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  • सच्चे परमेश्‍वर का भय मानने के लाभ

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  • सच्चे परमेश्‍वर का भय मानने के लाभ
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
w95 3/15 पेज 15-20

सच्चे परमेश्‍वर का भय मानने के लाभ

“मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।” —यशायाह ४८: १७.

१. ईश्‍वरीय भय से कौन-सी विपत्तियों को टाला जा सकता था?

यदि आदम ने ईश्‍वरीय भय विकसित किया होता, तो वह उसे पाप करने से रोक सकता था जो ख़ुद उसकी अनन्त मृत्यु और उसकी संतान के लिए दुःख के हज़ारों वर्षों की ओर ले गया। यदि प्राचीन इस्राएल जाति ने उसका भय मानने और उससे प्रेम करने के लिए यहोवा की सलाह को माना होता, तो वह जाति बाबुल में दासत्व में नहीं ले जायी जाती, ना ही वे परमेश्‍वर के पुत्र का तिरस्कार करते और उसका लहू बहाने के दोषी होते। यदि आज का संसार परमेश्‍वर का भय मानता, तो सरकार और व्यापार में भ्रष्टाचार न होता, अपराध न होता, युद्ध न होता। —नीतिवचन ३: ७.

२. हमारे चारों ओर के संसार की परिस्थितियों के बावजूद, हमें यहोवा का भय क्यों विकसित करना चाहिए?

२ लेकिन, हमारे चारों ओर का संसार चाहे कुछ भी करे, हम व्यक्‍तियों के तौर पर, परिवारों के तौर पर और यहोवा के सेवकों की कलीसियाओं के तौर पर सच्चे परमेश्‍वर का भय विकसित करने से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह उस अनुस्मारक के सामंजस्य में है जो मूसा ने इस्राएल जाति को दिया: “तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय माने, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, और यहोवा की . . . आज्ञा . . . को ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो?” (व्यवस्थाविवरण १०:१२, १३) जब हम सच्चे परमेश्‍वर यहोवा का भय मानते हैं तो कौन-से कुछ लाभ हमें प्राप्त होते हैं?

बुद्धि—सोने से ज़्यादा बहुमूल्य

३. (क) सबसे पहले हमें कौन-सा लाभ प्राप्त हो सकता है? (ख) भजन १११:१० का अर्थ क्या है?

३ सबसे पहला लाभ है सच्ची बुद्धि। भजन १११:१० घोषित करता है: “बुद्धि का मूल यहोवा का भय है।” इसका अर्थ क्या है? बुद्धि समस्याओं को सुलझाने के लिए, ख़तरा टालने के लिए, और कुछ लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ज्ञान को सफलतापूर्वक प्रयोग करने की योग्यता है। इसमें विवेकपूर्ण निर्णय लेना अंतर्ग्रस्त है। ऐसी बुद्धि की शुरूआत, इसका पहला भाग, इसकी नींव यहोवा का भय है। क्यों? क्योंकि सारी सृष्टि उसके हाथों का कार्य है। यह उस पर निर्भर है। उसने मनुष्यजाति को स्वतंत्र इच्छा दी है, लेकिन उसके मार्गदर्शन के बिना सफलतापूर्वक अपने क़दम संचालित करने की योग्यता नहीं दी। (यहोशू २४:१५; यिर्मयाह १०:२३) यदि हम जीवन के बारे में उन मूलभूत तथ्यों का मूल्यांकन करते हैं और उनके सामंजस्य में जीते हैं, तभी हमें स्थायी सफलता मिल सकती है। यदि यहोवा का हमारा ज्ञान हमें अटल विश्‍वास दिलाता है कि परमेश्‍वर की इच्छा निश्‍चय ही सफल होगी और वफ़ादारी का प्रतिफल देने की उसकी प्रतिज्ञा और योग्यता निश्‍चित है, तो ईश्‍वरीय भय हमें बुद्धिमानी से कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा।—नीतिवचन ३:२१-२६; इब्रानियों ११:६.

