कोमल करुणामय होइए
“करुणा का कोमल स्नेह, कृपा, . . . धारण करो।”—कुलुस्सियों ३:१२, NW.
१. आज करुणा की बहुत ज़रूरत क्यों है?
इतिहास में पहले कभी इतने सारे लोग करुणामय मदद की ज़रूरत में नहीं थे। बीमारी, भूख, बेरोज़गारी, अपराध, युद्ध, अराजकता, और प्राकृतिक विपदाओं का सामना करते समय लाखों लोगों को मदद की ज़रूरत है। लेकिन एक और भी ज़्यादा गंभीर समस्या है, और वह है मनुष्यजाति की निराशाजनक आध्यात्मिक स्थिति। शैतान, जो जानता है कि उसका समय बहुत कम है, ‘सारे संसार को भरमा रहा है।’ (प्रकाशितवाक्य १२:९, १२) इसलिए, ख़ासकर सच्ची मसीही कलीसिया के बाहर के लोग अपनी जान गवाँने के ख़तरे में हैं, और परमेश्वर के आनेवाले न्याय के दिन में जो वध किए जाएँगे, उनके लिए बाइबल पुनरुत्थान की कोई आशा नहीं रखती।—मत्ती २५:३१-३३, ४१, ४६; २ थिस्सलुनीकियों १:६-९.
२. यहोवा दुष्टों को नाश करने से क्यों रुका हुआ है?
२ फिर भी, अन्तिम दिनों के इस आख़िरी भाग तक, यहोवा परमेश्वर कृतघ्न और दुष्ट लोगों के प्रति धीरज और करुणा दिखाना जारी रखता है। (मत्ती ५:४५; लूका ६:३५, ३६) उसने यह उसी कारण से किया है, जिस कारण से उसने अविश्वासी इस्राएल की जाति को दण्ड देने में देरी की थी। “परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इस से कि दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे; हे इस्राएल के घराने, तुम अपने अपने बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्यों मरो?”—यहेजकेल ३३:११.
३. जो यहोवा के लोग नहीं हैं उनके प्रति उसकी करुणा का हमारे पास कौन-सा उदाहरण है, और इससे हम क्या सीखते हैं?
३ यहोवा की करुणा दुष्ट नीनवे-वासियों को भी दिखायी गयी थी। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता योना को नज़दीकी विनाश के बारे में उन्हें आगाह करने के लिए भेजा। योना के प्रचार के प्रति उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखायी और पश्चाताप किया। इस बात ने करुणामय परमेश्वर, यहोवा को उस समय शहर का नाश न करने के लिए प्रेरित किया। (योना ३:१०; ४:११) अगर परमेश्वर को नीनवे-वासियों के लिए दुःख लगा, जिनके पास पुनरुत्थान की संभावना होती, तो उसे उन लोगों के लिए कितनी अधिक करुणा महसूस होगी जो आज एक अनन्त विनाश का सामना करते हैं!—लूका ११:३२.
करुणा का एक अपूर्व कार्य
४. आज लोगों के लिए यहोवा कैसे करुणा व्यक्त कर रहा है?
४ अपने करुणामय व्यक्तित्व के सामंजस्य में, यहोवा ने अपने गवाहों को आदेश दिया है कि अपने पड़ोसियों से ‘राज्य के सुसमाचार’ के साथ भेंट करते रहें। (मत्ती २४:१४) और जब लोग इस जीवन-रक्षक कार्य के प्रति क़दरदानी से प्रतिक्रिया दिखाते हैं, तब यहोवा राज्य संदेश समझने के लिए उनके हृदय खोल देता है। (मत्ती ११:२५; प्रेरितों १६:१४) अपने परमेश्वर का अनुकरण करते हुए, सच्चे मसीही दिलचस्पी दिखानेवालों के पास दुबारा जाने के द्वारा कोमल करुणा दिखाते हैं, और जहाँ सम्भव हो, उन्हें एक बाइबल अध्ययन के द्वारा मदद करते हैं। अतः, १९९३ में, ४५ लाख से ज़्यादा यहोवा के गवाहों ने, २३१ देशों में, घर-घर प्रचार करने और अपने पड़ोसियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने में एक अरब से ज़्यादा घंटे बिताए। क्रमशः, इन नए दिलचस्पी दिखानेवालों के पास यहोवा को अपना जीवन समर्पण करने और बपतिस्मा प्राप्त गवाहों के वर्ग में शामिल होने का सुअवसर है। अतः, वे भी शैतान के मरणासन्न संसार में अब भी फँसे भावी शिष्यों के लिए करुणा का यह अपूर्व कार्य करने की ज़िम्मेदारी उठाते हैं।—मत्ती २८:१९, २०; यूहन्ना १४:१२.
