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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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सफल विद्यार्थियों से सफल मिशनरी

“मैं अब भी यक़ीन नहीं कर सकता कि हमें यह विशेषाधिकार मिला है!” विल मारे ख़ुशी से कहता है। वह उस प्रशिक्षण की बात कर रहा है जो उसने व उसकी पत्नी, पैट्‌सि ने, गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की १०३वीं कक्षा के विद्यार्थियों के तौर पर अभी-अभी पूरा किया था। ज़ेहिद व जॆनि इससे सहमत हुए। उन्होंने कहा, “यहाँ बुलाए जाने के लिए हम सम्मानित महसूस करते हैं।” सभी विद्यार्थियों ने स्कूल में जी-तोड़ मेहनत की थी। अब वे मिशनरियों के तौर पर अपना काम शुरू करने के लिए उत्सुक थे। लेकिन पहले, सितंबर ६, १९९७ के स्नातकता कार्यक्रम में, उन्हें प्रेममय सलाह मिली जो उन्हें अपनी-अपनी मिशनरी कार्य-नियुक्‍ति में सफल होने में मदद करती।

कार्यक्रम के अध्यक्ष थे थियोडोर जारज़, जो शासी निकाय के एक सदस्य हैं। उन्होंने ख़ास बताया कि—बेथॆल परिवार और वॉच टावर संस्था की ४८ शाखाओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ—कनाडा, यूरोप, पोर्टो रीको, तथा अमरीका से आए मित्रगण और सगे-संबंधी, विद्यार्थियों को अपना समर्थन व प्रेम का आश्‍वासन देने के लिए वहाँ मौजूद थे। भाई जारज़ ने बताया कि मसीहीजगत के गिरजों से भेजे गए मिशनरी अकसर अपने मिशनरी कार्य से विकर्षित होकर विद्वत्ता हासिल करने में अंतर्ग्रस्त होने लगे हैं या यहाँ तक कि राजनीति में उलझ गए हैं। इसकी विषमता में, गिलियड के स्नातक वही करते हैं जिसका उन्हें प्रशिक्षण मिला है। वे लोगों को बाइबल सिखाते हैं।

इसके बाद संस्था के ब्रुकलिन दफ़्तर के राबर्ट बटलर ने “अपना मार्ग सफल बनाइए” विषय पर बात की। उन्होंने समझाया कि जबकि इंसान सफलता को रुपये-पैसे या अन्य निजी लाभ के माप से तौलता है, असल में ज़्यादा अहम यह है कि परमेश्‍वर सफलता को किस नाप से तौलता है। यीशु की सेवकाई सफल थी, इसलिए नहीं कि उसने काफ़ी लोगों का धर्म-परिवर्तन करवाया, लेकिन इसलिए कि वह अपनी कार्य-नियुक्‍ति में वफ़ादार था। यीशु ने यहोवा को महिमा दी, और वह दुनिया से दूषित नहीं हुआ। (यूहन्‍ना १६:३३; १७:४) यही वे बातें हैं जिन्हें हर मसीही कर सकता है।

“सभी के दास बनो,” यूँ रॉबर्ट पॆवि ने सलाह दी। वे पहले पूर्वी देश में एक मिशनरी थे। प्रेरित पौलुस एक सफल मिशनरी था। उसकी सफलता का राज़? उसने अपने आपको सब का दास बना दिया। (१ कुरिन्थियों ९:१९-२३) वक्‍ता ने समझाया: “ऐसी मनोवृत्ति वाला गिलियड का एक स्नातक कभी-भी अपनी मिशनरी सेवा को किसी प्रकार की तरक्की, अर्थात्‌ संगठन में ज़्यादा अहम पदों का सोपान नहीं समझेगा। मिशनरी अपनी कार्य-नियुक्‍ति में केवल एक हेतु से जाता है—सेवा करने के, क्योंकि यही काम तो दास करते हैं।”

