परमेश्वर के वचन के उपाधि-प्राप्त विद्यार्थी
प्रथम शताब्दी के मसीहियों की नक़ल करते हुए, यहोवा के साक्षी संसार-भर में अपने दर-दर प्रचार के लिए विख्यात हैं। गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की १०२वीं कक्षा के उपाधि-ग्रहण कार्यक्रम की आरंभिक टिप्पणियों में इस काम पर ज़ोर दिया गया।
मार्च १, १९९७ में, यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य, आलबर्ट श्रोडर ने फ्राँसीसी पत्रिका लॆ प्वाँ के हाल ही के एक लेख की ओर ध्यान आकर्षित किया। उसमें बताया गया है कि रोमन कैथोलिक लोग इटली में घर-घर का प्रचार शुरू करने की सोच रहे हैं। “ताकि [वैटिकन मिशनरी] यहोवा के साक्षियों के क्षेत्र में होड़ करते समय खाली हाथ न जाएँ,” लेख में कहा गया, “वैटिकन ने संत मरकुस के सुसमाचार-वृत्तांत की दस लाख प्रतियाँ छपवाने का प्रबंध तक किया है, क्योंकि उनके दूत दर-दर सुसमाचार ‘वितरण’ में विद्वानों [साक्षियों] का सामना करते हैं।”
ये ४८ उपाधि-प्राप्त उन लोगों में से हैं जिन्होंने परमेश्वर के वचन को फैलाने में यीशु के निपुण प्रचार तरीक़ों की नक़ल की है। वे पैटरसन, न्यू यॉर्क में स्थित वॉचटावर शैक्षिक केंद्र में आठ देशों से आए थे। अपनी पढ़ाई के पाँच महीनों के दौरान, उन्होंने पहले पन्ने से लेकर आख़िरी पन्ने तक बाइबल का अध्ययन किया। उनके पाठ्य-क्रम में परमेश्वर के संगठन का इतिहास, मिशनरी जीवन के व्यावहारिक पहलू, और परमेश्वर की आत्मा के फल भी सम्मिलित थे। यह सब कुछ मन में एक लक्ष्य लेकर किया गया—उन्हें उन १७ देशों में विदेशी मिशनरी सेवा के लिए तैयार करना है जिनमें वे भेजे जा रहे थे। देश-विदेश के ५,०१५ लोग उनके उपाधि-ग्रहण के अवसर पर उनके आनंद में शामिल हुए। उन गिलियड विद्यार्थियों को कौन-सी अंतिम व्यावहारिक सलाह मिली?
नए मिशनरियों के लिए उपयुक्त प्रोत्साहन
सभापति की आरंभिक टिप्पणियों के बाद, शासी निकाय की कार्यकर्ता समिति के एक सहायक, राल्फ़ वॉल्स ने पहला संक्षिप्त भाषण दिया जिसमें नए मिशनरियों को व्यावहारिक सलाह दी गयी। उनका मूल-विषय था “प्रेम रखना न भूलना।” उन्होंने दिखाया कि २ तीमुथियुस अध्याय ३ में, बाइबल ने पूर्वबताया कि संसार में प्रेम का अभाव बढ़ता जाएगा। उन्होंने नए मिशनरियों को उचित ही यह याद दिलाया, जो १ कुरिन्थियों १३:१-७ में दिए गए प्रेम के वर्णन के