अपनी अत्यावश्यकता की भावना की रक्षा कीजिए
यहोवा की पूरे मन से सेवा करते रहने का एक निश्चित, परमेश्वर-स्वीकृत तरीक़ा क्या है? वह है अपने हृदय में गहन रूप से अत्यावश्यकता की भावना रखना। पूरे मन से परमेश्वर की सेवा करने का अर्थ है अपने पूरे अस्तित्व से उसकी सेवा करना, और यह माँग करता है कि हमसे वह जो कुछ करने को कहता है, उसमें हम सच्ची, निर्विवाद आज्ञाकारिता दिखाएँ।
भविष्यवक्ता मूसा ने इस ज़रूरत पर ज़ोर दिया जब उसने इस्राएल की जाति को उपदेश दिया: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।” (व्यवस्थाविवरण ६:५) सदियों बाद वही आदेश मसीह यीशु द्वारा दोहराया गया: “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।” (मत्ती २२:३७) प्रेरित पौलुस ने इसी माँग की ओर संकेत किया जब उसने इफिसियों को “मन से परमेश्वर की इच्छा” पर चलने को कहा, और जब उसने कुलुस्सियों से आग्रह किया: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।”—इफिसियों ६:६; कुलुस्सियों ३:२३.
लेकिन, परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा में अपना हृदय और प्राण लगा देना कठिन है यदि गहन रूप से हमारे भीतर अत्यावश्यकता की भावना नहीं है या हमारे पास जो अत्यावश्यकता की भावना पहले थी, वह अब कम पड़ गयी है—संभवतः पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। आज, हम अत्यावश्यकता के ऐसे समय में जी रहे हैं जो मानव इतिहास की किसी भी अवधि से अद्वितीय है।
अत्यावश्यकता की विशिष्ट अवधियाँ
मसीही-पूर्व समय में अत्यावश्यकता की कई अवधियाँ थीं। नूह का समय और वह अवधि जो सदोम और अमोराह के नाश की ओर ले गयी, निश्चय ही वास्तविक अत्यावश्यकता के समय थे। (२ पतरस २:५, ६; यहूदा ७) प्रलय-पूर्व वर्ष निःसंदेह अत्यावश्यक गतिविधि से भरे थे। हालाँकि नूह और उसका परिवार यह ठीक-ठीक नहीं जानते थे कि जलप्रलय कब शुरू होगा, उनके “ईश्वरीय भय” ने यह निश्चय करने में मदद की होगी कि वे विलम्ब न करें।—इब्रानियों ११:७, NW.
समान रूप से, सदोम और अमोरा के नाश से पहले, स्वर्गदूतों ने “लूत से फुर्ती कराई” और उससे कहा: “अपना प्राण लेकर भाग जा।” (उत्पत्ति १९:१५, १७) जी हाँ, उस अवसर पर भी, अत्यावश्यकता ने धर्मी लोगों को बचाया। सदियों बाद, बाबुल में यहूदी बन्धुओं को प्रोत्साहित किया गया: “दूर हो, दूर, वहां से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छुओ; उसके बीच से निकल जाओ।” (यशायाह ५२:११) सामान्य युग पूर्व ५३७ में, उस अत्यावश्यक भविष्यसूचक आदेश के आज्ञापालन में तक़रीबन २,००,००० निर्वासित लोग बाबुल से जल्दी बाहर आ गए।
उन में से प्रत्येक परिस्थिति में, अत्यावश्यकता की भावना उन लोगों द्वारा पूरे मन से सेवा में परिणित हुई जिन्होंने इस विश्वास को महसूस किया और जीवन्त रखा कि वे अत्यावश्यक समयों में जी रहे हैं।
मसीही समयों में अत्यावश्यकता
अत्यावश्यकता की प्रतिध्वनियाँ पूरे मसीही यूनानी शास्त्र में भी सुनी जा सकती हैं। ‘देखते रहो,’ “जागते रहो,” “ताक में रहो,” (NW) “तैयार रहो”—ये सभी ऐसी अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें अपने अनुयायियों के मन में अत्यावश्यकता की उचित भावना को बिठाने के लिए यीशु मसीह ने इस्तेमाल किया। (मत्ती २४:४२-४४; मरकुस १३:३२-३७) इसके अतिरिक्त, दस कुँवारियों, दुष्ट दास, तोड़ों, और भेड़ों को बकरियों से अलग करने के सम्बन्ध में उसके दृष्टान्त, सभी प्रत्याशा जगाते हैं और अत्यावश्यकता की भावना को उत्पन्न करते हैं।—मत्ती २५:१, १४, १५, ३२, ३३.
