आध्यात्मिक प्रगति करते रहिए!
जिस दिन हमारा बपतिस्मा होता है, उस दिन को हम हमेशा बहुत खास समझते हैं और उसे याद रखते हैं। आखिरकार, उसी दिन तो हम सब लोगों के सामने यह स्वीकार करते हैं कि हमने परमेश्वर की सेवा करने के लिए खुद को समर्पित किया है।
कई लोगों को इस मुकाम तक पहुँचने के लिए काफी कोशिश करनी पड़ती है—जैसे काफी समय से लगी बुरी आदतें छोड़ना, गलत संगति से छुटकारा पाना, दिल में बसे अपने पक्के सोच-विचार व व्यवहार बदलना।
हालाँकि बपतिस्मा एक मसीही के जीवन की एक सुखद व महत्त्वपूर्ण घटना है, फिर भी यह तो बस एक शुरूआत है। प्रेरित पौलुस ने यहूदिया के बपतिस्मा-प्राप्त मसीहियों से कहा: “आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़कर, हम सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाएं।” (इब्रानियों ६:१) जी हाँ, सभी मसीहियों को ‘विश्वास में और परमेश्वर के पुत्र के पूर्ण ज्ञान में एक होने, परिपक्व बनने, अर्थात् मसीह के पूरे डील-डौल तक बढ़ने’ की ज़रूरत है। (इफिसियों ४:१३, NHT) जब तक हम परिपक्व नहीं हो जाते हैं तब तक प्रगति करते रहने से ही हम वास्तव में “विश्वास में दृढ़” हो सकते हैं।—कुलुस्सियों २:७.
पिछले कुछ सालों में, समर्पित होनेवाले सैकड़ों-हज़ारों उपासक मसीही कलीसिया से जुड़ गए हैं। शायद आप उनमें से एक हों। पहली सदी के अपने भाइयों की तरह, आप आध्यात्मिक तौर पर शिशु ही बने रहना नहीं चाहते। आप बढ़ना चाहते हैं, उन्नति करना चाहते हैं! लेकिन कैसे? और ऐसे कौन-से कुछ तरीके हैं जिनमें आप ऐसी प्रगति कर सकते हैं?
व्यक्तिगत अध्ययन के द्वारा प्रगति करना
पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों से कहा: “मेरी प्रार्थना यही है कि तुम्हारा प्रेम सच्चे ज्ञान और पूर्ण समझ सहित निरन्तर बढ़ता जाए।” (फिलिप्पियों १:९, NHT) “सच्चे ज्ञान” में बढ़ते जाना आपकी आध्यात्मिक प्रगति के लिए बेहद ज़रूरी है। यहोवा ‘परमेश्वर और यीशु मसीह के बारे में जानना’ एक जारी प्रक्रिया है, जो बपतिस्मा होने पर खत्म नहीं हो जाती।—यूहन्ना १७:३.
एलैक्सांड्रा नाम की एक मसीही बहन को अपने बपतिस्मे के दस साल बाद इस बात का एहसास हुआ। उसने १६ साल की आयु में बपतिस्मा लिया था। उसकी परवरिश सच्चाई में ही हुई थी और वह नियमित रूप से मसीही सभाओं में आती और प्रचार काम में भी हिस्सा लेती थी। वह लिखती है: “पिछले कुछ महीनों से, मुझे एहसास हुआ कि कुछ तो बहुत गड़बड़ है। सो मैंने फैसला किया कि मैं ईमानदारी से अपने गिरेबान में झाँककर देखूँगी कि सच्चाई के प्रति मेरे क्या विचार हैं और मैं अब तक सच्चाई में क्यों हूँ।” उसने क्या पाया? वह आगे कहती है: “सच्चाई में रहने के जो कारण मेरे सामने आए, उससे मैं परेशान हो गयी। मुझे याद आया कि बचपन में सभाओं में हाज़िर होने व प्रचार काम में हिस्सा लेने पर ज़ोर दिया जाता था। यह मानो ऐसा था कि व्यक्तिगत अध्ययन व प्रार्थना किसी-न-किसी तरह से खुद-ब-खुद एक आदत बन जाएँगी। लेकिन जब मैंने अपनी स्थिति का ज़ायज़ा लिया तो मुझे एहसास हुआ कि ऐसा हुआ ही नहीं।”
प्रेरित पौलुस आग्रह करता है: “जहां तक हम पहुंचे हैं, उसी [रूटीन] के अनुसार चलें।” (फिलिप्पियों ३:१६) रूटीन की वज़ह से आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है। अपने बपतिस्मे से पहले, बेशक आपने एक सुयोग्य शिक्षक के साथ हर हफ्ते रूटीन अनुसार बाइबल अध्ययन किया था। जैसे-जैसे आपकी कदर बढ़ती गयी, आपने इस रूटीन में हर हफ्ते के पाठ की पहले से तैयारी करनी शुरू की और दिए गए बाइबल वचनों को खोलकर देखने लगे। इसी तरह आप प्रगति करते रहे। अब जबकि आपका बपतिस्मा हो चुका है, क्या आप ‘उसी [रूटीन] के अनुसार चलते’ रहे हैं?
