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  • क्या उपवास करना पुराना हो गया है?
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 11/15 पेज 3-4

क्या उपवास करना पुराना हो गया है?

“जब से मैं एक किशोरी थी तब से मैं हरेक सोमवार को उपवास करती आयी हूँ,” एक समृद्ध ७८ वर्षीया भारतीय महिला, मृदुलाबेन कहती है। यह उसकी उपासना का एक हिस्सा रहा है, इस बात को निश्‍चित करने का एक तरीक़ा कि उसका विवाह ठीक रहे और बच्चे स्वस्थ हों, साथ-ही-साथ उसके पति के लिए सुरक्षा हो। अब वह एक विधवा है, वह अच्छे स्वास्थ्य और अपने बच्चों की ख़ुशहाली के लिए हर सोमवार को उपवास करना जारी रखे हुए है। उसकी ही तरह, अधिकांश हिन्दू महिलाएँ नियमित उपवास को अपने जीवन का एक हिस्सा बनाती हैं।

प्रकाश, मुम्बई (बम्बई), भारत के एक उपनगर में रहनेवाला एक अधेड़ उम्र का व्यवसायी कहता है कि वह प्रत्येक वर्ष में सावन (श्रवण) के हर सोमवार को उपवास करता है। हिन्दू पंचांग में यह महीना एक ख़ास धार्मिक महत्त्व का है। प्रकाश समझाता है: “मैंने धार्मिक कारणों से शुरू किया था, लेकिन अब मैं स्वास्थ्य उद्देश्‍यों के लिए इसे जारी रखने का एक अतिरिक्‍त प्रेरक पाता हूँ। क्योंकि सावन मानसून के आख़िर में आता है, यह मेरे शरीर को उन बीमारियों से ख़ुद को साफ़ करने का एक मौक़ा देता है जो ख़ासकर बरसात के मौसम में होती हैं।”

कुछ लोग महसूस करते हैं कि उपवास एक व्यक्‍ति को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से मदद देता है। उदाहरण के लिए, ग्रॉल्ये अन्तरराष्ट्रीय एन्साइक्लोपीडिया (अंग्रेज़ी) कहती है: “हाल के वैज्ञानिक अनुसंधान दिखाते हैं कि उपवास करना शायद लाभदायक हो और, जब ध्यानपूर्वक किया जाए, तो शायद जागरुकता और भावुकता की उच्च स्थितियाँ प्रदान करे।” यह कहा गया है कि यूनानी तत्त्वज्ञानी प्लेटो दस दिन या उससे ज़्यादा उपवास करता और कि गणितज्ञ पाइथागोरस अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने से पहले उनसे उपवास करवाता था।

कुछ लोगों के लिए उपवास का अर्थ है एक निश्‍चित समयावधि के लिए भोजन और पानी से पूरी तरह परहेज़ करना, जबकि अन्य अपने उपवास के दौरान द्रव्य पदार्थ लेते हैं। किसी समय का भोजन न करना या किसी ख़ास तरह के भोजन से दूर रहना अनेक लोगों द्वारा उपवास करना समझा जाता है। लेकिन लम्बे समय तक बिना निरीक्षण उपवास करना ख़तरनाक़ हो सकता है। पत्रकार पारुल शेठ कहता है कि जब शरीर एकत्रित कार्बोहाईड्रेट को प्रयोग कर लेता है, तो उसके बाद वह पेशी प्रोटीन को ग्लूकोज़ में बदलता है और उसके बाद शरीर की वसा को प्रयोग करता है। वसा को ग्लूकोज़ में बदलना ऐसे विषैले पदार्थ छोड़ता है जिन्हें कीटोन पिण्ड कहा जाता है। जैसे-जैसे ये जमा होते हैं, ये मस्तिष्क में जाते हैं, और केन्द्रीय स्नायुतंत्र को क्षति पहुँचाते हैं। “यह वह स्थिति है जब उपवास करना ख़तरनाक़ हो सकता है,” शेठ कहता है। “आप गड़बड़ा सकते हैं, स्थितिभ्रमित हो सकते हैं, और इससे भी बुरा . . . [इसकी वजह से] गहन मूर्च्छा और आख़िरकार मृत्यु हो सकती है।”