४, ५. (क) क्यों एक युवक के विश्‍वविद्यालय शिक्षण ने उसे सच्ची बुद्धि नहीं दी? (ख) बाद में इस युवक और उसकी पत्नी ने कैसे सच्ची बुद्धि प्राप्त की, और इस बात से उनके जीवन में कैसे परिवर्तन आया?

४ एक उदाहरण पर विचार कीजिए। कुछ दशक पहले, एक युवक कनाडा में सस्काचवन विश्‍वविद्यालय का एक विद्यार्थी था। पाठ्यक्रम में जीवविज्ञान शामिल था, और उसे क्रमविकास सिखाया गया। स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद, उसने आणविक भौतिक-विज्ञान का विशेष अध्ययन किया और टोरॉन्टो विश्‍वविद्यालय में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उसे छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। जैसे-जैसे वह अध्ययन करता गया उसने आणविक संरचना में व्यवस्था और अभिकल्पना का अद्‌भुत प्रमाण देखा। लेकिन इन सवालों के कोई जवाब नहीं दिए गए: किसने इन सब की अभिकल्पना की? कब? और क्यों? उन जवाबों के बिना, क्या वह एक ऐसे संसार में अपना ज्ञान बुद्धिमानी से प्रयोग कर पाता जो उस समय युद्ध में उलझा हुआ था? क्या बात उसका मार्गदर्शन करती? राष्ट्रीयवाद? भौतिक प्रतिफल की अभिलाषा? सचमुच, क्या उसे सच्ची बुद्धि प्राप्त हुई थी?

५ स्नातक होने के थोड़े ही समय बाद, वह युवक और उसकी पत्नी यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल का अध्ययन करने लगे। स्वयं परमेश्‍वर के वचन से उन्हें वे जवाब मिलने लगे जो उन्हें पहले नहीं मिले थे। वे सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्‍वर को जान गए। जब उन्होंने लाल सागर पर मूसा के बारे में और बाबुल में दानिय्येल और उसके साथियों के बारे में अध्ययन किया, तो उन्होंने मनुष्य का नहीं बल्कि परमेश्‍वर का भय मानने का महत्त्व सीखा। (निर्गमन १४:१०-३१; दानिय्येल ३:८-३०) यहोवा के लिए सच्चे प्रेम के साथ-साथ ऐसा ईश्‍वरीय भय उन्हें प्रेरित करने लगा। जल्द ही उनके जीवन का पूरा मार्ग बदल गया। आख़िरकार यह युवक उस व्यक्‍ति को जान गया जिसकी हस्तकला को उसने जीवविज्ञान में सीखा था। वह उस व्यक्‍ति के उद्देश्‍य को समझने लगा जिसकी बुद्धि को उसने भौतिक-विज्ञान के अपने अध्ययन में प्रतिबिम्बित होते देखा था। अपने ज्ञान को अपने संगी-मनुष्य का नाश करनेवाले यंत्र बनाने के लिए प्रयोग करने के बजाय, वह और उसकी पत्नी दूसरों को परमेश्‍वर से प्रेम करने और अपने पड़ोसी से प्रेम करने के लिए मदद करना चाहते थे। परमेश्‍वर के राज्य के उद्‌घोषकों के तौर पर वे पूर्ण-समय सेवा में शामिल हुए। बाद में, वे वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड में उपस्थित हुए और मिशनरियों के तौर पर भेज दिए गए।

६. यदि हमारे पास ऐसी बुद्धि है जिसका मूल यहोवा का भय है, तो हम कौन-से अदूरदर्शी कार्यों से दूर रहेंगे, और इसके बजाय हम क्या करेंगे?