५. जब ईश्वरीय करुणा अपनी चरमसीमा तक पहुँचेगी, तब उस धर्म का क्या होगा जो परमेश्वर का ग़लत विवरण देता है?
५ जल्द ही यहोवा एक “योद्धा” के रूप में काम करेगा। (निर्गमन १५:३) अपने नाम और अपने लोगों के लिए करुणा के कारण, वह दुष्टता को निकाल देगा और एक धार्मिक नया संसार स्थापित करेगा। (२ पतरस ३:१३) परमेश्वर के क्रोध के दिन का अनुभव करनेवाले सबसे पहले मसीहीजगत के गिरजे होंगे। जैसे परमेश्वर ने यरूशलेम में अपने मन्दिर को भी बाबुल के राजा के हाथ से नहीं बचाया, वैसे ही वह उन धार्मिक संगठनों को भी नहीं बचाएगा जो उसका ग़लत विवरण देते हैं। परमेश्वर संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों के मन में डालेगा कि वे मसीहीजगत और झूठे धर्म के अन्य सभी प्रकारों को तबाह करें। (प्रकाशितवाक्य १७:१६, १७) यहोवा घोषणा करता है, “उन पर दया न होगी, न मैं कोमलता करूंगा, वरन उनकी चाल उन्हीं के सिर लौटा दूंगा।”—यहेजकेल ९:५, १०.
६. यहोवा के गवाह किन तरीक़ों से करुणा दिखाने के लिए प्रेरित होते हैं?
६ जब तक कुछ समय बाक़ी है, यहोवा के गवाह परमेश्वर का उद्धार का संदेश जोश से प्रचार करने के द्वारा अपने पड़ोसियों के प्रति करुणा दिखाना जारी रखते हैं। और स्वाभाविक रूप से, जहाँ सम्भव हो, वे उन लोगों की भी मदद करते हैं जो भौतिक ज़रूरत में हैं। जबकि इस सम्बन्ध में नज़दीकी परिवार सदस्यों और उनसे विश्वास में सम्बन्धित लोगों की ज़रूरतों की देखरेख करना उनकी पहली ज़िम्मेदारी है। (गलतियों ६:१०; १ तीमुथियुस ५:४, ८) जिन संगी विश्वासियों ने विभिन्न विपदाओं को सहा है, उन के लिए यहोवा के गवाहों द्वारा किए गए राहत कार्य करुणा के उल्लेखनीय उदाहरण रहे हैं। लेकिन, मसीहियों को कोमल करुणा दिखाने के लिए एक संकट आने तक नहीं रुकना पड़ता। रोज़ाना जीवन के उतार चढ़ावों का सामना करते समय वे इस गुण को जल्दी से दिखाते हैं।
नए मनुष्यत्व का भाग
७. (क) कुलुस्सियों ३:८-१३ में, करुणा नए मनुष्यत्व से कैसे जुड़ी हुई है? (ख) कोमल स्नेह मसीहियों के लिए क्या करना आसान बना देता है?
७ यह सच है कि हमारा पापमय स्वभाव और शैतान के संसार का बुरा प्रभाव हमारे कोमल करुणामय होने में बाधाएँ हैं। इसीलिए बाइबल हम से आग्रह करती है कि “क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा और मुंह से गालियां बकना” त्याग दें। इसके बदले हमें ‘नए मनुष्यत्व को पहन लेने’ की सलाह दी गयी है—वह मनुष्यत्व जो परमेश्वर के प्रतिरूप के सदृश्य है। सबसे पहले, हमें “करुणा का कोमल स्नेह, और कृपा, और मन की दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता” (NW) धारण करने की आज्ञा दी गयी है। फिर बाइबल हमें इन गुणों को प्रकट करने का एक व्यावहारिक तरीक़ा दिखाती है। “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।” अगर हमने अपने भाइयों के प्रति “करुणा का कोमल स्नेह” (NW) विकसित किया है, तो क्षमाशील होना काफ़ी आसान होता है।—कुलुस्सियों ३:८-१३.
