परमेश्वर के सेवक —संगठित और ख़ुश लोग
“ख़ुश है वह प्रजा जिसका परमेश्वर यहोवा है!”—भजन १४४:१५, NW.
१, २. (क) यहोवा के पास अपने सेवकों के लिए स्तर बनाने का अधिकार क्यों है? (ख) यहोवा की कौन-सी दो विशेषताएँ हैं जिनका हम ख़ास तौर पर अनुकरण करना चाहेंगे?
यहोवा विश्व सर्वसत्ताधारी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, सृष्टिकर्ता है। (उत्पत्ति १:१; भजन १००:३) ऐसा होने के नाते, उसके पास अपने सेवकों के लिए व्यवहार के स्तर बनाने का अधिकार है, वह जानता है कि उनके लिए क्या सर्वोत्तम है। (भजन १४३:८) वह उनका मुख्य आदर्श है जिसके गुणों का उन्हें अनुकरण करने की ज़रूरत है। “प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो” एक प्रेरित ने लिखा।—इफिसियों ५:१.
२ परमेश्वर की एक विशेषता जिसका हमें अनुकरण करने की ज़रूरत है संगठन से संबंध रखती है। वह ‘गड़बड़ी का परमेश्वर नहीं’ है। (१ कुरिन्थियों १४:३३) परमेश्वर ने जो कुछ सृजा है जब हम उसे ध्यानपूर्वक देखते हैं, तब हम इस निष्कर्ष पर पहुँचने को विवश हो जाते हैं कि वह विश्वमंडल में सबसे अधिक संगठित व्यक्ति है। लेकिन, परमेश्वर चाहता है कि उसके सेवक उसकी एक और विशेषता का अनुकरण करें और वह है उसका आनन्द, क्योंकि वह “आनन्दित परमेश्वर है।” (१ तीमुथियुस १:११, NW) अतः, उसकी संगठनात्मक योग्यता आनन्द के साथ संतुलित है। एक विशेषता को दूसरी विशेषता की क़ीमत पर सर्वोच्चता नहीं दी जाती।
३. तारों-भरा आकाश किस प्रकार परमेश्वर की संगठनात्मक योग्यता प्रदर्शित करता है?
३ यहोवा ने जो कुछ बनाया है, सबसे बड़ी चीज़ से लेकर सबसे छोटी चीज़ प्रमाण देती है कि यहोवा संगठन का परमेश्वर है। उदाहरण के लिए, दृष्य विश्वमंडल पर विचार कीजिए। उसमें करोड़ों-करोड़ तारे हैं। परन्तु ये अव्यवस्थित तरीक़े से बिखरे नहीं हैं। खगोल-भौतिक विज्ञानी जॉर्ज ग्रीनस्टाइन कहता है कि “तारों के संगठन का एक क्रम” है। उन्हें समूहों में संगठित किया गया है जिन्हें मंदाकिनियाँ कहते हैं, कुछ मंदाकिनियों में तो लाखों-करोड़ तारे हैं। और यह अनुमान लगाया जाता है कि सैकड़ों-करोड़ मंदाकिनियाँ हैं! मंदाकिनियाँ भी संगठित हैं, उनमें से कई (कुछ से लेकर कई हज़ार तक) मंदाकिनियों के समूहों में इकट्ठे किये जाते हैं। माना जाता है कि मंदाकिनियों के समूहों को और ज़्यादा बड़ी ईकाइयों में संगठित किया गया है जिन्हें महासमूह कहते हैं।—भजन १९:१; यशायाह ४०:२५, २६.
४, ५. पृथ्वी पर जीवित प्राणियों के बीच संगठन के उदाहरण दीजिये।
४ परमेश्वर की सृष्टि का भव्य संगठन सभी जगह दिखता है, न केवल दृश्य आकाश में परन्तु पृथ्वी पर भी, जिसमें हज़ारों जीवित प्राणी हैं। इस सब के बारे में भौतिक विज्ञान के एक प्रोफेसर, पॉल डेवीस ने लिखा कि दर्शक “भौतिक संसार के ऐश्वर्य और पेचीदा संगठन” से “विस्मयाभिभूत” हो जाते हैं।—भजन १०४:२४.
