क्या आप परमेश्वर के मित्र हैं? आपकी प्रार्थनाएँ क्या दिखाती हैं
क्या आपने कभी अनजाने में दो लोगों को बात करते सुना है? इसमें कोई संदेह नहीं कि आपको यह तय करने में ज़्यादा समय नहीं लगा होगा कि उनका संबंध कैसा है—वे जान-पहचानवाले थे या अजनबी, बस परिचित थे या पक्के, भरोसे के मित्र। उसी तरह, हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर के साथ हमारा संबंध प्रकट कर सकती हैं।
बाइबल हमें आश्वस्त करती है कि परमेश्वर “हम में से किसी से दूर नहीं।” (प्रेरितों १७:२७) सचमुच, वह हमें न्यौता देता है कि उसे जानें। हम उसके मित्र भी बन सकते हैं। (भजन ३४:८; याकूब २:२३) हम उसके साथ सच्ची आत्मीयता का आनंद ले सकते हैं! (भजन २५:१४) स्पष्ट है कि परमेश्वर के साथ हमारा संबंध वह सबसे अनमोल चीज़ है जो हम अपरिपूर्ण मनुष्य कभी पा सकते हैं। और यहोवा को हमारी मित्रता प्रिय है। यह स्पष्ट है क्योंकि उसके साथ हमारी मित्रता उसके एकलौते पुत्र में हमारे विश्वास पर आधारित है, जिसने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया।—कुलुस्सियों १:१९, २०.
इसलिए हमारी प्रार्थनाओं से यहोवा के लिए गहरा प्रेम और मूल्यांकन दिखना चाहिए। लेकिन, क्या आपको कभी लगा है कि आपकी प्रार्थनाएँ श्रद्धापूर्ण तो हैं परंतु उनमें गहरे हार्दिक भाव की थोड़ी-बहुत कमी है? यह सामान्य है। स्थिति सुधारने की कुंजी? यहोवा परमेश्वर के साथ अपनी मित्रता को बढ़ाना।
प्रार्थना के लिए समय निकालना
सबसे पहले, मित्रता को बढ़ाने और सँवारने में समय लगता है। आप शायद हर दिन कई लोगों से मिलते या उनके साथ बातचीत भी करते हैं, जैसे पड़ोसी, सहकर्मी, बस चालक, और दुकानदार। लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं कि आप सचमुच इन लोगों के मित्र हैं। मित्रता तब बढ़ती है जब आप किसी के साथ विस्तार से बात करते हैं, ऊपरी बातें करने से हटकर अपनी आंतरिक भावनाओं और विचारों को व्यक्त करते हैं।
उसी तरह, प्रार्थना हमें यहोवा के पास आने में मदद देती है। लेकिन इसके लिए पर्याप्त समय लगाया जाना चाहिए; भोजन के समय छोटी-सी धन्यवाद प्रार्थना करने से अधिक की ज़रूरत है। आप यहोवा के साथ जितना अधिक बात करते हैं, उतना ही अधिक आप अपनी ख़ुद की भावनाओं, अभिप्रायों, और कार्यों को जाँचने में समर्थ होते हैं। जैसे-जैसे परमेश्वर की आत्मा आपको वे सिद्धांत याद दिलाती है जो उसके वचन में दिए गए हैं, कठिन समस्याओं के हल दिखने लगते हैं। (भजन १४३:१०; यूहन्ना १४:२६) इसके अलावा, जैसे-जैसे आप प्रार्थना करते हैं यहोवा आपके लिए और वास्तविक हो जाता है, और आप ज़्यादा अच्छी तरह जानने लगते हैं कि वह आपमें प्रेममय रुचि रखता है और आपकी परवाह करता है।
यह ख़ासकर तब सच होता है जब आप अपनी प्रार्थनाओं का उत्तर पाते हैं। यहोवा “हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है”! (इफिसियों ३:२०) इसका यह अर्थ नहीं कि परमेश्वर आपके हित में चमत्कार करता है। लेकिन, अपने लिखित वचन, विश्वासयोग्य दास वर्ग के प्रकाशनों, या प्रेममय भाई-बहनों के मुख से वह आपको ज़रूरी सलाह या मार्गदर्शन दे सकता है। या वह आपको परीक्षा में धीरज धरने अथवा उसका विरोध करने के लिए ज़रूरी शक्ति दे सकता है। (मत्ती २४:४५; २ तीमुथियुस ४:१७) ऐसे अनुभव हमारे हृदय को हमारे स्वर्गीय मित्र के लिए मूल्यांकन से भर देते हैं!
