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  • यीशु ७० चेलों को भेजता है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 3/1 पेज 30-31

उन्होंने यहोवा की इच्छा पूरी की

यीशु ७० चेलों को भेजता है

वह सा.यु. ३२ का पतझड़ था। यीशु की मृत्यु के बस अब छः महीने रह गए थे। इसलिए प्रचार कार्य में तेज़ी लाने और अपने कुछ अनुयायियों को और ज़्यादा प्रशिक्षण देने के लिए उसने ७० चेलों को नियुक्‍त किया और “जिस जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहां उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा।”—लूका १०:१.a

यीशु ने अपने चेलों को “अपने आगे भेजा” ताकि जब यीशु स्वयं बाद में आए तब लोग और जल्दी यह फैसला कर सकें कि वे मसीहा की ओर हैं या उसके विरुद्ध हैं। लेकिन उसने उन्हें “दो दो करके” क्यों भेजा? प्रत्यक्षतः इसलिए कि विरोध का सामना करने पर वे एक-दूसरे को प्रोत्साहन दे सकें।

उनके प्रचार कार्य की अत्यावश्‍यकता पर ज़ोर देते हुए यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा: “पक्के खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं: इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे।” (लूका १०:२) कटनी से समानता करना बिलकुल सही था, क्योंकि कटनी करने में किसी भी तरह की देरी का नतीजा बहुमूल्य फसलों का नुकसान हो सकता है। उसी प्रकार, अगर चेले अपने प्रचार कार्य की नियुक्‍ति को नज़रअंदाज़ करते हैं तो मूल्यवान प्राण नाश हो सकते हैं!—यहेजकेल ३३:६.

अविकर्षित सेवक

यीशु ने अपने चेलों को आगे निर्देश दिया: “न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।” (लूका १०:४) यात्रियों के लिए यह रिवाज़ था कि अपने साथ न केवल झोली और भोजन लें वरन्‌ जूते का एक और जोड़ा भी लें क्योंकि जूते का तला घिस सकता था और फीते टूट सकते थे। लेकिन यीशु के चेलों को ऐसी चीज़ों की चिंता नहीं करनी थी। बल्कि, उन्हें भरोसा रखना था कि साथी इस्राएलियों के ज़रिए जिनमें अतिथि-सत्कार करने का रिवाज़ था, यहोवा उनकी परवाह करता।

लेकिन यीशु ने अपने चेलों को क्यों कहा कि किसी को नमस्कार न करो? क्या उन्हें भावशून्य होना था, यहाँ तक कि रुखाई दिखानी थी? कतई नहीं! यूनानी शब्द आस्पाज़ोमाइ, जिसका अर्थ है नमस्कार कहना, इसमें मात्र शिष्टता से “हलो” या “कैसे हो” कहने से ज़्यादा हो सकता था। इसमें, जब दो परिचित मिलते थे तब रिवाज़ अनुसार चूमना, गले लगाना और आगे लंबी बातचीत भी हो सकती थी। एक टीकाकार ने कहा: “हम पश्‍चिमवालों की तरह थोड़ा-सा झुकना या हाथ मिलाना, ऐसे अभिवादन पूरब के लोगों में नहीं होते, बल्कि उनमें कई बार गले मिलना और झुकना यहाँ तक कि ज़मीन पर पूरी तरह लेटकर दंडवत करना भी शामिल था। इन सबके लिए काफी समय की ज़रूरत थी।” (२ राजा ४:२९ से तुलना कीजिए।) यीशु ने इसीलिए अपने अनुयायियों को अनावश्‍यक विकर्षणों को टालने के लिए कहा, हालाँकि वे रिवाज़ थे।

