बाइबल को परमेश्वर ने कैसे प्रेरित किया?
इतिहास के किसी और ज़माने के मुक़ाबले आज का संचार-साधन बहुत ही अद्भुत है। टॆलिफ़ोन, फ़ैक्स मशीन, कंप्यूटर—सालों पहले किसने ऐसे समय के बारे में कल्पना की होगी जब संदेशों को दुनिया में कहीं भी झटपट भेजा जा सकता है?
मगर सबसे अद्भुत प्रकार का संचार वह है जिसमें आदमी माहिर नहीं बन सकता—ईश्वरीय प्रेरणा। अपने लिखित वचन, पवित्र बाइबल को बनाने के लिए यहोवा ने कुछ ४० मानवी लेखकों को प्रेरित किया। जैसे मनुष्यों के पास अनेक संचार माध्यम हैं, वैसे ही यहोवा ने भी शास्त्र को प्रेरित करने के लिए तरह-तरह के संचार-साधन इस्तेमाल किए।
श्रुतिलेख। परमेश्वर ने विशिष्ट संदेश दिए जिन्हें बाद में बाइबल में लिखा गया।a उदाहरण के लिए, व्यवस्था वाचा के नियमों पर विचार कीजिए। “ये वचन लिख ले” यहोवा ने मूसा से कहा, “क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बान्धता हूं।” (निर्गमन ३४:२७) मूसा ने “स्वर्गदूतों द्वारा ठहराए हुए” ये “वचन” लिख लिए और ये अब निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती और व्यवस्थाविवरण नामक बाइबल किताबों में पाए जा सकते हैं।—प्रेरितों ७:५३.
अन्य कई भविष्यवक्ताओं ने, जिनमें यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल, आमोस, नहूम, और मीका शामिल हैं, स्वर्गदूतों के ज़रिए परमेश्वर से विशिष्ट संदेश पाए। कभी-कभी इन मनुष्यों ने अपने संदेशों को ऐसे शुरू किया: “यहोवा यूं कहता है।” (यशायाह ३७:६; यिर्मयाह २:२; यहेजकेल ११:५; आमोस १:३; मीका २:३; नहूम १:१२) फिर, यहोवा ने जो कहा उसे उन्होंने लिखित रूप में उसे लिख दिया।
दर्शन, सपने, और बेसुधी। एक व्यक्ति के दिमाग़ में एक छवि, दृश्य या संदेश को उसके जागते समय बिठाना ही दर्शन है। यह अकसर एक अनूठे तरह से होता है। उदाहरण के लिए, पतरस, याकूब और यूहन्ना ने “जब अच्छी तरह सचेत हुए” तब रूपांतरित यीशु का दर्शन देखा। (लूका ९:२८-३६; २ पतरस १:१६-२१) कुछ किस्सों में सपने या रात्रिकालीन दर्शन में संदेश दिया गया और व्यक्ति के सोते वक़्त उसके अवचेतन दिमाग़ में बिठाया गया। इसलिए, दानिय्येल “जो दर्शन मैं ने पलंग पर पाया” के बारे में लिखता है—या, जैसे अनुवादक रॉनल्ड ए. नॉक्स इसका अनुवाद करते हैं, “जैसे मैं लेटे हुए अपने सपने में देखता रहा।”—दानिय्येल ४:१०.
जिस व्यक्ति को यहोवा बेसुधी में डालता था, वह ज़ाहिरन गहरी एकाग्रता की अवस्था में पूरी तरह तल्लीन हो जाता, हालाँकि वह कुछ हद तक सचेत होता था। (प्रेरितों १०:९-१६ से तुलना कीजिए।) बाइबल में जिस यूनानी शब्द को “बेसुधी” (एकस्टासिस) अनुवाद किया गया है, उसका अर्थ है ‘हटा कर रखना या विस्थापन।’ यह दिमाग़ को अपनी स्वाभाविक स्थिति से हटा देने का विचार सुझाता है। सो, एक व्यक्ति जो बेसुधी में है, उसे अपने आस-पास का ध्यान नहीं होता जबकि उसका पूरा ध्यान दर्शन में लगा रहता है। प्रेरित पौलुस शायद ऐसी ही बेसुधी में था जब वह “स्वर्ग लोक पर उठा लिया गया, और ऐसी बातें सुनीं जो कहने की नहीं; और जिन का मुंह पर लाना मनुष्य को उचित नहीं।”—२ कुरिन्थियों १२:२-४.