६ निश्‍चय ही, हर कोई मिशनरी नहीं बन सकता। लेकिन हम सब उस बुद्धि का आनन्द ले सकते हैं जिसका मूल यहोवा का भय है। यदि हम उस बुद्धि को विकसित करते हैं, तो हम ऐसे मनुष्यों के दर्शनशास्त्रों को उत्सुकता से आत्मसात्‌ नहीं करेंगे, जो वास्तव में जीवन क्या है इसका सिर्फ़ अनुमान लगाते हैं। हम बाइबल का अध्ययन करने में मन लगाएँगे, जिसकी प्रेरणा जीवन के स्रोत, अर्थात्‌ यहोवा परमेश्‍वर द्वारा है, जो हमें अनन्त जीवन दे सकता है। (भजन ३६:९; कुलुस्सियों २:८) ऐसी वाणिज्य व्यवस्था के दास होने के बजाय जो ख़ुद विनाश के अत्यन्त निकट लड़खड़ा रही है, हम खाने और पहनने से तृप्त होने की यहोवा की सलाह मानेंगे साथ ही परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ बनाएँगे। (१ तीमुथियुस ६:८-१२) इस तरह कार्य करने के बजाय कि मानो हमारा भविष्य इस संसार में धन-सम्पत्ति प्राप्त करने पर निर्भर करता है, हम यहोवा के वचन पर विश्‍वास रखेंगे जब वह हमसे कहता है कि संसार और उसकी अभिलाषाएँ मिटती जाती हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है वह सर्वदा बना रहेगा।—१ यूहन्‍ना २:१७.

७. (क) नीतिवचन १६:१६ हमें मान्यताओं का एक संतुलित दृष्टिकोण रखने में कैसे मदद देता है? (ख) परमेश्‍वर की इच्छा को अपने जीवन की मुख्य बात बनाने से क्या प्रतिफल मिलते हैं?

७ नीतिवचन १६:१६ सच-सच यह कहने के द्वारा हमें प्रोत्साहित करता है: “बुद्धि की प्राप्ति [वह बुद्धि जो यहोवा के भय से शुरू होती है] चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चान्दी से अति योग्य है।” ऐसी बुद्धि और समझ हमें प्रेरित करेंगे कि परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने को अपने जीवन की मुख्य बात बनाएँ। और मानव इतिहास की इस अवधि के लिए अपने गवाहों को परमेश्‍वर ने क्या काम सौंपा है? उसके राज्य के बारे में प्रचार करना और सत्हृदयी लोगों को यीशु मसीह के असली चेले बनने में मदद करना। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) यह ऐसा काम है जो सच्ची संतुष्टि और अत्यधिक ख़ुशी का प्रतिफल देता है। तो फिर, बाइबल एक अच्छे कारण से यह कहती है: “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए।”—नीतिवचन ३:१३.

बुराई से सुरक्षा

८. (क) परमेश्‍वर का भय मानने से मिलनेवाला दूसरा लाभ बताइए। (ख) कौन-सी बुराई से हम सुरक्षित रखे जाते हैं? (ग) ईश्‍वरीय भय कैसे एक शक्‍तिशाली प्रेरक शक्‍ति बन जाता है?

८ परमेश्‍वर का भय मानने का दूसरा लाभ यह है कि इस प्रकार हम बुराई करने से सुरक्षित रहते हैं। जो परमेश्‍वर का गहराई से आदर करते हैं वे ख़ुद निर्णय नहीं करते कि क्या भला है और क्या बुरा। परमेश्‍वर जिन बातों को भला कहता है वे उसे बुरा नहीं समझते, ना ही वे उन बातों को भला समझते हैं जिन्हें परमेश्‍वर बुरा समझता है। (भजन ३७:१, २७; यशायाह ५:२०, २१) इसके अतिरिक्‍त, ईश्‍वरीय भय से प्रेरित एक व्यक्‍ति केवल यह जानना पर्याप्त नहीं समझता कि यहोवा किस बात को भला और किस बात को बुरा कहता है। ऐसा व्यक्‍ति उन बातों से प्रेम करता है जिनसे यहोवा प्रेम करता है और उन बातों से घृणा करता है जिनसे यहोवा घृणा करता है। इसके परिणामस्वरूप, वह परमेश्‍वर के दर्जों के सामंजस्य में कार्य करता है। इस प्रकार, जैसे नीतिवचन १६:६ में कहा गया है, “यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।” ऐसा ईश्‍वरीय भय एक व्यक्‍ति के लिए शक्‍तिशाली प्रेरक शक्‍ति बन जाता है ताकि वह उस कार्य को कर सके जो वह शायद अपने सामर्थ्य से करने में समर्थ न हो।

९. परमेश्‍वर को अप्रसन्‍न न करने की तीव्र इच्छा ने मैक्सिको में एक स्त्री के निर्णय को कैसे प्रभावित किया, और इसका परिणाम क्या हुआ?