५ जीवित प्राणियों में पाए जानेवाले “पेचीदा संगठन” के कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए। तंत्रिका-शल्यचिकित्सक जोसफ इवान्स् ने मानव मस्तिष्क और मेरुदण्ड के बारे में कहा: “महान व्यवस्था की वास्तविकता लगभग चकरा देने वाली है।” सूक्ष्मदर्शी जीवित कोशिका के बारे में जीवाणु विज्ञानी एच. जे. शोनासी ने कहा: “सूक्ष्म जैविक संसार की जटिलता और सुन्दर व्यवस्था इतनी अद्भुत तरीक़े से बनायी गयी है कि यह परमेश्वर द्वारा स्थापित किसी तन्त्र का भाग प्रतीत होती है।” आणविक जीव-विज्ञानी माइकल डेन्टन ने कोशिका के अन्दर के आनुवंशिक कोड (डी.एन.ए.) के बारे में कहा: “यह इतना कुशल है कि इस ग्रह पर कभी जीवित रहे सभी जातियों के जीवों की बनावट का स्पष्ट वर्णन करने के लिए ज़रूरी सारी जानकारी . . . एक चमची में रखी जा सकती है और फिर भी अब तक लिखी गई सभी पुस्तकों की सारी जानकारी के लिए जगह बाक़ी होगी।”—भजन १३९:१६ देखिए।
६, ७. आत्मिक प्राणियों के बीच कैसा संगठन दिखाया गया है, और वे अपने बनानेवाले के प्रति मूल्यांकन कैसे व्यक्त करते हैं?
६ यहोवा अपनी भौतिक सृष्टि को ही नहीं परन्तु स्वर्ग में अपनी आत्मिक सृष्टि को भी संगठित करता है। दानिय्येल ७:१० हमें बताता है कि “लाखों लाख” की संख्या में स्वर्गदूत ‘यहोवा के साम्हने हाज़िर थे।’ दस करोड़ शक्तिशाली आत्मिक प्राणी उपस्थित, हरेक अपने-अपने ख़ास कार्य के लिए नियुक्त! इतनी बड़ी संख्या को संगठित करने के लिए ज़रूरी कौशल के बारे में सोचना विस्मयकारी है। ठीक ही, बाइबल कहती है: “हे यहोवा के दूतो, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो! हे यहोवा की सारी [स्वर्गदूतीय] सेनाओ, हे उसके टहलुओ, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो!”—भजन १०३:२०, २१; प्रकाशितवाक्य ५:११.
७ सृष्टिकर्ता के कार्य कितने भव्य रूप से संगठित और कुशल हैं! यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि शक्तिशाली आत्मिक प्राणी स्वर्गीय लोक में विस्मय-प्रेरित और आज्ञाकारी रीति से घोषित करते हैं: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”—प्रकाशितवाक्य ४:११.
८. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यहोवा पृथ्वी पर अपने सेवकों को संगठित करता है?
८ यहोवा पृथ्वी पर अपने सेवकों को भी संगठित करता है। जब वह सा.यु.पू. २३७० में नूह के दिनों का जलप्रलय लाया, नूह और सात अन्य जन जलप्रलय से एक पारिवारिक संगठन के तौर पर बचे। सामान्य युग पूर्व १५१३ के निर्गमन में, यहोवा अपने कई लाख लोगों को मिस्री दासत्व से छुड़ा कर लाया और उन्हें अपने दैनिक कार्यों और उपासना को संगठित करने के लिए एक विस्तृत आचार संहिता दी। और बाद में, प्रतिज्ञात देश में, उनमें से हज़ारों को मंदिर में ख़ास सेवा के लिए संगठित किया। (१ इतिहास २३:४, ५) पहली शताब्दी में, मसीही कलीसियाएँ ईश्वरीय निर्देशन के अधीन संगठित की गयी थीं: “उस ने कितनों को प्रेरित नियुक्त करके, और कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएं, और सेवा का काम किया जाए।”—इफिसियों ४:११, १२.
