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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
w94 9/1 पेज 3-5

क्रमविकास पर मुक़दमा

वचनबद्ध विकासवादी अब जैविक उद्‌गम की दुबारा पूरी तरह जाँच करने के लिए कोलाहल मचा रहे हैं

कल्पना कीजिए कि आप एक अपराधिक मुक़दमे में एक विधिवेत्ता हैं। प्रतिवादी अपनी निर्दोषता घोषित करता है, और उसके पक्ष में गवाही देने के लिए गवाह सामने आते हैं। बहरहाल, उनकी गवाही को सुनते वक़्त आप नोट करते हैं कि प्रत्येक गवाह दूसरे गवाहों का खण्डन करता है। फिर, जब प्रतिपक्ष गवाहों को गवाहों के कटघरे में बुलाया जाता है, तो उनकी कहानियाँ बदल जाती हैं। एक विधिवेत्ता के रूप में, क्या आप उनकी गवाही को महत्त्व देंगे? क्या आप अभियुक्‍त को बरी करने के लिए प्रवृत्त होंगे? संभवतः नहीं, क्योंकि प्रतिवादी के पक्ष में दी गयी गवाही में कोई भी असंगति प्रतिवादी की विश्‍वसनीयता को कमज़ोर बना देती है।

विकासवाद के साथ ऐसी ही स्थिति है। विकासवाद की प्रतिरक्षा करते हुए, जीवन के उद्‌गम के बारे में विविध स्पष्टीकरण देने के लिए गवाहों की भीड़ सामने आयी है। लेकिन क्या उनकी गवाही न्यायालय में टिकेगी? क्या वे लोग जो इस सिद्धान्त का समर्थन करते हैं सहमति में बोलते हैं?

विरोधात्मक गवाही

जीवन का आरंभ कैसे हुआ? शायद ही किसी दूसरे प्रश्‍न ने इतनी ज़्यादा अटकलबाज़ी उकसायी हो और वाद-विवाद उत्पन्‍न किया हो। फिर भी, विवाद सिर्फ़ क्रमविकास के विरुद्ध सृष्टि का नहीं है; काफ़ी विरोध तो ख़ुद विकासवादियों के बीच में ही होता है। असल में, क्रमविकास के हरेक विवरण—वह कैसे हुआ, कहाँ शुरू हुआ, किसने या किस चीज़ ने उसे शुरू किया, और प्रक्रिया में कितना समय लगा—पर तीव्रता से विवाद चल रहा है।

वर्षों तक विकासवादियों ने दावा किया कि जीवन जैविक “सूप” के एक गर्म तालाब में आरंभ हुआ। कुछ लोग अब विश्‍वास करते हैं कि समुद्र के झाग ने जीवन उत्पन्‍न किया होगा। जीवन के उद्‌गम का एक और प्रस्तावित स्थल समुद्रतल के गर्म पानी के सोते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि जीवित जीव पृथ्वी पर उतरनेवाले उल्कों पर आए। अन्य लोग कहते हैं कि संभवतः क्षुद्रग्रहों ने पृथ्वी से टकराने और वायुमंडल को बदलने के द्वारा जीवन के विकास को उत्तेजित किया। एक अनुसंधायक कहता है, “यदि एक बड़ा लौह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराएगा, तो दिलचस्प बातें हो सकती हैं।”

जीवन की शुरूआत के स्वरूप पर भी पुनर्विचार किया जा रहा है। टाइम पत्रिका सुझाती है, “जीवन शांत, हितकर परिस्थितियों में उत्पन्‍न नहीं हुआ, जैसे कि पहले अनुमान लगाया गया था। लेकिन वह एक ऐसे ग्रह के नारकीय आकाश तले उत्पन्‍न हुआ जो ज्वालामुखीय विस्फोट द्वारा तबाह और धूमकेतु तथा क्षुद्रग्रहों द्वारा ख़तरे में था।” कुछ वैज्ञानिक अब कहते हैं कि, ऐसी अस्तव्यस्तता के मध्य जीवन के विकसित होने की संपूर्ण प्रक्रिया पहले विचार किए गए समय से कम अवधि में पूरी हुई होगी।

वैज्ञानिकों के पास उसके बारे में भी अलग-अलग दृष्टिकोण हैं कि परमेश्‍वर ने—“यदि वह अस्तित्त्व में है तो”—जीवन के उद्‌गम के सम्बन्ध में क्या भूमिका निभायी। कुछ लोग कहते हैं कि जीवन सृष्टिकर्ता के हस्तक्षेप के बिना विकसित हुआ, जबकि दूसरे सुझाते हैं कि परमेश्‍वर ने यह प्रक्रिया शुरू की और फिर जीवन के विकास को जारी रखने के लिए क्रमविकास पर छोड़ दिया।