इसलिए व्यक्ति को प्रार्थना के लिए समय निकालना चाहिए। सच है कि इन तनावपूर्ण दिनों में समय की कमी है। लेकिन यदि आप सचमुच किसी की परवाह करते हैं, तो आप प्रायः उसके साथ बिताने के लिए कुछ समय निकाल ही लेते हैं। ध्यान दीजिए कि भजनहार ने अपने आपको कैसे व्यक्त किया: “जैसे हरिणी नदी के जल के लिये हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हांफता हूं। जीवते ईश्वर परमेश्वर का मैं प्यासा हूं, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा?” (भजन ४२:१, २) क्या आपको भी परमेश्वर से बात करने की ऐसी ही ललक है? तो फिर उससे बात करने के लिए समय मोल लीजिए!—इफिसियों ५:१६ से तुलना कीजिए।
उदाहरण के लिए, आप सुबह जल्दी उठकर अकेले में प्रार्थना कर सकते हैं। (भजन ११९:१४७) क्या कभी-कभी ऐसा होता है कि रात में आपको नींद नहीं आती? तो, भजनहार की तरह, आप ऐसे परेशान करनेवाले समय को एक अवसर समझ सकते हैं परमेश्वर के सामने अपनी चिंताएँ व्यक्त करने का। (भजन ६३:६) या यह हो सकता है कि आप दिन के दौरान कई बार छोटी-छोटी प्रार्थनाएँ करें। भजनहार ने परमेश्वर से कहा: “मैं दिन भर तेरी दुहाई देता हूं।”—भजन ८६:३, NHT.
अपनी प्रार्थनाओं की गुणवत्ता बढ़ाना
कभी-कभी आप अपनी प्रार्थनाओं की लंबाई बढ़ाना भी सहायक पाएँगे। एक छोटी प्रार्थना के दौरान, आप शायद ऊपरी बातों के बारे में बोलें। लेकिन जब आप लंबी और गहरी प्रार्थनाएँ करते हैं, आप ज़्यादा आसानी से अपने विचार और आंतरिक भावनाएँ व्यक्त करते हैं। कम-से-कम एक बार यीशु ने पूरी रात प्रार्थना में बितायी। (लूका ६:१२) निःसंदेह आप पाएँगे कि आपकी ख़ुद की प्रार्थनाएँ अधिक आत्मीय और अर्थपूर्ण बन जाती हैं यदि आप उन्हें हड़बड़ी में नहीं करते।
इसका यह अर्थ नहीं कि बोलते चले जाएँ जब आपके पास बोलने को कुछ है नहीं; न ही इसका यह अर्थ है कि बातों को व्यर्थ ही दोहराते रहें। यीशु ने चिताया: “प्रार्थना करते समय अन्यजातियों की नाईं बक बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उन की सुनी जाएगी। सो तुम उन की नाईं न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यकता है।”—मत्ती ६:७, ८.
