परमेश्वर का भय माननेवालों के साथ इकट्ठा होना
“हर जगह लोग भय से स्वतंत्रता के लिए तरसते हैं—हिंसा के भय, बेरोज़गारी के भय, और गंभीर बीमारी के भय से स्वतंत्रता। हमें भी वह लालसा है। . . . तो फिर, हम क्यों चर्चा कर रहे हैं कि भय को कैसे विकसित करें?” यह जिज्ञासा उत्पन्न करनेवाला प्रश्न मूलविचार वक्ता द्वारा प्रत्येक “ईश्वरीय भय” ज़िला अधिवेशन में उठाया गया, जो जून १९९४ में शुरू हुए।
लाखों व्यक्ति जो उपस्थित हुए—पहले उत्तर अमरीका में, फिर बाद में यूरोप, केंद्रीय और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, एशिया और समुद्र के द्वीपों में—ऐसे भय को विकसित करना सीखने के लिए उत्सुक थे। क्यों? क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने अपने लोगों के लिए जिन आशीषों को रखा है, उनको प्राप्त करना हमारे ईश्वरीय भय पर निर्भर करता है। अधिवेशन में उपस्थित होनेवाले लोग ईश्वरीय भय के बारे में सीखने के लिए इकट्ठे हुए थे, और तीन दिन के कार्यक्रम के दौरान उन्होंने इस अनिवार्य मसीही गुण के बारे में बहुत कुछ सीखा।
“परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर”
सभोपदेशक १२:१३ पर आधारित, यह अधिवेशन के पहले दिन का विषय था। परमेश्वर का भय मानने का अर्थ क्या है? कार्यक्रम के पहले भाग में ही, अधिवेशन सभापति ने समझाया कि ईश्वरीय भय रखना यहोवा के प्रति विस्मय और गहरी श्रद्धा साथ ही साथ उसे अप्रसन्न करने का हितकर भय दिखाता है। ऐसा ईश्वरीय भय हानिकर नहीं है; बल्कि यह स्वास्थ्यकर और उचित है।
यह स्वास्थ्यकर भय हमें लाभ कैसे पहुँचाता है? उसके बाद के भाषण, “थक मत जाइए और हार न मानिए” ने समझाया कि ईश्वरीय भय हमें प्रेरित करेगा कि परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन आनन्द से करें। परमेश्वर और पड़ोसी के लिए प्रेम के साथ-साथ, ऐसा भय हमें आध्यात्मिक शक्ति से भर देगा। जी हाँ, ईश्वरीय भय हमें अनन्त जीवन की दौड़ में धीमे पड़ने से बचने के लिए मदद कर सकता है।
उसके बाद कार्यक्रम में इन्टरव्यू थे जिनमें ईश्वरीय भय हमें कैसे क़ायम रख सकता है इसका जीता-जागता सबूत पेश किया गया। जिन्होंने इन्टरव्यू दिया उन्होंने बताया कि परमेश्वर के श्रद्धापूर्ण भय ने कैसे उन्हें प्रभावित किया कि भावशून्यता, उदासीनता, या सताहट के बावजूद सेवकाई में बने रहें और मदद की ताकि कठिन व्यक्तिगत परीक्षाओं के बावजूद भी धीरज धरें।
लेकिन, ऐसा क्यों है कि कुछ लोगों को ईश्वरीय भय है जबकि दूसरों को नहीं? “ईश्वरीय भय विकसित करना और उस से लाभ प्राप्त करना” भाषण में, मूलविचार वक्ता ने समझाया कि यिर्मयाह ३२:३७-३९ में यहोवा ने प्रतिज्ञा की कि वह अपने लोगों को परमेश्वर का भय माननेवाला हृदय देगा। यहोवा हमारे हृदय में ईश्वरीय भय बिठाता है। कैसे? अपनी पवित्र आत्मा और उसके उत्प्रेरित वचन, बाइबल के द्वारा। लेकिन, स्पष्टतया हमें परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने और उसके द्वारा किए गए भरपूर आध्यात्मिक प्रबंधों का पूरा फ़ायदा उठाने के लिए गंभीर प्रयास करना चाहिए। इनमें हमारे अधिवेशन और कलीसिया सभाएँ शामिल हैं, जो हमें उसका भय मानना सीखने के लिए मदद करते हैं।
दोपहर का कार्यक्रम यहोवा और उसके वचन पर भरोसा रखने की सलाह के साथ शुरू हुआ। इसके बाद उन मूलभूत तरीक़ों की चर्चा हुई जिनसे मसीहियों के तौर पर हमारे जीवन पर राज्य को प्रभाव डालना चाहिए।
