परमेश्वर की नज़रों में आप बहुमूल्य हैं!
“सनातन प्रेम से मैंने तुझ से प्रेम किया है; अतः करुणा करके मैं तुझे अपने पास ले आया हूँ।”—यिर्मयाह ३१:३, NHT.
१. अपने दिन के सामान्य लोगों के प्रति यीशु का दृष्टिकोण, फरीसियों के दृष्टिकोण से कैसे भिन्न था?
वे उसकी आँखों में प्रेममय चिन्ता देख सकते थे। यह व्यक्ति, यीशु उनके धार्मिक अगुओं की तरह बिलकुल नहीं था; वह परवाह करता था। उसे इन लोगों पर तरस आया क्योंकि वे “उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती ९:३६) उनके धार्मिक अगुओं से अपेक्षा की गयी थी कि वे एक प्रेममय, दयालु परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करनेवाले प्रेममय चरवाहे हों। इसके बजाय, उन्होंने सामान्य लोगों को महज़ निम्नवर्गीय—और स्रापित लोग समझकर हीन दृष्टि से देखा!a (यूहन्ना ७:४७-४९. यहेजकेल ३४:४ से तुलना कीजिए।) स्पष्ट रूप से, एक ऐसा विकृत, ग़ैर-शास्त्रीय दृष्टिकोण, अपने लोगों के लिए यहोवा के दृष्टिकोण से बिलकुल भिन्न था। उसने अपनी जाति, इस्राएल से कहा था: “सनातन प्रेम से मैंने तुझ से प्रेम किया है।”—यिर्मयाह ३१:३, NHT.
२. अय्यूब के तीन साथियों ने उसे यह विश्वास दिलाने की कोशिश कैसे की कि वह परमेश्वर की नज़रों में बेकार था?
२ लेकिन, फरीसी लोग निश्चय ही यहोवा की प्रिय भेड़ों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करनेवाले सबसे पहले नहीं थे कि वे बेकार हैं। अय्यूब के उदाहरण पर ग़ौर कीजिए। यहोवा के लिए वह धर्मी और निर्दोष था, लेकिन उन तीन ‘शांतिदाताओं’ ने संकेत किया कि अय्यूब एक अनैतिक, दुष्ट धर्मत्यागी था जो अपने अस्तित्व की कोई भी छाप छोड़े बग़ैर ही मर जाता। उन्होंने दावे के साथ कहा कि परमेश्वर अय्यूब की धार्मिकता को कोई महत्त्व नहीं देता, क्योंकि परमेश्वर ने ख़ुद अपने स्वर्गदूतों पर भी भरोसा नहीं रखा और स्वर्ग को भी अशुद्ध माना!—अय्यूब १:८; ४:१८; १५:१५, १६; १८:१७-१९; २२:३.
३. लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए कि वे बेकार और अप्रीतिकर हैं, शैतान आज कौन-से तरीक़े इस्तेमाल करता है?
३ आज, शैतान इस ‘धूर्त युक्ति’ का, अर्थात् लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करने का कि वे अप्रीतिकर और बेकार हैं, अब भी इस्तेमाल कर रहा है। (इफिसियों ६:११, NW फुटनोट) यह सच है कि वह अकसर लोगों को उनके अहंकार और घमण्ड को जगाने के द्वारा बहकाता है। (२ कुरिन्थियों ११:३) लेकिन वह असुरक्षित लोगों के स्वाभिमान को कुचलने से भी हर्षित होता है। यह ख़ासकर इन कठिन “अन्तिम दिनों” में सच है। आज अनेक लोग “मयारहित” परिवारों में बड़े होते हैं; अनेकों को रोज़ कठोर, स्वार्थी, और ढीठ लोगों का सामना करना पड़ता है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) सालों के दुराचार, प्रजातिवाद, घृणा, या दुर्व्यवहार ने शायद ऐसे लोगों को विश्वास दिलाया होगा कि वे बेकार और अप्रीतिकर हैं। एक पुरुष ने लिखा: “मुझे नहीं लगता कि मैं किसी से प्रेम करता हूँ या कोई मुझसे प्रेम करता है। मुझे यह विश्वास करने में बहुत दिक़्कत होती है कि परमेश्वर मेरे बारे में ज़रा-सी भी परवाह करता है।”
४, ५. (क) व्यक्तिगत निकम्मेपन का विचार शास्त्रवचनों के विरुद्ध क्यों है? (ख) हमारा यह विश्वास करने का कौन-सा एक भयानक परिणाम है कि हमारे किसी भी प्रयास का कोई मूल्य नहीं है?
