यहोवा शान्ति और सच्चाई बहुतायत में देता है
“मैं उन पर सच्चाई और शान्ति को बहुतायत से प्रकट करूंगा।” —यिर्मयाह ३३:६, NHT.
१, २. (क) शान्ति के बारे में, राष्ट्रों का रेकॉर्ड क्या है? (ख) सामान्य युग पूर्व ६०७ में, यहोवा ने शान्ति के बारे में इस्राएल को कौन-सा सबक़ सिखाया?
शान्ति! यह कितनी चाहनेयोग्य है, फिर भी यह मानव इतिहास में कितनी दुर्लभ रही है! विशेषकर २०वीं शताब्दी, शान्ति की शताब्दी नहीं रही है। इसके बजाय, इसने मानव इतिहास के दो सबसे विध्वंसक युद्ध देखे हैं। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात्, विश्व शान्ति को बनाए रखने के लिए राष्ट्र संघ खड़ा किया गया। वह संगठन असफल हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात्, उसी लक्ष्य के साथ संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थापित किया गया। हमें यह देखने के लिए केवल दैनिक समाचारपत्र पढ़ने की ज़रूरत है कि यह भी कितनी बुरी तरह असफल हो रहा है।
२ क्या हमें अचम्भित होना चाहिए कि मानवी संगठन शान्ति नहीं ला सकते? कदापि नहीं। २,५०० से भी अधिक वर्षों पहले, परमेश्वर के चुने हुए लोग, इस्राएल को इस सम्बन्ध में एक सबक़ सिखाया गया था। सामान्य युग पूर्व सातवीं शताब्दी में, इस्राएल की शान्ति को प्रमुख विश्व शक्ति, बाबुल से ख़तरा था। इस्राएल ने शान्ति के लिए मिस्र की ओर देखा। मिस्र असफल रहा। (यिर्मयाह ३७:५-८; यहेजकेल १७:११-१५) सामान्य युग पूर्व ६०७ में, बाबुल की सेनाओं ने यरूशलेम की दीवारों को ढा दिया और यहोवा के मन्दिर को फूँक दिया। इस प्रकार इस्राएल ने अपने अनुभव से मानवी संगठन पर निर्भर रहने की व्यर्थता को सीखा। शान्ति का आनन्द लेने के बजाय, उस जाति को बाबुल के निर्वासन में घसीटा गया।—२ इतिहास ३६:१७-२१.
३. यिर्मयाह द्वारा यहोवा के शब्दों की पूर्ति में, किन ऐतिहासिक घटनाओं ने इस्राएल को शान्ति के बारे में दूसरा अति-महत्त्वपूर्ण सबक़ सिखाया?
३ लेकिन, यरूशलेम के पतन के पहले, यहोवा ने प्रकट किया था कि मिस्र नहीं, परन्तु वह इस्राएल के लिए सच्ची शान्ति लाएगा। यिर्मयाह द्वारा उसने प्रतिज्ञा की: “मैं उनको चंगा करूंगा, और मैं उन पर सच्चाई और शान्ति को बहुतायत से प्रकट करूंगा। और मैं इस्राएल और यहूदा के बन्धुवों को लौटा ले आऊंगा और मैं उनको पुनः प्रतिष्ठित करूंगा।” (यिर्मयाह ३३:६, ७, NHT) यहोवा की प्रतिज्ञा की पूर्ति सा.यु.पू. ५३९ में आरम्भ हुई, जब बाबुल पर क़ब्ज़ा किया गया और इस्राएली निर्वासितों को मुक्ति का मौक़ा दिया गया। (२ इतिहास ३६:२२, २३) सामान्य युग पूर्व ५३७ के अंतिम भाग में, इस्राएलियों के एक समूह ने ७० वर्षों में पहली बार इस्राएल की भूमि पर झोपड़ियों का पर्व मनाया! पर्व के पश्चात्, उन्होंने यहोवा के मन्दिर का पुनःनिर्माण शुरू किया। इसके बारे में उन्हें कैसा लगा? अभिलेख कहता है: “तब . . . लोग यहोवा की स्तुति करते हुए उच्च स्वर से जय-जयकार करने लगे, क्योंकि यहोवा के भवन की नींव डाली जा चुकी थी।”—एज्रा ३:११, NHT.
४. यहोवा ने इस्राएलियों को मन्दिर के निर्माण का कार्य करने के लिए कैसे उकसाया, और उसने शान्ति के बारे में कौन-सी प्रतिज्ञा की?