प्रार्थना तब अधिक अर्थपूर्ण होती है जब आप पहले से यह सोचते हैं कि आप किन बातों पर बात करना चाहते हैं। विषय अनगिनत हैं—सेवकाई में हमारे आनंद, हमारी कमज़ोरियाँ और कमियाँ, हमारी निराशाएँ, हमारी आर्थिक चिंताएँ, कार्यस्थल या स्कूल में दबाव, हमारे परिवार का कल्याण, और हमारी स्थानीय कलीसिया की आध्यात्मिक स्थिति इनमें से मात्र कुछ हैं।
जब आप प्रार्थना करते हैं तब क्या आपका मन कभी-कभी भटक जाता है? तो एकाग्र होने के लिए और अधिक प्रयास कीजिए। आख़िरकार, यहोवा ‘हमारी पुकार की ओर ध्यान देने’ के लिए तैयार है। (भजन १७:१) क्या हमें नहीं तैयार होना चाहिए कि अपनी ख़ुद की प्रार्थनाओं को ध्यान देने के लिए सच्चा प्रयास करें? जी हाँ, ‘आत्मा की बातों पर मन लगाइए,’ और उसे भटकने मत दीजिए।—रोमियों ८:५.
जिस ढंग से हम यहोवा को संबोधित करते हैं वह भी महत्त्वपूर्ण है। जबकि वह चाहता है कि हम उसे एक मित्र की दृष्टि से देखें, हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम विश्व के सर्वसत्ताधारी से बात कर रहे हैं। प्रकाशितवाक्य अध्याय ४ और ५ में जो विस्मय-प्रेरक दृश्य खींचा गया है उसे पढ़िए और उस पर मनन कीजिए। वहाँ यूहन्ना ने एक दर्शन में उसका प्रताप देखा जिसके सम्मुख हम प्रार्थना में जाते हैं। हमारे पास क्या ही विशेषाधिकार है कि “जो सिंहासन पर बैठा है” हम उसके सम्मुख जाकर बात कर सकते हैं! हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारी बोली अनादरपूर्ण या गरिमाहीन हो। इसके बजाय, हमें पूरा प्रयास करना चाहिए कि ‘हमारे मुंह के वचन और हमारे हृदय का ध्यान यहोवा के सम्मुख ग्रहण योग्य हों।’—भजन १९:१४.
लेकिन, हमें यह समझना चाहिए कि हम बड़ी-बड़ी बातें करके यहोवा को प्रभावित नहीं करना चाहते। वह हमारी आदरपूर्ण, हार्दिक अभिव्यक्तियों से प्रसन्न होता है, चाहे वे कितने ही साधारण ढंग से क्यों न व्यक्त की गयी हों।—भजन ६२:८.
ज़रूरत के समय में सांत्वना और हमदर्दी
जब हमें मदद और सांत्वना की ज़रूरत होती है, तब हम सहारे और सहानुभूति के लिए अकसर क़रीबी मित्र की ओर देखते हैं। और, कोई ऐसा मित्र नहीं जो यहोवा से ज़्यादा आसानी से मिल सकता है। वह “संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक है।” (भजन ४६:१) “सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर” होने के कारण, वह किसी दूसरे व्यक्ति से ज़्यादा अच्छी तरह समझता है कि हम पर क्या गुज़र रही है। (२ कुरिन्थियों १:३, ४; भजन ५:१, NHT; ३१:७) और जो बहुत मुसीबत में हैं उनके लिए उसको सच्ची हमदर्दी और करुणा है। (यशायाह ६३:९; लूका १:७७, ७८) यह देखते हुए कि यहोवा एक सहानुभूतिपूर्ण मित्र है, हम उससे हार्दिक, भावपूर्ण ढंग से बात करने से झिझकते नहीं। हम अपने गहरे-से-गहरे भय और चिंताएँ बताने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रकार हम स्वयं अनुभव करते हैं कि कैसे यहोवा की ‘सान्त्वना हमारे प्राण को प्रसन्न करती है।’—भजन ९४:१८, १९, NHT.
