा है?
१५ बहरहाल, अपनी दुर्बलताओं के बावजूद, मूसा, दाऊद, पौलुस, पतरस और उनके जैसे अन्य लोग विजयी हुए। क्यों? क्योंकि उन्होंने यहोवा पर मज़बूत विश्वास रखा, उस पर निर्विवाद भरोसा रखा, और उन्नति में रुकावटों के बावजूद उससे लगे रहे। उन्होंने “असीम सामर्थ” प्रदान करने के लिए उस पर भरोसा रखा। और उसने वैसा किया, उन्हें उस हद तक कभी नहीं गिरने दिया कि वे फिर न उठ सकें। अगर हम विश्वास को बनाए रखते हैं, तो हम आश्वस्त हो सकते हैं कि जब हमारे मामले में न्याय दिया जाएगा, वह इन शब्दों के सामंजस्य में होगा: “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया।” इस तथ्य के बावजूद कि हम मिट्टी के बने हैं, यह हमें आगे बढ़ने के लिए क्या ही प्रेरणा देता है!—२ कुरिन्थियों ४:७; इब्रानियों ६:१०.
मिट्टी का बना होना व्यक्तिगत रूप से हमारे लिए क्या अर्थ रखता है?
१६, १७. जब आँकने की बात आती है, तो यहोवा गलतियों ६:४ में समझाए गए सिद्धान्त को कैसे लागू करता है?
१६ अनुभव ने अनेक माता-पिताओं और अध्यापकों को इस बात की बुद्धिमत्ता सिखायी है कि वे बच्चों या विद्यार्थियों को व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुसार आँकें, न की सहोदरों या सहपाठियों के साथ तुलना के आधार पर। यह एक बाइबल सिद्धान्त के सामंजस्य में है, जिसे मसीहियों को अनुकरण करने के लिए कहा गया है: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।”—गलतियों ६:४.
१७ इस सिद्धान्त के सामंजस्य में, हालाँकि यहोवा अपने लोगों के साथ एक संगठित समूह के रूप में व्यवहार करता है, वह व्यक्तियों के तौर पर उनका न्याय करता है। रोमियों १४:१२ कहता है: “हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।” यहोवा अपने हर एक सेवक की आनुवंशिक रचना अच्छी तरह जानता है। वह उनकी शारीरिक और मानसिक रचना, उनकी योग्यताओं, विरासत में प्राप्त उनकी शक्तियों और कमज़ोरियों, उन में जो क्षमताएँ हैं, साथ-ही-साथ मसीही फल उत्पन्न करने में वे इन क्षमताओं का किस हद तक फ़ायदा उठाते हैं, उसे वह जानता है। उस विधवा के बारे में यीशु की टिप्पणियाँ, जिसने मंदिर के कोष में दो छोटी दमड़ियाँ डाली थीं और अच्छी भूमि में बोए गए बीज का उसका दृष्टांत उन मसीहियों के लिए प्रोत्साहक उदाहरण हैं, जो मूर्खता से ख़ुद की तुलना दूसरों के साथ करने की वजह से शायद हताश महसूस करते होंगे।—मरकुस ४:२०; १२:४२-४४.
१८. (क) हमें यह क्यों निश्चित करना चाहिए कि मिट्टी से बने होने का व्यक्तिगत रूप से हमारे लिए क्या अर्थ है? (ख) एक निष्कपट आत्म-परीक्षण के कारण हमें निराश क्यों नहीं होना चाहिए?
१८ यह अत्यावश्यक है कि हम निश्चय करें कि हमारे व्यक्तिगत मामले में मिट्टी होने का क्या अर्थ है ताकि हम अपनी पूरी क्षमता से सेवा कर सकते हैं। (नीतिवचन १०:४; १२:२४; १८:९; रोमियों १२:१) अपनी व्यक्तिगत दुर्बलताओं और कमज़ोरियों के बारे में तीव्रता से अवगत होने के द्वारा ही हम सुधार की ज़रूरत और संभावनाओं के बारे में सचेत रह सकते हैं। आइए हम कभी भी आत्म-परीक्षण करते वक़्त सुधार करने में मदद करने के लिए पवित्र आत्मा की शक्ति की उपेक्षा न करें। उसी के द्वारा विश्व की सृष्टि की गयी, बाइबल लिखी गयी, और एक मरणासन्न संसार के बीच, एक शान्तिपूर्ण नया संसार समाज अस्तित्त्व में लाया गया है। सो परमेश्वर की पवित्र आत्मा निश्चित ही इतनी शक्तिशाली है कि जो लोग खराई बनाए रखने के लिए आवश्यक बुद्धि और ताक़त माँगते हैं, उन्हें वह इन चीज़ों को दे सकता है।—मीका ३:८; रोमियों १५:१३; इफिसियों ३:१६.