४ व्यक्तिगत निकम्मेपन का विचार परमेश्वर के वचन की सच्चाई, अर्थात् छुड़ौती की शिक्षा पर वार करता है। (यूहन्ना ३:१६) अगर परमेश्वर इतनी बड़ी क़ीमत—ख़ुद अपने पुत्र का बहुमूल्य जीवन—हमारे लिए सर्वदा जीने के एक अवसर को ख़रीदने के लिए अदा करता, तो निश्चय ही वह हमसे प्रेम करता है; निश्चय ही उसकी नज़रों में हमारा कुछ तो मूल्य है!
५ इसके अलावा, यह महसूस करना कितना निरुत्साहक होगा कि हम परमेश्वर के लिए अप्रिय हैं, और हमारे किसी भी प्रयास का कोई भी मूल्य नहीं है! (नीतिवचन २४:१० से तुलना कीजिए।) इस नकारात्मक दृष्टिकोण की वजह से, नेक-नीयत प्रोत्साहन भी, जिसका उद्देश्य जहाँ संभव हो वहाँ परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा को आगे बढ़ाने में हमारी मदद करना है, कुछ लोगों को प्रोत्साहन के बदले निन्दा लगे। यह शायद हमारे अपने आंतरिक दृढ़ विश्वास का दोहराव प्रतीत हो कि हम जो भी करते हैं, वह काफ़ी नहीं है।
६. ख़ुद के बारे में अत्यधिक नकारात्मक विचारों के लिए सर्वोत्तम प्रतिकारक क्या है?
६ अगर ऐसी नकारात्मक भावनाएँ आप ख़ुद में महसूस करते हैं, तो निराश मत होइए। हम में से अनेक लोग समय-समय पर ख़ुद के बारे में आलोचनात्मक होते हैं। और याद रखिए, परमेश्वर का वचन बातों को “सुधारने” और “गढ़ों को ढा देने के लिये” रचा गया है। (२ तीमुथियुस ३:१६; २ कुरिन्थियों १०:४) प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे। क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।” (१ यूहन्ना ३:१९, २०) सो आइए हम उन तीन तरीक़ों पर ग़ौर करें जिनसे बाइबल हमें सिखाती है कि हम यहोवा के लिए बहुमूल्य हैं।
यहोवा आपको मूल्यवान समझता है
७. परमेश्वर की नज़रों में उनके मूल्य के बारे में यीशु ने सभी मसीहियों को कैसे सिखाया?
७ पहला, बाइबल सीधे रूप से सिखाती है कि परमेश्वर की नज़रों में हम में से प्रत्येक व्यक्ति का कुछ मूल्य है। यीशु ने कहा: “क्या दो पैसे की पांच गौरैयां नहीं बिकतीं? तौभी परमेश्वर उन में से एक को भी नहीं भूलता। बरन तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, सो डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।” (लूका १२:६, ७) उन दिनों में, भोजन के रूप में बिकनेवाली चिड़ियों में गौरैया सबसे सस्ती थी, फिर भी उनमें से एक को भी उसका सृष्टिकर्ता नहीं भूला था। इस तरह एक विलक्षण विषमता के लिए आधार स्थापित किया गया है: मनुष्यों के बारे में—जो बहुत ही ज़्यादा मूल्यवान हैं—परमेश्वर हर विवरण जानता है। यह ऐसा है मानो हमारे सिर के बालों को एक-एक करके गिना गया है!