यदि नहीं, तो आपको अपनी प्राथमिकताओं को फिर से जाँचने की ज़रूरत है, ताकि आप ‘उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जान’ सकें। (फिलिप्पियों १:१०) ज़िंदगी में व्यस्त होने के कारण अपनी बाइबल रीडिंग व स्टडी की खातिर समय निकालने के लिए आत्म-नियंत्रण की ज़रूरत है। लेकिन इससे मिलनेवाले फायदों के आगे यह मेहनत कुछ भी नहीं। एक दफे फिर एलैक्सांड्रा के अनुभव पर गौर फरमाइए। वह कहती है, “मुझे मानना पड़ेगा कि मैं पिछले २० या उससे ज़्यादा सालों से सच्चाई में तो हूँ लेकिन मैंने सभाओं और प्रचार काम को कभी गंभीरता से नहीं लिया।” लेकिन वह आगे कहती है, “अब मेरा निष्कर्ष यह है कि हालाँकि ये बातें ज़रूरी तो हैं, लेकिन जब स्थिति बिगड़ने लगेंगी तो मात्र ये बातें मुझे आध्यात्मिक तौर पर ज़िंदा नहीं रख सकेंगी। ये सब बातें मुझे समझ में आने लगी क्योंकि व्यक्तिगत अध्ययन करने की मेरी आदत तो लगभग निल है और प्रार्थना तो मैं बस जब मन में आया तब करती हूँ या फिर करना है इसलिए करती हूँ। अब मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने सोच-विचार को बदलना होगा और अर्थपूर्ण तरीके से अध्ययन करना होगा ताकि मैं यहोवा को सचमुच जान सकूँ और उसे प्रेम कर सकूँ, साथ ही उसके बेटे ने हमें जो दिया है उसकी कदर कर सकूँ।”
यदि आपको व्यक्तिगत अध्ययन की कारगर रूटीन बनाने में मदद चाहिए, तो आपकी कलीसिया के प्राचीनों व दूसरे परिपक्व मसीहियों को आपकी मदद करने में खुशी होगी। इसके अलावा, प्रहरीदुर्ग के मई १, १९९५; प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के अगस्त १५, १९९३; व मई १५, १९८६ अंकों के लेख में कई उपयोगी सुझाव दिए गए हैं।
परमेश्वर के पास आने की ज़रूरत
एक और क्षेत्र जिसमें आपको प्रगति करने की कोशिश करनी चाहिए, वह है परमेश्वर के साथ आपका रिश्ता। कभी-कभी इस संबंध में प्रगति करने की शायद काफी ज़रूरत हो। एन्थोनी पर गौर फरमाइए जिसका बपतिस्मा बहुत ही छोटी उम्र में हुआ। वह कहता है, “मेरे परिवार में बपतिस्मा लेनेवाला सबसे पहला बच्चा मैं ही था। मेरे बपतिस्मे के बाद, मेरी माँ ने मुझे स्नेह से गले लगाया। मैंने उसे इससे ज़्यादा खुश पहले कभी नहीं देखा था। चारों तरफ खुशी ही खुशी का माहौल था और मैंने खुद को बहुत मज़बूत महसूस किया।” मगर तस्वीर का दूसरा रुख भी था। एन्थोनी कहता है, “कुछ समय तक, हमारी कलीसिया में ऐसा कोई दूसरा बच्चा नहीं था जिसने बपतिस्मा लिया हो। सो मुझे अपने आप पर बहुत नाज़ था। मुझे मिटिंगों में अपनी टिप्पणियों व अपने भाषणों पर भी गर्व होता था। यहोवा की स्तुति करने के बजाय लोगों की प्रशंसा व स्वीकृति पाना मेरे लिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया। वास्तव में यहोवा के साथ मेरा नज़दीकी रिश्ता था ही नहीं।”