सामंजस्य में है: “आप मिशनरियों के रूप में, अपने नियत घंटों से ज़्यादा सेवकाई कर सकते हैं। आपके पास अपने गिलियड प्रशिक्षण के कारण ज्ञान का भंडार हो सकता है। या हम अपनी शाखा नियुक्तियों में जोश के साथ ओवर-टाइम कर सकते हैं। लेकिन हमारी सारी मेहनत और त्याग पर पानी फिर जाता है यदि हम प्रेम रखना भूल जाते हैं।”
कार्यक्रम में अगला भाग था शासी निकाय के कैरी बार्बर का, जिन्होंने इस विषय पर चर्चा की, “यहोवा हमें विजय की ओर बढ़ा रहा है।” प्रथम विश्व युद्ध के बाद छोटी-सी शुरूआत से, सताहट के बावजूद, यहोवा परमेश्वर ने अपने राज्य के सुसमाचार के प्रचार में अपने विश्वासयोग्य सेवकों को विजय की ओर बढ़ाया है। वर्ष १९३१ में बाइबल विद्यार्थियों ने, तब वे इसी नाम से जाने जाते थे, यहोवा के साक्षी नाम अपनाया और इससे मसीहीजगत का पादरीवर्ग खीज उठा। “गिलियड-प्रशिक्षित मिशनरियों की १०२वीं कक्षा के पास अब यह बड़ा विशेषाधिकार है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को वह पवित्र नाम सीखने का अवसर देने के महान काम में बड़ा हिस्सा लें,” भाई बार्बर ने कहा। वे ७,१३१ मिशनरियों की लंबी सूची में जुड़ रहे हैं जिन्हें गिलियड स्कूल में प्रशिक्षित किया गया है और जिन्होंने परमेश्वर के वचन के प्रचार को बढ़ाने में योग दिया है जो कि १९४३ में ५४ देशों में था और आज २३३ देशों में फैल गया है।
अगले वक्ता, शासी निकाय के ही सदस्य, लॉयड बैरी गिलियड की ११वीं कक्षा के स्नातक थे और उन्होंने जापान में २५ से अधिक साल तक एक मिशनरी के रूप में सेवा की। अपने मूल-विषय “इन बातों पर स्थिर रहो” के द्वारा उन्होंने प्रोत्साहन दिया। “आपका काफ़ी आनंद धीरज धरने से प्राप्त होगा,” उन्होंने विद्यार्थियों से कहा। मिशनरी काम में या किसी भी ईश्वरशासनिक नियुक्ति में धीरज धरने से क्या प्रतिफल मिलते हैं? “सबसे बढ़कर, हमारा धीरज यहोवा के हृदय को प्रसन्न करता है . . . परीक्षा में खराई रखने से बड़ा संतोष मिलता है . . . मिशनरी सेवा को अपने जीवन का पेशा बनाइए . . . आपका प्रतिफल होगा हर्षमय ‘शाबाशी।’” (मत्ती २५:२१, NHT; नीतिवचन २७:११) अपनी प्रस्तुति को समाप्त करते समय, भाई बैरी ने दिल से सिफ़ारिश की कि नए मिशनरी यह संकल्प करने के द्वारा कि मिशनरी क्षेत्र को अपना जीवन बना लेंगे, ‘इन बातों पर स्थिर रहें।’—१ तीमुथियुस ४:१६.
