परमेश्वर का वचन पढ़िए और सच्चाई से उसकी सेवा कीजिए
“हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा।” —भजन ८६:११.
१. मुख्यतः, इस पत्रिका के पहले अंक ने सच्चाई के बारे में क्या कहा?
यहोवा प्रकाश और सच्चाई भेजता है। (भजन ४३:३) वह हमें अपने वचन, बाइबल को पढ़ने, और सच्चाई सीखने की क्षमता भी देता है। इस पत्रिका के पहले अंक—जुलाई १८७९—ने कहा: “सच्चाई, जीवन की मरुभूमि में एक साधारण से नन्हे फूल की तरह, मिथ्या के जंगली दानों की अत्यधिक बढ़ोतरी से घिरी हुई और लगभग घुटी हुई है। यदि आपको यह मिलती, तो आपको हमेशा जागरूक रहना है। यदि आप उसकी सुंदरता को देखते, तो आपको मिथ्या के जंगली पौधों को तथा धर्मान्धता की झड़बेड़ियों को नज़रअंदाज़ करना है। यदि आपको उसे हासिल करना है, तो आपको उसे पाने के लिए झुकना है। सच्चाई के एक फूल से संतुष्ट मत होइए। यदि एक काफ़ी होता तो अन्य बनाए नहीं जाते। जमा करते रहिए, तलाशते रहिए।” परमेश्वर के वचन को पढ़ना और उसका अध्ययन करना हमें यथार्थ ज्ञान पाने और उसकी सच्चाई में चलने के लिए समर्थ करता है।—भजन ८६:११.
२. क्या परिणित हुआ जब प्राचीन यरूशलेम के यहूदियों को एज्रा और अन्य लोगों ने परमेश्वर की व्यवस्था पढ़कर सुनायी?
२ सामान्य युग पूर्व ४५५ में यरूशलेम की दीवारों के पुनःनिर्माण के पश्चात्, याजक एज्रा और अन्य लोगों ने यहूदियों को परमेश्वर की व्यवस्था पढ़कर सुनायी। उसके पश्चात् झोपड़ियों का आनन्दपूर्ण पर्व हुआ, पाप-स्वीकरण हुआ, और “सच्चाई के साथ वाचा” बाँधी गयी। (नहेमायाह ८:१-९:३८) हम पढ़ते हैं: “उन्हों ने परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक से पढ़कर अर्थ समझा दिया; और लोगों ने पाठ को समझ लिया।” (नहेमायाह ८:८) कुछ लोग सुझाते हैं कि यहूदी लोग इब्रानी अच्छी तरह से नहीं समझते थे, और इसका अरामी भावानुवाद किया गया। लेकिन पाठ केवल भाषा-सम्बन्धी वाक्यांशों के स्पष्टीकरण को सूचित नहीं करता। एज्रा और अन्य लोगों ने व्यवस्था को समझाया जिससे लोग उसके सिद्धान्तों को समझ सके और उन्हें लागू कर सके। मसीही प्रकाशन और सभाएँ भी परमेश्वर के वचन को ‘अर्थ’ देने का काम करते हैं। वैसे ही नियुक्त प्राचीन भी, जो “सिखाने में निपुण” हैं।—१ तीमुथियुस ३:१, २; २ तीमुथियुस २:२४.
स्थायी लाभ
३. बाइबल पढ़ने से कौन-से कुछ लाभ उठाए जाते हैं?
३ जब मसीही परिवार एक साथ बाइबल पढ़ते हैं, तो यह सम्भव है कि वे स्थायी लाभों का अनुभव करेंगे। वे परमेश्वर के नियमों से परिचित हो जाते हैं और धर्म-सिद्धान्तों, भविष्यसूचक बातों, और अन्य विषयों के बारे में सच्चाई सीखते हैं। बाइबल का एक भाग पढ़े जाने के पश्चात्, परिवार का सिर शायद पूछे: इसका हम पर कैसा प्रभाव पड़ना चाहिए? यह अन्य बाइबल शिक्षाओं से कैसे सम्बन्धित है? हम इन मुद्दों को सुसमाचार का प्रचार करने में कैसे प्रयोग कर सकते हैं? एक परिवार बाइबल पढ़ते समय और अधिक अंतर्दृष्टि पाता यदि वे प्रहरीदुर्ग प्रकाशन अनुक्रमणिका (अंग्रेज़ी) या अन्य अनुक्रमणिकाओं का इस्तेमाल करते हुए अनुसंधान करें। शास्त्रवचनों में अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी) के दो खंडो को देखकर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
४. यहोशू १:८ में अभिलिखित उपदेश को यहोशू को कैसे लागू करना था?