आधुनिक-दिन सेवक भी संगठित
९, १०. हमारे समय में यहोवा ने अपने लोगों को कैसे संगठित किया है?
९ उसी प्रकार, यहोवा ने अपने आधुनिक-दिन सेवकों को संगठित किया है ताकि वे हमारे दिनों के लिए उसके कार्य को प्रभावकारी रूप से कर सकें—उसके राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना, इससे पहले कि वह इस वर्तमान अधर्मी रीति-व्यवस्था का अन्त करे। (मत्ती २४:१४) विचार कीजिए कि इस विश्वव्यापी कार्य में क्या सम्मिलित है और अच्छा संगठन कितना महत्त्वपूर्ण है। लाखों पुरुष, स्त्रियाँ, और बच्चे दूसरों को बाइबल सच्चाइयाँ सिखाने के लिए प्रशिक्षित किए जा रहे हैं। इस प्रशिक्षण में मदद देने के लिए बड़ी मात्रा में बाइबल और बाइबल-आधारित प्रकाशन छापे जाते हैं। प्रहरीदुर्ग के हर अंक की छपाई अब ११८ भाषाओं में १६० लाख से अधिक है, और सजग होइए! ७३ भाषाओं में लगभग १ करोड़ ३० लाख। लगभग सभी अंक एक साथ छापे जाते हैं ताकि वस्तुतः सभी यहोवा के सेवकों को समान जानकारी एक ही समय पर मिल सके।
१० इसके अतिरिक्त, संसार-भर में यहोवा के गवाहों की ७३,००० से अधिक कलीसियाएँ संगठित की गई हैं ताकि बाइबल शिक्षण के लिए नियमित तौर पर मिल सकें। (इब्रानियों १०:२४, २५) हर साल हज़ारों बड़ी सभाएँ भी होती हैं—सर्किट सम्मेलन, और ज़िला अधिवेशन। नये या उन्नत राज्य गृह, सम्मेलन भवन, बेथेल घर, और बाइबल प्रकाशन छापने की सुविधाओं का बड़े पैमाने पर विश्वव्यापी निर्माण कार्य हो रहा है। बाइबल शिक्षकों के उच्च प्रशिक्षण के लिए स्कूल हैं, जैसे मिशनरियों के लिए वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड और पायनियर सेवा स्कूल, जो संसार-भर के देशों में संचालित किए जाते हैं।
११. अभी अच्छा संगठन सीखने से क्या भावी फ़ायदा होगा?
११ यहोवा ने कितने अच्छे तरीक़े से पृथ्वी पर अपने सेवकों को ‘अपनी सेवकाई को पूरा करने’ के लिए संगठित किया है, जिसमें उन्हें उसकी सेवा टहल करनेवाले स्वर्गदूतों की सहायता प्राप्त है! (२ तीमुथियुस ४:५; इब्रानियों १:१३, १४; प्रकाशितवाक्य १४:६) अपने सेवकों को अभी अच्छे संगठन के तरीक़ों के बारे में प्रशिक्षण देने के द्वारा परमेश्वर और भी कुछ निष्पन्न कर रहा है। उसके सेवक अच्छी तरह तैयार किए जा रहे हैं ताकि जब वे इस रीति-व्यवस्था के अन्त से बच निकलेंगे, नये संसार में जीवन आरम्भ करने के लिए वे पहले से ही संगठित होंगे। फिर, संगठित रीति से यहोवा के निर्देशन के अधीन, वे विश्वव्यापी परादीस को बनाना शुरू करेंगे। वे उन करोड़ों लोगों को, जो मरे हुओं में से पुनरुत्थित किए जाएँगे, जीवन के लिए परमेश्वर की विस्तृत माँगों को सिखाने के लिए भी अच्छी तरह तैयार होंगे।—यशायाह ११:९; ५४:१३; प्रेरितों २४:१५; प्रकाशितवाक्य २०:१२, १३.
संगठित और ख़ुश भी
१२, १३. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा चाहता है कि उसके लोग ख़ुश रहें?