९ अगर एक व्यक्‍ति में ईश्‍वरीय भय विकसित होना अभी शुरू ही हुआ है, तो भी यह भय उसे ऐसा कुछ करने से दूर रहने के लिए सुदृढ़ कर सकता है जिसके बारे में वह शायद अपनी बाक़ी ज़िन्दगी पछताता रहे। उदाहरण के लिए, मैक्सिको में एक गर्भवती स्त्री ने एक यहोवा की गवाह से गर्भपात के बारे में पूछा। गवाह ने उस स्त्री को अनेक शास्त्रवचन पढ़कर सुनाए और फिर तर्क किया: “सृष्टिकर्ता के लिए जीवन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, उनका जीवन भी महत्त्वपूर्ण है जिनका अब तक जन्म नहीं हुआ है।” (निर्गमन २१:२२, २३; भजन १३९:१३-१६) चिकित्सीय जाँच से पता चला था कि उसका बच्चा असामान्य हो सकता है। लेकिन अब, परमेश्‍वर के वचन में जो उसने देखा उससे प्रेरित होकर, उस स्त्री ने अपने बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया। उसके डॉक्टर ने उसे दोबारा देखने से इनकार कर दिया, और उसके पति ने उसे छोड़ देने की धमकी दी, लेकिन वह अटल रही। कुछ समय बाद, उसने एक सामान्य, तंदुरुस्त, और खूबसूरत लड़की को जन्म दिया। कृतज्ञता से प्रेरित होकर, उसने गवाहों को ढूँढ निकाला और वे उसके साथ परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने लगे। एक वर्ष के भीतर, उसने और उसके पति ने बपतिस्मा लिया। कुछ साल बाद एक ज़िला अधिवेशन में, वे उस पहली गवाह से फिर से मिलने पर और अपनी प्यारी चार-वर्षीय बेटी का उससे परिचय करवाने पर ख़ुश हुए। परमेश्‍वर के लिए उचित आदर और उसे अप्रसन्‍न न करने की तीव्र इच्छा निश्‍चित रूप से एक व्यक्‍ति के जीवन में शक्‍तिशाली प्रभाव डाल सकते हैं।

१०. ईश्‍वरीय भय लोगों को किस प्रकार की बुराइयों से मुक्‍त होने के लिए सुदृढ़ कर सकता है?

१० ईश्‍वरीय भय हमें विभिन्‍न प्रकार की बुराइयों के विरुद्ध सुदृढ़ करता है। (२ कुरिन्थियों ७:१) उचित तरीक़े से विकसित किए जाने पर, यह एक व्यक्‍ति को उन गुप्त पापों को रोकने में मदद कर सकता है जिनकी जानकारी सिर्फ़ उसे और यहोवा को है। यह उसको शराब के दुरुपयोग या नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के दासत्व से मुक्‍त होने में मदद कर सकता है। दक्षिण अफ्रीका में नशीले पदार्थों के एक भूतपूर्व लतिये ने समझाया: “जैसे-जैसे मैं परमेश्‍वर का ज्ञान लेता गया, मुझ में उसे चोट पहुँचाने या उसे अप्रसन्‍न करने का भय भी विकसित हुआ। मैं जानता था वह देख रहा है, और मुझ में उसकी दृष्टि में स्वीकृत होने की लालसा थी। इससे मैं उन नशीले पदार्थों को जो मेरे पास थे, शौचालय में बहाकर नष्ट करने के लिए प्रेरित हुआ।” ईश्‍वरीय भय ने हज़ारों अन्य व्यक्‍तियों की समान तरीक़ों से मदद की है।—नीतिवचन ५:२१; १५:३.