यीशु ने न सिर्फ़ अत्यावश्यकता के बारे में बात की बल्कि उसने अपने शब्दों की यथार्थता को अत्यावश्यकता के साथ कार्य करने के द्वारा भी दिखाया। एक अवसर पर उसने भीड़ को बताया जब उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की: “मुझे और और नगरों में भी परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसी लिये भेजा गया हूं।” (लूका ४:४२, ४३) इसके अतिरिक्त, उसने अपने शिष्यों को खेत के स्वामी से उसके खेत में और ज़्यादा मज़दूरों को भेजने की बिनती करने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं।” (मत्ती ९:३७, ३८) परमेश्वर से ऐसी एक प्रार्थनापूर्ण बिनती वाक़ई अत्यावश्यकता की आत्मा को व्यक्त करती है।
क्या ऐसी अत्यावश्यकता ग़लत समय पर थी?
कुछ लोग शायद यह तर्कसंगत सवाल उठाएँ, उस समय अत्यावश्यकता की भावना की ज़रूरत क्यों थी यदि पूर्वकथित “भारी क्लेश” सदियों बाद आना था?—मत्ती २४:२१.
हम निश्चित हो सकते हैं कि यह अपने अनुयायियों को प्रचार और शिक्षण कार्य में व्यस्त रखने के लिए यीशु द्वारा इस्तेमाल की गयी मात्र कोई चाल नहीं थी। जी नहीं, यह मसीह का अपने शिष्यों के लिए प्रेम, साथ ही साथ समय के बारे में यहोवा के दृष्टिकोण की उसकी सही समझ थी, जो अत्यावश्यकता पर उसकी सलाह का आधार था। जी हाँ, मसीह यीशु जानता था कि परमेश्वर के उद्देश्य के मुताबिक़ यहोवा की इच्छा को पूरा करने के लिए अत्यावश्यकता की आत्मा की ज़रूरत थी। इसके अतिरिक्त, वह जानता था कि उसके शिष्य उसकी वापसी तक अत्यावश्यकता की भावना को बनाए रखने के द्वारा अपने आपको आध्यात्मिक रूप से लाभ पहुँचाते।
यीशु मसीह ने स्पष्ट रूप से सूचित किया था कि एक विश्वव्यापी गवाही कार्य पूरा किया जाना था और वह भी एक सीमित समय में। (मत्ती २४:१४; मरकुस १३:१०) इस कार्य-नियुक्ति के क्रमिक चरण केवल तब प्रकट हुए जब कार्य फैलता गया। लेकिन प्रत्येक क़दम को पूरा करने के लिए अत्यावश्यकता की ज़रूरत थी। यीशु ने इस कार्य-नियुक्ति की प्रगति को सूचित किया जब उसने कहा: “तुम . . . यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों १:८) और इसी प्रकार यह कार्य-नियुक्ति वर्तमान समय तक फैलती आयी है। समय के बीतने पर, इसने परमेश्वर के सेवकों को कई बार चकित किया है, जिसकी वजह से समझ में समय-समय पर समंजन करने की ज़रूरत पड़ी है।
अत्यावश्यकता की मसीही भावना ने यहोवा के उद्देश्य को पूरा किया है। इसने मसीह के शिष्यों को यहोवा की अचूक सारणी के अनुसार अपनी नियुक्ति में जो विस्तार हो रहा था उसको पूरा करने में मदद की है। और इस कारण आज, अतीत के लगभग २,००० सालों को देखते हुए, हम उस ईश्वरीय सारणी को और भी अच्छी तरह से समझते हैं।