४ शास्त्रों से लिए सिद्धान्त हमें जीवन में मार्गदर्शित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, “पवित्र शास्त्र” को पढ़ना और उसका अध्ययन करना हमें “उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (२ तीमुथियुस ३:१५) यदि हम परमेश्वर के वचन को हमें मार्गदर्शित करने दें, तो हम उसकी सच्चाई में चलते रहेंगे और हमारी धर्मी अभिलाषाएँ पूरी होंगी। (भजन २६:३; ११९:१३०) लेकिन, हमें समझ ढूँढने की ज़रूरत है, जैसे मूसा के उत्तराधिकारी, यहोशू ने किया। “व्यवस्था की . . . पुस्तक” को उसके मुँह से हटना नहीं था, और उसे उस पुस्तक को दिन-रात पढ़ना था। (यहोशू १:८, NW) “व्यवस्था की . . . पुस्तक” को उसके मुँह से न हटने देने का अर्थ था कि यहोशू को दूसरों को उन प्रबुद्ध करनेवाली बातों को बताना बंद नहीं करना था जो वह कहती थी। व्यवस्था को दिन-रात पढ़ने का अर्थ था कि यहोशू को उस पर मनन करना था, उसका अध्ययन करना था। उसी तरह प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस से अपने आचरण, सेवकाई, और शिक्षा पर ‘सोचने’—मनन करने—का आग्रह किया। एक मसीही प्राचीन के नाते, तीमुथियुस को विशेषकर सावधान रहने की ज़रूरत थी कि उसका जीवन अनुकरणीय था और वह शास्त्रीय सच्चाई सिखाता था।—१ तीमुथियुस ४:१५.
५. यदि हमें परमेश्वर की सच्चाई को पाना है, तो किसकी ज़रूरत है?
५ परमेश्वर की सच्चाई एक अनमोल ख़ज़ाना है। उसको पाना शास्त्र में खोज-बीन करना, निरन्तर ढूँढने की माँग करता है। महान उपदेशक के बालक-समान विद्यार्थियों के तौर पर ही हम बुद्धि पाते हैं और यहोवा के श्रद्धापूर्ण भय को समझ पाते हैं। (नीतिवचन १:७; यशायाह ३०:२०, २१) निस्संदेह, हमें बातों को शास्त्रीय रूप से साबित करना चाहिए। (१ पतरस २:१, २) बिरीया के यहूदी “थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्हों ने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढते रहे कि [पौलुस द्वारा कही गयी] ये बातें योंहीं हैं, कि नहीं।” ऐसा करने के लिए बिरीयावासियों की निन्दा करने के बजाय उनकी सराहना की गयी।—प्रेरितों १७:१०, ११.
६. यीशु यह क्यों सूचित कर सका कि शास्त्रों में ढूँढने से कुछ यहूदियों का कुछ भी भला नहीं हुआ?
६ यीशु ने कुछ यहूदियों से कहा: “तुम पवित्रशास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है। फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” (यूहन्ना ५:३९, ४०) उन्होंने सही उद्देश्य के साथ शास्त्र में ढूँढा—ताकि ये उन्हें जीवन की ओर मार्गदर्शित कर सकें। वाक़ई, शास्त्र में ऐसी मसीहायी भविष्यवाणियाँ थीं जिन्होंने जीवन के माध्यम के रूप में यीशु की ओर दिखाया। लेकिन यहूदियों ने उसे ठुकराया। सो शास्त्र में ढूँढने से उनका कुछ भी भला नहीं हुआ।
७. बाइबल की समझ में बढ़ने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है, और क्यों?