एन्थोनी की तरह, कुछ लोगों ने समर्पण शायद यहोवा को प्रसन्न करने के लिए नहीं बल्कि लोगों को प्रसन्न करने की तमन्ना से किया होगा। फिर भी, परमेश्वर उम्मीद करता है कि ऐसे जन उसकी सेवा करने के अपने वादे को पूरा करें। (सभोपदेशक ५:४ से तुलना कीजिए।) लेकिन, परमेश्वर से व्यक्तिगत लगाव के बिना, उनके लिए ऐसा करना अकसर मुश्किल होता है। एन्थोनी आगे कहता है: “अपने बपतिस्मे के समय मैं बेहद खुश था, लेकिन वह खुशी ज़्यादा दिन टिकी नहीं। बपतिस्मा लेने के बाद साल भर भी नहीं हुआ था कि मैं गंभीर पाप में पड़ गया और मुझे कलीसिया के प्राचीनों ने ताड़ना दी। मैंने बार-बार वही गलती की जिसकी वज़ह से मुझे कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया गया। यहोवा को समर्पण करने के छः साल बाद मुझे हत्या करने के इल्ज़ाम में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।”
यहोवा के साथ घनिष्ठ रिश्ता विकसित करना
चाहे आपकी स्थिति जैसी भी हो, सभी मसीही बाइबल के इस निमंत्रण को स्वीकार कर सकते हैं: “परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब ४:८) इसमें कोई शक नहीं कि जब आपने शुरूआत में बाइबल का अध्ययन किया था, तब आप कुछ हद तक परमेश्वर के निकट आ गए थे। आपने सीखा कि परमेश्वर वह व्यक्तित्वहीन मूर्ति नहीं है जिसकी उपासना मसीहीजगत में की जाती है, लेकिन वह एक व्यक्ति है जिसका नाम है यहोवा। आपने यह भी सीखा कि उसके गुण अच्छे हैं। यह भी सीखा कि वह ऐसा “ईश्वर [है जो] दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय” है।—निर्गमन ३४:६.
मगर परमेश्वर की सेवा करने के अपने समर्पण को पूरा करने के लिए, आपको उसके और भी निकट जाना चाहिए! वो कैसे? भजनहार ने प्रार्थना की: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे।” (भजन २५:४) बाइबल व संस्था के प्रकाशनों का व्यक्तिगत अध्ययन करने से आपको यहोवा के बारे में और भी बेहतर तरीके से जानने में मदद मिलेगी। नियमित रूप से दिल से की गयी प्रार्थनाएँ भी महत्त्वपूर्ण है। भजनहार हमसे आग्रह करता है, “उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो।” (भजन ६२:८) जब आपको अपनी प्रार्थनाओं के जवाब मिलते हैं, तब आप भाँप लेंगे कि परमेश्वर को आपमें निजी दिलचस्पी है। इसके आप उसके और करीब महसूस करेंगे।
जब परीक्षाएँ व समस्याएँ होती हैं, तब परमेश्वर के करीब आने के लिए एक और मौका मिलता है। आप शायद बीमारी, स्कूल या नौकरी पर दबाव, या आर्थिक तंगी जैसी विश्वास की चुनौतियों व परीक्षाओं का सामना करें। ऐसा भी हो सकता है कि सेवकाई में हिस्सा लेने, मिटिंगों में हाज़िर होने, या अपने बच्चों के साथ बाइबल का अध्ययन करने जैसे साधारण रूटीन भी आपके लिए कठिन हों। ऐसी समस्याओं का मुकाबला अकेले मत कीजिए! परमेश्वर से मदद के लिए बिनती कीजिए, और उसके मार्गदर्शन व निर्देशन माँगिए। (नीतिवचन ३:५, ६) उसकी पवित्र आत्मा के लिए बिनती कीजिए! (लूका ११:१३) जब आप परमेश्वर की प्रेमभरी मदद का अनुभव करेंगे, तब आप उसके और भी करीब खिंचे चले जाएँगे। जैसे भजनहार दाऊद ने कहा, “परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है।”—भजन ३४:८.