८. यह विचार करना वास्तविक क्यों है कि यहोवा हमारे सिर के बाल गिन सकता है?
८ क्या बालों को गिना गया है? अगर आपको लगता है कि यीशु के दृष्टांत का यह पहलू अवास्तविक है, तो ग़ौर कीजिए: परमेश्वर अपने वफ़ादार सेवकों को इतनी अच्छी तरह से याद रखता है कि वह उन्हें पुनरुत्थित करने में समर्थ है—हर विवरण के साथ उनकी पुनः सृष्टि करना, जिसमें उनके जटिल आनुवंशिक कोड और उनकी सालों की यादें और अनुभव शामिल हैं। इसकी तुलना में हमारे बालों को गिनना (जिसमें औसतन एक सिर पर लगभग १,००,००० बाल उगते हैं) एक आसान काम होगा!—लूका २०:३७, ३८.
यहोवा की नज़रों में हमारा क्या मूल्य है?
९. (क) कौन-से कुछ गुण हैं जिन्हें यहोवा मूल्यवान समझता है? (ख) आप क्यों सोचते हैं कि ऐसे गुण उसके लिए बहुमूल्य हैं?
९ दूसरा, बाइबल हमें सिखाती है कि यहोवा की नज़रों में हमारा क्या मूल्य है। सरल शब्दों में कहें तो, वह हमारे सकारात्मक गुणों से और हमारे प्रयासों से हर्षित होता है। राजा दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान से कहा: “यहोवा मन [हृदय, NW] को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है।” (१ इतिहास २८:९) जब परमेश्वर इस हिंसक, घृणा से भरे संसार में हज़ारों लाखों मानवी हृदयों को जाँचता है, तब एक ऐसे हृदय को ढूँढने पर वह कितना हर्षित होता होगा जो शान्ति, सच्चाई, और धार्मिकता से प्रेम करता है! (यूहन्ना १:४७ से तुलना कीजिए; १ पतरस ३:४.) जब परमेश्वर एक ऐसा हृदय पाता है जो उसके लिए प्रेम से उमड़ता है, जो उसके बारे में सीखने की और जो ऐसा ज्ञान दूसरों के साथ बाँटने की कोशिश करता है, तब क्या होता है? मलाकी ३:१६ में यहोवा हमें कहता है कि जो दूसरों के साथ उसके बारे में बातें करते हैं, वह उनकी सुनता है और वे “जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते” हैं उन सभी के लिए उसके पास ‘स्मरण के निमित्त एक पुस्तक’ भी है। ऐसे गुण उसके लिए बहुमूल्य हैं!
१०, ११. (क) कुछ लोग इस प्रमाण पर विश्वास न करने के लिए शायद कैसे प्रवृत्त हों कि यहोवा उनके अच्छे गुणों को मूल्यवान समझता है? (ख) अबिय्याह का उदाहरण यह कैसे दिखाता है कि यहोवा हर मात्रा में अच्छे गुणों को मूल्यवान समझता है?