४ लेकिन, उस आनन्दपूर्ण आरम्भ के पश्चात्, इस्राएली लोग विरोधियों द्वारा निरुत्साहित हुए और उन्होंने मन्दिर के निर्माण का कार्य बन्द कर दिया। कुछ वर्षों पश्चात्, यहोवा ने पुनःनिर्माण का कार्य पूरा करने के लिए इस्राएलियों को उकसाने के लिए भविष्यवक्ता हाग्गै और जकर्याह को खड़ा किया। उन लोगों के लिए उस मन्दिर के बारे में जिसका निर्माण होता, हाग्गै को यह कहते हुए सुनना कितना रोमांचक रहा होगा: “इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है, और इस स्थान में मैं शान्ति दूंगा”!—हाग्गै २:९.
यहोवा अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है
५. जकर्याह के आठवें अध्याय के बारे में कौन-सी बात ग़ौरतलब है?
५ जकर्याह की बाइबल पुस्तक में हम कई उत्प्रेरित दर्शनों और भविष्यवाणियों के बारे में पढ़ते हैं जिन्होंने सा.यु.पू. छठवीं शताब्दी में परमेश्वर के लोगों को बलवन्त किया। यही भविष्यवाणियाँ हमें यहोवा के सहारे के बारे में आश्वस्त करना जारी रखती हैं। ये हमें यह विश्वास करने के लिए हर कारण प्रदान करती हैं कि हमारे दिनों में भी यहोवा अपने लोगों को शान्ति देगा। उदाहरण के लिए, उसके नाम की पुस्तक के आठवें अध्याय में, भविष्यवक्ता जकर्याह “यहोवा यों कहता है,” शब्दों को दस बार कहता है। हर बार, यह अभिव्यक्ति एक ऐसी ईश्वरीय उद्घोषणा प्रस्तुत करती है जो परमेश्वर के लोगों की शान्ति से सम्बन्धित है। इनमें से कुछ प्रतिज्ञाएँ जकर्याह के दिनों में पूरी हुई थीं। सभी पूरी हो चुकी हैं या आज पूरी होने की प्रक्रिया में हैं।
“सिय्योन के लिये मुझे . . . जलन हुई”
६, ७. किन तरीक़ों से यहोवा को ‘सिय्योन के लिए बड़ी जलजलाहट थी’?
६ यह अभिव्यक्ति पहले जकर्याह ८:२ में आती है, जहाँ हम पढ़ते हैं: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है: सिय्योन के लिये मुझे बड़ी जलन हुई वरन बहुत ही जलजलाहट मुझ में उत्पन्न हुई है।” अपने लोगों के लिए जलनशील होने, बहुत उत्साह रखने की यहोवा की प्रतिज्ञा का अर्थ था कि वह उनकी शान्ति को पुनःस्थापित करने में सचेत होता। इस्राएल की अपने देश में पुनःस्थापना और मन्दिर का पुनःनिर्माण उस उत्साह का प्रमाण थे।
७ लेकिन, उन लोगों का क्या जिन्होंने यहोवा के लोगों का विरोध किया था? अपने लोगों के लिए उसके उत्साह की समानता इन शत्रुओं पर उसकी “बहुत ही जलजलाहट” से की जाती। जब वफ़ादार यहूदियों ने पुनःनिर्मित मन्दिर में उपासना की, तब वे शक्तिशाली बाबुल के अंजाम पर विचार करने में समर्थ होते, जो अब गिर चुका था। वे उन शत्रुओं की बुरी असफलता पर भी विचार कर सकते थे जिन्होंने मन्दिर के पुनःनिर्माण को रोकने की कोशिश की थी। (एज्रा ४:१-६; ६:३) और वे यहोवा का धन्यवाद कर सकते थे कि उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी। उसके उत्साह ने उन्हें विजय दिलायी थी।
“सच्चाई का नगर”
८. जकर्याह के दिनों में, यरूशलेम प्रारम्भिक दिनों की विषमता में सच्चाई का नगर कैसे बनता?