७ बाइबल की अपनी समझ में बढ़ने के लिए, हमे परमेश्वर की आत्मा, या सक्रिय शक्ति के मार्गदर्शन की ज़रूरत है। “आत्मा सब बातें, बरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है,” ताकि उसका अर्थ स्पष्ट हो। (१ कुरिन्थियों २:१०) थिस्सलुनीके के मसीहियों को, जो भी भविष्यवाणी उन्होंने सुनीं, उनकी ‘सब बातों को परखना’ था। (१ थिस्सलुनीकियों ५:२०, २१) जब पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को (क़रीब सा.यु. ५० में) लिखा, तब लिखे जा चुके यूनानी शास्त्र का एकमात्र भाग था मत्ती की सुसमाचार पुस्तक। सो थिस्सलुनीकेवासी और बिरीयावासी सब बातों को परख सके, सम्भवतः इब्रानी शास्त्र का यूनानी सॆप्टुआजॆंट अनुवाद देखने के द्वारा। उन्हें शास्त्र को पढ़ने और उसका अध्ययन करने की ज़रूरत थी, और इसी प्रकार हमें भी है।
सभी के लिए महत्त्वपूर्ण
८. नियुक्त प्राचीनों को बाइबल के ज्ञान में क्यों उत्कृष्ट होना चाहिए?
८ नियुक्त प्राचीनों को बाइबल ज्ञान में उत्कृष्ट होना चाहिए। उन्हें “सिखाने में निपुण” और ‘विश्वासयोग्य वचन पर स्थिर रहना’ है। अध्यक्ष तीमुथियुस को ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाना’ था। (१ तीमुथियुस ३:२; तीतुस १:९; २ तीमुथियुस २:१५) उसकी माँ, यूनीके, और उसकी नानी लोइस ने उसे बालकपन से पवित्र लेखन सिखाए थे, और उसमें “निष्कपट विश्वास” बिठाया था, हालाँकि उसका पिता एक अविश्वासी था। (२ तीमुथियुस १:५; ३:१५) विश्वासी पिताओं को अपनी संतानों को “यहोवा की शिक्षा, और चितावनी देते हुए” बड़ा करना है, और विशेषकर प्राचीनों के, जो पिता हैं, “लड़केबाले विश्वासी हों, और जिन्हें लुचपन और निरंकुशता का दोष नहीं।” (इफिसियों ६:४; तीतुस १:६) तो फिर, हमारी परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, हमें परमेश्वर के वचन को पढ़ने, अध्ययन करने, और लागू करने की ज़रूरत को बहुत गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए।
९. संगी मसीहियों की संगति में बाइबल का अध्ययन क्यों करें?
९ हमें संगी विश्वासियों की संगति में भी बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। पौलुस चाहता था कि थिस्सलुनीके के मसीही उसकी सलाह की एक दूसरे के साथ चर्चा करें। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१८) सच्चाई की हमारी समझ को तेज़ करने के लिए, शास्त्र की जाँच करने में अन्य समर्पित विद्यार्थियों के साथ शामिल होने से बेहतर कोई और तरीक़ा नहीं है। यह नीतिवचन सच है: “जैसे लोहा, लोहे को तेज़ करता है, वैसे ही मनुष्य, मनुष्य को सुधारता है।” (नीतिवचन २७:१७, NHT) यदि लोहे के एक औज़ार को इस्तेमाल और तेज़ न किया जाए तो उसे ज़ंग पकड़ सकता है। उसी तरह, हमें नियमित रूप से मिलने और परमेश्वर के सत्य वचन को पढ़ने, अध्ययन करने, और मनन करने से हमने जो ज्ञान पाया है, उसे बाँटने के द्वारा एक दूसरे को सुधारने की ज़रूरत है। (इब्रानियों १०:२४, २५) इसके अतिरिक्त, यह इस बात को निश्चित करने का एक तरीक़ा है कि हम आध्यात्मिक प्रकाश कौंधों से लाभ उठाते हैं।—भजन ९७:११; नीतिवचन ४:१८.
१०. सच्चाई में चलने का क्या अर्थ है?
