आप स्थायी मित्रता का आनन्द ले सकते हैं
मित्रता के लिए बाधाएँ होती हैं। वस्तुतः, बाइबल ने पूर्वबताया कि इन “अन्तिम दिनों” में प्रेम, स्वाभाविक स्नेह, और निष्ठा की कमी होगी। (२ तीमुथियुस ३:१-५; मत्ती २४:१२) ये परिस्थितियाँ अपने साथ अकेलेपन की एक अपूर्व महामारी लायी हैं। एक व्यक्ति ने कहा: “मेरा पड़ोस नूह के जहाज़ की तरह है। अगर आप एक जोड़ा नहीं हैं, तो आप अंदर नहीं आ सकते।” इसके लिए सारा दोष प्रत्येक अकेला महसूस करनेवाले व्यक्ति पर नहीं डाला जा सकता। संसार के कुछ भागों में, स्थायी मित्रता के लिए चुनौतियों में ऐसी बातें शामिल हैं जैसे लोगों का प्रायः स्थानांतरण करना, परिवारों का टूटना, भावशून्य और ख़तरनाक शहर, और फुरसत के समय में उल्लेखनीय कमी।
एक आधुनिक-दिन शहरी एक सप्ताह में शायद उतने अधिक लोगों के संपर्क में आए जितने, एक १८वीं शताब्दी के एक देहाती ने एक वर्ष या अपने जीवनकाल में भी न देखे हों! फिर भी, आजकल सम्बन्ध अकसर ऊपरी होते हैं। अनेक लोग निरन्तर समूहनों में और मज़ा मारने की कोशिश में पूरी तरह मशगूल हो जाते हैं। लेकिन, हमें यह मानना पड़ेगा कि ग़लत साथियों के साथ खोखला मज़ा मारना इंधन के लिए काँटों का प्रयोग करने के समान है। सभोपदेशक ७:५, ६ कहता है: “मूर्खों के गीत सुनने से बुद्धिमान की घुड़की सुनना उत्तम है। क्योंकि मूर्ख की हंसी हांडी के नीचे जलते हुए कांटों की चरचराहट के समान होती है; यह भी व्यर्थ है।” काँटे शायद थोड़े समय के लिए प्रकाशमान और चरचराहट करनेवाली आग जलाएँ, लेकिन उसमें हमें गरम रखने के लिए पर्याप्त पदार्थ नहीं होता। उसी तरह, शोर करनेवाले, हँसनेवाले साथी शायद हमारा ध्यान पल-भर के लिए कहीं और आकर्षित करें, लेकिन वे सारे अकेलेपन को निकालकर सच्चे मित्रों की हमारी ज़रूरत को पूरा नहीं कर सकते।
एकान्तता अकेलेपन से अलग होती है। कुछ एकान्तता हमें अपने आपको तरोताज़ा करने के लिए आवश्यक है जिससे एक मित्र के रूप में पेश करने के लिए आपके पास कुछ अधिक हो। अकेलेपन का सामना करने पर अनेक लोग तुरन्त किसी तरह के इलॆक्ट्रॉनिक मनोरंजन की ओर मुड़ जाते हैं। एक अध्ययन ने पाया कि अकेलेपन के प्रति एक सबसे सामान्य प्रतिक्रियाओं में से एक है टॆलीविज़न देखना। फिर भी, अनुसंधायकों ने निष्कर्ष निकाला कि ज़्यादा देर तक टॆलीविज़न देखना उन बदतरीन कार्यों में से एक है जो हम कर सकते हैं जब हम अकेले हैं। यह निष्क्रियता, ऊब, और स्वैरकल्पना को बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्ति दूसरे लोगों के साथ व्यक्तिगत सम्बन्धों में एक अपर्याप्त पर्याय बन जाता है।
दरअसल, एकान्तता बहुत ही मूल्यवान हो सकती है अगर हम अपने एकान्त समय का रचनात्मक रूप से इस्तेमाल करें। हम ऐसा पढ़ने, चिट्ठी लिखने, कोई वस्तु बनाने, और आराम करने के द्वारा कर सकते हैं। रचनात्मक एकान्तता में परमेश्वर से प्रार्थना करना, बाइबल का अध्ययन करना, और उस पर मनन करना शामिल है। (भजन ६३:६) ये यहोवा परमेश्वर के और क़रीब आने के तरीक़े हैं, उस व्यक्ति के जो हमारा सर्वोत्तम मित्र होगा।
मित्रता के बाइबलीय उदाहरण
हालाँकि अनेक लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण होना अच्छा है, बाइबल हमें याद दिलाती है कि “ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।” (नीतिवचन १८:२४) हम सभी को कुछ घनिष्ठ मित्रों की ज़रूरत है जो सचमुच हमारी चिन्ता करते हैं, जिनकी मित्रता हमें आनन्द, शक्ति, और शान्ति देती है। जबकि ऐसी सच्ची मित्रता आज शायद असाधारण हो, कुछ प्राचीन उदाहरणों को बाइबल में विशेषकर लिखा गया है। उदाहरणार्थ, दाऊद और योनातन के बीच असाधारण मित्रता थी। हम इससे क्या सीख सकते हैं? उनकी मित्रता क्यों टिकी रही?