१२ जबकि यहोवा अनोखा कारीगर और उत्कृष्ट संगठनकर्ता है, वह भावशून्य, कठोर या उत्साहहीन नहीं है। इसके बजाय, वह बहुत स्नेही, आनन्दित व्यक्ति है जो हमारी ख़ुशी के बारे में परवाह करता है। “उस को तुम्हारा ध्यान है,” १ पतरस ५:७ घोषित करता है। हम उसकी परवाह और उसकी इच्छा कि उसके सेवक ख़ुश रहें, उन चीज़ों में देख सकते हैं जो उसने मनुष्यों के लिए बनायी हैं। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर ने परिपूर्ण पुरुष और स्त्री की सृष्टि की, उसने उन्हें सुख की वाटिका में रखा। (उत्पत्ति १:२६-३१; २:८, ९) उसने उन्हें वह सब प्रदान किया जिसकी उन्हें स्वयं को अत्यधिक ख़ुश करने के लिए ज़रूरत थी। परन्तु उन्होंने विद्रोह से सब कुछ खो दिया। उनके पाप के फलस्वरूप, हमें अपरिपूर्णता और मृत्यु विरासत में हासिल हुई।—रोमियों ३:२३; ५:१२.
१३ अभी अपरिपूर्ण होने के बावजूद, हम मनुष्य उन चीज़ों में अब भी ख़ुशी पा सकते हैं जो परमेश्वर ने बनायी हैं। बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें ख़ुशी देती हैं—प्रतापी पहाड़; सुन्दर झीलें, नदियाँ, समुद्र और किनारे; रंगीन, ख़ुशबूदार फूल और अन्तहीन विविधता में अन्य वनस्पति; स्वादिष्ट भोजन की बहुतायत; आश्चर्यजनक सूर्यास्त जिन्हें देखते हम कभी नहीं थकते; तारों-भरा आकाश जिसे रात को देखने का हम मज़ा लेते हैं; पशु-जगत की उल्लेखनीय विविधता और उनके चित्ताकर्षक बच्चे और उन बच्चों की प्रमुदित हरकतें; प्रेरणाप्रद संगीत; दिलचस्प और उपयोगी कार्य; अच्छे मित्र। यह स्पष्ट है कि जिसने ऐसी चीज़ों का प्रबन्ध किया वह एक आनन्दित व्यक्ति है जो दूसरों को ख़ुश करने में आनन्दित होता है।
१४. उसका अनुकरण करते समय, यहोवा हमसे कैसे संतुलन की माँग करता है?
१४ अतः, यहोवा सिर्फ़ संगठित कुशलता ही नहीं चाहता है। वह यह भी चाहता है कि उसके सेवक ख़ुश रहें, जैसे वह ख़ुश है। वह नहीं चाहता कि वे अपनी ख़ुशी की क़ीमत पर हद से ज़्यादा जोश के साथ चीज़ों को संगठित करें। परमेश्वर के सेवकों को संगठनात्मक योग्यता और ख़ुशी के बीच संतुलन रखना चाहिए, जैसे वह रखता है, क्योंकि जहाँ उसकी शक्तिशाली पवित्र आत्मा है वहाँ आनन्द है। वस्तुतः, गलतियों ५:२२ दिखाता है कि परमेश्वर के लोगों पर कार्य कर रही उसकी पवित्र आत्मा का दूसरा फल है “आनन्द।”
प्रेम ख़ुशी उत्पन्न करता है
१५. हमारी ख़ुशी के लिए प्रेम इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
१५ यह नोट करना बड़ी दिलचस्पी की बात है कि बाइबल कहती है: “परमेश्वर प्रेम है।” (१ यूहन्ना ४:८, १६, तिरछे टाईप हमारे।) वह कभी नहीं कहती: “परमेश्वर संगठन है।” प्रेम परमेश्वर का मुख्य गुण है, और उसके सेवकों को इसका अनुकरण करना चाहिए। इसीलिए गलतियों ५:२२ में सूचीबद्ध परमेश्वर की आत्मा का पहला फल है “प्रेम” और दूसरा “आनन्द।” प्रेम आनन्द उत्पन्न करता है। जब हम दूसरों के साथ अपने व्यवहार में यहोवा के प्रेम का अनुकरण करते हैं, तो ख़ुशी मिलती है, क्योंकि प्रेममय लोग ख़ुश लोग हैं।
१६. यीशु ने प्रेम के महत्त्व को कैसे प्रदर्शित किया?
