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पाठकों के प्रश्‍न

मत्ती १७:२० के मुताबिक “अपने विश्‍वास की घटी के कारण” प्रेरित एक पीड़ित लड़के को चंगा न कर सके। लेकिन मरकुस ९:२९ में उनका ऐसा न कर सकने का संबंध प्रार्थना की ज़रूरत के साथ जोड़ा गया है। अलग-अलग सुसमाचार की किताबों में अलग-अलग कारण क्यों दिए हैं?

असल में, दोनों वृत्तांत एक दूसरे की कमी पूरी करते हैं, विरोध नहीं करते। पहले मत्ती १७:१४-२० को लीजिए। एक मनुष्य ने कहा कि उसके बेटे को मिरगी आती है और यीशु के चेले उस लड़के को चंगा नहीं कर सके। तब यीशु ने उस लड़के को सतानेवाली दुष्टात्मा निकालकर उसे चंगा किया। चेलों ने पूछा कि वे उस दुष्टात्मा को क्यों न निकाल सके। मत्ती के हवाले के मुताबिक, यीशु ने जवाब दिया: “अपने विश्‍वास की घटी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, यदि तुम्हारा विश्‍वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, कि यहां से सरककर वहां चला जा, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अन्होनी न होगी।”—तिरछे टाइप हमारे।

अब मरकुस ९:१४-२९ खोलिए जहाँ यह घटना ज़्यादा विस्तार से बतायी गयी है। मिसाल के तौर पर, मरकुस ९:१७ यह बताता है कि इस मामले में मिरगी के दौरों के लिए एक दुष्टात्मा ज़िम्मेदार थी। इस बात पर गौर कीजिए कि बाइबल कहीं और कहती है कि यीशु ने मिरगी के रोगियों और दुष्टात्माओं से सताए गए लोगों को चंगा किया। (मत्ती ४:२४) इस अनोखी स्थिति में एक “गूंगी और बहिरी आत्मा,” जो एक दुष्टात्मा थी इन दौरों के लिए ज़िम्मेदार थी और डॉक्टर लूका भी इसकी पुष्टि करता है। (लूका ९:३९; कुलुस्सियों ४:१४) मरकुस ९:१८ में इस वाक्यांश पर ध्यान दीजिए, “जहां कहीं वह [दुष्टात्मा] उसे पकड़ती है।” सो यह दुष्टात्मा हर घड़ी नहीं, केवल कभी-कभी इस लड़के को सताती थी। फिर भी, चेले इस दुष्टात्मा को निकालकर लड़के को चंगा न कर सके। जब उन्होंने इसका कारण पूछा तब यीशु ने जवाब दिया: “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय के निकल नहीं सकती।”

लेकिन अगर मरकुस के हवाले को ध्यान से पढ़ा जाए तो यह बात साफ हो जाती है कि मत्ती के हवाले से इसका कोई विरोध नहीं है। मरकुस ९:१९ में लिखा है कि यीशु को उस पीढ़ी के अविश्‍वास पर दुःख हुआ। और आयत २३ में लिखा है कि यीशु ने लड़के के पिता से कहा: “विश्‍वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है।” सो मरकुस भी विश्‍वास की अहमियत पर ज़ोर देता है। आयत २९ में मरकुस सिर्फ एक और जानकारी देता है। मरकुस प्रार्थना के बारे में यीशु के शब्द लिख देता है, और यह बात न तो मत्ती ने लिखी ना ही लूका ने।

तो फिर हम क्या कह सकते हैं? ऐसे दूसरे अवसरों पर १२ प्रेरितों और ७० चेलों ने दुष्टात्माएँ निकाली थीं। (मरकुस ३:१५; ६:१३; लूका १०:१७) लेकिन इस मामले में चेले दुष्टात्मा को न निकाल सके। क्यों? अगर हम अलग-अलग हवालों की जानकारी को मिलाकर देखें, तो हम यह निष्कर्ष निकालेंगे कि वे इस मामले में दुष्टात्मा निकालने के लिए तैयार न थे। कुछ हद तक हो सकता है कि दुष्टात्मा की जाति के कारण ऐसा हुआ, क्योंकि ऐसा लगता है कि दुष्टात्माओं के अलग-अलग व्यक्‍तित्व, दिलचस्पियाँ और काबिलीयतें होती हैं। इस जाति के लिए खासकर मज़बूत विश्‍वास और परमेश्‍वर की मदद के लिए उत्साही प्रार्थना की ज़रूरत थी। बेशक यीशु का विश्‍वास ऐसा ही था। प्रार्थनाओं का सुननेवाला, उसका पिता भी उसके साथ था। (भजन ६५:२) यीशु दुष्टात्मा से पीड़ित लड़के को चंगा करने के काबिल था और उसने ऐसा किया भी।

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