मिसाल के तौर पर, दाऊद और योनातन में महत्त्वपूर्ण रुचियों में समानता थी। सबसे बढ़कर, उन दोनों में यहोवा परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा थी। परमेश्वर पर दाऊद के विश्वास को और यहोवा के लोगों की रक्षा के लिए उसके कार्यों को देखने पर, “योनातन का मन दाऊद पर ऐसा लग गया, कि योनातन उसे अपने प्राण के बराबर प्यार करने लगा।” (१ शमूएल १८:१) तो फिर, यहोवा के लिए परस्पर प्रेम मित्रों को एक दूसरे के साथ बाँधने के लिए मदद करता है।
योनातन और दाऊद दिलेर व्यक्ति थे जो ईश्वरीय सिद्धान्तों के अनुरूप जीते थे। इस वजह से वे एक दूसरे का आदर कर सके। (१ शमूएल १९:१-७; २०:९-१४; २४:६) हम निश्चय ही आशिषित हैं अगर हमारे पास ऐसे मित्र हैं जो शास्त्रीय सिद्धान्तों द्वारा निर्देशित हैं।
अन्य तत्वों ने भी दाऊद और योनातन की मित्रता में योगदान दिया। उनका सम्बन्ध निष्कपट और स्पष्टवादी था, और प्रत्येक मित्र ने दूसरे मित्र को अपने भरोसे में लिया। योनातन ने निष्ठापूर्वक दाऊद के हितों को अपने हितों के आगे रखा। उसमें ईर्ष्या उत्पन्न नहीं हुई क्योंकि दाऊद को राज-पाट की प्रतिज्ञा की गयी थी; इसके बजाय, योनातन ने उसे भावात्मक और आध्यात्मिक रूप से सहारा दिया। और दाऊद ने उसकी मदद को स्वीकार किया। (१ शमूएल २३:१६-१८) शास्त्रीय रूप से उचित तरीक़ों में, दाऊद और योनातन ने एक दूसरे के लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। उनकी ईश्वरीय मित्रता सच्चे मूल्यांकन और स्नेह पर आधारित थी। (१ शमूएल २०:४१; २ शमूएल १:२६) यह अटूट थी क्योंकि दोनों पुरुष परमेश्वर के प्रति वफ़ादार बने रहे। ऐसे सिद्धान्तों को अमल में लाना सच्ची मित्रता बनाने और उसे बनाए रखने में हमारी मदद कर सकता है।
मित्रता कैसे विकसित करें
क्या आप सच्चे मित्रों की तलाश कर रहे हैं? तो आपको शायद ज़्यादा दूर तलाशने की ज़रूरत नहीं हो। आपके अपने नियमित जान-पहचानवालों में से कुछ लोग आपके मित्र हो सकते हैं, और शायद उन्हें आपकी मित्रता की ज़रूरत हो। विशेषकर संगी मसीहियों के सम्बन्ध में, अपना ‘हृदय खोलने’ की प्रेरित पौलुस की सलाह को लागू करना बुद्धिमानी है। (२ कुरिन्थियों ६:११-१३) लेकिन, खिजीए मत अगर मित्र बनाने का प्रत्येक प्रयास एक गहरे बंधन में परिणित नहीं होता है। सामान्यतः मित्रता विकसित होने में समय लगता है, और प्रत्येक सम्बन्ध उतना ही गहरा नहीं होगा। (सभोपदेशक ११:१, २, ६) बेशक, असली मित्रता का आनन्द लेने के लिए, हमें निःस्वार्थी होना है, और हमें यीशु की इस सलाह को मानने की ज़रूरत है: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।”—मत्ती ७:१२.