मनुष्यों के डर से सुरक्षा

११. यहोवा का हितकर भय हमें कौन-से सामान्य फन्दे से सुरक्षित रख सकता है?

११ परमेश्‍वर का हितकर भय मनुष्यों के डर से भी हमारी रक्षा करता है। अधिकांश लोग मनुष्य के डर से कुछ हद तक या काफ़ी हद तक पीड़ित हैं। जब गतसमने के बाग़ में सैनिकों ने यीशु मसीह को पकड़ा तो उसके प्रेरितों ने भी उसे त्याग दिया और भाग गए। बाद में, महायाजक के आँगन में संतुलन बिगड़ जाने पर और भय की जकड़ में, पतरस ने यीशु का एक चेला होने से, यहाँ तक कि उसको पहचानने से भी इनकार किया। (मरकुस १४:४८-५०, ६६-७२; यूहन्‍ना १८:१५-२७) लेकिन प्रेरितों को आध्यात्मिक संतुलन फिर से प्राप्त करने के लिए मदद दी गयी। दूसरी ओर, राजा यहोयाकीम के दिनों में, शमायाह के पुत्र ऊरिय्याह पर ऐसा डर हावी हुआ कि उसने यहोवा के भविष्यवक्‍ता के तौर पर अपनी सेवा को त्याग दिया और देश से भाग गया, लेकिन आख़िरकार उसे पकड़कर मार दिया गया।—यिर्मयाह २६:२०-२३.

१२. (क) नीतिवचन २९:२५ मनुष्य के भय से कौन-सी सुरक्षा के बारे में कहता है? (ख) परमेश्‍वर में भरोसा कैसे विकसित किया जाता है?

१२ क्या बात एक व्यक्‍ति को मनुष्य के भय पर विजय पाने में मदद कर सकती है? यह चिताने के बाद कि “मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है,” नीतिवचन २९:२५ आगे कहता है: “जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह ऊंचे स्थान पर चढ़ाया [सुरक्षित रखा, NW] जाता है।” यहोवा पर भरोसा इसकी कुंजी है। ऐसा भरोसा ज्ञान और अनुभव पर आधारित होता है। उसके वचन का अध्ययन करने से, हम यहोवा के तरीक़ों की सत्यता का प्रमाण देखते हैं। हम ऐसी घटनाओं से परिचित होते हैं जो उसकी विश्‍वसनीयता को, उसकी प्रतिज्ञाओं (जिसमें पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा भी शामिल है) की निश्‍चितता को, उसके प्रेम और सर्वशक्‍तिमान सामर्थ को प्रदर्शित करती हैं। उसके बाद जब हम उस ज्ञान पर कार्य करते हैं, यहोवा जिन बातों का आदेश देता है उनको करते हैं और जिन बातों के विरुद्ध वह हमें चिताता है, उन्हें दृढ़तापूर्वक अस्वीकार करते हैं, तो हम प्रत्यक्ष रूप से उसकी प्रेममय परवाह और उसकी विश्‍वसनीयता का अनुभव करने लगते हैं। हम व्यक्‍तिगत रूप से इस बात का प्रमाण देखते हैं कि उसकी इच्छा पूरी करने के लिए उसकी शक्‍ति सक्रिय हो जाती है। उस पर हमारा विश्‍वास बढ़ता है, और इसके साथ उसके लिए हमारा प्रेम और उसे अप्रसन्‍न करने से दूर रहने की हमारी तीव्र इच्छा भी बढ़ती है। ऐसा भरोसा एक पक्की नींव पर बना है। यह मनुष्य के भय से सुरक्षा का काम करता है।

१३. ईश्‍वरीय भय हमें हमारे लौकिक कार्य में, घर में और स्कूल में कैसे मदद दे सकता है?