जीवन आरंभ होने के बाद, क्रमविकास कैसे घटित हुआ? इस पर भी, कहानियाँ असहमति में हैं। जातियों का उद्‌गम (अंग्रेज़ी) प्रकाशित होने के एक शताब्दी बाद, १९५८ में विकासवादी सर जूलियन हक्सली ने कहा: “डार्विन की महान ख़ोज, अर्थात्‌ प्राकृतिक वरण का विश्‍वव्यापी सिद्धान्त, प्रमुख विकासात्मक परिवर्तन के एकमात्र साधन के रूप में दृढ़तापूर्वक और अंततः सिद्ध हो गयी है।” लेकिन, २४ वर्षों के बाद, विकासवादी माइकल रूज़ ने लिखा: “बढ़ती संख्या में जीव-विज्ञानी . . . तर्क करते हैं कि डार्विनी सिद्धान्तों पर आधारित कोई भी विकासात्मक सिद्धान्त—ख़ासकर कोई भी सिद्धान्त जो प्राकृतिक वरण को विकासात्मक परिवर्तन की एकमात्र कुंजी समझता है—भ्रामक रूप से अपूर्ण है।”

टाइम पत्रिका, जबकि कहती है कि विकासवाद के समर्थन में “अनेक ठोस तथ्य” हैं, फिर भी स्वीकार करती है कि क्रमविकास एक जटिल वृत्तांत है, जिसमें “अनेक त्रुटियाँ हैं और प्रमाण में कम पड़ रहे अंशों की पूर्ति किस प्रकार करनी है उसके बारे में विरोधात्मक सिद्धान्तों की कोई कमी नहीं है।” यह सुझाने के बजाय कि मुक़दमा समाप्त हो चुका है, कुछ अति वचनबद्ध विकासवादी अब जैविक उद्‌गम की पूरी तरह दुबारा जाँच करने के लिए कोलाहल मचा रहे हैं।

अतः, क्रमविकास के पक्ष में बहस—ख़ासकर क्रमविकास के अनुसार जीवन की शुरूआत के लिए—संगत गवाही पर आधारित नहीं है। वैज्ञानिक टी. एच. जनॉबी टिप्पणी करता है कि जो क्रमविकास का समर्थन करते हैं उन्होंने “वर्षों के दौरान अनेक त्रुटिपूर्ण सिद्धान्तों को विकसित किया और त्यागा है तथा वैज्ञानिक अभी तक किसी एक सिद्धान्त पर सहमत होने में समर्थ नहीं हुए हैं।”

दिलचस्पी की बात यह है कि, चार्ल्स डार्विन ने ऐसे विरोध का पूर्वानुमान लगाया था। जातियों का उद्‌गम (अंग्रेज़ी) के परिचय में उसने लिखा: “मैं अच्छी तरह अवगत हूँ कि इस पुस्तक में शायद ही ऐसे किसी मुद्दे पर चर्चा की गयी है जिस पर तथ्य प्रस्तुत नहीं किए जा सकते। ये तथ्य अकसर प्रत्यक्षतः ऐसे निष्कर्षों की ओर ले जाते हैं जो मेरे निष्कर्षों से बिलकुल विपरीत हैं।”

वाक़ई, ऐसी विरोधात्मक गवाही विकासवाद की विश्‍वसनीयता के बारे में प्रश्‍न खड़े करती है।

क्या क्रमविकास प्रज्ञात्मक चयन है?

माइलस्टोन्स्‌ ऑफ हिस्ट्री (अंग्रेज़ी) पुस्तक नोट करती है कि, विकासवाद अपनी शुरूआत से “अनेक लोगों को आकर्षक लगा क्योंकि वह वस्तुतः विशिष्ट सृष्टियों के सिद्धान्त से ज़्यादा वैज्ञानिक प्रतीत हुआ।”

इसके अतिरिक्‍त, कुछ विकासवादियों के मताग्रही कथन भयभीत करनेवाले हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक एच. एस. शेलटन निश्‍चयपूर्वक कहता है कि विशिष्ट सृष्टियों की धारणा “गंभीर विचार के लिए अति मूर्खतापूर्ण है।” जीव-विज्ञानी रिचर्ड डॉकन्स्‌ साफ़-साफ़ कहता है: “यदि आप किसी व्यक्‍ति से मिलते हैं जो क्रमविकास में विश्‍वास नहीं करने का दावा करता है तो वह व्यक्‍ति अनजान, बेवकूफ़ या पागल है।” समान रूप से, प्रोफ़ेसर रेने डूबो कहता है: “ज़्यादातर प्रबुद्ध व्यक्‍ति अब इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करते हैं कि विश्‍व में सभी कुछ—खगोलीय पिंडों से मनुष्यों तक—विकासात्मक प्रक्रियाओं के ज़रिये विकसित हुआ है और विकसित होना जारी रखा है।”