८ जकर्याह दूसरी बार लिखता है: “यहोवा यों कहता है।” इस अवसर पर यहोवा के शब्द क्या हैं? “मैं सिय्योन में लौट आया हूं, और यरूशलेम के बीच में वास किए रहूंगा; और यरूशलेम सच्चाई का नगर कहलाएगा, और सेनाओं के यहोवा का पर्वत, पवित्र पर्वत कहलाएगा।” (जकर्याह ८:३) सामान्य युग पूर्व ६०७ के पहले, यरूशलेम सच्चाई का नगर कदापि नहीं था। उसके याजक और भविष्यवक्ता भ्रष्ट थे, और उसके लोग अविश्वासी थे। (यिर्मयाह ६:१३; ७:२९-३४; १३:२३-२७) अब परमेश्वर के लोग मन्दिर का पुनःनिर्माण कर रहे थे, और शुद्ध उपासना के लिए अपनी वचनबद्धता दिखा रहे थे। यहोवा फिर एक बार आत्मा में यरूशलेम में बसा। शुद्ध उपासना की सच्चाइयाँ उसमें फिर से बोली जाने लगी थीं, सो यरूशलेम “सच्चाई का नगर” कहलाया जा सकता था। उसका ऊँचा स्थान “यहोवा का पर्वत” कहलाया जा सकता था।
९. “परमेश्वर के इस्राएल” द्वारा १९१९ में परिस्थिति में किस उल्लेखनीय परिवर्तन का अनुभव किया गया?
९ जबकि ये दो उद्घोषणाएँ प्राचीन इस्राएल के लिए अर्थपूर्ण थीं, जैसे-जैसे २०वीं शताब्दी समाप्त होती है, ये हमारे लिए भी काफ़ी अर्थ रखती हैं। लगभग ८० वर्ष पहले, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, उस समय “परमेश्वर के इस्राएल” का प्रतिनिधित्व करनेवाले कुछ हज़ार अभिषिक्त जन आध्यात्मिक बन्धुवाई में चले गए, ठीक जैसे प्राचीन इस्राएल बाबुल में बन्धुवाई में गया था। (गलतियों ६:१६) भविष्यसूचक रूप से, उनका वर्णन सड़क पर पड़ी हुई लोथों के समान किया गया। फिर भी, उनमें “आत्मा और सच्चाई” से यहोवा की उपासना करने की निष्कपट इच्छा थी। (यूहन्ना ४:२४) अतः, १९१९ में यहोवा ने उन्हें बन्धुवाई से मुक्त किया, और उन्हें उनकी आध्यात्मिक रूप से मृत स्थिति से जी उठाया। (प्रकाशितवाक्य ११:७-१३) इस प्रकार यहोवा ने यशायाह के इस भविष्यसूचक प्रश्न का उत्तर एक ज़ोरदार हाँ में दिया: “क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति क्षणमात्र में ही उत्पन्न हो सकती है?” (यशायाह ६६:८) १९१९ में, यहोवा के लोग फिर एक बार अपने ही “देश,” या पृथ्वी पर आध्यात्मिक सम्पत्ति में एक आत्मिक जाति के रूप में अस्तित्व में थे।
१०. वर्ष १९१९ से, अभिषिक्त मसीही अपने “देश” में किन आशिषों का आनन्द लेते रहे हैं?
१० उस देश में सुरक्षित, अभिषिक्त मसीहियों ने यहोवा के महान आध्यात्मिक मन्दिर में सेवा की। उन्हें “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” पदनाम दिया गया, जिसने यीशु की पार्थिव सम्पत्ति की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी स्वीकारी, एक ऐसा विशेषाधिकार जिसका वे अब भी आनन्द लेते हैं, जैसे-जैसे २०वीं शताब्दी अपनी समाप्ति के निकट आती है। (मत्ती २४:४५-४७) उन्होंने अच्छी तरह यह सबक़ सीखा कि यहोवा “शान्ति का परमेश्वर” है।—१ थिस्सलुनीकियों ५:२३.
११. मसीहीजगत के धार्मिक अगुओं ने अपने आपको परमेश्वर के लोगों के शत्रु कैसे दिखाया है?