मसीही अत्यावश्यकता ने शिष्यों को सा.यु. ३६ के पहले यरूशलेम, यहूदिया, सामरिया, और बिखरे हुए यहूदियों को पूरी-पूरी गवाही देने में मदद की जब इस्राएल के प्रति ख़ास अनुग्रह ख़त्म होने को आया। (दानिय्येल ९:२७; प्रेरितों २:४६, ४७) समान रूप से, मसीही अत्यावश्यकता ने सभी यहूदियों को एक स्पष्ट चेतावनी देने में, कि उनकी व्यवस्था जल्द ही समाप्त होगी, प्रारंभिक कलीसिया की सहायता की। (लूका १९:४३, ४४; कुलुस्सियों १:५, ६, २३) और सा.यु. ७० में व्यवस्था के अचानक समाप्त हो जाने के बाद, इससे पहले कि पूर्वकथित धर्मत्याग अपने घातक आध्यात्मिक अन्धकार को फैलाता, अत्यावश्यकता ने मसीह के प्रथम-शताब्दी साक्षियों को, अनेक लोगों को स्वर्गीय आशा की घोषणा करने में मदद की। (२ थिस्सलुनीकियों २:३; २ तीमुथियुस ४:२) फिर, अन्धकार-युग की सदियों के दौरान, उन थोड़े गेहूँ-समान मसीहियों ने राज्य आशा को जीवित रखा, जैसे यीशु मसीह ने पूर्वबताया था। (मत्ती १३:२८-३०) अंततः, अपने नियुक्त समय पर, यहोवा ने एक शक्तिशाली, आधुनिक-दिन कलीसिया खड़ी की जो इस अंतिम पीढ़ी में रहनेवालों के लिए न्यायदण्ड के उसके अत्यावश्यक संदेश द्वारा प्रेरित होती है।—मत्ती २४:३४.
प्राचीन समय के दानिय्येल के समान, परमेश्वर के विश्वासी आधुनिक-दिन साक्षी यहोवा से कभी यह सवाल करने की जुर्रत नहीं करेंगे: “तू क्या कर रहा था?” (दानिय्येल ४:३५, NW) वे विश्वस्त हैं कि यहोवा जानता है कि सारणीनुसार सही समय पर अपना कार्य पूरा करवाने के लिए ठीक-ठीक क्या ज़रूरी है। सो मामलों को व्यवस्थित करने के यहोवा के तरीक़े पर सवाल उठाने के बजाय, वे ख़ुश हैं कि परमेश्वर ने उन्हें इन महत्त्वपूर्ण समयों में उसके साथ काम करने का अवसर दिया है।—१ कुरिन्थियों ३:९.
अत्यावश्यकता के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन
अत्यावश्यकता के लिए एक और कारण है भारी क्लेश के एकाएक शुरू होने के सही दिन और समय को ठीक-ठीक जानने की हमारी अयोग्यता। मसीह यीशु ने सुस्पष्ट रूप से बताया था कि पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति उस अति महत्त्वपूर्ण घटना के आरंभ का पूर्वनिर्धारित दिन और घड़ी नहीं जानता है। (मत्ती २४:३६) एक और अवसर पर उसने अपने उत्सुक प्रेरितों से कहा: “उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं।” (प्रेरितों १:७) जी हाँ, परिणाम स्पष्ट है, लेकिन सभी विवरणों को जानना हमारा काम नहीं है।
प्रेरित पौलुस के पास अत्यावश्यकता के बारे में सही मनोवृत्ति थी। शायद उसके मन में यीशु के शब्द थे जब उसने थिस्सलुनीकियों को मसीह की उपस्थिति के बारे में लिखा: “पर हे भाइयो, इसका प्रयोजन नहीं, कि समयों और कालों के विषय में तुम्हारे पास कुछ लिखा जाए।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:१) उसने यह पत्री यीशु के यह कहने के कुछ १७ साल बाद लिखी: “तुम . . . पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों १:८) उस समय और अधिक नहीं लिखा जा सका क्योंकि और अधिक प्रकट नहीं किया गया था। फिर भी वे विश्वस्त हो सकते थे कि यहोवा का दिन निश्चय ही ‘जैसे रात को चोर आता है, वैसे ही’ आएगा और तब भी मसीही अत्यावश्यकता से प्रचार कर रहे होंगे।—१ थिस्सलुनीकियों ५:२.