कार्ल ऐडम्स ने यह प्रश्न उठाया, “आप क्या देखेंगे?” उन्होंने गिलियड की कई कक्षाओं को उपदेश देने में हिस्सा लिया है। उन्होंने बताया कि नए मिशनरी अपनी नियुक्ति में क्या देखेंगे वह मात्र उनकी शारीरिक आँखों की रोशनी पर नहीं, परंतु उनकी हृदय की आँखों पर भी निर्भर करेगा। (इफिसियों १:१८) इसका एक उदाहरण है, उन इस्राएली भेदियों ने क्या देखा जब वे प्रतिज्ञात देश का सर्वेक्षण करने गए थे। भौतिक दृष्टि से सभी १२ भेदियों ने वही चीज़ें देखीं, लेकिन केवल दो ने प्रतिज्ञात देश को परमेश्वर के दृष्टिकोण से देखा। मिशनरी भी स्थिति को अलग-अलग तरह से देख सकते हैं। कुछ देशों में जहाँ वे सेवा करेंगे, वे शायद ग़रीबी, पीड़ा, और आशाहीनता देखें। लेकिन उन्हें नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाकर अपनी नियुक्ति नहीं छोड़ देनी चाहिए। भाई ऐडम्स ने हाल ही की कक्षा की एक मिशनरी के बारे में बताया जिसने कहा: “इन अनुभवों ने मुझे यह एहसास दिलाया कि मुझे यहीं रहना है। इन लोगों को भविष्य के लिए आशा की ज़रूरत है। मैं उनके जीवन में सुधार लाना चाहती हूँ।” भाई ऐडम्स ने नए मिशनरियों को यह प्रोत्साहन देते हुए समाप्त किया कि जिस देश में उन्हें नियुक्त किया जाता है उसे उस क्षेत्र के रूप में देखें जिसे यहोवा ने अपने विश्वव्यापी परादीस का हिस्सा बनाने का निश्चय किया है और वहाँ के लोगों को नए संसार समाज के भावी सदस्यों के रूप में देखें।
कार्यक्रम के इस भाग में अंतिम भाषण वालॆस लिवरॆन्स ने दिया, जिन्होंने गिलियड उपदेशक बनने से पहले कई सालों तक मिशनरी क्षेत्र में सेवा की। “परमेश्वर के आश्चर्यजनक कार्यों में अंतर्दृष्टि से कार्य कीजिए” उनका मूल-विषय था। अंतर्दृष्टि से कार्य करने में सावधानी, समझदारी, और अक्लमंदी से काम करना शामिल है। इस्राएल का राजा शाऊल ऐसा करने से चूक गया।—१ शमूएल १३:९-१३; १५:१-२२.
अंतर्दृष्टि से कार्य करने का एक तरीक़ा है नयी जीवन-शैली के अनुरूप ढलने की चुनौतियों को स्वीकार करना, जिसमें नयी भाषा सीखना और लोगों से जान-पहचान करना सम्मिलित है। चुनौतियों का सामना करने और बाधाओं को दूर करने में मिशनरियों को जो अनुभव होते हैं वे आध्यात्मिक रूप से उनको मज़बूत कर सकते हैं जैसे यहोशू और कालेब को शक्ति मिली थी जैसे-जैसे उन्होंने उस देश पर विजय पायी जो परमेश्वर ने उन्हें नियुक्त किया था।
इंटरव्यू
कार्यक्रम के इस भाग में कई इंटरव्यू थे। हैरल्ड जैकसन ने ८५ वर्षीय युलिसीज़ ग्लास का इंटरव्यू लिया, जो रजिस्ट्रार और लंबे समय से गिलियड स्कूल के उपदेशक हैं। अभी-भी क्षेत्र में काम कर रहे बहुत-से मिशनरियों को उनका सालों का कर्त्तव्यनिष्ठ शिक्षण और प्रशिक्षण अच्छी तरह याद है। फिर आए मार्क नूमार, जो एक गिलियड उपदेशक हैं और जिन्होंने गिलियड स्कूल में काम करने से पहले अफ्रीका में विदेशी सेवा करने में कई साल बिताए हैं। उन्होंने विद्यार्थियों का इंटरव्यू लिया कि इस स्कूल के पाँच महीनों के दौरान उनकी सेवकाई कैसी रही। उनके अनुभवों ने साफ़-साफ़ दिखाया कि स्थानीय क्षेत्र में ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के वचन में दिलचस्पी रखते हैं।