१९. हमारा मिट्टी से बना होना किस बात के लिए कोई बहाना नहीं है?
१९ यह जानना कितनी तसल्ली देता है कि यहोवा याद रखता है कि हम मिट्टी हैं! लेकिन, हमें कभी भी यह तर्क नहीं करना चाहिए कि, कम परिश्रमी होने या शायद बुराई करने के लिए भी यह एक वैध कारण है। बिलकुल नहीं! यहोवा याद रखता है कि हम मिट्टी हैं, यह उसके अपात्र अनुग्रह की एक अभिव्यक्ति है। लेकिन हम ‘भक्तिहीन, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालनेवाले, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करनेवाले’ नहीं होना चाहते हैं। (यहूदा ४) मिट्टी का बना होना, भक्तिहीन होने के लिए कोई बहाना नहीं है। एक मसीही बुरी प्रवृत्तियों का विरोध करने के लिए संघर्ष करता है, अपने शरीर को मारता-कूटता है और उसे एक दास के नाईं वश में लाता है, ताकि “परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित” करने से दूर रहे।—इफिसियों ४:३०; १ कुरिन्थियों ९:२७.
२०. (क) कौनसे दो पहलुओं में हमारे पास “प्रभु के काम में करने के लिए बहुत है” (NW)? (ख) आशावाद के लिए हमारे पास कारण क्यों है?
२० अब, शैतान की विश्व व्यवस्था के अन्तिम वर्षों के दौरान—जहाँ तक राज्य प्रचार का सवाल है, और जहाँ तक परमेश्वर की आत्मा के फलों को और पूरी तरह से विकसित करने का सवाल है—धीमा होने का समय नहीं है। दोनों ही क्षेत्रों में हमें ‘करने के लिए बहुत है।’ (NW) अभी समय है बढ़ते जाने के लिए क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा “परिश्रम . . . व्यर्थ नहीं है।” (१ कुरिन्थियों १५:५८) यहोवा हमें सम्भालेगा, क्योंकि उसके बारे में दाऊद ने कहा: “वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन ५५:२२) यह जानना कितने हर्ष की बात है कि यहोवा अपरिपूर्ण मानव प्राणियों को अब तक नियुक्त किए गए सबसे महान कार्य में हमें व्यक्तिगत रूप से हिस्सा लेने की अनुमति दे रहा है—और वह भी इसके बावजूद कि हम मिट्टी से बनाए गए हैं!
[फुटनोट]
a भजन १०३:१४ पर टिप्पणी करते हुए, बाइबल टिका-टिप्पणी हरडर्स् बीबेलकोमेंटॉर नोट करती है: “वह अच्छी तरह जानता है कि उसने मनुष्यों को भूमि की मिट्टी से बनाया है, और वह उनके जीवन की कमज़ोरियों और अल्पस्थायी स्वभाव को जानता है, जो उन पर प्रारंभिक पाप के समय से भार है।”—तिरछे टाइप हमारे।
क्या आप समझा सकते हैं?
▫ मनुष्य के मिट्टी से बने होने के बारे में उल्लेख करते समय उत्पत्ति २:७ और भजन १०३:१४ किस तरह भिन्न हैं?
▫ इब्रानियों अध्याय ११ आज मसीहियों के लिए प्रोत्साहन का एक स्रोत क्यों है?
▫ गलतियों ६:४ में दिए गए सिद्धान्त को लागू करना हमारे लिए बुद्धिमानी की बात क्यों है?
▫ इब्रानियों ६:१० और १ कुरिन्थियों १५:५८ निरुत्साह को रोकने में कैसे मदद कर सकते हैं?
[पेज 10 पर तसवीरें]
मसीही संगी उपासकों के विश्वास का अनुकरण करते हैं, पर वे अपने विश्वास के कर्त्ता, यीशु का अनुगमन करते हैं