किसे आपकी मित्रता की ज़रूरत है? आपके हमउम्र के अतिरिक्त, छोटे बच्चों या वृद्ध लोगों के बारे में क्या? दाऊद और योनातन, रूत और नाओमी, तथा पौलुस और तीमुथियुस की मित्रता में उम्र में कुछ फ़ासला शामिल था। (रूत १:१६, १७; १ कुरिन्थियों ४:१७) क्या आप अपनी मित्रता का हाथ विधवाओं और अन्य अविवाहित लोगों की ओर बढ़ा सकते हैं? उनके बारे में भी सोचिए जो आपके पड़ोस में नए-नए आए हैं। शायद उन्होंने स्थानांतरण करने या अपनी जीवन-शैली बदलने के द्वारा अपने अधिकांश या सारे ही मित्रों की संगति को त्याग दिया हो। दूसरे आपको ढूँढ निकालें, इसका इंतज़ार मत कीजिए। अगर आप एक मसीही हैं, तो पौलुस की सलाह को लागू करने के द्वारा स्थायी मित्रता बनाइए: “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।”—रोमियों १२:१०.
हम मित्रता को देने के तरीक़े के रूप में देख सकते हैं। यीशु ने कहा कि अगर हम देने की आदत बनाते हैं, तो लोग भी हमें देंगे। उसने यह भी बताया कि लेने से देने में ज़्यादा ख़ुशी मिलती है। (लूका ६:३८; प्रेरितों २०:३५) क्या आप विविध पृष्ठभूमिवाले लोगों से मिले हैं? यहोवा के साक्षियों के अन्तरराष्ट्रीय अधिवेशनों ने साबित किया है कि विविध संस्कृतियों के लोग सच्ची और स्थायी मित्रता बना सकते हैं जब उनमें परमेश्वर की उपासना में समानता होती है।
मित्रता को साबुत रखना
यह अफसोस की बात है कि कभी-कभी तथाकथित मित्र दिल तोड़ देते हैं। हानिकर गपशप, तोड़ा हुआ भरोसा, मूल्यांकन की कमी—ये कुछ ऐसी बाते हैं जो बहुत ही दर्दनाक होती हैं जब ऐसा वह व्यक्ति करता है जिसे आपने एक सच्चा मित्र माना था। ऐसे हालातों में क्या किया जा सकता है?
एक अच्छा उदाहरण रखिए। अनावश्यक दर्द को रोकने के लिए आप जो कर सकते हैं कीजिए। कुछ जगहों में मित्रों का एक दूसरे की ग़लतियों का मज़ाक उड़ाना लोकप्रिय है। लेकिन सख़्त व्यवहार या चालबाज़ी मित्रों को और क़रीब नहीं लाएगी, चाहे वे तथाकथित रूप से “मज़ाक कर” रहे हों।—नीतिवचन २६:१८, १९.
मित्रता को बनाए रखने के लिए कठिन प्रयास कीजिए। कभी-कभी ग़लतफ़हमियाँ पैदा होती हैं जब मित्र एक दूसरे से कुछ ज़्यादा ही अपेक्षा करते हैं। एक मित्र जो बीमार है या किसी गंभीर समस्या में उलझा हुआ है, संभवतः हमेशा की तरह स्नेह दिखाने में समर्थ नहीं होगा। तो फिर, ऐसे समयों में समझदार और समर्थन देनेवाला होने की कोशिश कीजिए।
समस्याओं को जल्द-से-जल्द और कृपापूर्ण ढंग से सुलझाइए। अगर संभव हो तो ऐसा अकेले में कीजिए। (मत्ती ५:२३, २४; १८:१५) यह निश्चित कीजिए कि आपका मित्र जानता है कि आप एक अच्छा सम्बन्ध क़ायम रखना चाहते हैं। निष्कपट मित्र एक दूसरे को क्षमा करते हैं। (कुलुस्सियों ३:१३) क्या आप उस तरह के मित्र होंगे—ऐसा मित्र जो भाई से भी बढ़कर लगा रहता है?
मित्रता के बारे में पढ़ना और सोचना केवल एक शुरूआत है। अगर हम अकेलेपन का अनुभव कर रहे हैं, तो आइए हम उपयुक्त क़दम उठाएँ, और हम ज़्यादा समय के लिए अकेले नहीं महसूस करेंगे। अगर हम प्रयास करें, तो हम सच्चे मित्र बना सकते हैं। कुछ के साथ हम एक ख़ास बंधन बनाएँगे। लेकिन कोई भी व्यक्ति परमेश्वर, अर्थात् सर्वोत्तम मित्र की जगह नहीं ले सकता। केवल यहोवा ही हमें पूरी तरह जान सकता है, समझ सकता है, और सहारा दे सकता है। (भजन १३९:१-४, २३, २४) इसके अतिरिक्त, उसका वचन भविष्य के लिए एक अद्भुत आशा प्रस्तुत करता है—एक नया संसार जहाँ अनन्तकाल के लिए सच्चे मित्र बनाना संभव होगा।—२ पतरस ३:१३.
[पेज 5 पर तसवीरें]
दाऊद और योनातन ने सच्ची मित्रता का आनन्द लिया, और हम भी ले सकते हैं