परमेश्वर द्वारा बोले गए संदेशों का अभिलेखन करनेवालों की तुलना में दर्शन या सपने देखनेवाले या बेसुध होनेवाले बाइबल लेखकों के पास, देखी हुई बातों का वर्णन करने के लिए अपने शब्द चुनने की कुछ छूट थी। हबक्कूक को बोला गया: “दर्शन की बातें लिख दे; वरन पटियाओं पर साफ़ साफ़ लिख दे कि दौड़ते हुए भी वे सहज से पढ़ी जाएं।”—हबक्कूक २:२.
क्या इसका यह मतलब है कि बाइबल के ये भाग श्रुतिलेख लिखे भागों से किसी तरह कम प्रेरित हैं? हरगिज़ नहीं। अपनी आत्मा के ज़रिए, यहोवा ने हरेक लेखक के दिमाग़ में अपने संदेश को पक्का बिठाया, ताकि परमेश्वर के, ना कि मनुष्य के विचार व्यक्त किए जाएँ। जबकि यहोवा ने लेखक को उचित शब्दों का चयन करने की इजाज़त दी, उसने लेखक के दिमाग़ और दिल का मार्गदर्शन किया ताकि कोई अहम जानकारी छूट न जाए और आख़िर में इन वचनों को उचित ही परमेश्वर के वचन माना जाए।—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.
ईश्वरीय प्रकटीकरण। बाइबल में भविष्यवाणियाँ दी गई हैं—इतिहास जो पहले से ही प्रकट करके लिखा गया है—जो मनुष्यों की क्षमता से परे है। एक उदाहरण है “यूनान के राजा,” सिकन्दर महान का उत्थान और पतन, जिसके बारे में २०० साल पहले ही पूर्वबताया गया! (दानिय्येल ८:१-८, २०-२२) बाइबल उन घटनाओं को भी प्रकट करती है जिन्हें मनुष्यों ने कभी नहीं देखा। आकाश और पृथ्वी की सृष्टि एक उदाहरण है। (उत्पत्ति १:१-२७; २:७, ८) स्वर्ग में हुई बातचीत भी हैं जैसे कि वे जो अय्यूब की किताब में वर्णित हैं।—अय्यूब १:६-१२; २:१-६.
परमेश्वर ने अगर ख़ुद लेखक को ऐसी घटनाएँ प्रकट नहीं कीं, तो उनके बारे में परमेश्वर ने किसी व्यक्ति को जानकारी दी जिससे यह मौखिक या लिखित इतिहास का भाग बनकर, एक पीढ़ी से दूसरी तक चलती रही जब तक कि बाइबल अभिलेख का भाग न बन गई। (पृष्ठ ७ पर बक्स देखिए।) जो भी हो, हम विश्वस्त हो सकते हैं कि यहोवा ऐसी सारी जानकारियों का स्रोत था, और उसने लेखकों का मार्गदर्शन किया ताकि उनका वृत्तांत ग़लती, अतिरंजना या कल्पना से दूषित न हो। पतरस ने भविष्यवाणियों के बारे में लिखा: “भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।”b—२ पतरस १:२१.
कड़ी मेहनत ज़रूरी
हालाँकि बाइबल लेखक “पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे” गए, फिर भी उनकी तरफ़ से ध्यानपूर्ण विचार करने की ज़रूरत थी। उदाहरण के लिए, सुलैमान “ध्यान लगाकर और पूछपाछ करके बहुत से नीतिवचन क्रम से रखता था। [उस] ने मनभावने शब्द खोजे और सीधाई से ये सच्ची बातें लिख दीं।”—सभोपदेशक १२:९, १०.
