क्या आपका विश्वास इब्राहीम के विश्वास जैसा है?
“मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”—लूका १८:८.
१. आज की इस दुनिया में अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखना आसान क्यों नहीं है?
आज की इस दुनिया में अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखना इतना आसान नहीं है। यह दुनिया मसीहियों पर ज़बरदस्त दबाव डालती है, ताकि वे परमेश्वर के काम करना छोड़ दें। (लूका २१:३४; १ यूहन्ना २:१५, १६) कई मसीहियों को लड़ाइयों, प्राकृतिक विपत्तियों, बीमारियों या भूख-प्यास के वक्त सिर्फ ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। (लूका २१:१०, ११) कई देशों में धर्म को ज़्यादा अहमियत नहीं दी जाती और जो कोई अपने धर्म के मुताबिक जीता है, उसे न सिर्फ बेवकूफ कहा जाता है, बल्कि धर्म के लिए पागल भी समझा जाता है। इसके अलावा, अनेक मसीहियों पर उनके विश्वास की वज़ह से अत्याचार किए जा रहे हैं। (मत्ती २४:९) करीब २,००० साल पहले यीशु ने जो सवाल उठाया था, वह आज के लिए बिलकुल सही है: “मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”—लूका १८:८.
२. (क) एक मसीही के लिए पक्का विश्वास क्यों बहुत ही ज़रूरी है? (ख) विश्वास के बारे में किसकी मिसाल पर गौर करना हमारे लिए अच्छा होगा?
२ असल में, अपने जीवन को सफल बनाने और आगे चलकर हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए पक्का विश्वास बहुत ही ज़रूरी है। यही बात यहोवा ने हबक्कूक से कही थी, जिसे प्रेरित पौलुस ने दोहराया: “मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, और यदि वह पीछे हट जाए तो मेरा मन उस से प्रसन्न न होगा। . . . विश्वास बिना [परमेश्वर को] प्रसन्न करना अनहोना है।” (इब्रानियों १०:३८-११:६; हबक्कूक २:४) इसी तरह, पौलुस ने तीमुथियुस से कहा: “विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिस के लिये तू बुलाया गया।” (१ तीमुथियुस ६:१२) तो फिर, अपने विश्वास को अटूट कैसे रखा जा सकता है? इस सवाल के जवाब के लिए अच्छा होगा अगर हम उस इंसान की मिसाल को देखें जो आज से करीब ४,००० साल पहले ज़िंदा था। लेकिन आज भी इस्लाम, यहूदी और ईसाई जैसे तीन बड़े-बड़े धर्म उसके विश्वास की बहुत इज़्ज़त करते हैं। और वह इंसान था इब्राहीम। उसका विश्वास इतना बेमिसाल क्यों था? क्या हम भी उसके जैसा बन सकते हैं?
परमेश्वर की हिदायतों को मानना
३, ४. तेरह ऊर को छोड़ अपने परिवार के साथ हारान में क्यों रहने लगा?
३ इब्राहीम (जिसे पहले अब्राम कहा जाता था) का ज़िक्र बाइबल की पहली किताब में ही होता है। उत्पत्ति ११:२६ में लिखा है: “तेरह . . . के द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए।” तेरह अपने परिवार के साथ कसदियों के ऊर नगर में रहता था। ऊर दक्षिणी मिसुपुतामिया का एक दौलतमंद शहर था। मगर यह परिवार वहाँ नहीं रहा। “तेरह अपना पुत्र अब्राम, और अपना पोता लूत जो हारान का पुत्र था, और अपनी बहू सारै [सारा], जो उसके पुत्र अब्राम की पत्नी थी इन सभों को लेकर कस्दियों के ऊर नगर से निकल कनान देश जाने को चला; पर हारान नाम देश में पहुंचकर वहीं रहने लगा।” (उत्पत्ति ११:३१) इब्राहीम का भाई नाहोर भी अपने परिवार को लेकर हारान देश में आ गया। (उत्पत्ति २४:१०, १५; २८:१, २; २९:४) मगर तेरह, ऊर जैसे दौलतमंद शहर को छोड़ इतनी दूर हारान में आकर क्यों रहने लगा?
४ इब्राहीम के समय से करीब २,००० साल बाद, स्तिफनुस नाम के एक वफादार आदमी ने इसका जवाब दिया जब उसने यहूदियों की महासभा को बताया कि तेरह के परिवार ने अचानक ही यह कदम क्यों उठाया। उसने कहा: “हमारा पिता इब्राहीम हारान में बसने से पहिले जब मिसुपुतामिया में था; तो तेजोमय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया। और उस से कहा कि तू अपने देश और अपने कुटुम्ब से निकलकर उस देश में चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊंगा। तब वह कसदियों के देश से निकलकर हारान में जा बसा।” (प्रेरितों ७:२-४) इब्राहीम के लिए यहोवा की जो इच्छा थी, तेरह उसे पूरा करना चाहता था, और इसलिए वह अपने परिवार को लेकर हारान में आ गया।
५. अपने पिता की मृत्यु के बाद इब्राहीम कहाँ गया? और क्यों?