८. एक क्षमाशील आत्मा होना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
८ दूसरी ओर, करुणामय क्षमाशीलता प्रदर्शित करने से चूकना, यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को जोख़िम में डालता है। यह यीशु द्वारा अपने अक्षमाशील दास के दृष्टान्त में प्रभावशाली रूप से दिखाया गया था। वह दास उसके स्वामी द्वारा जेल में डाला गया, ‘जब तक कि वह सब कर्जा भर न दे।’ वह दास इस व्यवहार के लायक़ था क्योंकि उसने अपने उस संगी दास के लिए करुणा बिलकुल नहीं दिखायी, जिसने दया की भीख माँगी। यीशु ने दृष्टान्त को यह कहते हुए समाप्त किया: “इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।”—मत्ती १८:३४, ३५.
९. कोमल करुणा नए मनुष्यत्व के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू से कैसे सम्बन्धित है?
९ कोमल करुणामय होना प्रेम का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। और प्रेम सच्ची मसीहियत का पहचान चिह्न है। (यूहन्ना १३:३५) अतः, नए मनुष्यत्व के बारे में बाइबल का वर्णन इस तरह समाप्त होता है: “इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।”—कुलुस्सियों ३:१४.
ईर्ष्या—करुणा में एक बाधा
१०. (क) कौन-सी बात जलन को हमारे हृदय में जड़ पकड़ने दे सकती है? (ख) जलन से कौन-से बुरे परिणाम हो सकते हैं?
१० हमारे पापमय मानवी स्वभाव के कारण, ईर्ष्या की भावनाएँ हमारे हृदय में आसानी से जड़ पकड़ सकती हैं। हो सकता है कि एक भाई या बहन को उन स्वाभाविक क्षमताओं या भौतिक लाभों की आशिष प्राप्त हो जो हमारे पास नहीं हैं। या शायद किसी को ख़ास आध्यात्मिक आशिषें और विशेषाधिकार मिले हैं। अगर हम ऐसे लोगों के प्रति ईर्ष्यालु हो जाते हैं, तो क्या हम उनके साथ कोमल करुणा से व्यवहार कर सकेंगे? शायद नहीं। इसके बजाय, आलोचनात्मक बात या निर्दयी कार्यों में आख़िरकार जलन की भावनाएँ शायद प्रकट हों, क्योंकि यीशु ने मनुष्यों के बारे में कहा: “जो मन में भरा है वही उसके मुंह पर आता है।” (लूका ६:४५) शायद अन्य लोग ऐसी आलोचना का पक्ष लें। अतः एक परिवार की या परमेश्वर के लोगों की कलीसिया की शान्ति भंग हो सकती है।
११. यूसुफ के दस भाइयों ने किस तरह अपने हृदय में करुणा के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी, और परिणाम क्या हुआ?
११ ग़ौर कीजिए कि एक बड़े परिवार में क्या हुआ। याकूब के दस बड़े बेटे, अपने छोटे भाई यूसुफ से जलने लगे क्योंकि वह उनके पिता का लाड़ला था। परिणामस्वरूप, “वे . . . उसके साथ ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे।” बाद में, यूसुफ को ईश्वरीय स्वप्न दिखे, जिसने यह साबित किया कि उस पर यहोवा का अनुग्रह था। इस बात ने उसके भाइयों को ‘और भी द्वेष करने’ का कारण दिया। क्योंकि उन्होंने जलन को अपने हृदय से नहीं निकाला, उसने करुणा के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी और उन्हें गंभीर पाप की ओर ले गयी।—उत्पत्ति ३७:४, ५, ११.