उसके बाद अधिवेशन में प्रस्तुत तीन परिचर्चाओं में से पहली परिचर्चा शुरू हुई। इस परिचर्चा का विषय था, “ईश्वरीय भय हमें परमेश्वरीय माँगों को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है,” जिसमें परिवार पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रस्तुत की गयी शास्त्रीय—और व्यावहारिक—सलाह का उदाहरण पेश है।
▫ पतियों के लिए: ईश्वरीय भय से एक पुरुष को प्रेरित होना चाहिए कि वह अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम करे। (इफिसियों ५:२८, २९) एक व्यक्ति जान-बूझकर अपने शरीर को चोट नहीं पहुँचाता, अपने दोस्तों के सामने अपना अपमान या अपनी कमियों के बारे में बातें नहीं करता। तो फिर, उसे अपनी पत्नी से उसी गरिमा और आदर से बर्ताव करना चाहिए जैसी वह अपने आपको देता है।
▫ पत्नियों के लिए: यीशु के ईश्वरीय भय ने उसे प्रेरित किया कि ‘सर्वदा वही काम करे, जिस से परमेश्वर प्रसन्न होता है।’ (यूहन्ना ८:२९) अपने पतियों से व्यवहार करते वक़्त पत्नियों को ऐसी उत्तम मनोवृत्ति की नक़ल करनी चाहिए।
▫ माता-पिताओं के लिए: मसीही माता-पिता जनकीय ज़िम्मेदारियों को गंभीरतापूर्वक निभाने के द्वारा, अपने बच्चों को यहोवा का दिया हुआ भाग समझकर ईश्वरीय भय दिखा सकते हैं। (भजन १२७:३) अपने बच्चों को असली मसीही बनने के लिए बड़ा करना, माता-पिताओं का मूलभूत लक्ष्य होना चाहिए।
▫ बच्चों के लिए: यहोवा बच्चों को उपदेश देता है कि “प्रभु में अपने माता-पिता” के आज्ञाकारी बनें। (इफिसियों ६:१) इसलिए, अपने माता-पिता की आज्ञा मानना परमेश्वर की आज्ञा मानना है।
दिन के समाप्ति भाषण ने हमारी भावनाओं को छू लिया; क्योंकि उसमें उन गहरी भावनाओं की चर्चा की गयी जिनका अनुभव हम सब तब करते हैं जब मृत्यु में हम किसी प्रिय जन को खो देते हैं। लेकिन, भाषण के बीच में एक अप्रत्याशित बात हुई। वक्ता ने एक नए ब्रोशर वेन समवन यू लव डाइज़ (अंग्रेज़ी) के रिलीज़ की घोषणा करके श्रोतागण को ख़ुश कर दिया। यह ३२-पृष्ठ का रंगीन प्रकाशन काफ़ी कुछ कहता है जिससे दुःखित लोगों को मदद मिल सकती है। यह ब्रोशर उन्हें एक प्रिय जन की मृत्यु पर उभरनेवाली भावनाओं और मनोभावों को समझने और उनका सामना करने में मदद कर सकता है। क्या आप कभी उलझन में पड़े हैं कि एक शोकित व्यक्ति को क्या कहें? इस ब्रोशर का एक भाग चर्चा करता है कि कैसे हम दुःखित लोगों की मदद कर सकते हैं। वक्ता को सुनते वक़्त श्रोतागण में अनेक व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोच रहे थे जो इस नए ब्रोशर से लाभ प्राप्त कर सकेगा।
‘ईश्वरीय भय और विस्मय सहित पवित्र सेवा कीजिए’
इब्रानियों १२:२८ पर आधारित, यह दूसरे दिन का विषय था। सुबह के कार्यक्रम के दौरान दूसरी परिचर्चा हुई, “यहोवा के भय में चलनेवाली कलीसियाएँ।” पहला भाग सभाओं में उपस्थित होने के बारे में था। सभाओं में हमारी उपस्थिति परमेश्वर और उसके आध्यात्मिक प्रबंधों के लिए हमारा आदर प्रदर्शित करती है। उपस्थित होने के द्वारा, हम दिखाते हैं कि हम उसके नाम का भय रखते हैं और उसकी इच्छा पूरी करने के लिए उत्सुक हैं। (इब्रानियों १०:२४, २५) दूसरे वक्ता ने समझाया कि सम्पूर्ण कलीसिया के तौर पर यहोवा के भय में चलने के लिए, प्रत्येक व्यक्ति को अच्छा आचरण बनाए रखने में अपना भाग निभाना चाहिए। आख़री वक्ता ने उस विशेषाधिकार और कर्त्तव्य के बारे में बात की जो सभी मसीहियों का है—बिना धीमे पड़े सुसमाचार की घोषणा करना। हम कब तक प्रचार करना जारी रखेंगे? जब तक यहोवा न कहे कि काफ़ी है।—यशायाह ६:११.
“यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है” अगले भाषण का विषय था, और इसकी चर्चा अब इस पत्रिका के अध्ययन लेखों में की गयी है। (नहेमायाह ८:१०) यहोवा के लोग आनन्दित क्यों हैं? वक्ता ने अनेक कारण दिए। एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारण है कि परमेश्वर के साथ एक निकट सम्बन्ध हमें पृथ्वी पर सबसे आनन्दित लोग बनाता है। ज़रा सोचिए, वक्ता ने अधिवेशन में उपस्थित होनेवालों को याद दिलाया, हमें उन लोगों में होने का विशेषाधिकार है जिन्हें यहोवा ने यीशु मसीह की ओर खींच लिया है। (यूहन्ना ६:४४) आनन्द के लिए क्या ही शक्तिशाली कारण!
प्रत्येक अधिवेशन की विशेषता होती है बपतिस्मा, और “ईश्वरीय भय” अधिवेशन अपवाद नहीं थे। “यहोवा के भय में समर्पण और बपतिस्मा” भाषण में, वक्ता ने समझाया कि सभी बपतिस्मा प्राप्त व्यक्तियों की चार निजी बाध्यताएँ हैं: (१) हमें उन प्रकाशनों की सहायता से परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए जो हमें इसे समझने और लागू करने के लिए मदद करते हैं; (२) हमें प्रार्थना करनी चाहिए; (३) कलीसिया सभाओं में हमें संगी विश्वासियों के साथ संगति करनी चाहिए; और (४) हमें यहोवा के नाम और राज्य की गवाही देनी चाहिए।
शनिवार दोपहर का कार्यक्रम इस आश्वासन भरे विषय से शुरू हुआ “ऐसे लोग जिन्हें यहोवा ने नहीं त्यागा।” पैंतीस शताब्दियाँ पहले, जब इस्राएल राष्ट्र कठिन समयों का सामना कर रहा था, यहोवा ने मूसा के द्वारा गारंटी दी, और कहा: “तेरा परमेश्वर यहोवा . . . तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।” (व्यवस्थाविवरण ३१:६) जब इस्राएलियों ने प्रतिज्ञात देश में प्रवेश किया और उस पर कब्ज़ा किया तो उनकी रक्षा करने के द्वारा यहोवा ने इस गारंटी को पूरा किया। आज, कठिन परीक्षाओं का सामना करते वक़्त, हम भी पूरा विश्वास रख सकते हैं कि यहोवा हमें त्यागेगा नहीं, बशर्ते हम उसके क़रीब बने रहें और उसके वचन की सलाह का पालन करें।
बाइबल को पढ़ने में आप कैसे ख़ुशी पा सकते हैं? “परमेश्वर का वचन, पवित्र बाइबल हर दिन पढ़िए” भाषण में, वक्ता ने जिज्ञासु मन से पढ़ने का और ऐसे प्रश्नों को पूछने का सुझाव दिया: यह वृत्तान्त मुझे यहोवा के गुणों और तरीक़ों के बारे में क्या सिखाता है? इन मामलों में मैं और अधिक यहोवा के जैसा कैसे हो सकता हूँ? इस तरीक़े से बाइबल पढ़ना एक आनन्द-भरा और लाभकारी अनुभव है।
इसके बाद कार्यक्रम की तीसरी परिचर्चा पर ध्यान आकर्षित किया गया, “यहोवा का भय माननेवालों की मदद करने के लिए प्रबंध।” यद्यपि यहोवा शायद आज अपने सेवकों के पक्ष में चमत्कार न करे, वह निश्चय ही उन लोगों को मदद देता है जो उसका भय मानते हैं। (२ पतरस २:९) इस परिचर्चा ने इन कठिन समयों में हमारी मदद करने के लिए यहोवा की ओर से चार प्रबंधों पर चर्चा की: (१) अपनी आत्मा के द्वारा, यहोवा हमें ऐसे काम करने की शक्ति देता है जो हमारी अपनी शक्ति से कहीं परे हैं। (२) अपने वचन के द्वारा, वह हमारे लिए सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करता है। (३) छुड़ौती के द्वारा, वह हमें साफ़ अंतःकरण प्रदान करता है। (४) उसके संगठन के द्वारा, जिसमें प्राचीन भी शामिल हैं, वह हमें निर्देशन और सुरक्षा प्रदान करता है। (लूका ११:१३; इफिसियों १:७; २ तीमुथियुस ३:१६; इब्रानियों १३:१७) इन प्रबंधों का पूरा लाभ उठाने के द्वारा, हम धीरज धर सकेंगे और इस प्रकार यहोवा की स्वीकृति प्राप्त करने में समर्थ होंगे।