अपनी सलाह को विशेषकर २ कुरिन्थियों के ३ और ४ अध्याय पर आधारित करते हुए, शासी निकाय के गरॆट लोश ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि “यहोवा की महिमा को दर्पण की तरह प्रतिबिंबित करो।” उन्होंने उनकी याद ताज़ा की कि परमेश्‍वर का ज्ञान प्रकाश के जैसा है जो एक मसीही को तेजोमय करता है जब वह इसे ग्रहण करने के लिए अपना दिल खोल देता है। हम सुसमाचार का प्रचार करने तथा उत्तम आचरण क़ायम रखने के द्वारा उस प्रकाश को प्रतिबिंबित करते हैं। “कभी-कभार आप शायद असमर्थ महसूस करें,” उन्होंने स्वीकार किया। “जब ऐसी भावनाएँ उठती हैं, तब यहोवा पर भरोसा रखिए, ‘कि यह असीम सामर्थ परमेश्‍वर ही की ओर से ठहरे।’” (२ कुरिन्थियों ४:७) दूसरा कुरिन्थियों ४:१ में लेखबद्ध पौलुस के शब्दों को प्रतिध्वनित करते हुए, भाई लोश ने विद्यार्थियों से अनुरोध किया: “अपनी मिशनरी कार्य-नियुक्‍ति को न त्यागें। अपना दर्पण चमकाए रखिए!”

गिलियड प्रभाग के एक सदस्य, कार्ल एडम्स ने एक दिलचस्प विषय “यहोवा कहाँ है?” पर बात की। यह शीर्षक-सवाल विश्‍वमंडल में यहोवा के स्थान को सूचित नहीं कर रहा था, बल्कि यहोवा के दृष्टिकोण और उसके निर्देश के सूचकों पर विचार करने की ज़रूरत को सूचित कर रहा था। उन्होंने कहा, “दबाव में, एक ऐसा व्यक्‍ति भी जो यहोवा की सेवा सालों से कर रहा हो, शायद यहोवा के दृष्टिकोण को भूल जाए।” (अय्यूब ३५:१०) हमारे आधुनिक समय के बारे में क्या? सन्‌ १९४२ में, परमेश्‍वर के लोगों को मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। क्या प्रचार कार्य समाप्त हो रहा था, या फिर और भी कार्य किया जाना बाक़ी था? अपने लोगों के लिए यहोवा की इच्छा क्या थी? जैसे-जैसे उन्होंने परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन किया, जवाब स्पष्ट होता गया। “उस साल के ख़त्म होने से पहले,” भाई एडम्स ने बताया, “गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल के लिए योजनाएँ बना दी गयी थीं।” उस स्कूल से भेजे गए मिशनरियों के कार्य पर यहोवा ने यक़ीनन आशीष बरसायी है।

मार्क नूमैर भाषण देनेवाले दूसरे प्रशिक्षक थे। “आप अपने तोड़े का कैसे इस्तेमाल करेंगे?” शीर्षक अपने भाषण में, उन्होंने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया कि वे अपनी नयी कार्य-नियुक्‍ति में पहुँचते साथ गिलियड में प्राप्त प्रशिक्षण को लागू करें। “दूसरे में दिलचस्पी लेने की भरसक कोशिश कीजिए,” उन्होंने कहा। “घुल-मिल जाइए। देश के रीति-रिवाज़, इतिहास, स्थानीय हँसी-मज़ाक जानने के लिए उत्सुक रहिए। जितनी जल्दी आप भाषा सीख लेंगे, उतनी ही जल्दी आप अपनी कार्य-नियुक्‍ति के अनुसार ढल जाएँगे।”

जोशीले विद्यार्थी सेवकाई में आनंद पाते हैं

गिलियड के दौरान अपने अध्ययन करने के अलावा, विद्यार्थियों को ११ स्थानीय कलीसियाओं को नियुक्‍त किया गया था। सप्ताहांतों में, वे प्रचार कार्य में पूरे जोश से हिस्सा लेते। गिलियड प्रभाग के वालॆस लिवरॆन्स ने उनमें से कइयों को श्रोतागण के साथ अपने कुछ अनुभव बाँटने के लिए आमंत्रित किया। अनुभव बताते वक़्त उनका वह आनंद झलक रहा था जो उन्हें बाज़ारों में, पार्किंग क्षेत्रों में, व्यापारिक इलाक़ों में, सड़क पर, तथा घर-घर साक्षी देते समय प्राप्त हुआ था। उनमें से कुछ लोगों ने अपनी कलीसिया के क्षेत्र में रहनेवाले और कार्य करनेवाले विदेशी-भाषा बोलनेवाले लोगों तक पहुँचने के लिए तरीक़ों की तलाश की। अपने प्रशिक्षण के पाँच महीनों के दरमियान, १०३वीं कक्षा के सदस्यों ने कम-से-कम दस गृह बाइबल अध्ययन शुरू किए और उन्हें संचालित किया।