१२, १३. जब जलन की भावनाएँ हमारे हृदय में प्रवेश करती हैं तो हमें क्या करना चाहिए?
१२ क्रूरतापूर्वक, उन्होंने यूसुफ को दासत्व में बेच दिया। अपने दुष्कर्म को छिपाने की कोशिश में उन्होंने अपने पिता को यह सोचने में बहकाया कि यूसुफ को एक जंगली जानवर ने मार डाला। वर्षों बाद उनका पाप सामने आया जब अकाल के कारण वे मिस्र जाकर भोजन ख़रीदने पर मजबूर हुए। खाद्य प्रबन्धक, जिसे उन्होंने नहीं पहचाना कि वह यूसुफ था, ने उन पर जासूसी करने का आरोप लगाया और उन्हें कहा कि जब तक वे अपने सबसे छोटे भाई, बिन्यामीन को नहीं लाते, तब तक उसकी मदद फिर न माँगें। इस समय तक बिन्यामीन उनके पिता का लाड़ला बन चुका था, और वे जानते थे कि याकूब नहीं चाहेगा कि वह जाए।
१३ सो जब वे यूसुफ के सामने खड़े थे, तब उनके अंतःकरण ने उन्हें यह स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया: “निःसन्देह हम अपने भाई [यूसुफ] के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उस ने हम से गिड़गिड़ाके बिनती की, तौभी हम ने यह देखकर, कि उसका जीवन कैसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पड़े हैं।” (उत्पत्ति ४२:२१) अपने करुणामय लेकिन दृढ़ बर्ताव के द्वारा, यूसुफ ने अपने भाइयों को उनके पश्चाताप की निष्कपटता साबित करने में मदद की। फिर उसने अपनी पहचान उन्हें कराई और उन्हें उदारता से क्षमा किया। पारिवारिक एकता पुनःस्थापित हुई। (उत्पत्ति ४५:४-८) मसीहियों के तौर पर, हमें इससे एक सबक़ सीखना चाहिए। ईर्ष्या के बुरे परिणामों को जानते हुए, हमें जलन की भावनाओं को ‘करुणा के कोमल स्नेह’ से प्रतिस्थापित करने में मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए।
करुणा में अन्य बाधाएँ
१४. हमें ख़ुद को हिंसा के प्रभाव में अनावश्यक रूप से डालने से क्यों बचना चाहिए?
१४ ख़ुद को अनावश्यक रूप से हिंसा के प्रभाव में डालने का परिणाम हमारे करुणामय होने में एक और बाधा हो सकता है। ऐसे खेल-कूद और मनोरंजन जो हिंसा प्रस्तुत करते हैं, उत्तेजना पाने के एक तरीक़े के रूप में हिंसा की तीव्र इच्छा को बढ़ावा देते हैं। बाइबल समयों में, रोमी साम्राज्य के अखाड़े में ग़ैर यहूदी लोग ख़ून-ख़राबेवाले खेलों और अन्य क़िस्म की मानवी यातनाओं को नियमित रूप से देखते थे। एक इतिहासकार के अनुसार, ऐसे मनोरंजन ने, “दुःख के प्रति सहानुभूति की भावनाओं का विनाश किया, वह भावना जो मनुष्य को जानवरों से अलग करती है।” आज के आधुनिक संसार में अधिकांश मनोरंजन का वैसा ही असर होता है। कोमल करुणामय होने का प्रयास करनेवाले मसीहियों को अपने पढ़ने के विषय, फ़िल्मों, और टी.वी. कार्यक्रमों को बहुत सोच समझकर चुनने की ज़रूरत है। वे बुद्धिमानी से भजन ११:५ के शब्दों को मन में रखते हैं: ‘जो उपद्रव से प्रीति रखते हैं, वह [यहोवा] उनसे घृणा करता है।’
१५. (क) एक व्यक्ति करुणा का गहरा अभाव कैसे दिखा सकता है? (ख) संगी विश्वासियों और पड़ोसियों की ज़रूरतों के प्रति सच्चे मसीही कैसे प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