१६ ईश्वरीय प्रेम का अनुकरण करने का महत्त्व यीशु की शिक्षाओं में विशिष्ट किया गया है। उसने कहा: “जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।” (यूहन्ना ८:२८) ख़ास तौर पर यीशु को क्या सिखाया गया था जिसे उसने फिर दूसरों को सिखाया? वह यह था कि दो सबसे बड़ी आज्ञाएँ हैं परमेश्वर से प्रेम रखना और पड़ोसी से प्रेम रखना। (मत्ती २२:३६-३९) यीशु ऐसे प्रेम का उदाहरण था। उसने कहा: “मैं पिता से प्रेम रखता हूं,” और मृत्यु तक परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के द्वारा उसने इसे साबित किया। और उसने लोगों के प्रति अपना प्रेम उनके लिए मरने के द्वारा दिखाया। प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को बताया: ‘मसीह ने तुम से प्रेम किया; और तुम्हारे लिये अपने आप को बलिदान कर दिया।’ (यूहन्ना १४:३१; इफिसियों ५:२) अतः, यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा: “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसे मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे के प्रेम रखो।”—यूहन्ना १५:१२, १३.
१७. पौलुस ने कैसे दिखाया कि दूसरों के प्रति प्रेम व्यक्त करना अत्यावश्यक है?
१७ यह ईश्वरीय प्रेम कितना अत्यावश्यक है उसे पौलुस ने यह कहने के द्वारा अभिव्यक्त किया: “यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। . . . पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।”—१ कुरिन्थियों १३:१-३, १३.
१८. यहोवा से हम किस चीज़ की अपेक्षा कर सकते हैं जो हमारी ख़ुशी को बढ़ाती है?
१८ जब हम यहोवा के प्रेम का अनुकरण करते हैं तब हमारे प्रति उसके प्रेम के बारे में हम निश्चित हो सकते हैं, यहाँ तक कि उस समय भी जब हम गलतियाँ करते हैं, क्योंकि वह “ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है। (निर्गमन ३४:६) जब हम गलतियाँ करते हैं उस समय यदि हम वास्तव में पश्चाताप करें, तो परमेश्वर इनका लेखा नहीं रखता परन्तु प्रेमपूर्वक हमें क्षमा करता है। (भजन १०३:१-३) जी हाँ, “यहोवा स्नेह में अत्यन्त कोमल और दयालु है।” (याकूब ५:११, NW) यह जानना हमारी ख़ुशी को बढ़ाता है।
अभी सापेक्ष ख़ुशी
१९, २०. (क) पूर्ण ख़ुशी अभी क्यों नहीं सम्भव है? (ख) बाइबल किस प्रकार दिखाती है कि इस समय हम सापेक्ष ख़ुशी प्राप्त कर सकते हैं?
१९ परन्तु, क्या आज ख़ुश रहना सम्भव है, जबकि हम शैतान के अधीन इस अपराध-भरे, हिंसक, अनैतिक संसार के अंतिम दिनों में जी रहे हैं, जहाँ हमें बीमारी और मृत्यु का सामना करना पड़ता है? बेशक, हम अभी उस हद तक ख़ुशी की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं जितनी परमेश्वर के नए संसार में होगी, जैसे उसका वचन पूर्वबताता है: “मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूं; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। इसलिए जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो।”—यशायाह ६५:१७, १८, तिरछे टाईप हमारे।
२० परमेश्वर के सेवक अभी सापेक्ष ख़ुशी प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि वे उसकी इच्छा जानते हैं और उसके परादीसीय नए संसार में जल्द आनेवाली अद्भुत आशिषों का उन्हें यथार्थ ज्ञान है। (यूहन्ना १७:३; प्रकाशितवाक्य २१:४) इसीलिए बाइबल कह सकती है: “हे सेनाओं के यहोवा, ख़ुश है वह मनुष्य जो तुझ पर भरोसा रखता है,” “ख़ुश है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, जो उसके मार्गों पर चलता है,” “ख़ुश हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (भजन ८४:१२, NW; १२८:१, NW; मत्ती ५:५, NW) अतः, वर्तमान कठिन परिस्थितियों के बावजूद, जिनका हमें सामना करना पड़ता है, हम काफ़ी हद तक ख़ुशी प्राप्त कर सकते हैं। जब हमारे साथ बुरी बातें होती हैं तब भी हम उस प्रकार दुःखी नहीं हो जाते हैं जिस प्रकार वे होते हैं जो यहोवा को नहीं जानते और जिनके पास अनन्त जीवन की आशा नहीं है।—१ थिस्सलुनीकियों ४:१३.