उसके बाद रॉबर्ट सिरान्को और चार्ल्स मॉलॆहैन ने उन अनुभवी पुरुषों से बात की जो यहीं पर एक और स्कूल में भाग ले रहे थे, वह था शाखा कर्मचारियों का स्कूल। उपाधि ले रही कक्षा के लिए उनकी सलाह थी कि उन्हें नम्र होने और कलीसिया की एकता में योग देने की ज़रूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि स्नातकों को इसके बारे में पहले से धारणाएँ नहीं बनानी चाहिए कि मिशनरी कार्य में क्या होगा, इसके बजाय, उन्हें किसी भी स्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस सलाह पर अमल करने से नए मिशनरियों को निश्चित ही मदद मिलेगी कि परमेश्वर के वचन के शिक्षकों के रूप में अपनी नियुक्ति पूरी करें।
अंत में, शासी निकाय के सदस्य, थिओडर ज़ैरॆक्ज़ ने श्रोताओं से इस विषय पर बात की, “कौन किसे प्रभावित कर रहा है?” उन्होंने समझाया कि जब हम मसीहियों के रूप में आत्मा के फल प्रकट करते हैं तब हम दूसरों पर एक अच्छा प्रभाव हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि “जिन मिशनरियों को यहोवा के संगठन ने भेजा है उन्होंने लोगों पर हितकर, आध्यात्मिक रूप से प्रभाव डालने का एक सराहनीय रिकॉर्ड बनाया है।” फिर उन्होंने उन लोगों की कुछ टिप्पणियाँ दोहरायीं जिन्हें मिशनरियों द्वारा रखे गए अच्छे उदाहरण के फलस्वरूप परमेश्वर की सेवा करने में मदद मिली है। “ऐसा हो कि आप उस प्रतिष्ठा को बनाए रखें जो यहोवा के लोगों ने प्राप्त की है और योग्य जनों की खोज में अपनी विदेशी नियुक्ति में उन दरवाज़ों को खटखटाते रहें . . . साथ ही, अपने खरे, शुद्ध चालचलन से इस संसार की आत्मा का विरोध कीजिए, और अच्छा प्रभाव बनिए जिससे यहोवा को स्तुति और सम्मान मिले,” उन्होंने अंत में कहा।
कार्यक्रम की समाप्ति में, सभापति ने जगह-जगह से आए अभिवादन पढ़े और फिर डिप्लोमा प्रदान किए और मिशनरी नियुक्तियों की घोषणा की। उसके बाद, एक स्नातक ने उन्हें दिए गए उपदेश के लिए कक्षा की ओर से धन्यवाद-पत्र पढ़ा। स्पष्ट है कि १०२वीं कक्षा के उपाधि-ग्रहण कार्यक्रम ने सभी उपस्थित जनों को और दृढ़ किया कि परमेश्वर के वचन को फैलाने में आगे बढ़ें।
[पेज 31 पर तसवीर]
गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की १०२वीं उपाधि-प्राप्त कक्षा
नीचे दी गयी सूची में पंक्तियाँ आगे से पीछे के क्रम में हैं, और नाम हर पंक्ति में बाएँ से दाएँ दिए गए हैं।
(१) डफ़ी, सी.; आलॆक्सिस, डी.; हार्फ़, आर.; ली, जे.; कॉरी, वी.; नॉरटम, टी.; मॉरा, एन.; जॉरनॆट, एफ़. (२) यूपविक, एल.; सिंह, के.; हार्ट, बी.; करकॉरीअन, एम.; ली, एस.; रासटल, एस.; ज़ूलन, के.; कोलॆट, के. (३) सिंह, डी.; पीटलू, जे.; पीटलू, एफ़.; बोकॉक, एन.; टॉर्मा, सी.; मसलो, ए.; रिचर्डसन, सी.; नॉरटम, डी. (४) हार्फ़, जे.; जॉरनॆट, के.; बार्बर, ए.; लोबर्टो, जे.; लोबर्टो, आर.; मसलो, एम.; मॉरा, आर.; हार्ट, एम. (५) टॉर्मा, एस.; रासटल, ए.; डाएज़, आर.; डाएज़, एच.; वाइज़र, एम.; वाइज़र, जे.; करकॉरीअन, जी.; ज़ूलन, ए. (६) आलॆक्सिस, आर.; बार्बर, डी.; यूपविक, एच.; डफ़ी, सी.; कोलॆट, टी.; रिचर्डसन, एम.; बोकॉक, एस.; कॉरी, जी.