१० लेकिन, आत्म-निंदक हृदय शायद परमेश्वर की नज़रों में हमारे मूल्य के ऐसे प्रमाण का विरोध करे। यह शायद लगातार फुसफुसाए, ‘लेकिन ऐसे कितने सारे दूसरे लोग हैं जो इन गुणों में मुझ से ज़्यादा अनुकरणीय हैं। जब यहोवा उनके साथ मेरी तुलना करता है, तब वह कितना निराश होता होगा!’ यहोवा अपने सेवकों की तुलना नहीं करता, ना ही वह ख़ुद कठोर है और ना ही उसके स्तर कठोर हैं। (गलतियों ६:४) वह बहुत ही तीक्ष्ण अंतर्दृष्टि से हृदयों को पढ़ता है, और वह अच्छे गुणों को हर मात्रा में मूल्यवान समझता है।
११ उदाहरण के लिए, जब यहोवा ने आज्ञा दी कि राजा यारोबाम के पूरे धर्मत्यागी राजवंश को फाँसी दी जानी है, “गोबर” की तरह हटा दिया जाना है, उसने आज्ञा दी कि राजा के पुत्रों में से सिर्फ़ एक, अबिय्याह को ही अच्छी तरह से दफ़नाया जाए। क्यों? “उसी में कुछ पाया जाता है जो यहोवा इस्राएल के प्रभु की दृष्टि में भला है।” (१ राजा १४:१०, १३) क्या इसका मतलब था कि अबिय्याह यहोवा का एक वफ़ादार उपासक था? यह ज़रूरी नहीं है, क्योंकि वह अपने बाक़ी के दुष्ट घराने की तरह मर गया। (व्यवस्थाविवरण २४:१६) फिर भी, यहोवा ने अबिय्याह के हृदय में जो ‘कुछ भला’ देखा, उसे मूल्यवान समझा और उसी के अनुसार कार्य किया। मैथ्यू हेन्रीज़ कॉमेंटरी ऑन द होल बाइबल (अंग्रेज़ी) नोट करती है: “जहाँ भी इस तरह की कुछ भली चीज़ की एक सीमित मात्रा भी होगी, वह ढूँढी जाएगी: हम में अच्छे गुणों को ढूँढनेवाला परमेश्वर ऐसे गुणों को पहचानता है, चाहे वह अच्छाई एक छोटी मात्रा में भी क्यों न हो, और वह उससे ख़ुश होता है।” और यह मत भूलिए कि अगर परमेश्वर आप में किसी अच्छे गुण की छोटी मात्रा भी पाता है, तो वह उसे विकसित कर सकता है, बशर्ते आप उसकी सेवा वफ़ादारी से करने का प्रयास करें।
१२, १३. (क) भजन १३९:३ कैसे दिखाता है कि यहोवा हमारी कोशिशों को मूल्यवान समझता है? (ख) यह किस अर्थ में कहा जा सकता है कि यहोवा हमारी गतिविधियों को छानता है?
१२ उसी तरह यहोवा हमारी कोशिशों को मूल्यवान समझता है। भजन १३९: १-३ में हम पढ़ते हैं: “हे यहोवा, तू ने मुझे जांचकर जान लिया है। तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। मेरे चलने और लेटने की तू भली-भाँति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।” सो यहोवा हमारी हर गतिविधि जानता है। लेकिन यहोवा की जानकारी केवल अवगत होने से भी ज़्यादा है। इब्रानी भाषा में ‘तू मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है,’ इस वाक्यांश का अर्थ, “तू मेरी पूरी चालचलन को बहुमूल्य समझता है,” या “तू मेरी पूरी चालचलन को प्रिय समझता है,” हो सकता है। (मत्ती ६:१९, २० से तुलना कीजिए।) फिर भी, यहोवा हमारे मार्गों को प्रिय कैसे समझ सकता है जबकि हम इतने अपरिपूर्ण और दुष्ट हैं?
१३ यह दिलचस्पी की बात है कि कुछ विद्वानों के अनुसार, जब दाऊद ने लिखा कि यहोवा ने उसके चलने और आराम के समय की “छानबीन” की है, इब्रानी भाषा में इसका अक्षरशः मतलब था, “छानना” या “छाँटना।” एक संदर्भ रचना ने कहा: “इसका मतलब है . . . सारे भूसे को छाँटकर अलग करना, और सारे अनाज को छोड़ देना—जो मूल्यवान है उसे बचाना। सो लाक्षणिक रूप से कहें तो, यहाँ इसका मतलब है कि परमेश्वर ने उसे छाना। . . . उसने सारे भूसे को, या सभी मूल्यहीन चीज़ों को बिखेरा, और देखा कि जो बचा है वह असली और ज़रूरी है।” आत्म-निंदक हृदय शायद हमारे कामों को विपरीत तरीक़े से छाने। वह शायद हमारी बीती ग़लतियों की तीव्रता से निन्दा करे और हमारे भले कामों को मूल्यहीन समझकर उपेक्षा करे। लेकिन अगर हम निष्कपटता से पश्चाताप करते हैं और अपनी ग़लतियों को न दोहराने का कड़ा प्रयास करते हैं, तो यहोवा हमारे पापों को माफ़ करता है। (भजन १०३:१०-१४; प्रेरितों ३:१९) वह हमारे भले कामों को जाँचता और याद रखता है। दरअसल, अगर हम उसके प्रति वफ़ादार रहें, तो वह इन्हें सर्वदा के लिए याद रखेगा। इन्हें भूलना उसकी नज़र में अधर्म होगा, और वह कभी अधर्मी नहीं होता!—इब्रानियों ६:१०.