एन्थोनी के बारे में क्या? वह कहता है, “मैं उस समय के बारे में सोचने लगा जब मेरे पास कई आध्यात्मिक लक्ष्य थे और वे सब-के-सब यहोवा की इच्छा पूरी करने के संबंध में थे। उनकी याद से दिल में टीस पहुँचती थी। लेकिन इन सब पीड़ाओं व निराशाओं के बावजूद, मुझे यहोवा का प्रेम याद रहा। फिर से यहोवा से प्रार्थना कर पाने में मुझे कुछ समय लगा, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और अंततः मैंने उसके सामने अपना दिल खोल दिया और उससे माफी की भीख माँगी। मैंने बाइबल पढ़नी भी शुरू कर दी और मुझे यह जानकर ताज्जुब हुआ कि मैं कितनी सारी बातें भूल चुका था और वास्तव में मुझे यहोवा के बारे में ज़्यादा कुछ मालूम भी नहीं था।” हालाँकि एन्थोनी ने जो अपराध किया था उसकी सज़ा पूरी होने में अब भी काफी समय है, उसे वहाँ के साक्षियों से मदद मिलती है और वह आध्यात्मिक तौर पर चंगा हो रहा है। कदरदान दिल से एन्थोनी कहता है: “यहोवा व उसके संगठन की बदौलत, मैं अपना पुराना व्यक्तित्व निकाल सका हूँ और मैं हर दिन नए व्यक्तित्व को धारण करने की कोशिश करता हूँ। अब यहोवा के साथ मेरा रिश्ता ही मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है।”
अपनी सेवकाई में आध्यात्मिक प्रगति
यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों को ‘राज्य के सुसमाचार’ के प्रचारक होने का आदेश दिया। (मत्ती २४:१४) आप शायद हाल ही में सुसमाचार के प्रकाशक बने होंगे। इसलिए सेवकाई में आपका ज़्यादा अनुभव नहीं होगा। तो फिर, “अपनी सेवा को पूरा” करने के लिए आप कैसे प्रगति कर सकते हैं?—२ तीमुथियुस ४:५.
एक तरीका है साकारात्मक नज़रिया विकसित करना। प्रचार कार्य को “ख़ज़ाना,” अर्थात् एक विशेषाधिकार समझना सीखिए। (२ कुरिन्थियों ४:७, हिन्दुस्तानी बाइबल) इसके ज़रिए हम यहोवा के प्रति अपना प्रेम, वफादारी व खराई दिखाते हैं। इसके ज़रिए हम अपने पड़ोसियों के प्रति अपनी परवाह भी दिखाते हैं। इस संबंध में यदि हम अपने आपको निःस्वार्थ रूप से पूरी तरह लगा देते हैं तो इससे हमें वास्तविक खुशी मिल सकती है।—प्रेरितों २०:३५.