शनिवार दोपहर के आख़री भाषण का शीर्षक था “यहोवा का भय-प्रेरक दिन निकट है,” यह मलाकी की भविष्यवाणी पर आधारित था। गत इतिहास में भय-प्रेरक दिन रहे हैं, जैसे कि तब जब सा.यु. ७० में यरूशलेम पर न्यायदंड लाया गया था। लेकिन सारे मानवीय अनुभव में सबसे भय-प्रेरक दिन होगा यहोवा का आनेवाला दिन जब ‘जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उन से पलटा लिया’ जाएगा। (२ थिस्सलुनीकियों १:६-८) यह कितना जल्दी होगा? वक्ता ने कहा: “अन्त निकट है! यहोवा उस दिन और घड़ी को जानता है। वह अपनी समय-सारणी को नहीं बदलेगा। हमसे धीरज के साथ सहन करने की माँग की जाती है।”
यह विश्वास करना मुश्किल था कि दो दिन बीत चुके थे। आख़री दिन का कार्यक्रम कैसा होगा?
“परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो”
तीसरे दिन का विषय प्रकाशितवाक्य १४:७ पर आधारित था। सुबह के कार्यक्रम के दौरान, भाषणों की एक श्रंखला ने कुछ धर्म-सैद्धान्तिक शिक्षाओं को विशिष्ट किया जो यहोवा के गवाहों को अन्य सभी धार्मिक संगठनों से अलग करती हैं।
“धर्मियों का पुनरुत्थान होगा” भाषण में, वक्ता ने एक दिलचस्प प्रश्न उठाया: “उस हज़ार-वर्षीय न्याय के दिन के दौरान, उन लोगों का पुनरुत्थान कब होगा जो शैतान की रीति-व्यवस्था के इन आख़री वर्षों में वफ़ादार रहकर मरे?” इसका जवाब? “बाइबल नहीं बताती,” वक्ता ने कहा। “लेकिन क्या यह तर्कसंगत नहीं कि जो हमारे दिनों में मरते हैं उनका पुनरुत्थान पहले किया जाए ताकि वे अरमगिदोन से बचनेवालों की बड़ी भीड़ के साथ न्याय के दिन के दौरान होनेवाले विशाल शैक्षिक कार्य में भाग ले सकें? जी हाँ, वाक़ई!” क्या बचनेवाले होंगे? निश्चय ही होंगे। हमें इस बात का विश्वास दिलानेवाली बाइबल शिक्षाएँ और उदाहरण, अगले भाषण “बड़े क्लेश से जीवित बच निकले” में स्पष्टतया समझाए गए।
यहोवा के गवाह काफ़ी समय से यह मानते आए हैं कि बाइबल दो आशाएँ प्रस्तुत करती है—अनगिनत लाखों लोगों के लिए परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन और सीमित संख्या के लोगों के लिए अमर स्वर्गीय जीवन जो मसीह के साथ उसके राज्य में शासन करेंगे। “हे छोटे झुण्ड, मत डर” भाषण में स्वर्गीय आशा की चर्चा की गयी। (लूका १२:३२) वर्तमान जागतिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, छोटे झुण्ड को निडर होना चाहिए; उनमें से प्रत्येक को अन्त तक धीरज धरना चाहिए। (लूका २१:१९) “उनकी निर्भीकता,” वक्ता ने कहा, “बड़ी भीड़ के सदस्यों को प्रोत्साहित करती है। पृथ्वी पर अब तक आए हुए सबसे बड़े संकट के समय के दौरान, छुटकारे की जब वे प्रत्याशा करते हैं, तो उन्हें भी निर्भीकता की मनोवृत्ति विकसित करनी चाहिए।”
सुबह के कार्यक्रम की समाप्ति पर, श्रोतागण ने प्रसन्न होकर बाइबल नाटक आपके सामने जो चुनाव हैं देखा। यहोशू के दिनों में और भविष्यवक्ता एलिय्याह के दिनों में, इस्राएलियों को एक निर्णय करना था। एक चुनाव करना था। एलिय्याह ने कहा: “तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे, यदि यहोवा परमेश्वर हो, तो उसके पीछे हो लेओ; और यदि बाल हो, तो उसके पीछे हो लेओ।” (१ राजा १८:२१) आज भी, मानवजाति को निर्णय करना है। दो भिन्न विचारों के बीच लटकने का समय नहीं है। सही चुनाव क्या है? वही जो प्राचीन काल के यहोशू ने किया। उसने कहा: “मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूंगा।”—यहोशू २४:१५.