काफ़ी समय से रहे मिशनरी सफलता के गुर बताते हैं

कार्यक्रम के इस मज़ेदार भाग के बाद, पैट्रिक लाफ्रान्का तथा विलियम वैन दि वोल ने कक्षा के हित के लिए, सात शाखा समिति सदस्यों को अपने-अपने मिशनरी पेशे से उन्होंने जो सबक़ सीखे थे, उन्हें बताने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने स्नातकों को सलाह दी कि वे अपनी मिशनरी कार्य-नियुक्‍ति को यहोवा की ओर से प्राप्त नियुक्‍ति समझें और कार्य-नियुक्‍ति में लगे रहने के लिए दृढ़संकल्प हों। उन्होंने दूसरे देशों में गिलियड-प्रशिक्षित मिशनरियों के कार्य से हुए सकारात्मक प्रभावों के बारे में बातें कीं।

किस बात ने शाखा समिति के इन सदस्यों को सुखी, फलदायक मिशनरियों के तौर पर दशकों तक सेवा करने में मदद दी? उन्होंने स्थानीय भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया और उनसे सीखा। जैसे ही वे अपनी-अपनी कार्य-नियुक्‍तियों में पहुँचे, वे भाषा सीखने में जुट गए। उन्होंने नम्य होना तथा स्थानीय रिवाज़ों के अनुकूल ढलना सीखा। गिलियड की पहली कक्षा के स्नातक तथा ५४ साल से मिशनरी रहे चार्ल्स आईसनहोवर ने ऐसे पाँच “गुर” बताए जो सफल मिशनरियों ने सीखे हैं: (१) नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन कीजिए, (२) भाषा सीखिए, (३) सेवकाई में सक्रिय रहिए, (४) मिशनरी घर में शांति बनाए रखने के लिए कार्य कीजिए, और (५) नियमित रूप से यहोवा से प्रार्थना कीजिए। विद्यार्थीगण न केवल उन्हें दी गयी व्यावहारिक सलाह से बल्कि यहोवा की सेवा करने में इन अनुभवी मिशनरियों के झलकते आनंद से प्रभावित हुए। जैसे आरमानडो और लूप कहते हैं, “जब वे अपनी ज़िंदगी के बारे में कहते हैं तब वे ख़ुश नज़र आते हैं।”

साक्षात्कारों के बाद, एक भाषण रह गया था। शासी निकाय के एक सदस्य, एलबर्ट श्रोडर ने अपना विषय चुना, “परमेश्‍वर के वचन के वफ़ादार भंडारी सत्य के अनमोल रत्न प्रकट करते हैं।” चूँकि गिलियड स्कूल की मुख्य पाठ्यपुस्तक बाइबल है, विद्यार्थी उनकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे। भाई श्रोडर ने बताया कि जब पवित्र शास्त्र का नया संसार अनुवाद पर कार्य ५० वर्ष पहले शुरू हुआ, तब नया संसार बाइबल अनुवाद समिति के अभिषिक्‍त सदस्यों ने, इंसानों की स्वीकृति को महत्त्व न देकर पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन पर ज़्यादा भरोसा किया। (यिर्मयाह १७:५-८) लेकिन, हाल ही में कुछ अधिकारियों ने नया संसार अनुवाद द्वारा स्थापित ऊँचे स्तर को पहचाना है। संस्था को लिखे एक ख़त में, एक विद्वान ने लिखा: “उच्च कोटि के प्रकाशन को देखने पर मैं उसे पहचान लेता हूँ, और आपके ‘नया संसार बाइबल अनुवाद समिति’ ने अपना कार्य बखूबी निभाया है।”