कुछ बाइबल लेखकों को अपने लेख को सुप्रमाणित करने के लिए बहुत खोजबीन करनी पड़ी। उदाहरण के लिए, लूका ने अपने सुसमाचार वृत्तांत के बारे में लिखा: ‘मैं ने उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक ठीक जांचा की ताकि उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूं।’ हाँ, लूका के प्रयासों पर परमेश्वर की आत्मा की आशीष थी। इसमें कोई शक नहीं कि इसने उसको विश्वसनीय ऐतिहासिक काग़ज़ात पाने के लिए प्रेरित किया। साथ ही जीवित अनुयायियों जैसे भरोसेमंद चश्मदीद-गवाहों और शायद यीशु की माँ, मरियम की पूछताछ करने को भी प्रेरित किया। फिर परमेश्वर की आत्मा लूका को इस जानकारी को ठीक से दर्ज़ करने के लिए मार्गदर्शित करती।—लूका १:१-४.
लूका के सुसमाचार की विषमता में, यूहन्ना का वृत्तांत एक चश्मदीद गवाह का वृत्तांत था, जिसे यीशु के मरने के कुछ ६५ साल बाद लिखा गया। यहोवा की आत्मा ने बेशक यूहन्ना की याददाश्त को तेज़ किया ताकि यह गुज़रते समय के साथ कमज़ोर न बने। यीशु ने अपने अनुयायियों को जो वादा किया यह उसके साथ मेल खाता है: “सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।”—यूहन्ना १४:२६.
कुछ मामलों में बाइबल लेखकों ने उनसे पहले के ऐसे ऐतिहासिक लेखकों के चश्मदीद गवाही दस्तावेज़ों का इस्तेमाल किया जिनमें से सभी को प्रेरित नहीं किया गया। यिर्मयाह ने ज़्यादातर इसी तरीक़े से पहला और दूसरा राजा की किताब का संकलन किया। (२ राजा १:१८) पहला और दूसरा इतिहास के लिए जानकारी हासिल करने के लिए एज्रा ने कम से कम १४ ऐसे स्रोतों की मदद ली जो ईश्वर-प्रेरित नहीं थे, जिनमें “राजा दाऊद के इतिहास” और “यहूदा और इस्राएल के राजाओं के वृत्तांत” शामिल हैं। (१ इतिहास २७:२४; २ इतिहास १६:११) यहाँ तक कि मूसा ने “यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक” से उद्धृत किया—ज़ाहिर तौर से परमेश्वर के लोगों के युद्धों का एक भरोसेमंद अभिलेख।—गिनती २१:१४, १५.
ऐसे मामलों में पवित्र आत्मा ने सक्रियता से काम किया, बाइबल लेखकों को सिर्फ़ ऐसी जानकारी चुनने के लिए प्रेरित किया जो भरोसेमंद थी। इसके बाद यह जानकारी ईश्वर-प्रेरित बाइबल अभिलेख का भाग बनी।
व्यावहारिक सलाह—किस की ओर से?
