वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w94 9/1 पेज 5-7
  • विज्ञान, धर्म, और सत्य की खोज

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • विज्ञान, धर्म, और सत्य की खोज
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
  • उपशीर्षक
  • धर्म सृष्ट को एक बुरा नाम देता है
  • अधिकार का दुरुपयोग
  • सच्चे धर्म की जीत
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
w94 9/1 पेज 5-7

विज्ञान, धर्म, और सत्य की खोज

“इस तथ्य का मुझ पर कुछ प्रभाव पड़ा कि . . . अनेक झूठे धर्म फैल गए हैं।”—चार्ल्स डार्विन

प्रारंभिक १९वीं शताब्दी के दौरान, विज्ञान और धर्म ने एक सुसंगत सम्बन्ध का आनन्द उठाया। “वैज्ञानिक लेखनों में भी,” डार्विन: बिफ़ोर्‌ एण्ड आफ़टर्‌ (अंग्रेज़ी) पुस्तक कहती है, “लेखकों को परमेश्‍वर के बारे में एक ऐसे ढंग से बात करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होती थी जो प्रत्यक्षतः स्वाभाविक और निष्कपट था।”

डार्विन की जातियों का उद्‌गम (अंग्रेज़ी) ने उसे बदलने में योग दिया। विज्ञान और क्रमविकास ने एक ऐसा आपसी सम्बन्ध स्थापित किया जिसने धर्म और परमेश्‍वर की ज़रूरत की उपेक्षा की। “विकासात्मक सोच-विचार में,” सर जूलियन हक्सली कहता है, “एक परमेश्‍वरीय सृष्टिकर्ता का अस्तित्त्व न तो आवश्‍यक है न ही उपयुक्‍त।”

आज ऐसा दावा किया जाता है कि विकासवाद विज्ञान की एक अनिवार्य बुनियाद है। इस सम्बन्ध के लिए एक मुख्य कारण की पहचान भौतिकविज्ञानी फ्रेड हॉइल कराता है: “रूढ़िवादी वैज्ञानिक सत्य की ओर आगे देखने के बजाय अतीत के धार्मिक आत्यंतिक दृष्टिकोणों की ओर वापसी को रोकने के लिए ज़्यादा चिन्तित हैं।” किस प्रकार के आत्यंतिक दृष्टिकोणों ने धर्म को विज्ञान के लिए इतना अप्रिय बनाया है?

धर्म सृष्ट को एक बुरा नाम देता है

बाइबल के समर्थन के लिए एक तथाकथित प्रयास में, “सृष्टिवादियों” ने—जो ज़्यादातर मूलतत्ववादी प्रोटेस्टेंट लोगों के साथ संबद्ध हैं—हठ किया है कि पृथ्वी और विश्‍वमंडल की आयु १०,००० वर्ष से कम है। इस आत्यंतिक दृष्टिकोण का भूविज्ञानियों, खगोलज्ञयों और भौतिकवादियों ने उपहास किया है, क्योंकि यह उनकी खोजों से मेल नहीं खाता है।

लेकिन बाइबल वास्तव में क्या कहती है? “आदि में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” (उत्पत्ति १:१) इसमें सम्मिलित समय का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। उत्पत्ति १:३-५ तक सृष्टि के ‘पहिले दिन’ का ज़िक्र भी नहीं किया गया है। इस पहले “दिन” के आरंभ होने से पहले ही “आकाश और पृथ्वी” अस्तित्त्व में थे। अतः, क्या आकाश और पृथ्वी खरबों वर्ष पुराने हो सकते हैं, जैसे कि वैज्ञानिक दावा करते हैं? ऐसा हो सकता है। जितना समय लगा उसके बारे में बाइबल विशेष रूप से उल्लेख नहीं करती है।

जिस तरह से कुछ लोग सृष्टि के छः ‘दिनों’ को समझते हैं वह धर्म का दूसरा आत्यंतिक दृष्टिकोण है। कुछ मूलतत्ववादी हठ करते हैं कि पार्थिव सृष्टि के दिन शाब्दिक हैं। वे इन्हें १४४ घंटों की अवधि में सीमित कर देते हैं। यह वैज्ञानिकों में संशयवाद भड़काता है, क्योंकि वे महसूस करते हैं कि यह दावा स्पष्ट वैज्ञानिक प्रेक्षणों का विरोध करता है।