१५ सम्भव है कि एक स्वकेंद्रित व्यक्ति में भी करुणा का अभाव होगा। यह गंभीर बात है, जैसे प्रेरित यूहन्ना समझाता है: “जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को कंगाल देखकर उस पर तरस खाना न चाहे, तो उस में परमेश्वर का प्रेम क्योंकर बना रह सकता है?” (१ यूहन्ना ३:१७) यीशु के स्नेही सामरी के दृष्टान्त में आत्म-धर्मी याजक और लेवी द्वारा ऐसा ही करुणा का अभाव दिखाया गया था। अपने अधमरे यहूदी भाई की दुर्दशा देखने पर, ये मार्ग के दूसरे किनारे से निकल गए और अपना सफ़र जारी रखा। (लूका १०:३१, ३२) इसके विपरीत, करुणामय मसीही अपने भाइयों की भौतिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों के प्रति जल्दी से प्रतिक्रिया दिखाते हैं। और यीशु के दृष्टान्त के सामरी की तरह, वे अजनबियों की ज़रूरतों के प्रति भी चिन्तित हैं। अतः, चेला-बनाने के काम को आगे बढ़ाने के लिए वे ख़ुशी से अपना समय, शक्ति, और भौतिक संपत्ति देते हैं। इस तरह वे लाखों के उद्धार में योगदान देते हैं।—१ तीमुथियुस ४:१६.
बीमारों के लिए करुणा
१६. बीमारी के मामलों में व्यवहार करते वक़्त हम कौन-सी सीमितताओं का सामना करते हैं?
१६ बीमारी अपरिपूर्ण, मरणासन्न मनुष्यजाति का हिस्सा है। मसीही अपवाद नहीं हैं, और अधिकतर मसीही चिकित्सीय क्षेत्र में पेशेवर नहीं हैं, न ही वे चमत्कार कर सकते हैं जैसे कुछ प्रारम्भिक मसीहियों ने मसीह और उसके प्रेरितों से ऐसी शक्तियाँ पाकर किए। मसीह के प्रेरितों और उनके निकटतम सहयोगियों की मौत के साथ ही, ऐसी चमत्कारिक शक्तियाँ जाती रहीं। अतः, शारीरिक बीमारियों, जिनमें मस्तिष्क दुष्क्रिया और विभ्रम भी शामिल हैं, से पीड़ित लोगों की मदद करने की हमारी क्षमता सीमित है।—प्रेरितों ८:१३, १८; १ कुरिन्थियों १३:८.
१७. बीमार और शोकित मनुष्य अय्यूब के साथ जिस तरह व्यवहार किया गया, उससे हम क्या सबक़ सीखते हैं?
१७ अकसर बीमारी के साथ हताशा आती है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर का भय माननेवाला अय्यूब, गंभीर बीमारी और शैतान द्वारा उस पर लायी गयी विपत्तियों के कारण बहुत हताश था। (अय्यूब १:१८, १९; २:७; ३:३, ११-१३) उसे ऐसे मित्रों की ज़रूरत थी जो उसके साथ कोमल करुणा से व्यवहार करते और जो ‘सांत्वनापूर्वक बात’ करते। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) इसके बजाय, तीन तथाकथित सांत्वना देनेवालों ने उससे भेंट की और बिना सोचे समझे ग़लत निष्कर्ष निकाले। यह बताने के द्वारा कि उसकी विपत्तियाँ उसकी ख़ुद की किसी ग़लती के कारण आयी हैं, उन्होंने अय्यूब की हताश अवस्था को और गंभीर किया। जब संगी विश्वासी बीमार या हताश हैं, तो कोमल करुणामय होने के द्वारा मसीही समान फँदे में फँसने से बचेंगे। कभी-कभी, ऐसे लोगों को मुख्यतः प्राचीनों या अन्य प्रौढ़ मसीहियों की कुछ कृपापूर्ण मुलाक़ातों की ही ज़रूरत है, जो करुणा से सुनेंगे, समझदारी दिखाएँगे, और प्रेममय शास्त्रीय सलाह प्रदान करेंगे।—रोमियों १२:१५; याकूब १:१९.