११ लेकिन, परमेश्वर के इस्राएल के शत्रुओं के बारे में क्या? अपने लोगों के लिए यहोवा के उत्साह का मेल विरोधियों के विरुद्ध उसकी जलजलाहट से किया गया है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, मसीहीजगत के धार्मिक अगुओं ने तीव्र दबाव लाया जब उन्होंने सच्चाई-बोलनेवाले मसीहियों के इस छोटे-से समूह का काम तमाम करने की कोशिश की—और नाकाम रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मसीहीजगत के अगुए केवल एक ही बात में संयुक्त थे: युद्ध के दोनों पक्षों में, उन्होंने सरकारों से यहोवा के साक्षियों का दमन करने का आग्रह किया। आज भी, अनेक देशों में धार्मिक अगुए, यहोवा के साक्षियों के मसीही प्रचार कार्य को रोकने या उस पर पाबंदी लगाने के लिए सरकारों को भड़का रहे हैं।
१२, १३. मसीहीजगत के विरुद्ध यहोवा की जलजलाहट कैसे व्यक्त की जाती है?
१२ यह यहोवा की दृष्टि से चूका नहीं है। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात्, मसीहीजगत, साथ ही शेष बड़े बाबुल ने पतन का अनुभव किया। (प्रकाशितवाक्य १४:८) मसीहीजगत के पतन की वास्तविकता जग-ज़ाहिर हो गयी जब, १९२२ में सिलसिलेवार लाक्षणिक विपत्तियों को उण्डेला जाने लगा, और उसकी आध्यात्मिक रूप से मृत अवस्था का सार्वजनिक रूप से पर्दाफ़ाश किया गया और उसके आनेवाले विनाश की चेतावनी दी गयी। (प्रकाशितवाक्य ८:७-९:२१) इस बात के प्रमाण के रूप में कि इन विपत्तियों का उण्डेला जाना जारी है, अप्रैल २३, १९९५ को विश्वभर में भाषण “झूठे धर्म का अन्त निकट है” दिया गया, जिसके पश्चात् राज्य समाचार के ख़ास अंक की करोड़ों प्रतियों का वितरण किया गया।
१३ आज, मसीहीजगत एक दयनीय अवस्था में है। २०वीं शताब्दी के दौरान, उसके सदस्यों ने एक दूसरे को भीषण युद्धों में मौत के घाट उतारा है जिन पर उसके पादरियों और नेताओं की आशिष थी। कुछ देशों में उसका प्रभाव लगभग ना के बराबर है। वह, शेष बचे बड़े बाबुल के साथ विनाश के लिए नियत है।—प्रकाशितवाक्य १८:२१.
यहोवा के लोगों के लिए शान्ति
१४. शान्ति-प्राप्त लोगों का कौन-सा भविष्यसूचक शब्द-चित्र दिया गया है?
१४ दूसरी ओर, इस वर्ष १९९६ में, यहोवा के लोग अपने पुनःस्थापित देश में शान्ति का आनन्द बहुतायत में लेते हैं, जैसे यहोवा की तीसरी उद्घोषणा में वर्णित है: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, यरूशलेम के चौकों में फिर बूढ़े और बूढ़ियां बहुत आयु की होने के कारण, अपने अपने हाथ में लाठी लिए हुए बैठा करेंगी। और नगर के चौक खेलनेवाले लड़कों और लड़कियों से भरे रहेंगे।”—जकर्याह ८:४, ५.
१५. राष्ट्रों के युद्धों के बावजूद, यहोवा के सेवकों द्वारा किस शान्ति का आनन्द लिया गया है?
१५ यह मनोहर शब्दचित्र इस युद्ध-ग्रस्त संसार में कुछ उल्लेखनीय बात दिखाता है—शान्ति-प्राप्त लोग। १९१९ से, यशायाह के भविष्यसूचक शब्द पूरे हुए हैं: “यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनों को पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूंगा। परन्तु . . . दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।” (यशायाह ५७:१९-२१) निःसंदेह, यहोवा के लोग, जबकि संसार का भाग नहीं हैं, राष्ट्रों की खलबली द्वारा प्रभावित होने से दूर नहीं रह सकते। (यूहन्ना १७:१५, १६) कुछ देशों में, वे तीव्र कठिनाइयों को सहते हैं, और थोड़े लोग तो मारे भी जा चुके हैं। फिर भी, सच्चे मसीहियों के पास दो मुख्य तरीक़ों में शान्ति है। पहला, उनके पास अपने “प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल [“शान्ति,” NW]” है। (रोमियों ५:१) दूसरा, उनमें आपस में शान्ति है। वे “जो ज्ञान ऊपर से आता है” उसे विकसित करते हैं जो ‘पहिले तो पवित्र फिर मिलनसार है।’ (याकूब ३:१७; गलतियों ५:२२-२४) इसके अतिरिक्त, वे पूर्ण रूप में शान्ति का आनन्द लेने की आस देखते हैं जब “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”—भजन ३७:११.
१६, १७. (क) कैसे “बूढ़े और बूढ़ियां,” और साथ ही “लड़कों और लड़कियों” ने यहोवा के संगठन को बलवन्त किया है? (ख) कौन-सी बात यहोवा के लोगों की शान्ति प्रदर्शित करती है?
१६ यहोवा के लोगों के बीच अब भी ऐसे “बूढ़े और बूढ़ियां,” अर्थात् अभिषिक्त जन हैं जो यहोवा के संगठन की प्रारम्भिक विजयों को याद करते हैं। उनकी वफ़ादारी और धीरज की बहुत क़दर की जाती है। युवा अभिषिक्त जनों ने १९३० के दशक और द्वितीय विश्व युद्ध के उन उग्र दिनों में, और साथ ही वृद्धि के उन उत्तेजक वर्षों में अगुवाई की जो उसके बाद आए। इसके अतिरिक्त, ख़ासकर १९३५ से, ‘अन्य भेड़ों’ की “बड़ी भीड़” प्रकट हुई है। (प्रकाशितवाक्य ७:९; यूहन्ना १०:१६, NW) जैसे-जैसे अभिषिक्त मसीही अधिकाधिक वृद्ध और कम होते गए हैं, अन्य भेड़ ने प्रचार कार्य का बीड़ा उठाया है और उसे पूरी पृथ्वी तक पहुँचाया है। हाल के वर्षों में परमेश्वर के लोगों के देश में अन्य भेड़ें धारा की नाईं आ गई हैं। केवल गत वर्ष में ही, यहोवा को अपने समर्पण के प्रतीक में उनमें से ३,३८,४९१ लोगों ने बपतिस्मा प्राप्त किया! ऐसे नए लोग, आध्यात्मिक रूप से कहें तो वास्तव में बहुत छोटे हैं। उनकी ताज़गी और उनके उत्साह को बहुमूल्य समझा जाता है जैसे-जैसे वे उन लोगों के वर्ग की संख्या बढ़ाते हैं जो ‘हमारे परमेश्वर की, जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने की’ कृतज्ञता की स्तुतियाँ गाते हैं।—प्रकाशितवाक्य ७:१०.
१७ आज, ‘चौक लड़कों और लड़कियों से भरे हुए हैं,’ ऐसे साक्षी जिनके पास जवानों जैसी शक्ति है। १९९५ सेवा वर्ष में, २३२ देशों और समुद्र के द्वीपों से रिपोर्टें प्राप्त हुईं। लेकिन अभिषिक्त जनों और अन्य भेड़ों के बीच में कोई अन्तरराष्ट्रीय प्रतिद्वन्द्व, कोई अन्तर्जातीय घृणा, कोई अनुचित जलन नहीं है। सभी आध्यात्मिक रूप से एकसाथ, प्रेम में संयुक्त होकर बढ़ते हैं। संसार के दृश्य-पटल पर यहोवा के साक्षियों का विश्वव्यापी भाईचारा सचमुच अनोखा है।—कुलुस्सियों ३:१४; १ पतरस २:१७.
यहोवा के लिए बहुत ही कठिन?
१८, १९. वर्ष १९१९ के बाद के सालों से, यहोवा ने वह कार्य कैसे निष्पन्न किया है जो मनुष्य के दृष्टिकोण से शायद बहुत ही कठिन लगा हो?
१८ वर्ष १९१८ में, जब अभिषिक्त शेषवर्ग, आध्यात्मिक बन्धुवाई में केवल कुछ हज़ार निरुत्साहित लोगों से बना था, कोई व्यक्ति पहले से यह न जान सका होगा कि घटनाएँ कैसा मोड़ लेंगी। लेकिन, यहोवा जानता था—जिसकी पुष्टि उसकी चौथी भविष्यसूचक उद्घोषणा से होती है: “सेनाओं का यहोवा यह कहता है: चाहे यह बात उन दिनों इन शेष लोगों की दृष्टि में अति कठिन प्रतीत हो, पर क्या यह मेरी दृष्टि में भी कठिन होगी? सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है।”—जकर्याह ८:६, NHT.