यह असंभाव्य प्रतीत होगा कि इन शब्दों को मन में रखते हुए, प्रथम-शताब्दी के मसीहियों ने सोचा कि यहोवा का दिन सदियों दूर था। यह सच है कि वे उस राजा के बारे में जो दूर देश गया और उस मनुष्य के बारे में जो परदेश गया के यीशु के दृष्टान्तों को जानते थे। वे यह भी जानते थे कि दृष्टान्तों ने दिखाया कि राजा “अन्ततः” लौटेगा और वह यात्री “बहुत दिनों के बाद” लौटेगा। लेकिन निःसंदेह वे ऐसे सवालों के बारे में दुविधा में थे कि “अन्ततः” कब है? और “बहुत दिनों के बाद” का अर्थ क्या है? दस साल? बीस साल? पचास साल? या उससे अधिक? (लूका १९:१२, १५, NW; मत्ती २५:१४, १९) यीशु के शब्द उनके कानों में गूँजते रहते: “तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जावेगा।”—लूका १२:४०.
अत्यावश्यकता के सकारात्मक प्रभाव
जी हाँ, प्रथम-शताब्दी मसीहियों पर अत्यावश्यकता की परमेश्वर-प्रेरित भावना का अद्भुत रूप से प्रोत्साहक प्रभाव पड़ा, जिससे उन्हें प्रचार और शिक्षण के सर्व-महत्त्वपूर्ण कार्य में व्यस्त रहने में मदद मिली। यह आज अनेक तरीक़ों से हमें प्रोत्साहित करना जारी रखती है। यह हमें आत्मसंतुष्ट होने या ‘भले काम में ढीले नहीं होने’ से दूर रखती है। (गलतियों ६:९) यह हमें संसार और इसके कपटपूर्ण भौतिकवाद में अति-अन्तर्ग्रस्त होने से सुरक्षित रखती है। यह हमारे मन को “सत्य जीवन” पर रखती है। (१ तीमुथियुस ६:१९) प्रभु यीशु ने कहा कि उसके शिष्य ‘भेड़ियों के बीच भेड़ों’ की नाईं होंगे, और संसार का विरोध करने के लिए एक पक्का, निश्चित दृष्टिकोण रखने की हमारी ज़रूरत को वह जानता था। जी हाँ, हमें अत्यावश्यकता की हमारी मसीही भावना द्वारा बचाया और सुरक्षित किया गया है।—मत्ती १०:१६.
अपनी असीम बुद्धि के कारण यहोवा परमेश्वर ने हमेशा अपने सेवकों को अत्यावश्यकता की उनकी भावना को जीवित रखने के लिए पर्याप्त जानकारी दी है। उसने हमें कृपापूर्ण रूप से आश्वस्त किया है कि हम इस भ्रष्ट रीति-व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) हमें निरन्तर याद दिलाया जाता है कि हमें तब तक दीपकों की नाईं चमकना है जब तक कि यह पीढ़ी जिसमें हम जी रहे हैं, भारी क्लेश में, जिसकी पराकाष्ठा हर-मगिदोन में होगी, गुज़र नहीं जाती।—फिलिप्पियों २:१५; प्रकाशितवाक्य ७:१४; १६:१४, १६.
जी हाँ, अत्यावश्यकता की एक ईश्वरीय भावना यहोवा की पूरे मन से सेवा का एक अभिन्न भाग है। यह परमेश्वर के सेवकों को ‘निराश होकर [अपना] हियाव छोड़ देने’ के लिए प्रेरित करने के इब्लीस के प्रयत्नों से रक्षा करती है और उनको विफल करने में मदद करती है। (इब्रानियों १२:३) सर्वदा के लिए, पूरे मन की भक्ति यहोवा के सेवकों को उसकी आज्ञा मानने के लिए प्रेरित करेगी, लेकिन अभी, इन अरमगिदोन-पूर्व दिनों में, अत्यावश्यकता की एक गहरी, वास्तविक भावना पूरे मन की भक्ति का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
ऐसा हो कि यहोवा हमारा परमेश्वर अत्यावश्यकता की हमारी भावना की रक्षा करने में हम सब की मदद करे, और हम प्रेरित यूहन्ना के शब्दों को प्रतिध्वनित करते रहें: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।”—प्रकाशितवाक्य २२:२०.