निर्बलों के लिए करुणा
१८, १९. (क) निर्बलों और ग़लती करनेवालों के साथ प्राचीनों को कैसी कार्यवाही करनी चाहिए? (ख) अगर एक न्यायिक कमेटी बिठाना ज़रूरी है तब भी, प्राचीनों को दुष्कर्म करनेवालों के साथ कोमल करुणा से व्यवहार करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
१८ प्राचीनों को ख़ासकर कोमल करुणामय होने की ज़रूरत है। (प्रेरितों २०:२९, ३५) “हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें,” बाइबल आज्ञा देती है। (रोमियों १५:१) अपरिपूर्ण होने के नाते, हम सब ग़लतियाँ करते हैं। (याकूब ३:२) उस व्यक्ति के साथ व्यवहार करते वक़्त, जो: “अनजाने में कोई ग़लत क़दम उठाता है,” कोमलता की ज़रूरत है। (गलतियों ६:१, NW) प्राचीन उन आत्म-धर्मी फरीसियों की तरह कभी नहीं होना चाहते जो परमेश्वर की व्यवस्था की अपनी प्रयुक्ति में तर्कसंगत नहीं हैं।
१९ इसकी विषमता में, प्राचीन लोग यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के कोमल करुणामय उदाहरणों का अनुकरण करते हैं। उनका मुख्य काम, परमेश्वर की भेड़ों को पोषित करना, प्रोत्साहित करना, और ताज़गी देना है। (यशायाह ३२:१, २) बातों को ढेर सारे नियमों से नियंत्रित करने की कोशिश करने के बजाय, वे समर्थन के लिए परमेश्वर के वचन के उत्तम सिद्धान्तों का हवाला देते हैं। इसलिए, प्राचीनों का काम प्रोत्साहित करना, अपने भाइयों के हृदय में परमेश्वर की भलाई के लिए ख़ुशी और क़दरदानी विकसित करना होना चाहिए। अगर एक संगी विश्वासी कुछ छोटी भूल करता है, तब एक प्राचीन आम तौर पर उसे वहाँ नहीं सुधारेगा जहाँ अन्य लोग सुन सकते हैं। अगर बात करना आवश्यक ही है, तो करुणा की कोमल भावनाएँ एक प्राचीन को उस व्यक्ति को एक तरफ़ ले जाकर समस्या की चर्चा करने के लिए प्रेरित करेंगी, जिससे कि दूसरे सुन न सकें। (मत्ती १८:१५ से तुलना कीजिए।) किसी व्यक्ति के साथ मेल रखना चाहे कितना ही मुश्किल क्यों न हो, प्राचीन को धीरजवन्त और सहायक रूप से पेश आना चाहिए। एक ऐसे व्यक्ति को कलीसिया से बाहर निकालने के लिए प्राचीन कभी कोई बहाने नहीं ढूँढना चाहता। जब एक न्यायिक कमेटी बिठाना ज़रूरी होती है तब भी, गंभीर दुष्कर्म में शामिल व्यक्ति के साथ व्यवहार करते वक़्त प्राचीन कोमल करुणा दिखाएँगे। उनकी सौम्यता शायद उस व्यक्ति को पश्चाताप करने में मदद करेगी।—२ तीमुथियुस २:२४-२६.
२०. करुणा की भावात्मक अभिव्यक्तियाँ कब अनुचित हैं, और क्यों?
२० बहरहाल, कुछ ऐसे समय होते हैं जब यहोवा का एक सेवक करुणा नहीं दिखा सकता। (व्यवस्थाविवरण १३:६-९ से तुलना कीजिए।) एक मसीही के लिए एक नज़दीकी दोस्त या रिश्तेदार से जो बहिष्कृत किया गया है, ‘संगति न करना’ एक वास्तविक परीक्षा हो सकती है। ऐसे मामले में, यह महत्त्वपूर्ण है कि वह व्यक्ति तरस की भावनाओं के आगे न झुके। (१ कुरिन्थियों ५:११-१३) ऐसी दृढ़ता ग़लती करनेवाले को पश्चाताप करने के लिए प्रोत्साहित भी कर सकती है। इसके अतिरिक्त, विपरीत लिंग के साथ व्यवहार करते वक़्त, मसीहियों को करुणा के ऐसे अनुचित प्रदर्शन से दूर रहना चाहिए जो लैंगिक अनैतिकता की ओर ले जा सकता है।
२१. कौन-से अन्य क्षेत्रों में हमें कोमल करुणा दिखाने की ज़रूरत है, और इसके क्या फ़ायदे हैं?