इस भाषण के बाद, विद्यार्थियों को अपने-अपने डिप्लोमा दिए गए, और उनकी कार्य-नियुक्‍तियाँ श्रोतागण को बतायी गयी। कक्षा के सदस्यों के लिए यह एक भावुक घड़ी थी। जब कक्षा का एक प्रतिनिधि क़दरदानी का ख़त पढ़ रहा था, तो अनेक लोगों का गला रूँध गया और उनकी आँखों में आँसू थे। कुछ विद्यार्थी तो सालों से मिशनरी कार्य के लिए तैयारी करते रहे थे। यह एहसास करते हुए कि गिलियड कोर्स अंग्रेज़ी में संचालित होगा, कुछ जन अंग्रेज़ी-भाषा में संचालित कलीसियाओं में जाने लगे ताकि इससे उनके भाषा के ज्ञान में सुधार आए। अन्य जन ऐसे स्थानों पर गए, या तो अपने ही देश में या विदेश में, जहाँ पायनियरों की ज़्यादा ज़रूरत थी। कुछ और लोगों ने अनुभव पढ़ने, शोध-कार्य करने, या संस्था का पृथ्वी की छोर तक (अंग्रेज़ी) नामक विडियो कैसॆट बार-बार देखने के द्वारा तैयारी की थी।

शुरूआत में ज़िक्र किए गए विल व पैट्‌सि, विद्यार्थियों को दिखायी गयी व्यक्‍तिगत रुचि से बाग़-बाग़ हो गए। “ऐसे लोग जो हमें जानते तक नहीं थे, वे हमसे गले मिल रहे थे और हमारी तसवीर खींच रहे थे। शासी निकाय के एक सदस्य ने हमसे हाथ मिलाया और कहा, ‘हमें तुम पर नाज़ है!’” इसमें कोई शक नहीं कि १०३वीं कक्षा के विद्यार्थी अति प्रिय हैं। उन्हें अच्छी तरह प्रशिक्षित किया गया है। जो शिक्षण उन्होंने गिलियड में पाया है, वह उन्हें सफल विद्यार्थियों से सफल मिशनरी बनने में समर्थ करेगा।

[पेज 22 पर बक्स]

कक्षा के आँकड़े

प्रतिनिधित्व किए गए देशों की संख्या: ९

नियुक्‍ति के देशों की संख्या: १८

विद्यार्थियों की संख्या: ४८

विवाहित दंपतियों की संख्या: २४

औसतन उम्र: ३३

सच्चाई में औसतन साल: १६

पूर्ण-समय सेवकाई में औसतन साल: १२

[पेज 23 पर तसवीर]

गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की स्नातक होनेवाली १०३वीं कक्षा

नीचे दी गयी सूची में, पंक्‍तियों का क्रम आगे से पीछे की ओर है, और प्रत्येक पंक्‍ति में नाम बाएँ से दाएँ सूचीबद्ध हैं।

(१) बन, ए.; दालस्टॆड, एम.; कामपान्या, ज़ॆड.; बॉइआजूएलू, आर.; ओगान्डो, जी.; निकनचक, टी.; मेलवन, एस. (२) मे, एम.; मापॆला, एम.; लूअन, जे.; हाईटमा, डी.; हरनानडॆस, सी.; बॉइआजूएलू, एन.; स्टर्म, ए.; मेलवन, के. (३) टॉम, जे.; मापॆला, ई.; नोल, एम.; टिज़डेल, पी.; राइट, पी.; पेरॆस, एल.; शनॆफ़ल्ट, एम.; पाक, एच. (४) मर्फी, एम.; कामपान्या, जे.; स्टीवार्ट, एस.; चेरेडा, एम.; रीड, एम.; पेरॆस, ए.; टिज़डेल, डब्ल्यू.; पाक, जे. (५) स्टीवार्ट, डी.; राइट, ए.; चेरेडा, पी.; निकनचक, एफ़.; रीड, जे.; हाईटमा, के.; ओगान्डो, सी.; शनॆफ़ल्ट, आर. (६) मर्फी, टी.; हरनानडॆस, जे.; नोल, एम.; बन, बी.; टॉम, आर.; दालस्टॆड, टी.; लूअन, ज़ॆड.; मे, आर.; स्टर्म, ए.

[पेज 24 पर तसवीर]

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