इन कथनों से ऐसा प्रतीत हो सकता है कि जिस किसी के पास थोड़ी-सी भी बुद्धि है वह तत्परता से क्रमविकास को स्वीकार करेगा। आख़िरकार, ऐसा करने का अर्थ होगा कि एक व्यक्‍ति “बेवकूफ़” के बजाय “प्रबुद्ध” है। फिर भी, ऐसे उच्च शिक्षा-प्राप्त पुरुष और स्त्रियाँ हैं जो विकासवाद का समर्थन नहीं करते। “मैंने अनेक वैज्ञानिकों को पाया जिनके अपने संदेह थे,” फ्रांसिस हिचिंग अपनी पुस्तक जिराफ़ की गर्दन (अंग्रेज़ी) में लिखता है, “और थोड़े-से ऐसे व्यक्‍तियों को भी पाया जिन्होंने यहाँ तक कहा कि डार्विनी विकासात्मक सिद्धान्त बिलकुल ही एक वैज्ञानिक सिद्धान्त प्रमाणित नहीं हुआ है।”

चन्द्रा विक्रमासिंग, ब्रिटेन का एक अति प्रशंसनीय वैज्ञानिक एक समान स्थिति अपनाता है। “डार्विनी क्रमविकास के किसी भी बुनियादी सिद्धान्तों के लिए कोई प्रमाण नहीं है,” वह कहता है। “वह एक सामाजिक शक्‍ति थी जिसने १८६० में विश्‍व को अपने अधिकार में ले लिया, और मैं सोचता हूँ कि तब से विज्ञान के लिए यह घोर विपत्ति रही है।”

टी. एच. जनॉबी ने विकासवादियों द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों की जाँच-पड़ताल की। “मैंने पाया कि हमें जो विश्‍वास करवाया जाता है स्थिति उससे काफ़ी भिन्‍न है,” वह कहता है। “जीवन के उद्‌गम जैसे इतने जटिल सिद्धान्त को समर्थन देने के लिए प्रमाण बहुत कम और बहुत खंडित हैं।”

अतः, जो विकासवाद का विरोध करते हैं उन्हें “अनजान, बेवकूफ़, या पागल” समझकर उनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। क्रमविकास को चुनौती देनेवाले मतों के सम्बन्ध में, कट्टर विकासवादी जॉर्ज गेलॉर्ड सिम्पसन को भी स्वीकार करना पड़ा: “इन मतों पर गंभीर विचार किए बिना इन्हें ख़ारिज कर देना या उनकी हँसी उड़ाना निश्‍चय ही एक ग़लती होगी। जिन लोगों ने विकासवाद का विरोध किया वे गंभीर और अक़्लमंद विद्यार्थी थे (और हैं)।”

विश्‍वास का विषय

कुछ लोग सोचते हैं कि क्रमविकास में प्रतीति तथ्य पर आधारित है, जबकि सृष्टि में प्रतीति विश्‍वास पर आधारित है। यह सच है कि परमेश्‍वर को किसी मनुष्य ने नहीं देखा। (यूहन्‍ना १:१८; साथ ही २ कुरिन्थियों ५:७ से तुलना कीजिए।) फिर भी, इस सम्बन्ध में विकासवाद कोई फ़ायदे में नहीं है, चूँकि वह ऐसी घटनाओं पर आधारित है जिन्हें किसी मनुष्य ने न तो कभी देखा न ही दोहराया है।

उदाहरण के लिए, वैज्ञानिकों ने कभी उत्परिवर्तन नहीं देखे—लाभकारी भी नहीं—जो नए जीवों को उत्पन्‍न करते हों; फिर भी, वे निश्‍चित हैं कि इसी तरीक़े से नयी जातियाँ अस्तित्त्व में आयीं। उन्होंने जीवन का ‘स्वतः जनन’ नहीं देखा है; फिर भी वे हठ करते हैं कि जीवन ऐसे ही आरंभ हुआ।

प्रमाण की ऐसी कमी टी. एच. जनॉबी को विकासवाद को “मात्र एक ‘विश्‍वास’” कहने के लिए प्रेरित करती है। भौतिकविज्ञानी फ्रेड हॉइल इसे “डार्विन के अनुसार सत्‌-सिद्धान्त” कहता है। डॉ. ईवन शूट इससे भी ज़्यादा प्रभावशाली कथन करता है। वह कहता है, “मुझे लगता है कि एकनिष्ठ विकासवादियों की तुलना में सृष्टिवादियों को कम रहस्य समझाने होंगे।”

दूसरे विशेषज्ञ सहमत होते हैं। “जब मैं मनुष्य के स्वरूप पर मनन करता हूँ,” खगोलज्ञ रॉबर्ट जैसट्रो स्वीकार करता है, “तब गर्म पानी के तालाब में घुले हुए रसायनों में से इस असाधारण मानव का उद्‌गमन वैसा ही एक चमत्कार प्रतीत होता है जैसा कि उसके उद्‌गम का बाइबलीय वृत्तांत।”

तब, क्यों अनेक लोग अब भी यह विचार ठुकराते हैं कि जीवन की सृष्टि हुई थी?

[पेज 3 पर तसवीरें]

कुछ लोगों के मताग्रही कथन भयभीत करनेवाले हो सकते हैं

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