क्या परमेश्वर उपवास करने की माँग करता है?
मूसा द्वारा दी गई परमेश्वर की व्यवस्था में केवल एक अवसर पर उपवास करने की माँग की गई थी—वार्षिक प्रायश्चित दिन पर। व्यवस्था ने आज्ञा दी कि उस दिन इस्राएलियों को ‘अपने अपने जीव को दुःख देना’ था, जिसका यह अर्थ समझा जाता है कि वे उपवास करते थे। (लैव्यव्यवस्था १६:२९-३१; २३:२७; भजन ३५:१३) लेकिन, यह उपवास मात्र एक औपचारिकता नहीं था। प्रायश्चित के दिन का मनाना इस्राएल के लोगों को उनकी पापपूर्णता और छुटकारे की ज़रूरत के प्रति अधिक जागरुकता के लिए प्रेरित करता था। वे उस दिन भी परमेश्वर के सामने अपने पापों के लिए दुःख व्यक्त करने और पश्चाताप करने के लिए उपवास करते थे।
हालाँकि मूसा की व्यवस्था के अधीन केवल यही एक बाध्यकारी उपवास था, इस्राएली अन्य अवसरों पर भी उपवास करते थे। (निर्गमन ३४:२८; १ शमूएल ७:६; २ इतिहास २०:३; एज्रा ८:२१; एस्तेर ४:३, १६) पश्चाताप दिखाने के माध्यम के तौर पर इनमें स्वैच्छिक उपवास करने शामिल थे। यहोवा ने यहूदा के पथभ्रष्ट लोगों से आग्रह किया: “उपवास के साथ रोते-पीटते अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ।” इसे एक बाहरी दिखावा नहीं होना था, क्योंकि परमेश्वर आगे कहता है: ‘अपने वस्त्र नहीं, अपने मन ही को फाड़ो।’—योएल २:१२-१५.
आगे चलकर, अनेक लोगों ने बाहरी औपचारिकता के तौर पर उपवास किया। यहोवा ने ऐसे दिखावटी उपवास करने से घृणा की और इसलिए कपटी इस्राएलियों से पूछा: “जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं अर्थात् जिस में मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को झाऊ की नाईं झुकाना, अपने नीचे टाट बिछाना, और राख फैलाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो?” (यशायाह ५८:५) अपने उपवास का एक ऊपरी दिखावा करने के बजाय, इन हठी लोगों से पश्चाताप के लायक़ काम करने को कहा गया था।
यहूदियों द्वारा स्थापित किए गए कुछ उपवासों को आरम्भ ही से परमेश्वर की अस्वीकृति मिली थी। उदाहरण के लिए, एक समय पर यहूदा के लोगों को सा.यु.पू. सातवीं शताब्दी में यरूशलेम के घेराव और विनाश से सम्बन्धित विनाशकारी घटनाओं के लिए चार वार्षिक उपवास मनाने थे। (२ राजा २५:१-४, ८, ९, २२-२६; जकर्याह ८:१९) यहूदियों को बाबुल की बन्धुआई से आज़ाद किए जाने के बाद, यहोवा ने भविष्यवक्ता जकर्याह द्वारा कहा: ‘जब तुम इन सत्तर वर्षों में उपवास और विलाप करते थे, तब क्या तुम सचमुच मेरे ही लिये उपवास करते थे?’ परमेश्वर ने इन उपवासों को स्वीकार नहीं किया क्योंकि यहूदी ऐसे न्यायदण्डों के लिए उपवास और विलाप कर रहे थे जो स्वयं यहोवा की ओर से आया था। वह उपवास इसलिए कर रहे थे क्योंकि उन पर विपत्ति आयी थी, न कि अपने ख़ुद के अपराधों के लिए जो इसकी ओर ले गए थे। अपने स्वदेश में उनके पुनःस्थापित कर दिए जाने के बाद, यह उनके लिए पिछली बातों पर शोक मनाने के बजाय आनन्द मनाने का समय था।—जकर्याह ७:५.
क्या उपवास करना मसीहियों के लिए है?