१३ बेईमान व्यापारिक कार्यों में भाग लेने से इनकार करने पर यदि हमारा मालिक हमें नौकरी से निकालने की धमकी देता है तो ईश्‍वरीय भय के साथ-साथ यहोवा पर हमारा भरोसा, जो सही है उसे करने के लिए हमें दृढ़ करेगा। (मीका ६:११, १२ से तुलना कीजिए।) ऐसा ईश्‍वरीय भय हज़ारों मसीहियों को, अविश्‍वासी पारिवारिक सदस्यों से विरोध के बावजूद सच्ची उपासना में बने रहने के लिए समर्थ करता है। यह स्कूल जानेवाले युवाओं को भी यहोवा के गवाहों के तौर पर अपनी पहचान करवाने के लिए साहस प्रदान करता है, और यह उन्हें बाइबल के दर्जों की खिल्ली उड़ानेवाले सहपाठियों से आनेवाले उपहास से निपटने के लिए सुदृढ़ करता है। इस प्रकार, एक किशोर गवाह ने कहा: “वे क्या सोचते हैं यह महत्त्वपूर्ण नहीं है, यहोवा क्या सोचता है यह महत्त्वपूर्ण है।”

१४. यहोवा के सेवक उनका जीवन ख़तरे में होने के बावजूद भी कैसे विजयी होने में समर्थ होते हैं?

१४ यही दृढ़विश्‍वास सच्चे मसीहियों को शक्‍ति देता है कि दृढ़तापूर्वक यहोवा के मार्गों पर चलते रहें, तब भी जब उनका जीवन ख़तरे में पड़ जाता है। वे जानते हैं कि उन्हें संसार से सताहट की अपेक्षा करनी है। वे यह समझते हैं कि प्रेरितों को पीटा गया था और ख़ुद यीशु मसीह को दुष्ट व्यक्‍तियों ने पीटा और मार दिया। (मरकुस १४:६५; १५:१५-३९; प्रेरितों ५:४०. दानिय्येल ३:१६-१८ से तुलना कीजिए।) लेकिन यहोवा के सेवकों को पूरा विश्‍वास है कि वह उन्हें धीरज धरने के लिए शक्‍ति दे सकता है; कि परमेश्‍वर की मदद से वे विजयी हो सकते हैं; कि निश्‍चय ही यहोवा उन लोगों को प्रतिफल देगा जो वफ़ादार हैं—अगर ज़रूरत पड़ी तो अपने नए संसार में उन्हें पुनरुत्थित करने के द्वारा भी। ईश्‍वरीय भय के साथ-साथ परमेश्‍वर के लिए उनका प्रेम शक्‍तिशाली रूप से उन्हें प्रेरित करता है कि ऐसी कोई भी बात करने से दूर रहें जो उसे अप्रसन्‍न करेगी।

१५. किस बात ने यहोवा के गवाहों को नात्ज़ी नज़रबन्दी शिविरों में अपनी खराई बनाए रखने के लिए समर्थ किया?

१५ इस प्रेरणा ने यहोवा के गवाहों को १९३० और १९४० के दशकों में नात्ज़ी नज़रबन्दी शिविरों की क्रूरताओं का सामना हिम्मत से करने के लिए समर्थ किया। उन्होंने लूका १२:४, ५ में पायी गयी यीशु की सलाह को स्वीकार किया: “मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूं, कि जो शरीर को घात करते हैं परन्तु उसके पीछे और कुछ नहीं कर सकते, उन से मत डरो। मैं तुम्हें चिताता हूं कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, घात करने के बाद जिस को नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो: बरन मैं तुम से कहता हूं, उसी से डरो।” अतः, गस्ताव आउशनर, एक गवाह जो ज़ाकसनहाउज़न नज़रबन्दी शिविर में था, ने बाद में लिखा: ‘SS ने औगुस्ट डिकमैन को गोली मार दी, और विश्‍वास का इनकार करनेवाले एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर न करने पर, हम जो बचे हुए थे हमें भी गोली मार दिए जाने की धमकी दी गयी। हम में से किसी ने हस्ताक्षर नहीं किए। उनकी गोलियों से ज़्यादा हमें यहोवा को अप्रसन्‍न करने का भय था।’ मनुष्य का भय समझौते की ओर ले जाता है, लेकिन परमेश्‍वर का भय जो सही है उसके लिए एक व्यक्‍ति को दृढ़ करता है।

जीवन का बचाव

१६. जब तक जलप्रलय न आया किस बात ने नूह को दशकों तक उचित कार्य करते रहने के लिए समर्थ किया, और उसके तथा उसके परिवार के लिए इसका परिणाम क्या हुआ?