अंत में, यीशु ने अपने चेलों से कहा कि घर में प्रवेश करने पर अगर उनका स्वागत होता है, तो उन्हें चाहिए कि वे ‘उसी घर में रहें, और जो कुछ उन से मिलता, वही खाएँ पीएँ।’ लेकिन अगर वे किसी नगर में प्रवेश करते थे और उनका ठीक से स्वागत नहीं होता, तो उन्हें चाहिए कि ‘उसके बाजारों में जाकर कहें कि तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पांवों में लगी है, हम तुम्हारे साम्हने झाड़ देते हैं।’ (लूका १०:७, १०, ११) अपने पाँवों की धूल को पोंछने या झाड़ने का अर्थ होता कि चेले शांतिपूर्वक उस अग्रहणशील घर या नगर को उसके परिणामों पर छोड़ रहे हैं, जिनके फल आखिरकार वे परमेश्‍वर से भुगतते। परंतु जिन्होंने यीशु के चेलों को कृपापूर्वक स्वीकारा, वे अपने आपको आशीषों के योग्य ठहराते हैं। यीशु ने एक अन्य अवसर पर अपने प्रेरितों से कहा: “जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है। जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूं, वह किसी रीति से अपना प्रतिफल न खोएगा।”—मत्ती १०:४०, ४२.

हमारे लिए सीख

परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने और चेले बनाने की नियुक्‍ति को अब संसार भर में ५०,००,००० से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षियों द्वारा पूरा किया जा रहा है। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) वे जानते हैं कि उनका संदेश बहुत ज़रूरी है। इसलिए वे ऐसे विकर्षणों को टालकर जो उन्हें अपनी महत्त्वपूर्ण कार्य-नियुक्‍ति में पूरी तरह ध्यान देने से रोक सकता है, अपने समय का सदुपयोग करते हैं।

यहोवा के साक्षी सभों के साथ स्नेही होना चाहते हैं जिनसे भी वे मिलते हैं। फिर भी, वे यूँ ही व्यर्थ की गपशप में नहीं पड़ते, न ही वे सामाजिक मसलों या अन्याय को रोकने के लिए इस संसार के असफल प्रयासों के वाद-विवादों के चक्कर में पड़ते हैं। (यूहन्‍ना १७:१६) बजाय इसके, वे अपनी चर्चा, मनुष्यों की समस्याओं के एकमात्र दीर्घकालिक हल पर केंद्रित करते हैं अर्थात्‌ परमेश्‍वर का राज्य।

अधिकतर यहोवा के साक्षियों को जोड़े में काम करते देखा गया है। अगर हरेक व्यक्‍ति अकेले काम करता, तो क्या और भी ज़्यादा निष्पन्‍न नहीं होता? शायद हो। फिर भी, आज संगी विश्‍वासी के साथ मिलकर काम करने के फायदे को मसीही जानते हैं। खतरेवाले क्षेत्रों में साक्ष्य देते वक्‍त, यह काफी हद तक सुरक्षा प्रदान करता है। जोड़ीदार के साथ काम करने से नये लोग भी, सुसमाचार के अधिक अनुभवी प्रकाशकों के हुनर का लाभ उठा पाते हैं। वाकई, प्रोत्साहन के आदान-प्रदान में दोनों ही योग दे सकते हैं।—नीतिवचन २७:१७.

कोई संदेह नहीं कि इन “अन्तिम दिनों” में प्रचार का काम एक सबसे अत्यावश्‍यक काम किया जा रहा है। (२ तीमुथियुस ३:१) विश्‍वव्यापी भाईचारे के सहयोग के लिए यहोवा के साक्षी बहुत ख़ुश हैं, जिसमें वे “एक साथ मिल कर सुसमाचार के विश्‍वास के लिये” कार्य करते हैं।—फिलिप्पियों १:२७, NHT.

[फुटनोट]

a कुछ बाइबल और प्राचीन यूनानी हस्तलिपियाँ कहती हैं कि यीशु ने “बहत्तर” चेलों को भेजा। बहरहाल, ऐसी ढेरों हस्तलिपियाँ हैं, जो “सत्तर” का समर्थन करती हैं। इस विवरण को मुख्य मुद्दे से ध्यान नहीं हटाना चाहिए कि यीशु ने अपने चेलों का एक बड़ा समूह प्रचार के लिए भेजा था।

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