२१. अपने आपको देना यहोवा के सेवकों की ख़ुशी को कैसे बढ़ाता है?
२१ यहोवा के सेवक ख़ुशी इसलिए भी प्राप्त करते हैं क्योंकि वे दूसरों को बाइबल सत्य सिखाने में समय, शक्ति, और साधन ख़र्च करते हैं, ख़ास तौर पर उन लोगों को जो शैतान के संसार में किए जाने वाले “घृणित कामों के कारण . . . सांसें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं।” (यहेजकेल ९:४) बाइबल कहती है: “क्या ही धन्य [ख़ुश, NW] है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, और वह पृथ्वी पर भाग्यवान [ख़ुश, NW] होगा।” (भजन ४१:१, २) जैसे यीशु ने कहा, “लेने से ज़्यादा ख़ुशी देने में है।”—प्रेरितों २०:३५, NW.
२२. (क) ख़ुशी के विषय में, परमेश्वर के सेवकों की विषमता उनके साथ कीजिए जो उसकी सेवा नहीं करते। (ख) किस ख़ास कारण से हमें ख़ुश होने की अपेक्षा करनी चाहिए?
२२ सो जबकि परमेश्वर के सेवक इस वर्तमान समय में पूर्ण ख़ुशी की अपेक्षा नहीं कर सकते, वे उस ख़ुशी को प्राप्त कर सकते हैं जिसका आनन्द वे लोग नहीं उठाते जो परमेश्वर की सेवा नहीं करते हैं। यहोवा घोषणा करता है: “देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्लाओगे और खेद के मारे हाय हाय, करोगे।” (यशायाह ६५:१४) और, जो परमेश्वर की सेवा करते हैं उनके पास अभी ख़ुशी का एक बहुत ख़ास कारण है—उनके पास उसकी पवित्र आत्मा है “जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उस की आज्ञा मानते हैं।” (प्रेरितों ५:३२) और याद रखिए, जहाँ परमेश्वर की आत्मा है वहाँ आनन्द है।—गलतियों ५:२२.
२३. हमारे अगले अध्ययन में हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
२३ आज परमेश्वर के सेवकों के संगठन में ‘प्राचीन,’ जो कलीसियाओं में अगुवाई करते हैं, यहोवा के लोगों की ख़ुशी को बढ़ाते हुए, एक महत्त्वपूर्ण भाग अदा करते हैं। (तीतुस १:५) इन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों और अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों के साथ अपने रिश्ते को किस दृष्टि से देखना चाहिए? हमारा अगला लेख इसकी चर्चा करेगा।
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ किस प्रकार सृष्टि यहोवा के संगठित होने का प्रमाण देती है?
◻ यहोवा ने अपने सेवकों को अतीत में और वर्तमान समय में कैसे संगठित किया है?
◻ यहोवा हमसे कैसा संतुलन चाहता है?
◻ प्रेम हमारी ख़ुशी के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है?
◻ हमारे समय में हम किस प्रकार की ख़ुशी की अपेक्षा कर सकते हैं?
[पेज 8 पर चित्र का श्रेय]
Top: Courtesy of ROE/Anglo-Australian Observatory, photograph by David Malin