लेकिन, यह बाइबल की मूलतत्ववादी समझ है—न की ख़ुद बाइबल—जो विज्ञान के साथ असहमत है। बाइबल यह नहीं कहती है कि प्रत्येक सृजनात्मक “दिन” २४ घंटे लम्बा था; असल में, वह इन सारे ‘दिनों’ को उस ज़्यादा लम्बे “दिन” में सम्मिलित करती है जिसमें “यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया,” और इस तरह यह दिखाती है कि सब बाइबलीय “दिन” सिर्फ़ २४ घंटे के नहीं हैं। (उत्पत्ति २:४) कुछ दिन लम्बाई में शायद कई हज़ार वर्ष के हों।a

अतः, सृष्टिवादियों और मूलतत्ववादियों ने सृष्टि के विचार को एक बुरा नाम दिया है। विश्‍वमंडल की आयु और सृजनात्मक ‘दिनों’ की लम्बाई के बारे में उनकी शिक्षाएँ न तो तर्कसंगत विज्ञान के साथ और न ही बाइबल के साथ सामंजस्य में हैं। लेकिन, अन्य आत्यंतिक दृष्टिकोण भी हैं जिन्होंने धर्म को वैज्ञानिकों के लिए अप्रिय बना दिया है।

अधिकार का दुरुपयोग

पूरे इतिहास में, काफ़ी अन्याय के लिए धर्म ज़िम्मेदार रहा है। उदाहरण के लिए, मध्य युग के दौरान, यूरोप के एकतंत्र में गिरजे के समर्थन को न्यायसंगत ठहराने के लिए सृष्टि के सिद्धान्त को विकृत किया गया। निहितार्थ यह था कि चाहे धनी हों या निर्धन, मनुष्यों को उनके स्थान पर ईश्‍वरीय फ़ैसले द्वारा रखा गया था। दी इन्‌टेलिजेंट यूनिवर्स (अंग्रेज़ी) पुस्तक समझाती है: “धनवानों के छोटे बेटों से कहा जाता था कि उन्हें पारिवारिक संपत्ति का थोड़ा-सा हिस्सा मिलना या कुछ भी नहीं मिलना ‘परमेश्‍वर की व्यवस्था’ थी, और मज़दूर से निरंतर आग्रह किया जाता था कि ‘जो स्थान परमेश्‍वर ने उसके लिए ठहराया है’ उसमें वह संतुष्ट रहे।”

यह आश्‍चर्यजनक नहीं है कि अनेक लोग “अतीत के धार्मिक आत्यंतिक दृष्टिकोणों” की ओर वापस जाने से डरते हैं! मनुष्य की आध्यात्मिक ज़रूरत को पूरा करने के बजाय, धर्म ने उसकी आध्यात्मिक ज़रूरत का अकसर शोषण किया है। (यहेजकेल ३४:२) इंडिया टुडे (अंग्रेज़ी) पत्रिका में एक संपादकीय लेख टिप्पणी करता है: “सदियों के दौरान उसने जिस प्रकार का रिकार्ड स्थापित किया है, यह एक आश्‍चर्य है कि धर्म ने थोड़ी भी विश्‍वसनीयता बनाए रखी है। . . . सर्वोच्च सृष्टिकर्ता के नाम पर, . . . मनुष्यों ने अपने संगी मनुष्यों के विरुद्ध सबसे घृणित नृशंसता की है।”

झूठे धर्म के भयावह रिकार्ड का डार्विन के विचार पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। “ईश्‍वरीय प्रकटीकरण के तौर पर मसीहियत में मैं आहिस्ता-आहिस्ता अविश्‍वास करने लगा,” उसने लिखा। “इस तथ्य का मुझ पर कुछ प्रभाव पड़ा कि अनेक झूठे धर्म पृथ्वी के विशाल भागों में बड़ी तेज़ी से फैल गए हैं।”