बाइबल में व्यावहारिक सलाह का एक भंडार है जो समझदार व्यक्तिगत विचारों पर आधारित है। उदाहरण के लिए, सुलैमान ने लिखा: “मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्रम करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है।” (सभोपदेशक २:२४) पौलुस ने कहा कि विवाह के बारे में उसकी सलाह “[उसके] विचार” थे, हालाँकि उसने आगे कहा: “मैं समझता हूं कि परमेश्वर का आत्मा मुझ में भी है।” (१ कुरिन्थियों ७:२५, ३९, ४०) निश्चय ही पौलुस के पास परमेश्वर की आत्मा थी, क्योंकि जैसे प्रेरित पतरस ने नोट किया, जो पौलुस ने लिखा वह “उस ज्ञान के अनुसार [था] जो उसे मिला।” (तिरछे टाइप हमारे।) (२ पतरस ३:१५, १६) इस तरह, परमेश्वर की आत्मा के मार्गदर्शन से, वह अपना विचार दे रहा था।
जब बाइबल लेखक ऐसे व्यक्तिगत विश्वास व्यक्त करते, तो जो शास्त्रवचन उनके पास थे उनके अध्ययन और अनुप्रयोग के आधार पर ही उसे व्यक्त करते थे। हम विश्वस्त हो सकते हैं कि उनका लेखन परमेश्वर के विचारों के साथ तालमेल में था। जो उन्होंने लिखा वह परमेश्वर के वचन का भाग बना।
बेशक, बाइबल में ऐसे लोगों की अभिव्यक्तियाँ भी हैं जिनके विचार ग़लत थे। (अय्यूब १५:१५ की तुलना ४२:७ से कीजिए।) इनमें ऐसी भी कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्होंने परमेश्वर के सेवकों की दर्दभरी भावनाओं को प्रकट किया, हालाँकि इन अभिव्यक्तियों से यह पता नहीं चलता कि वे ऐसा क्यों महसूस करते थे।c एक यथार्थ अभिलेख बनाने के लिए लेखक परमेश्वर की आत्मा द्वारा मार्गदर्शित था, जबकि उसने ऐसी निजी अभिव्यक्ति की, और इससे ग़लत विचारों की पहचान हुई और उस पर से नक़ाब हटाया गया। इसके अलावा, समझदार पाठक को हर मामले में संदर्भ से ज़ाहिर होता है कि लेखक का विचार उचित है या नहीं।
संक्षिप्त में, हम विश्वस्त हो सकते हैं कि पूरी बाइबल परमेश्वर का संदेश है। वाक़ई, यहोवा ने निश्चित किया कि जो भी उसमें दिया गया है वह उसके उद्देश्यों के अनुकूल हो और जो उसकी सेवा करने की इच्छा रखते हैं उन्हें ज़रूरी हिदायत दे।—रोमियों १५:४.
मानवी लेखक—क्यों?
बाइबल को लिखने के लिए यहोवा का मानवी लेखकों का इस्तेमाल करना उसकी महान बुद्धि प्रदर्शित करता है। इस पर ग़ौर कीजिए: अगर परमेश्वर ने इस मामले को स्वर्गदूतों पर छोड़ा होता, तो क्या बाइबल में वही आकर्षण रहता? सच है कि हमें एक स्वर्गदूत के नज़रिये से लिखे परमेश्वर के गुणों और व्यवहारों के बारे में पढ़ना बहुत ही रोमांचक लगेगा। लेकिन अगर मनुष्यों द्वारा नहीं लिखा जाए तो हमें बाइबल का संदेश समझना शायद मुश्किल लगता।
उदाहरण के लिए: बाइबल महज़ यह रिपोर्ट कर सकती थी कि राजा दाऊद ने परस्त्रीगमन और क़त्ल किया और कि उसके बाद वह पछताया। मगर दाऊद के अपने शब्द कितने बेहतर हैं जब उसने मर्मभेदी दिल से अपने कार्यों के कारण दुःख व्यक्त किया और यहोवा की माफ़ी के लिए भीख माँगी! “मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है,” उसने लिखा। “हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन ५१:३, १७) इसलिए, मानवी तत्त्व के कारण बाइबल में स्नेह, विविधता, और आकर्षण है।
जी हाँ, अपना वचन हमें देने के लिए यहोवा ने बेहतरीन तरीक़ा चुना। हालाँकि कमज़ोर और ऐबदार मनुष्यों को इस्तेमाल किया गया, वे पवित्र आत्मा द्वारा उभारे गए ताकि उनके लेख में कोई ग़लती नहीं रहे। इसलिए, बाइबल अति मूल्यवान है। इसमें ठोस सलाह हैं और पृथ्वी पर आनेवाले परादीस के बारे में इसकी भविष्यवाणियाँ भरोसेमंद हैं।—भजन ११९:१०५; २ पतरस ३:१३.