१४. कौन-सी बात दिखाती है कि यहोवा मसीही सेवकाई में हमारे कार्य को मूल्यवान समझता है?
१४ कुछ भले काम कौन-से हैं जिन्हें परमेश्वर मूल्यवान समझता है? क़रीब-क़रीब कुछ भी जो हम उसके पुत्र, यीशु मसीह का अनुकरण करते हुए करते हैं। (१ पतरस २:२१) तो फिर निश्चय ही, परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को फैलाना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम है। रोमियों १०:१५ में हम पढ़ते हैं: “उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” जबकि हम आम तौर पर अपने सामान्य पैरों को शायद “सोहावने” न समझें, लेकिन पौलुस ने यहाँ जिस शब्द का प्रयोग किया, यह वही शब्द है जिसे ग्रीक सॆप्ट्यूजॆन्ट वर्शन में रिबका, राहेल, और यूसुफ का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया गया है—वे तीनों जो अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर थे। (उत्पत्ति २६:७; २९:१७; ३९:६) सो हमारे परमेश्वर, यहोवा की सेवा में हमारा भाग लेना उसकी नज़रों में बहुत ही खूबसूरत और बहुमूल्य है।—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०.
१५, १६. यहोवा हमारे धीरज को क्यों मूल्यवान समझता है, और भजन ५६:८ के राजा दाऊद के शब्द इस तथ्य पर कैसे ज़ोर देते हैं?
१५ हमारा धीरज एक और गुण है जिसे परमेश्वर मूल्यवान समझता है। (मत्ती २४:१३) याद रखिए, शैतान चाहता है कि आप यहोवा से मुँह मोड़ लें। वह प्रत्येक दिन जिसमें आप यहोवा के प्रति वफ़ादार रहे हैं, एक ऐसा दिन है जिसमें आपने शैतान के ताने को प्रत्युत्तर देने में मदद की है। (नीतिवचन २७:११) कभी-कभी धीरज धरना आसान काम नहीं होता। स्वास्थ्य समस्याएँ, आर्थिक विपत्तियाँ, भावात्मक व्यथा, और अन्य बाधाएँ हर गुज़रते दिन को एक परीक्षा बना सकती हैं। ऐसी परीक्षाओं का सामना करते वक़्त धीरज धरना यहोवा के लिए ख़ासकर बहुमूल्य है। इसीलिए राजा दाऊद ने यहोवा से अपने आँसुओं को एक लाक्षणिक चमड़े की “कुप्पी” में जमा करके रखने के लिए कहा, और विश्वस्त होकर पूछा, “क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?” (भजन ५६:८) जी हाँ, यहोवा उन सभी आँसुओं और दुःखों को बहुमूल्य समझता है और याद रखता है जो हम उसके प्रति अपनी वफ़ादारी बनाए रखने में सहते हैं। वे भी उसकी नज़रों में बहुमूल्य हैं।
१६ हमारे ज़्यादा उत्तम गुणों और हमारे प्रयासों को मद्दे नज़र रखते हुए, यह कितना स्पष्ट है कि यहोवा हम में से प्रत्येक जन में मूल्यवान समझने के लिए बहुत कुछ पाता है! शैतान की दुनिया ने हमारे साथ चाहे कैसा भी सलूक क्यों न किया हो, यहोवा हमें बहुमूल्य और ‘सारी जातियों की मनभावनी वस्तुओं’ का भाग समझता है।—हाग्गै २:७.