ऐसा प्रतीत हुआ कि रविवार की दोपहर जल्द ही आ गयी और समय हुआ जन भाषण का जिसका शीर्षक था “अब सच्चे परमेश्वर का भय क्यों मानें।” प्रकाशितवाक्य १४:६, ७ में सारी मानवजाति से आग्रह किया गया है: “परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो।” अब परमेश्वर का भय मानना क्यों अत्यावश्यक है? क्योंकि, जैसे कि शास्त्रवचन आगे कहता है, “उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है।” अपने पुत्र के माध्यम से, जो अब परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य के राजा के तौर पर सिंहासनारूढ़ है, यहोवा वर्तमान अशुद्ध, विद्रोही रीति-व्यवस्था को समाप्त करेगा। वक्ता ने समझाया कि परमेश्वर का भय माननेवाले लोगों को राहत दिलाने का, साथ ही हमारे पार्थिव घर को बचाने और सुरक्षित रखने का यही एकमात्र तरीक़ा है। क्योंकि इस रीति-व्यवस्था के ये समाप्ति के दिन हैं, यह अत्यावश्यक है कि हम अभी सच्चे परमेश्वर का भय मानें!
उस सप्ताह के लिए प्रहरीदुर्ग पाठ के सारांश के बाद, आख़री वक्ता मंच पर आया। उसने कहा कि अधिवेशन कार्यक्रम के कारण उपस्थित होनेवालों के लिए ईश्वरीय भय ने और अधिक अर्थ ले लिया है। उसने उन अनेक फ़ायदों पर ज़ोर दिया जो परमेश्वर का भय माननेवालों को प्राप्त होते हैं। वक्ता ने एक नए विडियो के रिलीज़ की घोषणा की—ईश्वरीय शिक्षा द्वारा संयुक्त। यह १९९३-९४ में आयोजित किए गए “ईश्वरीय शिक्षा” अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों के अनोखे पहलुओं को विशिष्ट करता है। जैसे-जैसे भाषण समाप्त हो रहा था, तो अनेक लोग सोच रहे थे कि ‘अगले वर्ष के लिए हम किस बात का इन्तज़ार कर सकते हैं?’ अनेक स्थानों पर तीन-दिवसीय ज़िला अधिवेशनों का।
समाप्ति में, वक्ता ने मलाकी ३:१६ का उल्लेख किया, जो कहता है: “तब यहोवा का भय माननेवालों ने आपस में बातें कीं, और यहोवा ध्यान धरकर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते [के बारे में सोचते, NW] थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी।” अधिवेशन में उपस्थित होनेवाले लोग, यहोवा के नाम के बारे में सोचने और ईश्वरीय भय सहित उसकी सेवा करने के स्पष्ट दृढ़निश्चय के साथ लौटे।
[पेज 24 पर तसवीरें]
पतिस्मा उम्मीदवारों को ईश्वरीय भय प्रदर्शित करते रहने की ज़रूरत है
[पेज 25 पर तसवीरें]
नाटक “आपके सामने जो चुनाव हैं” ने यहोवा की सेवा करने के बारे में निर्णायक होने की ज़रूरत को सुननेवालों के मन में बिठाया
[पेज 26 पर तसवीरें]
अधिवेशन में उपस्थित होनेवाले एक नया ब्रोशर, “वेन समवन यू लव डाइज़” पाकर ख़ुश थे