क्यों न परमेश्वर के वचन का एक भाग रोज़ाना पढ़ना एक आदत बना लें? पतरस ने लिखा: “निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ।” (१ पतरस २:२) क्योंकि यह परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित है, आप पाएँगे कि समस्त शास्त्र “उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।”—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.
[फुटनोट]
a कम-से-कम एक मामले, यानी दस आज्ञाओं के मामले में, परमेश्वर ने ख़ुद “अपनी उंगली से” जानकारी को लिखा। फिर मूसा ने चर्मपत्रों या अन्य सामग्रियों पर सिर्फ़ उनकी नक़ल की।—निर्गमन ३१:१८; व्यवस्थाविवरण १०:१-५.
b यूनानी शब्द फॆरो को, जिसे यहाँ “उभारे जाकर” अनुवाद किया गया है, प्रेरितों २७:१५, १७ में एक अन्य रूप में एक ऐसे जहाज़ का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया गया है जिसको हवा बहा ले जाती है। सो पवित्र आत्मा ने बाइबल लेखकों की ‘दिशा का मार्गदर्शन किया’। इसने उनको किसी भी ग़लत जानकारी को ठुकराने और हक़ीक़त को ही लिखने के लिए प्रेरित किया।
c उदाहरण के लिए, १ राजा १९:४ की तुलना आयत १४ और १८ से कीजिए; अय्यूब १०:१-३; भजन ७३:१२, १३, २१; योना ४:१-३, ९; हबक्कूक १:१-४, १३.
[पेज 7 पर बक्स/तसवीरें]
मूसा को यह जानकारी कहाँ से मिली?
बाइबल की उत्पत्ति की किताब को मूसा ने लिखा, मगर उसने उसमें जो भी लिखा वे सारी बातें उसके जन्म से बहुत पहले घट चुकी थीं। तो फिर, उसे यह जानकारी कहाँ से मिली? हो सकता है कि परमेश्वर ने इसे सीधा उसे प्रकट किया हो या शायद कुछ घटनाओं की जानकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से पहुँची हो। क्योंकि आरंभ में मनुष्यों की आयु ज़्यादा लंबी होती थी, इसलिए मूसा ने उत्पत्ति में जो लिखा उसमें से ज़्यादातर, आदम से मूसा तक सिर्फ़ पाँच मानवी कड़ियों—मतूशेलह, शेम, इसहाक, लेवी, और अम्राम द्वारा पहुँचा होगा।
इसके अतिरिक्त, मूसा ने शायद लिखित अभिलेख की जाँच की होगी। इस मामले में, यह उल्लेखनीय है कि मूसा किसी व्यक्ति के बारे में चर्चा करते समय उसका नाम देने के बाद “. . . की वंशावली यह है” अभिव्यक्ति का अकसर प्रयोग करता है। (तिरछे टाइप हमारे) (उत्पत्ति ६:९; १०:१; ११:१०, २७; २५:१२, १९; ३६:१, ९; ३७:२) कुछ विद्वान् कहते हैं कि यहाँ “वंशावली” अनुवादित इब्रानी शब्द टोहलेदोथ, पहले ही मौजूद एक लिखित ऐतिहासिक दस्तावेज़ का ज़िक्र करता है, जिसे मूसा ने अपने लेखन के एक स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया। निःसंदेह, ऐसा निर्णायक रूप से नहीं कहा जा सकता।
यह हो सकता है कि उत्पत्ति किताब में दी गई जानकारी ऊपर बताए गए तीनों तरीक़ों से हासिल की गई थी—कुछ सीधे प्रकटन द्वारा, कुछ मौखिक संचारण द्वारा, और कुछ लिखित अभिलेखों द्वारा। अहम बात यह है कि यहोवा की आत्मा ने मूसा को प्रेरित किया। इसलिए, वह जो लिखता उसे उचित ही परमेश्वर का वचन माना जा सकता है।
[पेज 4 पर तसवीर]
विभिन्न तरह से परमेश्वर ने मनुष्य को बाइबल लिखने में प्रेरित किया