अपने अपराधों के कारण कभी-कभी हम यहोवा के सम्मुख जाने के लिये अयोग्य महसूस कर सकते हैं। लेकिन तब क्या यदि आपके एक क़रीबी मित्र ने आपके विरुद्ध अपराध किया है और आपसे क्षमा की भीख माँगता है? क्या आप उसे दिलासा और आश्वासन देने के लिए प्रेरित नहीं होंगे? तो फिर, आप यहोवा से इससे कम की अपेक्षा क्यों करें? वह उदारता से अपने मित्रों को क्षमा करता है जो मानव अपरिपूर्णता के कारण पाप करते हैं। (भजन ८६:५; १०३:३, ८-११) यह जानते हुए, हम उसके सामने खुलकर अपने अपराध स्वीकार करने से पीछे नहीं हटते; हम उसके प्रेम और दया के बारे में विश्वस्त हो सकते हैं। (भजन ५१:१७) यदि हम अपनी कमियों के कारण हताश हैं, तो हम १ यूहन्ना ३:१९, २० के शब्दों से सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं: “इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे। क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।”
लेकिन, हमें परमेश्वर की प्रेममय परवाह का आनंद लेने के लिए बड़ी मुसीबत में होने की ज़रूरत नहीं। यहोवा ऐसी किसी भी बात में दिलचस्पी रखता है जो हमारे आध्यात्मिक और भावात्मक हित पर प्रभाव डाल सकती है। जी हाँ, हमें कभी यह सोचने की ज़रूरत नहीं कि हमारी भावनाएँ, विचार, और चिंताएँ इतनी महत्त्वहीन हैं कि उन्हें प्रार्थना में नहीं बताया जा सकता। (फिलिप्पियों ४:६) जब आप एक क़रीबी मित्र के साथ होते हैं, तब क्या आप अपने जीवन की केवल मुख्य घटनाओं के बारे में बात करते हैं? क्या आप अपेक्षाकृत छोटी चिंताओं के बारे में भी बात नहीं करते? उसी तरह, आप यहोवा के साथ अपने जीवन के किसी भी पहलू के बारे में खुलकर बात कर सकते हैं, यह जानते हुए कि “उस को तुम्हारा ध्यान है।”—१ पतरस ५:७.
निःसंदेह, एक मित्रता ज़्यादा नहीं चलेगी यदि आप अपने बारे में ही बात करते रहते हैं। उसी तरह, हमारी प्रार्थनाओं को आत्म-केंद्रित नहीं होना चाहिए। हमें यहोवा और उसके हितों के लिए भी अपना प्रेम और अपनी चिंता व्यक्त करनी चाहिए। (मत्ती ६:९, १०) प्रार्थना परमेश्वर से मदद माँगने का ही अवसर नहीं वरन् धन्यवाद और स्तुति करने का भी मौक़ा है। (भजन ३४:१; ९५:२) नियमित व्यक्तिगत अध्ययन के द्वारा ‘ज्ञान लेना’ इस संबंध में हमारी सहायता करेगा, क्योंकि यह हमें यहोवा और उसके मार्गों से ज़्यादा अच्छी तरह परिचित होने में मदद देता है। (यूहन्ना १७:३, NW) भजनसंहिता पढ़ना और ध्यान देना कि कैसे दूसरे वफ़ादार सेवकों ने यहोवा के सामने अपने आपको व्यक्त किया, आपको शायद ख़ासकर सहायक लगे।
यहोवा की मित्रता सचमुच एक अनमोल उपहार है। ऐसा हो कि हम अपनी प्रार्थनाओं को और भी आत्मीय, हार्दिक और वैयक्तिक बनाने के द्वारा दिखाएँ कि हम इसका मूल्यांकन करते हैं। तब हम उस ख़ुशी का आनंद लेंगे जो भजनहार ने व्यक्त की, जिसने कहा: “क्या ही धन्य है वह; जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है।”—भजन ६५:४.
[पेज 28 पर तसवीर]
हम परमेश्वर से पूरे दिन में जब भी अवसर आए प्रार्थना कर सकते हैं