१६ नूह प्रलयपूर्व संसार के अंतिम दिनों के दौरान जीया। यहोवा ने मनुष्य की बुराई के कारण उस समय के दुष्ट संसार को नाश करने का निश्‍चय किया था। लेकिन, इस समय के दौरान नूह ऐसे संसार में था जो हिंसा, अश्‍लील अनैतिकता, और ईश्‍वरीय इच्छा की ओर उदासीनता से भरा हुआ था। नूह के धार्मिकता के प्रचार के बावजूद, “जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा।” (मत्ती २४:३९) फिर भी नूह वह कार्य करने से पीछे नहीं हटा जो परमेश्‍वर ने उसके आगे रखा। उसने “परमेश्‍वर की इस आज्ञा के अनुसार” किया। (उत्पत्ति ६:२२) किस बात ने नूह को जलप्रलय के आने तक सालोंसाल उचित कार्य करते रहने के लिए समर्थ किया? इब्रानियों ११:७ जवाब देता है: ‘विश्‍वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चितौनी पाकर भक्‍ति [ईश्‍वरीय भय, NW] दिखायी।’ इसके परिणामस्वरूप, वह और उसकी पत्नी तथा उसके पुत्र और उनकी पत्नियाँ जलप्रलय से बचाए गए।

१७. (क) दूसरे लोग चाहे जो कुछ करें, हमें क्या करना चाहिए? (ख) क्यों यहोवा का भय माननेवाले वास्तव में ख़ुश लोग हैं?

१७ हम एक ऐसे समय में जीते हैं जो अनेक तरीक़ों से नूह के दिनों के समान है। (लूका १७:२६, २७) फिर से एक चेतावनी दी जा रही है। प्रकाशितवाक्य १४:६, ७ बीच आकाश में एक स्वर्गदूत के उड़ने की बात कहता है, जो हरेक जाति और कुल और भाषा के लोगों से ‘परमेश्‍वर से डरने और उसकी महिमा करने’ का आग्रह करता है। आपके चारों ओर का संसार चाहे जो भी करे, उन शब्दों का पालन कीजिए और फिर दूसरों को भी यह आमंत्रण दीजिए। नूह की तरह, विश्‍वास से कार्य कीजिए और ईश्‍वरीय भय दिखाइए। आपका ऐसा करना आपके जीवन के बचाव और अनेक दूसरे लोगों के लिए जीवन के बचाव की ओर ले जाएगा। जब हम सच्चे परमेश्‍वर का भय माननेवालों द्वारा उठाए गए लाभों के बारे में सोचते हैं, हम उत्प्रेरित भजनहार के साथ सहमत हो सकते हैं जिसने गाया: “क्या ही धन्य [ख़ुश, NW] है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्‍न रहता है!” —भजन ११२: १.

आप कैसे उत्तर देंगे?

◻ सच्चे परमेश्‍वर का भय मानने के कुछ प्रमुख लाभ क्या हैं?

◻ बुद्धि जिसका मूल ईश्‍वरीय भय में है कैसे हमें सुरक्षित रख सकती है?

◻ ईश्‍वरीय भय हमें क्यों बुराई से दूर ले जाता है?

◻ ईश्‍वरीय भय कैसे हमें मनुष्य के भय से सुरक्षित रखता है?

◻ ईश्‍वरीय भय का हमारे भावी जीवन की प्रत्याशाओं से क्या सम्बन्ध है?

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

“क्या ही धन्य [ख़ुश, NW] है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्‍न रहता है!” —भजन ११२: १

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