सच्चे धर्म की जीत

धार्मिक पाखण्ड इस संसार के लिए नया नहीं है। यीशु ने अपने समय के अधिकार-के-भूखे धार्मिक अगुवों से कहा: “तुम ऊपर से अच्छे मनुष्यों की तरह दिखायी देते हो—पर भीतर तुम दिखावे और दुष्टता के ढेर हो।”—मत्ती २३:२८, फिलिप्पस्‌।

लेकिन, असली मसीहियत “संसार का कोई भाग नहीं” है। (यूहन्‍ना १७:१६, NW) उसके अनुयायी भ्रष्ट धर्म और राजनीति में भाग नहीं लेते; न ही वे ऐसे तत्त्वज्ञान से गुमराह होते हैं जो सृष्टिकर्ता के अस्तित्त्व को अस्वीकार करता है। “इस संसार का ज्ञान परमेश्‍वर के निकट मूर्खता है,” प्रेरित पौलुस ने लिखा।—१ कुरिन्थियों ३:१९.

फिर भी, इसका यह अर्थ नहीं है कि असली मसीही वैज्ञानिक रूप से अज्ञान हैं। इसके विपरीत, सच्चे धर्म के अनुयायी विज्ञान के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं। “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो,” प्राचीन भविष्यवक्‍ता यशायाह से कहा गया था। “किस ने इनको सिरजा?” (यशायाह ४०:२६) समान रूप से, सृष्टिकर्ता को बेहतर समझने के लिए, अय्यूब को प्रकृति और विश्‍वमंडल के चमत्कारों की छान-बीन करने के लिए आमंत्रित किया गया था।—अय्यूब, अध्याय ३८-४१.

जी हाँ, जो सृष्टिकर्ता में विश्‍वास करते हैं वे श्रद्धापूर्ण विस्मय से सृष्टि को देखते हैं। (भजन १३९:१४) इसके अतिरिक्‍त, वे भविष्य की अद्‌भुत आशा के बारे में सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्‍वर जो कहता है उस पर भरोसा रखते हैं। (प्रकाशितवाक्य २१:१-४) बाइबल के अध्ययन के द्वारा, लाखों लोग सीख रहे हैं कि न तो मनुष्य का उद्‌गम और न ही उसका भविष्य अंधाधुंध संयोग पर निर्भर करता है। मनुष्य को बनाने में यहोवा का एक उद्देश्‍य था, और वह उद्देश्‍य पूरा होगा जिससे सभी आज्ञाकारी मनुष्यों को आशीष प्राप्त होगी। हम आपको ख़ुद इस विषय की जाँच करने के लिए आमंत्रित करते हैं।

[फुटनोट]

a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित नवम्बर ८, १९८२ की अवेक!, पृष्ठ ६-९ और शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्ट (अंग्रेज़ी), खण्ड १, पृष्ठ ५४५ देखिए। विज्ञान और बाइबल के साथ सृष्टिवाद तथा उसके विरोधों पर अधिक जानकारी के लिए, मार्च ८, १९८३, पृष्ठ १२-१५, और मार्च २२, १९८३, पृष्ठ १२-१५ के अवेक! अंकों को देखिए।

[पेज 6 पर बक्स]

प्रमाण के बारे में अनजान?

“यहोवा के गवाहों ने भी जीव-विज्ञान के बारे में काफ़ी कुछ सीखा है,” वकील नॉरमन मैक्बेथ ने अपनी १९७१ की पुस्तक डार्विन रीट्राइड—एन अपील टू रीज़न (अंग्रेज़ी) में लिखा। क्रमविकास के विषय पर अवेक! का एक लेख पढ़ने पर मैक्बेथ लिखता है: “मैं यह पाकर चकित हुआ कि उसमें डार्विनवाद की कुछ विवेकपूर्ण आलोचना थी।” विस्तृत शोध और उस विषय के विशेषज्ञों के विवेकशील उद्धरणों पर ध्यान देते हुए, लेखक ने निष्कर्ष निकाला: “सिम्पसन के लिए यह कहना अब सही नहीं रहा: ‘. . .जो उस [क्रमविकास] में विश्‍वास नहीं करते हैं, वे लगभग सब के सब, प्रत्यक्षतः वैज्ञानिक प्रमाण के बारे में अनजान हैं।’”

[तसवीर]

मानवजाति का भविष्य अंधाधुंध संयोग पर नहीं छोड़ा गया है

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें