सच्ची शान्ति—किस स्रोत से?
“[यहोवा] पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है।”—भजन ४६:९.
१. यशायाह की भविष्यवाणी में हम शान्ति की कौन-सी अद्भुत प्रतिज्ञा पाते हैं?
“धार्मिकता का फल शान्ति होगी, तथा धार्मिकता का परिणाम सदा का चैन और सुरक्षा। तब मेरे लोग शान्ति सदनों, वरन् सुरक्षित निवासों तथा शान्तिपूर्ण विश्राम-स्थलों में वास करेंगे।” (यशायाह ३२:१७, १८, NHT) क्या ही ख़ूबसूरत प्रतिज्ञा! यह परमेश्वर द्वारा लायी गयी सच्ची शान्ति की प्रतिज्ञा है।
२, ३. सच्ची शान्ति का वर्णन कीजिए।
२ लेकिन, सच्ची शान्ति क्या है? क्या यह मात्र युद्ध की ग़ैरमौजूदगी है? या क्या यह महज़ एक अवधि है जिसके दौरान राष्ट्र अगले युद्ध की तैयारी में जुट जाते हैं? क्या सच्ची शान्ति मात्र एक स्वप्न है? ये ऐसे सवाल हैं जिनके हमें भरोसेमंद जवाबों की ज़रूरत है। पहला, सच्ची शान्ति एक स्वप्न से कहीं ज़्यादा है। परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञा की गयी शान्ति, संसार द्वारा की गयी कल्पना से कहीं आगे निकलती है। (यशायाह ६४:४) यह चंद सालों या चंद दशकों की शान्ति नहीं है। यह सदा-सर्वदा के लिए टिकती है! और यह शान्ति केवल कुछ विशेषाधिकार-प्राप्त लोगों के लिए नहीं है—यह स्वर्ग और पृथ्वी, स्वर्गदूतों और मनुष्यों को शामिल करती है। यह सभी राष्ट्रों, नृजातीय समूहों, भाषाओं, और रंगों के लोगों तक पहुँचती है। यह कोई सीमाओं, कोई बाधाओं, कोई विफलताओं को नहीं जानती।—भजन ७२:७, ८; यशायाह ४८:१८.
३ सच्ची शान्ति का अर्थ है हर रोज़ शान्ति होना। इसका अर्थ है कि युद्ध के बिना किसी विचार के, आपके भविष्य, आपके बच्चों के भविष्य, यहाँ तक कि आपके पोतों के भविष्य के बारे में बिना किसी चिंता के आप हर सुबह उठते हैं। इसका अर्थ है मन की पूरी-पूरी शान्ति। (कुलुस्सियों ३:१५) इसका अर्थ है और अपराध नहीं, हिंसा नहीं, विभाजित परिवार नहीं, बेघर लोग नहीं, भूखे या ठंड से ठिठुरते लोग नहीं, और निराशा तथा कुण्ठा नहीं। इससे भी बेहतर, परमेश्वर की शान्ति का अर्थ है बीमारी, पीड़ा, दुःख, या मृत्यु के बिना एक संसार। (प्रकाशितवाक्य २१:४) हमारे पास हमेशा सच्ची शान्ति का लुत्फ़ उठाने की क्या ही बढ़िया आशा है! क्या यह उस प्रकार की शान्ति और ख़ुशी नहीं है जिसकी हम सब लालसा करते हैं? क्या यह उस प्रकार की शान्ति नहीं है जिसके लिए हमें प्रार्थना और कार्य करना चाहिए?
मानवजाति के विफल प्रयास
४. शान्ति के लिए राष्ट्रों ने कौन-से प्रयास किए हैं, और उनका क्या नतीजा हुआ है?
४ शताब्दियों से, मनुष्यों और राष्ट्रों ने शान्ति के बारे में बात की है, शान्ति के बारे में बहस की है, सैकड़ों शान्ति के संधिपत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं। नतीजा क्या रहा है? पिछले ८० सालों में, ऐसा वस्तुतः एक भी क्षण नहीं रहा है जब कोई राष्ट्र या समूह युद्ध में अंतर्ग्रस्त नहीं हुआ हो। स्पष्ट रूप से, शान्ति मानवजाति के हाथ नहीं लगी है। सो सवाल यह है कि, अंतरराष्ट्रीय शान्ति स्थापित करने के मनुष्य के सारे प्रयास क्यों विफल हुए हैं, और मनुष्य ऐसी सच्ची शान्ति लाने में क्यों अयोग्य है जो टिकेगी?
५. शान्ति के लिए मानवजाति के प्रयास नियमित रूप से क्यों विफल हुए हैं?
५ सरल जवाब यह है कि मावनजाति सच्ची शान्ति के लिए सही स्रोत की ओर नहीं मुड़ी है। शैतान अर्थात् इब्लीस के प्रभाव में आकर, मनुष्यों ने संगठन स्थापित किए हैं जो ख़ुद की कमज़ोरियों और दुष्टता—उनके लालच और अभिलाषा, शक्ति और प्रमुखता की उनकी भूख—का शिकार हो जाते हैं। उन्होंने उच्च शिक्षा के संस्थापनों से शिक्षा प्राप्त कर संस्थाएँ तथा विचार-शालाएँ स्थापित की हैं, जिन्होंने उत्पीड़न और नाश के मात्र और नए-नए ज़रिए सोच निकाले हैं। किस स्रोत की ओर मनुष्यों को निर्दिष्ट किया गया है? उन्होंने कहाँ देखा है?
६, ७. (क) राष्ट्र संघ ने अपने लिए क्या रिकॉर्ड बनाया है? (ख) संयुक्त राष्ट्र का क्या रिकॉर्ड है?
६ वर्ष १९१९ में स्थायी शान्ति स्थापित करने के लिए राष्ट्रों ने राष्ट्र-संघ पर भरोसा किया। वह आशा १९३५ में इथियोपिया पर मुस्सोलिनी के आक्रमण और १९३६ की शुरूआत में स्पेन में हुए गृह-युद्ध के द्वारा चकनाचूर हो गयी। १९३९ में दूसरे विश्वयुद्ध के छिड़ते ही वह संघ निष्क्रिय हो गया। वह तथाकथित शान्ति २० साल भी नहीं टिकी थी।
७ संयुक्त राष्ट्र के बारे में क्या? क्या इसने दुनिया-भर में स्थायी शान्ति की कोई वास्तविक आशा प्रदान की है? शायद ही। १९४५ में इसकी शुरूआत से १५० से भी ज़्यादा युद्ध और सशस्त्र लड़ाइयाँ हुई हैं! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि युद्ध और इसके उद्गम के कनाडा के एक विद्वान, ग्विन डायर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र “संतों का एक सम्मेलन नहीं, बल्कि ऐसे अवैध शिकारियों का संघ है जो शिकार-रक्षक बन गए थे” और “मुख्यतः शक्तिविहीन गपोड़ियों के अड्डे” के तौर पर वर्णन किया।—यिर्मयाह ६:१४; ८:१५ से तुलना कीजिए।
८. उनकी शान्ति की बातचीतों के बावजूद, राष्ट्र क्या करते रहे हैं? (यशायाह ५९:८)
८ शान्ति के बारे में उनकी बातचीत के बावजूद, राष्ट्रों ने शस्त्रों का अविष्कार करना और बनाना जारी रखा है। जो देश शान्ति सम्मेलनों को प्रायोजित करते हैं, वे ही अकसर शस्त्रों को बनाने में नेतृत्व लेते हैं। इन देशों में शक्तिशाली व्यापारिक लाभ, घातक युद्ध-सामग्री के उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिसमें क्रूर थल सुरंगें शामिल हैं जिनसे हर साल कुछ २६,००० छोटे-बड़े नागरिक मारे या अपंग हो जाते हैं। लोभ और भ्रष्टाचार प्रेरक शक्तियाँ हैं। घूसख़ोरी और काली कमाई अंतरराष्ट्रीय अस्त्र-शस्त्र व्यापार का एक अभिन्न अंग है। कुछ राजनैतिक लोग इस स्रोत से स्वयं को समृद्ध करते हैं।
९, १०. सांसारिक विशेषज्ञों ने युद्ध और मानवी प्रयासों के संबंध में क्या देखा है?
९ दिसंबर १९९५ में, पोलिश भौतिक विज्ञानी और शान्ति के नोबल प्राइज़ के विजेता, यूज़ॆफ़ रोतब्लॉत ने राष्ट्रों से अस्त्र-शस्त्र होड़ को ख़त्म करने के लिए कहा। उसने कहा: “[एक नयी अस्त्र-शस्त्र होड़] को रोकने का बस एकमात्र तरीक़ा है पूरी तरह से युद्ध को ख़त्म कर देना।” क्या आपको लगता है कि ऐसा संभवतः होगा? १९२८ से, ६२ राष्ट्रों ने केल्लोग-ब्राइएण्ड समझौते का अभिपुष्ट किया और उन्होंने मतभेदों से सुलटने के लिए युद्ध को त्याग दिया। दूसरे विश्वयुद्ध ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया कि यह समझौता उस काग़ज़ के भी क़ाबिल नहीं था जिस पर वह लिखा हुआ था।
१० इसमें कोई दो राय नहीं कि मानवजाति के इतिहास के पथ पर युद्ध एक निरंतर अवरोधक रहा है। जैसे ग्विन डायर ने लिखा, “मानव सभ्यता में युद्ध एक केंद्रीय संस्थान है, और इसका इतिहास भी सुस्पष्ट रूप से सभ्यता के जितना ही पुराना है।” जी हाँ, वस्तुतः हर सभ्यता और साम्राज्य के अपने पूज्य सैन्य वीर, अपनी तैयार सेना, अपनी प्रसिद्ध लड़ाइयाँ, अपनी अतिपवित्र सैन्य अकादमियाँ, और शस्त्रों के अपने संचय थे। लेकिन, हमारी शताब्दी में किसी भी अन्य शताब्दी से ज़्यादा युद्ध रहे हैं, दोनों, नाश और जीवन की हानि के संबंध में।
११. संसार के नेताओं ने शान्ति की अपनी तलाश में कौन से मूलभूत तत्व को नज़रअंदाज़ किया है?
११ यह स्पष्ट है कि संसार के नेताओं ने यिर्मयाह १०:२३ की मूलभूत बुद्धि को नज़रअंदाज़ किया है: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” मामलों में परमेश्वर के हाथ के बिना, कोई सच्ची शान्ति नहीं हो सकती। तब, क्या इन सब का अर्थ है कि एक सभ्य समाज में युद्ध अपरिहार्य है? क्या इसका यह अर्थ है कि शान्ति—सच्ची शान्ति—एक असंभव लक्ष्य है?
मामले की जड़ तक पहुँचना
१२, १३. (क) युद्ध के मूलभूत, अनदेखे कारण के बारे में बाइबल क्या प्रकट करती है? (ख) संसार की समस्याओं के वास्तविक हल से शैतान ने मानवजाति का ध्यान कैसे दूर हटाया है?
१२ इन सवालों का जवाब देने के लिए, हमें युद्ध के कारणों को समझने की ज़रूरत है। बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि विद्रोही स्वर्गदूत शैतान ही असल “हत्यारा” और “झूठा” है और कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (यूहन्ना ८:४४; १ यूहन्ना ५:१९) अपनी युक्तियों को बढ़ावा देने के लिए उसने क्या किया है? हम २ कुरिन्थियों ४:३, ४ में यों पढ़ते हैं: “परन्तु यदि हमारे सुसमाचार पर परदा पड़ा है, तो यह नाश होनेवालों ही के लिये पड़ा है। और उन अविश्वासियों के लिये, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।” संसार की समस्याओं के हल के तौर पर परमेश्वर के राज्य से मानवजाति का ध्यान दूर हटाने के लिए शैतान हर संभव कोशिश करता है। वह लोगों को विभाजीय सामाजिक, राजनैतिक, और धार्मिक वाद-विषयों से अंधा और विकर्षित करता है, ताकि ये बातें परमेश्वर के शासकत्व से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण लगे। राष्ट्रवाद की हाल की विश्वव्यापी बढ़ौतरी एक मिसाल है।
१३ शैतान अर्थात् इब्लीस राष्ट्रवाद और जनजातिवाद को बढ़ावा देता है, ऐसा विश्वास जो एक राष्ट्र, जाति, या जनजाती को दूसरों से श्रेष्ठ करता है। उस गहरी-पैठी घृणा को, जिसे सदियों से दबाया जाता रहा है, फिर से जगाया जा रहा है ताकि और अधिक युद्ध और लड़ाइयों की आग में वह घी का काम करे। यूनॆस्को के महानिदेशक, फ़ेडॆरिको मेयोर ने इस प्रवृत्ति के बारे में चिताया: “वहाँ भी जहाँ सहनशीलता का चलन था, विदेशियों के डर की ओर बदलाव ज़्यादा प्रत्यक्ष हो रहा है, और ऐसी अंध-देशभक्ति या जातिवाद टिप्पणियाँ जो अतीत की बात प्रतीत होती थीं, अब और भी ज़्यादा सुनी जाती हैं।” नतीजा क्या रहा है? भूतपूर्व युगोस्लाविया में हुए वीभत्स जनसंहार और रुवाण्डा के जनजातीय रक्तपात केवल ऐसे दो विकास हैं जो सुर्ख़ियों में आए हैं।
१४. प्रकाशितवाक्य ६:४ कैसे हमारे समय में युद्ध और उसके प्रभाव को चित्रित करता है?
१४ बाइबल ने पूर्वबताया कि इस व्यवस्था के अंत के समय में, युद्ध को चित्रित करता हुआ एक लाल रंग का घोड़ा पूरी पृथ्वी पर सरपट दौड़ेगा। हम प्रकाशितवाक्य ६:४ में यों पढ़ते हैं: “फिर एक और घोड़ा निकला, जो लाल रंग का था; उसके सवार को यह अधिकार दिया गया, कि पृथ्वी पर से मेल उठा ले, ताकि लोग एक दूसरे को बध करें; और उसे एक बड़ी तलवार दी गई।” १९१४ से हमने इस प्रतीकात्मक घुड़सवार को “मेल उठा ले” जाते हुए देखा है, और राष्ट्रों ने लड़ाइयाँ और युद्ध करना जारी रखा है।
१५, १६. (क) युद्धों और मार-काटों में धर्म की भूमिका क्या रही है? (ख) धर्मों ने जो किया है, उसे यहोवा कैसे देखता है?
१५ इन युद्धों और मार-काटों में जिस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, वह है धर्म की भूमिका। मानवजाति के खून से तरबतर हुआ इतिहास का ज़्यादातर श्रेय झूठे धर्म के भरमानेवाले प्रभाव को दिया जा सकता है। कैथोलिक धर्मविज्ञानी हैन्स् कूंग ने लिखा: “यह निर्विवाद्य है कि नकारात्मक, नाशकारी पदों में, [धर्मों] का बहुत बड़ा योगदान रहा है और अब भी है। इतना संघर्ष, इतनी खूनी लड़ाइयों, वाक़ई ‘धार्मिक युद्धों’ को उनके खाते में डाला जाना चाहिए; . . . और यही बात दो विश्वयुद्धों के बारे में भी सच है।”
१६ मार-काटों और युद्धों में झूठे धर्म की भूमिका को यहोवा परमेश्वर कैसे देखता है? प्रकाशितवाक्य १८:५ में अभिलिखित, परमेश्वर द्वारा झूठे धर्म का अभ्यारोपण यों कहता है: “उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं, और उसके अधर्म परमेश्वर को स्मरण आए हैं।” संसार के राजनैतिक शासकों के साथ झूठे धर्म की सहभागिता ऐसे रक्तदोष, एकत्रित पापों के ऐसे अंबार में परिणित हुआ है, जिसे परमेश्वर यक़ीनन नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है। वह जल्द ही सच्ची शान्ति के पथ पर पड़े इस रोड़े को पूरी तरह से नाश कर देगा।—प्रकाशितवाक्य १८:२१.
शान्ति का पथ
१७, १८. (क) यह विश्वास करना क्यों मात्र एक अवास्तविक स्वप्न नहीं है कि अनंत शान्ति मुमकिन है? (ख) यहोवा ने यह निश्चित करने के लिए कि सच्ची शान्ति ज़रूर आएगी, पहले ही क्या किया है?
१७ संयुक्त राष्ट्र जैसी एजेन्सियों के ज़रिए, यदि मनुष्य सच्ची और स्थायी शान्ति नहीं ला सकते, तो सच्ची शान्ति किस स्रोत से आएगी, और कैसे? क्या यह विश्वास करना मात्र एक अवास्तविक स्वप्न है कि अनंत शान्ति मुमकिन है? ऐसा नहीं होगा यदि हम शान्ति के सही स्रोत की ओर मुड़े। और वह कौन है? भजन ४६:९ हमें यह कहते हुए जवाब देता है कि यहोवा “पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है। वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है!” और यहोवा ने पहले ही युद्धों का अंत करने और सच्ची शान्ति स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कैसे? १९१४ में मसीह यीशु को उसके न्यायपूर्ण राज्य सिंहासन पर बिठाने के द्वारा और मानवजाति के इतिहास में शान्ति के सबसे बड़े शैक्षणिक अभियान को बढ़ावा देने के द्वारा। यशायाह ५४:१३ के भविष्यसूचक वचन हमें आश्वस्त करते हैं: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।”
१८ यह भविष्यवाणी कारण और प्रभाव के सिद्धांत को चित्रित करती है—यानि कि हरेक प्रभाव का कारण होता है। इस मामले में, यहोवा का शिक्षण—कारण—लड़ाके लोगों को शान्तिप्रिय लोगों में रूपांतरित करता है जो परमेश्वर के साथ शान्ति में हैं। प्रभाव है हृदय का वह परिवर्तन जो लोगों को शान्ति के प्रेमी बनाता है। यह शिक्षण जो लोगों के हृदयों और मनों को बदलता है, यह अब भी विश्वभर में फैल रहा है जैसे-जैसे लाखों लोग “शान्ति के राजकुमार,” यीशु मसीह के उदाहरण का अनुकरण करते हैं।—यशायाह ९:६.
१९. यीशु ने सच्ची शान्ति के बारे में क्या सिखाया?
१९ और यीशु ने सच्ची शान्ति के बारे में क्या सिखाया? उसने न सिर्फ़ राष्ट्रों के बीच शान्ति की बात कही, बल्कि लोगों के बीच उनके संबंधों में शान्ति और एक अच्छा अंतःकरण होने से जो आंतरिक शान्ति मिलती है, उसकी भी बात कही। यूहन्ना १४:२७ में, हम अपने अनुयायियों को कहे यीशु के शब्द पढ़ते हैं: “मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूं, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हे नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।” यीशु की शान्ति संसार की शान्ति से कैसे भिन्न थी?
२०. किस माध्यम से यीशु सच्ची शान्ति लाएगा?
२० पहला, यीशु की शान्ति उसके राज्य संदेश से नज़दीकी से जुड़ी हुई थी। वह जानता था कि यह धर्मी स्वर्गीय सरकार, जो यीशु और १,४४,००० सह-शासकों से बनी है, युद्ध और युद्ध के भड़कानेवालों का अंत करेगी। (प्रकाशितवाक्य १४:१, ३) वह जानता था कि यह शान्तिपूर्ण परादीसीय परिस्थितियाँ लाएगी जिसे उसने अपनी बग़ल में मरनेवाले अपराधी के सामने रखा। यीशु ने उसे स्वर्गीय राज्य में एक स्थान नहीं दिया, लेकिन उसने कहा: “आज मैं तुझ से सच कहता हूँ, तू मेरे साथ परादीस में होगा।”—लूका २३:४३, NW.
२१, २२. (क) सच्ची शान्ति में कौन-सी अद्भुत आशा शामिल है जो क़ायम रखती है? (ख) उस आशीष को देखने के लिए हमें क्या करना ज़रूरी है?
२१ यीशु यह भी जानता था कि उसका राज्य उन सभी मातम मनानेवाले लोगों को सांत्वना देगा जो उस पर विश्वास जताते हैं। उसकी शान्ति में पुनरुत्थान की अद्भुत आशा शामिल है जो क़ायम रखती है। यूहन्ना ५:२८, २९ में पाए जानेवाले उसके प्रोत्साहक शब्दों को याद कीजिए: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।”
२२ क्या आप उस समय की उत्सुकता से प्रत्याशा करते हैं? क्या आपने मृत्यु में अपने अति प्रिय जनों को खोया है? क्या आप उन्हें फिर से देखने की लालसा करते हैं? तब उस शान्ति को स्वीकार कीजिए जिसे यीशु पेश करता है। लाजर की बहन मरथा की तरह विश्वास रखिए, जिसने यीशु से कहा: “मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।” लेकिन मरथा को यीशु के प्रफुल्लित करनेवाले जवाब पर ध्यान दीजिए: “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा। और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?”—यूहन्ना ११:२४-२६.
२३. परमेश्वर के वचन का यथार्थ ज्ञान सच्ची शान्ति प्राप्त करने के लिए क्यों अनिवार्य है?
२३ आप भी उस प्रतिज्ञा में विश्वास और उससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कैसे? परमेश्वर के वचन का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के द्वारा। ध्यान दीजिए कि प्रेरित पौलुस ने यथार्थ ज्ञान के महत्त्व पर कैसे ज़ोर दिया: “हम . . . तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ। ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहिचान में बढ़ते जाओ।” (कुलुस्सियों १:९, १०) यह यथार्थ ज्ञान आपको क़ायल करेगा कि यहोवा परमेश्वर ही सच्ची शान्ति का स्रोत है। यह आपको यह भी बताएगा कि अभी आपको क्या करना चाहिए ताकि आप भजनहार के साथ यह कहने में शामिल हो जाएँ: “मैं शान्ति से लेट जाऊंगा और सो जाऊंगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्चिन्त रहने देता है।”—भजन ४:८.
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ शान्ति के लिए मानव के प्रयास नियमित रूप से क्यों असफल हुए हैं?
◻ युद्ध का मूल कारण क्या है?
◻ स्थायी शान्ति क्यों एक अवास्तविक लक्ष्य नहीं है?
◻ सच्ची शान्ति का स्रोत क्या है?
[पेज 8 पर तसवीर]
सच्ची शान्ति एक स्वप्न नहीं है। यह परमेश्वर की प्रतिज्ञा है
[पेज 10 पर तसवीर]
वर्ष १९१४ से लाल रंग के घोड़े के प्रतीकात्मक घुड़सवार ने पृथ्वी पर से मेल उठा लिया है
[पेज 11 पर तसवीर]
क्या धर्म और संयुक्त राष्ट्र शान्ति ला सकते हैं?
[चित्र का श्रेय]
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