हालाँकि यीशु मसीह ने कभी-भी अपने चेलों को उपवास करने की आज्ञा नहीं दी, वह और उसके चेले प्रायश्चित के दिन उपवास करते थे क्योंकि वे मूसा की व्यवस्था के अधीन थे। इसके अलावा, उसके कुछ चेलों ने अन्य अवसरों पर स्वेच्छापूर्वक उपवास किया, क्योंकि यीशु ने पूर्ण रीति से इस आदत से दूर रहने के लिए उन्हें निर्देश नहीं दिया था। (प्रेरितों १३:२, ३; १४:२३) फिर भी, उन्हें कभी-भी ‘अपना मुंह बनाए रखना नहीं था, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें।’ (मत्ती ६:१६) भक्ति का ऐसा बाहरी दिखावा शायद दूसरे लोगों के अनुमोदन की अभिव्यक्ति दिलाए। फिर भी, परमेश्वर ऐसे दिखावटी प्रदर्शन से प्रसन्न नहीं होता है।—मत्ती ६:१७, १८.
यीशु ने अपनी मृत्यु के समय पर अपने चेलों के उपवास करने की भी बात की। वह इस प्रकार एक धर्मविधि उपवास की स्थापना नहीं कर रहा था। इसके बजाय, वह उस गहरे दुःख की एक प्रतिक्रया की ओर संकेत कर रहा था जिसका वे अनुभव करते। एक बार उसका पुनरुत्थान हो जाने पर, वह दोबारा उनके साथ होता, और आगे को उनके पास उपवास करने का ऐसा कोई कारण नहीं होता।—लूका ५:३४, ३५.
मूसा की व्यवस्था तब समाप्त हो गई जब “मसीह . . . बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ।” (इब्रानियों ९:२४-२८) और व्यवस्था के अन्त के साथ, प्रायश्चित के दिन उपवास करने की आज्ञा समाप्त हो गई। इस प्रकार, बाइबल में बताया गया एकमात्र बाध्यकारी उपवास हटा दिया गया।
चालीसे के बारे में क्या?
तब, चीलीसे के दौरान किए जानेवाले मसीहीजगत के उपवासों के अभ्यास के आधार के बारे में क्या? कैथोलिक और प्रोटॆस्टॆन्ट दोनों ही गिरजे चालीसे को मानते हैं, हालाँकि इसे मनाने का तरीक़ा एक चर्च से दूसरे चर्च में भिन्न होता है। कुछ लोग ईस्टर से पहले के पूरे ४० दिनों की अवधि के दौरान दिन में केवल एक बार ही खाना खाते हैं। अन्य लोग ऐश वॆड्नज़्डे और गुड फ्राईडे को पूरी तरह उपवास करते हैं। कुछ लोगों के लिए, चालीसे माँस, मछली, अण्डे और दूध से बनी चीज़ों से परहेज़ करने की माँग करता है।
चालीसे तथाकथित रूप से यीशु के बपतिस्मे के बाद रखे गए ४० दिनों के उपवास पर आधारित हैं। क्या वह तब वार्षिक रूप से पालन किए जाने के लिए एक धर्मविधि स्थापित कर रहा था? बिलकुल नहीं। यह इस तथ्य से प्रत्यक्ष है कि बाइबल प्रारम्भिक मसीहियों के बीच ऐसे किसी भी अभ्यास का अभिलेख नहीं देती। चालीसे पहली बार मसीह के बाद चौथी शताब्दी में मनाया गया था। मसीहीजगत की अनेक दूसरी शिक्षाओं की तरह, इसे विधर्मी स्रोतों से अपनाया गया था।
यदि चालीसे बपतिस्मे के बाद मरुभूमि में यीशु के उपवास करने के अनुकरण में है, तो इसे ईस्टर—तथाकथित रूप से उसके पुनरुत्थान का समय—तक के सप्ताहों के दौरान क्यों मनाया जाता है? यीशु ने अपनी मृत्यु से पहले के दिनों के दौरान उपवास नहीं किया था। सुसमाचार पुस्तकों के वृत्तान्त सूचित करते हैं कि उसने और उसके चेलों ने उसकी मृत्यु से कुछ ही दिन पहले बैतनिय्याह में घरों में भेंट की और भोजन किया। और उसने अपनी मृत्यु से पहली रात को फसह का भोजन किया।—मत्ती २६:६, ७; लूका २२:१५; यूहन्ना १२:२.