प्रचार कार्य के बारे में खुद यीशु का नज़रिया सकारात्मक था। दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ बताना उसके लिए मानो “भोजन” था। (यूहन्ना ४:३४) इसलिए, दूसरों की मदद करने के लिए उसे जो प्रेरित करता था, उसका सार हम उसके शब्दों में दे सकते हैं, “मैं चाहता हूं।” (मत्ती ८:३) यीशु के दिल में लोगों के लिए करुणा थी, खासकर ऐसे लोगों के लिए जो शैतान की संसार की वज़ह से “ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती ९:३५, ३६) क्या आप भी इसी तरह ऐसे लोगों की मदद करना ‘चाहते हैं’ जो आध्यात्मिक रूप से अंधकार में हैं और जिन्हें परमेश्वर के वचन से रोशनी पाने की ज़रूरत है? तब आप यीशु के इस आदेश के अनुसार कार्य करने के लिए विवश महसूस करेंगे: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” (मत्ती २८:१९) वाकई, अपनी सेहत व स्थिति के अनुसार इस कार्य में जितना ज़्यादा हो सके उतना हिस्सा लेने के लिए आप प्रेरित होंगे।
प्रगति करने का एक और तरीका है सेवकाई में नियमित रूप से हिस्सा लेना और यदि संभव हो तो हर हफ्ते। ऐसा करने से वह संकोच व डर कम हो जाता है जो प्रचार में कभी-कभार निकलने की वज़ह से होता है। क्षेत्र सेवा में नियमित रूप से हिस्सा लेने से आपको दूसरे तरीकों से भी फायदा होगा। इससे सच्चाई के लिए आपकी कदरदानी बढ़ेगी, यहोवा व पड़ोसी के लिए आपका प्रेम बढ़ेगा, और राज्य की आशा की ओर अपना ध्यान लगाए रखने में मदद मिलेगी।
लेकिन, तब क्या यदि फिलहाल अपनी स्थिति की वज़ह से आप प्रचार कार्य में ज़्यादा हिस्सा नहीं ले पाते हैं? यदि समंजन करना बिलकुल भी संभव नहीं, तो इस बात की तसल्ली रखिए कि जितना भी आप कर सकते हैं, उससे परमेश्वर बेहद खुश है, बशर्ते कि आप तन-मन से उसकी सेवा करते हैं। (मत्ती १३:२३) शायद आप दूसरे तरीकों से प्रगति कर पाएँ, जैसे कि प्रचार की अपनी कुशलताओं को बेहतर करना। कलीसिया में, इस संबंध में थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल व सर्विस मीटिंग अच्छा प्रशिक्षण देती है। ज़ाहिर है कि सेवकाई में हम जितना ज़्यादा कुशल होते हैं, उतना ही ज़्यादा हमें इससे आनंद और फल मिलता है।
तो फिर यह स्पष्ट है कि जिस दिन बपतिस्मा लिया जाता है उस दिन से आध्यात्मिक प्रगति करना बंद नहीं करनी चाहिए। प्रेरित पौलुस ने स्वर्ग में अमर जीवन पाने की अपनी आशा के बारे में लिखा: “हे भाइयो, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ। निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है। सो हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा।”—फिलिप्पियों ३:१३-१५.
जी हाँ, सभी मसीहियों को ‘आगे की ओर बढ़ना’ है—जीवन की मंज़िल को पाने के लिए मानो अपनी पूरी कोशिश करनी है—चाहे उनकी आशा स्वर्ग में अमर जीवन की हो या पृथ्वी पर परादीस में अनंत जीवन! आपका बपतिस्मा लेना एक बढ़िया शुरूआत थी, लेकिन यह तो बस एक शुरूआत ही है। आध्यात्मिक प्रगति करने की कोशिश करते रहिए। मीटिंगों व व्यक्तिगत अध्ययन के ज़रिए, ‘समझ में सियाने बनिए।’ (१ कुरिन्थियों १४:२०) सच्चाई की ‘चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई को भली भांति समझने की शक्ति पाने’ की कोशिश कीजिए। (इफिसियों ३:१८) आप जो भी प्रगति करेंगे उससे आपको अभी आनंद व खुशी बनाए रखने में मदद मिलेगा। बस इतना ही नहीं, इससे आप परमेश्वर की नयी दुनिया में प्रवेश भी कर पाएँगे और वहाँ स्वर्गीय राज्य के शासन की मदद से आप हमेशा-हमेशा के लिए प्रगति कर पाएँगे!
[पेज 29 पर तसवीर]
व्यक्तिगत अध्ययन के लिए समय निकालने में आत्म-अनुशासन की ज़रूरत है
[पेज 31 पर तसवीर]
सेवकाई में आनंद पाने के लिए सकारात्मक नज़रिया हमारी मदद कर सकती है