एक माध्यम और एक धर्मविधि

उपवास करने को राजनैतिक या सामाजिक उद्देश्‍यों के लिए एक शक्‍तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इस हथियार के प्रमुख रूप से काम में लानेवाले व्यक्‍ति भारत के मोहनदास के. गाँधी थे। करोड़ों लोगों द्वारा बड़ा सम्मान दिए जानेवाले, उन्होंने उपवास को भारत के हिन्दू समाज पर शक्‍तिशाली प्रभाव डालने के लिए इस्तेमाल किया। मिल मजदूरों और मिल मालिकों के बीच एक औद्योगिक झगड़े को सुलझाने के लिए अपने उपवास के परिणामों का वर्णन करते हुए, गाँधी ने कहा: “इसका कुल परिणाम यह हुआ कि चारों ओर सद्‌भाव का वातावरण छा गया। मिल मालिकों के दिल पसीज गए . . . मेरे उपवास करने के मात्र तीन दिन बाद हड़ताल समाप्त कर दी गई थी।” साऊथ अफ्रीका के राष्ट्रपति, नेलसन मंडेला ने राजनैतिक क़ैदी के तौर पर बिताए अपने वर्षों के दौरान पाँच दिन की भूख हड़ताल में भाग लिया था।

लेकिन, जिन लोगों ने उपवास की आदत बनायी है उनमें से अधिकांश ने ऐसा धार्मिक कारणों से किया है। हिन्दू धर्म में उपवास करना एक प्रमुख धर्मविधि है। निश्‍चित दिनों में, पुस्तक उपवास और भारत के पर्व (अंग्रेज़ी) कहती है, “पूरी तरह से उपवास किया जाता है . . . यहाँ तक कि पानी भी नहीं पिया जाता है। ख़ुशी, समृद्धि और ग़लतियों तथा पापों की क्षमा को सुनिश्‍चित करने के लिए . . . पुरुष और स्त्री दोनों उपवास का सख़्त पालन करते हैं।”

जैन धर्म में व्यापक रूप से उपवास किया जाता है। द सन्डे टाइम्स्‌ ऑफ़ इंडिया रिव्यू (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करती है: “बम्बई [मुम्बई] में एक जैन मुनि—२०१ दिन तक,—प्रतिदिन मात्र दो ग्लास उबला पानी पीता था। उसका ३३ कि.ग्रा. वज़न [७३ पाउंड] कम हो गया।” इस बात से आश्‍वस्त होते हुए कि यह उन्हें उद्धार देगा, कुछ लोग स्वयं को भूखा मारने की हद तक उपवास करते हैं।

इस्लाम का पालन करनेवाले व्यस्क लोगों के लिए आम-तौर पर, रमज़ान के महीने में उपवास करना बाध्यकारी है। पूरे महीने सूर्योदय से सूर्यास्त तक कोई भोजन या पानी नहीं लिया जा सकता। इस समय के दौरान किसी भी बीमार या यात्रा कर रहे व्यक्‍ति को उपवास के दिनों को बाद में पूरा करना ज़रूरी है। चालीसे, ईस्टर से पहले के ४०-दिन की अवधि, मसीहीजगत के कुछ लोगों के लिए उपवास का समय है, और अनेक धार्मिक संघ अन्य विशिष्ट दिनों में उपवास करते हैं।

उपवास करना निश्‍चित ही समाप्त नहीं हुआ है। और क्योंकि यह इतने सारे धर्मों का एक हिस्सा है, तो हम शायद पूछें, क्या परमेश्‍वर उपवास करने की माँग करता है? क्या ऐसे अवसर हैं जिनमें मसीही शायद उपवास करने का निर्णय करें? क्या यह लाभदायक हो सकता है? अगला लेख इन सवालों पर चर्चा करेगा।

[पेज 3 पर तसवीर]

जैन धर्म में उपवास करने को प्राण के उद्धार पाने के एक मार्ग के रूप में देखा जाता है

[पेज 4 पर तसवीर]

मोहनदास के. गाँधी ने उपवास को राजनैतिक या सामाजिक उद्देश्‍यों के लिए एक शक्‍तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल किया

[पेज 4 पर तसवीर]

इस्लाम में, रमज़ान के महीने में उपवास करना बाध्यकारी है

[चित्र का श्रेय]

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