१० शास्त्र के हमारे अध्ययन में, हम उचित ही परमेश्वर से यह प्रार्थना कर सकते हैं जैसे भजनहार ने की: “अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें।” (भजन ४३:३) यदि हम परमेश्वर का अनुमोदन पाना चाहते हैं, तो हमें उसकी सच्चाई में चलना है। (३ यूहन्ना ३, ४) इसमें उसकी माँगों को पूरा करना और वफ़ादारी तथा निष्कपटता से उसकी सेवा करना शामिल है। (भजन २५:४, ५; यूहन्ना ४:२३, २४) हमें सच्चाई से यहोवा की सेवा करनी चाहिए, जैसे उसके वचन में प्रकट की गयी है और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के प्रकाशनों में स्पष्ट की गयी है। (मत्ती २४:४५-४७) यह शास्त्र के यथार्थ ज्ञान की माँग करता है। तो फिर, हमें परमेश्वर के वचन को कैसे पढ़ना और अध्ययन करना चाहिए? क्या हमें इसे उत्पत्ति अध्याय १, आयत १ से पढ़ना शुरू करते हुए ६६ पुस्तकों को पढ़ना चाहिए? जी हाँ, उस हर मसीही को जिसके पास अपनी भाषा में सम्पूर्ण बाइबल है, उसे उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य तक पढ़ना चाहिए। और बाइबल तथा मसीही प्रकाशनों को पढ़ने का हमारा उद्देश्य होना चाहिए, ‘विश्वासयोग्य दास’ द्वारा परमेश्वर ने जो बड़ी मात्रा में सच्चाई उपलब्ध करायी है, उसके बारे में हमारी समझ को बढ़ाना।
परमेश्वर का वचन ऊँचे स्वर में पढ़िए
११, १२. सभाओं में बाइबल को ऊँचे स्वर में पढ़ाया जाना क्यों लाभदायक है?
११ जब हम अकेले हैं, तब शायद हम मन-ही-मन पढ़ें। लेकिन, प्राचीन समय में व्यक्तिगत पठन ऊँचे स्वर में किया जाता था। इसलिए जब कूशी खोजा अपने रथ में जा रहा था, तब सुसमाचारक फिलिप्पुस ने उसे यशायाह की भविष्यवाणी से पढ़ते हुए सुना। (प्रेरितों ८:२७-३०) ‘पढ़ना’ अनुवादित इब्रानी शब्द का मूलतः अर्थ होता है ‘बुलाना।’ सो वे लोग जो शुरू-शुरू में मन-ही-मन पढ़ने में और पठन का अर्थ समझने में असमर्थ हैं, उन्हें हर एक शब्द को ऊँचे स्वर में उच्चारित करने से निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। मुख्य बात यह है कि परमेश्वर के लिखित वचन को पढ़ने के द्वारा सच्चाई को सीखना।
१२ मसीही सभाओं में बाइबल को ऊँचे स्वर में पढ़ाया जाना लाभदायक है। प्रेरित पौलुस ने अपने सहकर्मी तीमुथियुस से आग्रह किया: “पढ़कर सुनाने, उपदेश देने और सिखाने में लगा रह।” (तिरछे टाइप हमारे।) (१ तीमुथियुस ४:१३, NHT) पौलुस ने कुलुस्सियों से कहा: “जब यह पत्र तुम्हारे यहां पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना।” (कुलुस्सियों ४:१६) और प्रकाशितवाक्य १:३ (NW) कहता है: “ख़ुश है वह जो इस भविष्यवाणी के शब्दों को ऊँचे स्वर में पढ़ता है और वे जो इसे सुनते हैं, और जो इस में लिखी हुई बातों का पालन करते हैं; क्योंकि नियुक्त समय निकट है।” अतः, एक जन वक्ता कलीसिया को जो कहता है, उसका समर्थन करने के लिए उसे बाइबल से पाठ पढ़ने चाहिए।
अध्ययन का प्रासंगिक तरीक़ा
१३. बाइबल सच्चाइयों को सीखने का सबसे प्रगतिशील तरीक़ा क्या है, और शास्त्रवचनों को ढूँढने में कौन-सी चीज़ हमारी मदद कर सकती है?
१३ प्रासंगिक अध्ययन, शास्त्रीय सच्चाइयाँ सीखाने का सबसे प्रगतिशील तरीक़ा है। पुस्तक, अध्याय और आयत के अनुसार उनके संदर्भ में, जो शब्द-अनुक्रमणिकाएँ बाइबल शब्दों को वर्णानुक्रमिक रूप से सुचिबद्ध करती हैं, वे एक ख़ास विषय से सम्बन्धित पाठ को ढूँढना आसान बना देती हैं। और ऐसे शास्त्रवचनों का मेल एक दूसरे के साथ बिठाया जा सकता है क्योंकि बाइबल का रचनाकार स्वयं अपना खंडन नहीं करता। पवित्र आत्मा के द्वारा, उसने कुछ ४० पुरुषों को १६ शताब्दियों की अवधि में बाइबल लिखने के लिए उत्प्रेरित किया, और प्रासंगिक रूप से उसका अध्ययन करना सच्चाई सीखने का वर्षों से आज़माया हुआ तरीक़ा है।
१४. इब्रानी और मसीही यूनानी शास्त्र का अध्ययन एकसाथ क्यों करें?