अपने बपतिस्मे के बाद यीशु के उपवास करने से कुछ सीखने को मिलता है। वह एक अत्यावश्यक सेवकाई आरम्भ करने जा रहा था। यहोवा की सर्वसत्ता का दोषनिवारण और सम्पूर्ण मानवजाति का भविष्य अन्तर्ग्रस्त था। यह गहरे मनन का और सहायता और मार्गदर्शन के लिए यहोवा के सामने प्रार्थनापूर्वक जाने का समय था। इस समय के दौरान यीशु ने उचित रीति से उपवास किया। यह सूचित करता है कि उपवास करना लाभदायक हो सकता है जब उचित उद्देश्य से और सही अवसर पर किया जाए।—कुलुस्सियों २:२०-२३ से तुलना कीजिए।
जब उपवास करना लाभदायक हो सकता है
आइए आज हम ऐसे कुछ अवसरों पर विचार करें जिनमें परमेश्वर का एक उपासक उपवास कर सकता है। एक व्यक्ति जिसने पाप किया है शायद कुछ समयावधि तक खाना खाने की इच्छा महसूस न करे। यह दूसरों को प्रभावित करने के लिए या मिलनेवाले अनुशासन पर गुस्सा व्यक्त करने के लिए नहीं होगा। और, निश्चय ही, उपवास करना अपने आप में परमेश्वर के साथ मामलों को नहीं सुलझाता। लेकिन, सच्चे रूप से पश्चातापी व्यक्ति यहोवा को और संभवतः मित्रों और परिवार को चोट पहुँचाने के कारण गहरा दुःख अनुभव करता। संताप और क्षमा के लिए भावप्रवण प्रार्थना शायद भोजन की इच्छा को मार दे।
इस्राएल के राजा दाऊद को ऐसा ही अनुभव हुआ था। जब बतशेबा से जन्मे अपने पुत्र को खो देने की संभावना का दाऊद ने सामना किया, तो उस बच्चे के सम्बन्ध में दया माँगने के लिए, उसने अपने सभी प्रयासों को यहोवा से प्रार्थना करने पर केन्द्रित किया। जब उसकी भावनाएँ और शक्ति उसकी प्रार्थनाओं में जा रही थीं, उसने उपवास किया। इसी प्रकार, आज भी कुछ तनावपूर्ण परिस्थितियों में भोजन करना शायद उचित न लगे।—२ शमूएल १२:१५-१७.
शायद ऐसे भी समय हों जब एक धर्मी व्यक्ति कुछ गहरे आध्यात्मिक मामले में चिन्तन करना चाहता है। बाइबल और मसीही प्रकाशनों में खोजबीन करना शायद आवश्यक हो। मनन करने के लिए एक समयावधि की शायद ज़रूरत हो। ऐसे आत्मसात करनेवाले अध्ययन सत्र के दौरान, एक व्यक्ति शायद भोजन करने के द्वारा ध्यानभंग न होने का निर्णय करे।—यिर्मयाह ३६:८-१०.
जब गंभीर निर्णय लिए जाने होते थे तब परमेश्वर के सेवकों के उपवास करने के शास्त्रीय उदाहरण हैं। नहेमायाह के दिनों में यहोवा के प्रति एक शपथ ली जानी थी, और यहूदी शाप के योग्य होते यदि वे उसे तोड़ते। उन्हें अपनी विदेशी पत्नियों को तलाक़ देने और आस-पास की जातियों से अलग रहने की प्रतिज्ञा करनी थी। यह शपथ खाने से पहले और अपने पाप के स्वीकरण के दौरान, सारी मण्डली ने उपवास किया। (नहेमायाह ९:१, ३८; १०:२९, ३०) बड़े-बड़े निर्णय का सामना करते वक़्त, एक मसीही शायद इस वजह से कम समयावधि के लिए बिना भोजन किए रहे।
प्रारम्भिक मसीही कलीसिया में प्राचीनों के निकाय द्वारा निर्णय लेना कभी-कभी उपवास के साथ होता था। आज, कलीसिया प्राचीन कठिन निर्णयों का सामना करते वक़्त, संभवतः न्यायिक मामले के सम्बन्ध में, शायद मामले पर विचार करते वक़्त भोजन से दूर रहें।
कुछ हालातों में उपवास करने का निर्णय करना एक व्यक्तिगत निर्णय है। इस मामले में एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का न्याय नहीं करना चाहिए। हमें “मनुष्यों को धर्मी दिखाई” देने की इच्छा नहीं करनी चाहिए; ना ही हमें भोजन को इतना महत्त्वपूर्ण बनाना चाहिए कि यह हमारी गंभीर बाध्यताओं का ध्यान रखने में आड़े आता है। (मत्ती २३:२८; लूका १२:२२, २३) और बाइबल दिखाती है कि परमेश्वर न तो यह माँग करता है कि हम उपवास करें ना ही उपवास करने से हमें मना करता है।
[पेज 7 पर तसवीर]
क्या आप जानते हैं कि यीशु ने अपने बपतिस्मे के बाद ४० दिन तक क्यों उपवास किया?