२१ लेख में जगह की कमी के कारण हम उन सभी अनेक क्षेत्रों की चर्चा नहीं कर सकते जिनमें कोमल करुणा की ज़रूरत है, जैसे कि वृद्धों, शोकित लोगों, अविश्वासी साथियों द्वारा सताहट सह रहे लोगों के साथ व्यवहार करते वक़्त। परिश्रमी प्राचीनों के साथ भी कोमल करुणा से व्यवहार किया जाना चाहिए। (१ तीमुथियुस ५:१७) उन्हें आदर दीजिए और उनका समर्थन कीजिए। (इब्रानियों १३:७, १७) ‘सब के सब कोमल करुणामय बनो,’ प्रेरित पतरस ने लिखा। (१ पतरस ३:८, NW) उन सभी परिस्थितियों में जो इसकी माँग करती हैं, इस तरह कार्य करने के द्वारा हम कलीसिया में एकता और आनन्द को बढ़ावा देते हैं और बाहरवालों को सच्चाई की ओर आकर्षित करते हैं। सबसे बढ़कर, हम इसके द्वारा अपने कोमल करुणामय पिता, यहोवा को आदर देते हैं।
पुनर्विचार में प्रश्न
▫ पापमय मनुष्यजाति के लिए यहोवा कैसे करुणा दिखाता है?
▫ कोमल करुणामय होना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
▫ हमारे कोमल करुणामय होने में कुछ बाधाएँ कौन-सी हैं?
▫ बीमारों और हताश लोगों के साथ हमें कैसे व्यवहार करना चाहिए?
▫ कोमल करुणामय होने की ख़ासकर किन्हें ज़रूरत है, और क्यों?
[पेज 13 पर बक्स]
अकरुण फरीसी
विश्राम-दिन, परमेश्वर के लोगों के लिए आध्यात्मिक और शारीरिक आशिष का एक दिन होना था। बहरहाल, यहूदी धार्मिक अगुओं ने ऐसे अनेक क़ानून बनाए जिन्होंने परमेश्वर के सब्त के नियम का अनादर किया और उन्हें लोगों के लिए भारी बनाया। उदाहरण के लिए, अगर एक व्यक्ति के साथ दुर्घटना होती या वह बीमारी का सामना कर रहा होता, तो उसे जब तक कि उसकी जान ख़तरे में न हो, तब तक मदद नहीं मिल सकती थी।
फरीसियों के एक मत के लोग, सब्त के नियम की अपनी व्याख्या में इतने सख़्त थे कि उन्होंने कहा: “सब्त के दिन एक व्यक्ति शोक मनानेवालों को सांत्वना नहीं देता है, न ही कोई बीमार लोगों से मुलाक़ात करने जाता है।” अन्य धार्मिक अगुओं ने सब्त के दिन ऐसी मुलाक़ातों की अनुमति दी, लेकिन शर्त रखी कि: “आँसू वर्जित हैं।”
अत: व्यवस्था की ज़्यादा महत्त्वपूर्ण माँगों, जैसे न्याय, प्रेम, और दया, को नज़रअंदाज़ करने के लिए यीशु ने यहूदी धार्मिक अगुओं की उचित ही निन्दा की। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उसने फरीसियों से कहा: “तुम अपनी रीतियों से, . . . परमेश्वर का वचन टाल देते हो”!—मरकुस ७:८, १३; मत्ती २३:२३; लूका ११:४२.
[पेज 11 पर तसवीरें]
यहोवा के गवाह २३१ देशों में, लोगों के घरों में, सड़कों पर, और जेलों में भी, करुणा का एक अपूर्व काम कर रहे हैं
[पेज 12 पर तसवीरें]
हिंसा के प्रभाव में आना, जैसे कि टी.वी. के द्वारा, कोमल करुणा को कमज़ोर कर देता है