१४ बाइबल सच्चाई के लिए हमारी क़दर से हमें मसीही यूनानी शास्त्र को इब्रानी शास्त्र के साथ-साथ पढ़ने और उनका अध्ययन करने के लिए प्रेरित होना चाहिए। यह दिखाएगा कि कैसे यूनानी शास्त्र परमेश्वर के उद्देश्य के साथ जुड़ा हुआ है और यह इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों पर प्रकाश डालेगा। (रोमियों १६:२५-२७; इफिसियों ३:४-६; कुलुस्सियों १:२६) इस मामले में पवित्र शास्त्र का नया संसार अनुवाद (अंग्रेज़ी) बहुत ही सहायक है। यह परमेश्वर के ऐसे समर्पित सेवकों द्वारा तैयार किया गया था, जिन्होंने मूल बाइबल पाठ और साथ ही उसकी पृष्ठभूमि तथा मुहावरेदार अभिव्यक्तियों के सम्बन्ध में उपलब्ध बढ़े हुए ज्ञान का लाभ उठाया। “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के माध्यम से यहोवा द्वारा प्रदान किए गए बाइबल अध्ययन सहायक भी महत्त्वपूर्ण हैं।
१५. आप कैसे साबित करेंगे कि बाइबल में यहाँ-वहाँ से उद्धृत करना उचित है?
१५ शायद कुछ लोग कहें, ‘आपके प्रकाशन बाइबल से हज़ारों उद्धरण देते हैं, लेकिन आप इन्हें यहाँ-वहाँ से क्यों लेते हैं?’ बाइबल की ६६ पुस्तकों में से यहाँ-वहाँ से उद्धरण देने के द्वारा, प्रकाशन किसी शिक्षा की सच्चाई को साबित करने के लिए अनेक उत्प्रेरित गवाहों को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करते हैं। स्वयं यीशु ने शिक्षा का यह तरीक़ा इस्तेमाल किया। जब उसने अपना पहाड़ी उपदेश दिया, तब उसने इब्रानी शास्त्रों में से २१ उद्धरण दिए। उस भाषण में तीन उद्धरण निर्गमन से हैं, दो लैव्यव्यवस्था से, एक गिनती से, छः व्यवस्थाविवरण से, एक दूसरे राजा से, चार भजनों से, तीन यशायाह से, और एक यिर्मयाह से है। ऐसा करने के द्वारा क्या यीशु ‘कुछ भी साबित करने की कोशिश कर रहा था’? जी नहीं, क्योंकि ‘उसने उन के शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु अधिकारी की नाईं उन्हें उपदेश दिया।’ ऐसा इसलिए था क्योंकि यीशु ने अपनी शिक्षा को परमेश्वर के लिखित वचन के द्वारा समर्थित किया। (मत्ती ७:२९) प्रेरित पौलुस ने भी वैसा ही किया।
१६. रोमियों १५:७-१३ में पौलुस ने कौन-से शास्त्रीय उद्धरण दिए?
१६ रोमियों १५:७-१३ के शास्त्रवचन लेखांश में, पौलुस ने तीन इब्रानी शास्त्र भागों से उद्धृत किया—व्यवस्था से, भविष्यवक्ताओं से, और भजनों से। उसने दिखाया कि यहूदी और अन्यजाति के लोग परमेश्वर की महिमा करते, और इसलिए मसीहियों को सभी जातियों के लोगों का स्वागत करना चाहिए। पौलुस ने कहा: “जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिये तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो। मैं कहता हूं, कि जो प्रतिज्ञाएं बापदादों को दी गई थीं, उन्हें दृढ़ करने के लिये मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिये खतना किए हुए लोगों का सेवक बना। और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई करें; जैसा [भजन १८:४९ में] लिखा है; कि इसलिये मैं जाति जाति में तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम के भजन गाऊंगा। फिर [व्यवस्थाविवरण ३२:४३ में] कहा है, हे जाति जाति के सब लोगो, उस की प्रजा के साथ आनन्द करो। और फिर [भजन ११७:१ में] हे जाति जाति के सब लोगो, प्रभु की स्तुति करो; और हे राज्य राज्य के सब लोगो: उसे सराहो। और फिर यशायाह [११:१, १०] कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी, और अन्यजातियों का हाकिम होने के लिये एक उठेगा, उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी। सो परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।” इस प्रासंगिक तरीक़े से पौलुस ने दिखाया कि बाइबल सच्चाइयों को साबित करने के लिए शास्त्रवचनों को कैसे उद्धृत करें।
१७. किस पूर्वोदाहरण के सामंजस्य में मसीही सम्पूर्ण बाइबल में यहाँ-वहाँ से उद्धृत करते हैं?