यहोवा ने अपना प्रेम प्रदर्शित करने के लिए जो किया है
१७. मसीह के छुड़ौती बलिदान से हमें क्यों विश्वस्त होना चाहिए कि यहोवा और यीशु व्यक्तियों के तौर पर हमसे प्रेम करते हैं?
१७ तीसरा, हमारे लिए अपने प्रेम को साबित करने के लिए यहोवा बहुत कुछ करता है। निश्चय ही, मसीह का छुड़ौती बलिदान, इस शैतानी झूठ के लिए सबसे शक्तिशाली जवाब है कि हम बेकार या अप्रीतिकर हैं। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यीशु ने यातना-स्तंभ पर जिस पीड़ादायक मौत को सहा और यहोवा ने अपने प्रिय पुत्र की मौत को देखते हुए जो उससे भी ज़्यादा पीड़ा सही, ये हमारे प्रति उनके प्रेम के सबूत थे। इसके अतिरिक्त, वह प्रेम हमें व्यक्तिगत रूप से लागू होता है। प्रेरित पौलुस ने इस बात को इसी तरह समझा, क्योंकि उसने लिखा: “परमेश्वर के पुत्र . . . ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया।”—गलतियों २:२०.
१८. किस अर्थ में यहोवा हमें मसीह की ओर खींचता है?
१८ मसीह के बलिदान के लाभों का उपयोग करने में व्यक्तिगत रूप से हमारी मदद करने के द्वारा यहोवा ने हमारे प्रति अपने प्रेम को साबित किया है। यूहन्ना ६:४४ में यीशु मसीह ने कहा, “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” प्रचार कार्य के ज़रिए, जो हम तक व्यक्तिगत रूप से पहुँचता है, और अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए, जिसे यहोवा हमें अपनी कमज़ोरियों और अपरिपूर्णताओं के बावजूद आध्यात्मिक सच्चाइयों को समझने और उन्हें लागू करने में हमारी मदद करने के लिए प्रयोग करता है, यहोवा व्यक्तिगत रूप से हमें अपने पुत्र और अनन्त जीवन की आशा की ओर खींचता है। इसलिए यहोवा हमारे बारे में भी वही कह सकता है जो उसने इस्राएलियों के बारे में कहा: “सनातन प्रेम से मैंने तुझ से प्रेम किया है; अतः करुणा करके मैं तुझे अपने पास ले आया हूं।”—यिर्मयाह ३१:३, NHT.
१९. प्रार्थना के विशेषाधिकार से हमें अपने लिए यहोवा के व्यक्तिगत प्रेम का विश्वास क्यों होना चाहिए?
१९ लेकिन, शायद यह प्रार्थना के विशेषाधिकार के ज़रिए है कि हम यहोवा के प्रेम को सबसे घनिष्ठ तरीक़े से अनुभव करते हैं। वह हम में से हरेक को आमंत्रित करता है कि उसे ‘निरन्तर प्रार्थना करते रहें।’ (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७) वह सुनता है! उसे ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ भी कहा गया है। (भजन ६५:२) उसने यह ज़िम्मेदारी किसी अन्य व्यक्ति को नहीं सौंपी है, अपने ख़ुद के पुत्र को भी नहीं। ज़रा विचार कीजिए: विश्व का सृष्टिकर्ता हमसे आग्रह करता है कि हम प्रार्थना में उसके पास दिल खोलकर जाएँ। शायद आपकी याचनाएँ यहोवा को वह भी करने के लिए प्रेरित करें जो उसने अन्यथा नहीं किया होता।—इब्रानियों ४:१६; याकूब ५:१६. यशायाह ३८:१-१६ देखिए।
२०. हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम हमारे अभिमान या अहंकार के लिए बहाना क्यों नहीं है?