१९ वर्ष १९१९ में, यहोवा की आत्मा ने अपने लोगों को आगे रखे गए कार्य के लिए पुनरुज्जीवित किया। फिर भी, यहोवा के उपासकों के छोटे से संगठन के साथ दृढ़ता से लगे रहने के लिए विश्वास की ज़रूरत थी। वे कितने कम थे, और अनेक विषय स्पष्ट नहीं थे। लेकिन, आहिस्ते-आहिस्ते यहोवा ने उन्हें संगठनात्मक रूप से बलवन्त किया और सुसमाचार प्रचार करने और शिष्य बनाने के मसीही कार्य करने के लिए सज्जित किया। (यशायाह ६०:१७, १९; मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) धीरे-धीरे, उसने उन्हें तटस्थता और विश्व सर्वसत्ता जैसे अति-महत्त्वपूर्ण वाद-विषयों को समझने में सहायता की। क्या यहोवा के लिए साक्षियों के उस छोटे से समूह के माध्यम से अपनी इच्छा पूरी करना बहुत कठिन था? इसका जवाब है बिलकुल नहीं! यह बात इस पत्रिका के पृष्ठ १२ से १५ द्वारा सिद्ध होती है, जिन पर १९९५ सेवा वर्ष के लिए यहोवा के साक्षियों के कार्य का चार्ट है।
“मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा”
२०. भविष्यवाणी के अनुसार परमेश्वर के लोगों का एकत्रीकरण कितना विस्तृत होना था?
२० पाँचवीं उद्घोषणा आगे, आज यहोवा के साक्षियों की आनन्दपूर्ण अवस्था दिखाती है: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, देखो, मैं अपनी प्रजा का उद्धार करके उसे पूरब से और पच्छिम से ले आऊंगा; और मैं उन्हें ले आकर यरूशलेम के बीच में बसाऊंगा; और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, यह तो सच्चाई और धर्म के साथ होगा।”—जकर्याह ८:७, ८.
२१. यहोवा के लोगों की बड़ी शान्ति किस तरीक़े से बनाए रखी गयी और विस्तृत की गयी है?
२१ वर्ष १९९६ में हम बिना हिचकिचाहट के कह सकते हैं कि सुसमाचार का प्रचार संसार भर में किया गया है, “पूरब से” लेकर “पच्छिम” तक। सभी जातियों के लोगों को शिष्य बनाया गया है, और उन्होंने यहोवा की इस प्रतिज्ञा की पूर्ति देखी है: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।” (यशायाह ५४:१३) हमारे पास शान्ति है क्योंकि हम यहोवा द्वारा शिक्षित हैं। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, ३०० से भी अधिक भाषाओं में साहित्य प्रकाशित किया गया है। केवल गत वर्ष में ही, २१ अतिरिक्त भाषाओं को जोड़ा गया। प्रहरीदुर्ग पत्रिका अब १११ भाषाओं में, और सजग होइए! ५४ भाषाओं में साथ-साथ प्रकाशित की जाती हैं। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय अधिवेशन परमेश्वर के लोगों की शान्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन देते हैं। साप्ताहिक सभाएँ हमें संयुक्त करती हैं और हमें दृढ़ रहने के लिए ज़रूरी प्रोत्साहन देती हैं। (इब्रानियों १०:२३-२५) जी हाँ, यहोवा अपने लोगों को “सच्चाई और धर्म के साथ” शिक्षित कर रहा है। वह अपने लोगों को शान्ति दे रहा है। उस प्रचुर शान्ति में भाग लेने के लिए हम कितने आशिष-प्राप्त हैं!
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ आधुनिक समयों में, यहोवा अपने लोगों के लिए ‘बड़ी जलजलाहट से जलनशील’ कैसे हुआ है?
◻ यहोवा के लोग, युद्ध-ग्रस्त देशों में भी शान्ति का आनन्द कैसे लेते हैं?
◻ किस तरह ‘चौक लड़के और लड़कियों से भरे’ हुए हैं?
◻ कौन-से प्रबन्ध किए गए हैं जिससे यहोवा के लोग उसके द्वारा सिखलाए जा सकते हैं?
[पेज 12-15 पर चार्ट]
संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की १९९५ सेवा वर्ष रिपोर्ट
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
[पेज 8, 9 पर तसवीरें]
सामान्य युग पूर्व छठवीं शताब्दी में, मन्दिर का पुनःनिर्माण करनेवाले वफ़ादार यहूदियों ने सीखा कि शान्ति का एकमात्र विश्वसनीय स्रोत यहोवा था