१७ प्रेरित पतरस की पहली उत्प्रेरित पत्री में व्यवस्था, भविष्यवक्ताओं, और भजनों की दस पुस्तकों में से ३४ उद्धरण हैं। अपनी दूसरी पत्री में, पतरस तीन पुस्तकों में से छः बार उद्धृत करता है। मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक में उत्पत्ति से मलाकी तक के १२२ उद्धरण हैं। यूनानी शास्त्र की २७ पुस्तकों में, उत्पत्ति से मलाकी तक के ३२० सीधे उद्धरण हैं और साथ ही इब्रानी शास्त्र के सैकड़ों अन्य हवाले हैं। यीशु द्वारा रखे गए और उसके प्रेरितों द्वारा अनुकरण किए गए इस पूर्वोदाहरण के सामंजस्य में, जब आधुनिक-दिन मसीही एक शास्त्रीय विषय का एक प्रासंगिक अध्ययन करते हैं, तो वे सम्पूर्ण बाइबल में से यहाँ-वहाँ से उद्धृत करते हैं। यह इन “अन्तिम दिनों” में ख़ासकर उपयुक्त है, जब अधिकांश इब्रानी और यूनानी शास्त्र पूरे हो रहे हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) ‘विश्वासयोग्य दास’ अपने प्रकाशनों में बाइबल का ऐसा प्रयोग करता है, परन्तु वह परमेश्वर के वचन में कभी भी कुछ नहीं जोड़ता या निकालता है।—नीतिवचन ३०:५, ६; प्रकाशितवाक्य २२:१८, १९.
हमेशा सच्चाई से चलिए
१८. क्यों ‘सत्य में चलें’?
१८ हमें बाइबल से कुछ भी नहीं निकालना है, क्योंकि परमेश्वर के वचन में सारी मसीही शिक्षाएँ “सत्य” या “सुसमाचार की सच्चाई” हैं। इस सच्चाई से लगे रहना—उस पर ‘चलना’—उद्धार के लिए महत्त्वपूर्ण है। (गलतियों २:५; २ यूहन्ना ४; १ तीमुथियुस २:३, ४) क्योंकि मसीहियत ‘सत्य का मार्ग’ है, उसके हितों को बढ़ावा देने में दूसरों की मदद करने के द्वारा हम “सत्य के पक्ष में उन के सहकर्मी” बनते हैं।—२ पतरस २:२; ३ यूहन्ना ८.
१९. हम कैसे “सत्य में चलते” जा सकते हैं?
१९ यदि हमें “सत्य पर चलते” जाना है, तो हमें बाइबल पढ़नी चाहिए और उस आध्यात्मिक मदद के लिए स्वयं को उपलब्ध कराना चाहिए जो परमेश्वर ‘विश्वासयोग्य दास’ द्वारा देता है। (३ यूहन्ना ४) ऐसा हो कि हम ऐसा अपनी भलाई के लिए करें और इसलिए कि हम यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह, और ईश्वरीय उद्देश्य के बारे में दूसरों को सिखाने की स्थिति में हों। और आइए हम आभारी हों कि यहोवा की आत्मा हमें उसके वचन को समझने में और उसकी सेवा सच्चाई से करने में सफल होने के लिए मदद करती है।
आपके उत्तर क्या हैं?
◻ बाइबल पठन के कुछ स्थायी लाभ क्या हैं?
◻ संगी विश्वासियों की संगति में बाइबल का अध्ययन क्यों करें?
◻ सम्पूर्ण बाइबल में से विभिन्न स्थानों से उद्धृत करना क्यों उचित है?
◻ ‘सत्य में चलने’ का क्या अर्थ है, और हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?
[पेज 17 पर तसवीरें]
माता-पिताओं, अपने बच्चों को शास्त्र सिखाइए
[पेज 18 पर तसवीरें]
अपने पहाड़ी उपदेश में, यीशु ने इब्रानी शास्त्र के विभिन्न भागों से उद्धृत किया