२० कोई भी संतुलित मसीही, परमेश्वर के प्रेम और सम्मान के ऐसे प्रमाण को ख़ुद को ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण समझने के लिए एक बहाने के रूप में नहीं लेगा। पौलुस ने लिखा: “क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।” (रोमियों १२:३) सो जबकि हम अपने स्वर्गीय पिता के प्रेम के साये का आनन्द उठाते हैं, आइए हम मन में स्थिर रहें और यह याद रखें कि परमेश्वर की प्रेममय-कृपा अपात्र है।—लूका १७:१० से तुलना कीजिए।
२१. किस शैतानी झूठ को हमें लगातार अस्वीकार करने की ज़रूरत है, और किस ईश्वरीय सत्य पर हमें हमेशा मनन करने की ज़रूरत है?
२१ आइए हम में से प्रत्येक जन, इस मरणासन्न पुराने संसार में शैतान जिन विचारों को बढ़ावा देता है, उन सभी का विरोध करने का हर संभव प्रयास करें। इसमें इस विचार का तिरस्कार करना भी शामिल है कि हम बेकार या अप्रीतिकर हैं। अगर इस व्यवस्था में जीवन ने आपको ख़ुद को इस तरह से समझने के लिए सिखाया है कि, आप एक ऐसी बाधा हैं जिसे परमेश्वर का अपार प्रेम भी पार नहीं कर सकता, या आपके भले काम इतने महत्त्वहीन हैं कि उसकी सब-कुछ-देखनेवाली नज़रें भी नहीं देख सकतीं, या आपके पाप इतने हैं कि उसके बहुमूल्य बेटे की मौत भी उन्हें नहीं ढाँप सकती, तो आपको झूठ सिखाया गया है। ऐसे झूठ को उसके योग्य पूरी नफ़रत के साथ तिरस्कार कीजिए! आइए हम रोमियों ८:३८, ३९ में प्रेरित पौलुस के उत्प्रेरित शब्दों को सदा मन में रखें: “मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।”
[फुटनोट]
a दरअसल, वे ग़रीब लोगों के लिए तिरस्कारपूर्ण पद “अमहाएरेट्स” या “ज़मीन के लोग” प्रयोग करके उनकी उपेक्षा करते थे। एक विद्वान के अनुसार, फरीसी सिखाते थे कि किसी व्यक्ति को इन लोगों के भरोसे पर क़ीमती वस्तुएँ नहीं छोड़नी चाहिए, ना ही उनकी गवाही पर भरोसा रखना चाहिए, ना ही मेहमान के रूप में उनका स्वागत करना चाहिए, ना ही उनके मेहमान बनना चाहिए, यहाँ तक कि उनसे कुछ ख़रीदना भी नहीं चाहिए। धार्मिक अगुए कहते थे कि एक व्यक्ति की बेटी का इन लोगों में से किसी के साथ शादी करवाना उसे एक जानवर के सामने बाँधकर असहाय छोड़ने के समान है।
आप क्या सोचते हैं?
◻ शैतान हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश क्यों करता है कि हम बेकार और अप्रीतिकर हैं?
◻ यीशु ने यह कैसे सिखाया कि यहोवा हम में से प्रत्येक व्यक्ति को मूल्यवान समझता है?
◻ हम यह कैसे जानते हैं कि यहोवा हमारे अच्छे गुणों को महत्त्व देता है?
◻ हम कैसे निश्चित हो सकते हैं कि यहोवा हमारी कोशिशों को बहुमूल्य समझता है?
◻ यहोवा ने हमारे लिए व्यक्तियों के तौर पर अपना प्रेम कैसे साबित किया है?
[पेज 13 पर तसवीरें]
यहोवा उन सभी लोगों को देखता और याद रखता है जो उसके नाम का स्मरण रखते हैं