५ तेरह अपने परिवार के साथ इस नए नगर हारान में ज़िंदगी बिताने लगा। इसीलिए कई साल बाद इब्राहीम ने ऊर को नहीं, मगर हारान को ‘मेरा देश’ कहा। (उत्पत्ति २४:४) मगर, इब्राहीम को हारान में ही नहीं बसे रहना था। स्तिफनुस ने महासभा से कहा कि इब्राहीम के “पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसको वहां से इस देश में लाकर बसाया जिस में अब तुम बसते हो।” (प्रेरितों ७:४) यहोवा की हिदायत को मानते हुए, इब्राहीम फरात नदी पार करके कनान देश में आ गया, और लूत भी उसके साथ था।a
६. यहोवा ने इब्राहीम से कौन-सा वादा किया?
६ यहोवा ने इब्राहीम को कनान देश जाने के लिए क्यों कहा? क्योंकि इस वफादार इंसान के लिए परमेश्वर का एक मकसद था। यहोवा ने इब्राहीम से कहा था: “अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा, और तू आशीष का मूल होगा। और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे।” (उत्पत्ति १२:१-३) इब्राहीम से एक बहुत बड़ी जाति पैदा होनेवाली थी, जिसकी रक्षा खुद यहोवा करता और जिसके लोग कनान देश के अधिकारी होते। कितना बढ़िया वादा! उस देश को विरासत में पाने के लिए इब्राहीम को अपने जीने के तरीके को पूरी तरह बदलने की ज़रूरत थी।
७. यहोवा की प्रतिज्ञा का वारिस होने के लिए इब्राहीम को कौन-से बदलाव करने के लिए तैयार रहना था?
७ जब इब्राहीम ने ऊर छोड़ा, तब उसने धन-दौलत से भरपूर नगर को छोड़ा और शायद अपने चाचा-ताउओं के परिवार को भी। इब्राहीम के ज़माने में इन दोनों से बहुत बड़ी सुरक्षा मिलती थी। और हारान छोड़ने का मतलब था कि अपने पिता के घराने और अपने भाई नाहोर के परिवार से अलग हो जाना। इसके बाद वह एक अनजान देश में जाने के लिए निकल पड़ा। कनान देश जाकर इब्राहीम सुरक्षा के लिए किसी नगर की चारदीवारी में नहीं बस गया। क्यों नहीं? क्योंकि कनान देश में इब्राहीम के आने के कुछ ही समय बाद, यहोवा ने उससे कहा: “इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा।” (उत्पत्ति १३:१७) इब्राहीम उस वक्त ७५ साल का था और उसकी पत्नी, सारा ६५ साल की थी, इसके बावजूद भी उसने ये आदेश माने। “विश्वास ही से उस ने प्रतिज्ञा किए हुए देश में जैसे पराए देश में परदेशी रहकर . . . तम्बुओं में वास किया।”—इब्रानियों ११:९; उत्पत्ति १२:४.
आज इब्राहीम जैसा विश्वास दिखाना
८. इब्राहीम और पुराने ज़माने के दूसरे साक्षियों की तरह हमें भी क्या करना चाहिए?
८ इब्रानियों ११ अध्याय में ‘गवाहों के बड़े बादल’ का ज़िक्र किया गया है। इनमें इब्राहीम और उसके परिवार का भी नाम गिना जाता है, जो मसीहियों से काफी समय पहले ज़िंदा थे। परमेश्वर के इन सेवकों के विश्वास का उदाहरण देते हुए, पौलुस मसीहियों से कहता है कि “हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप [विश्वास की कमी] को दूर” करो। (इब्रानियों १२:१) जी हाँ, विश्वास की कमी एक ‘उलझानेवाला पाप’ है जिसमें हम आसानी से गिर सकते हैं। लेकिन इब्राहीम और पुराने ज़माने के दूसरे लोगों की तरह ही, पौलुस के और हमारे समय के सच्चे मसीहियों ने भी पक्का विश्वास रखा है। इसलिए पौलुस अपने और अपने मसीही साथियों के बारे में कहता है: “हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएं पर विश्वास करनेवाले हैं, कि प्राणों को बचाएं।”—इब्रानियों १०:३९.
९, १०. इस बात का क्या सबूत है कि आज कई लोगों का विश्वास इब्राहीम जैसा है?
९ माना कि इब्राहीम के ज़माने से आज दुनिया बहुत बदल गयी है। मगर आज भी हम उसी ‘इब्राहीम के परमेश्वर’ की सेवा कर रहे हैं, और वह कभी नहीं बदलता। (प्रेरितों ३:१३; मलाकी ३:६) जैसे इब्राहीम के ज़माने में सिर्फ यहोवा की उपासना की जानी थी, आज भी सिर्फ उसी की उपासना की जानी चाहिए। (प्रकाशितवाक्य ४:११) आज बहुत-से लोग खुद को पूरी तरह यहोवा की सेवा में लगा देते हैं और इब्राहीम की तरह, यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी ज़िंदगी में बड़ी-से-बड़ी तबदीली करने से पीछे नहीं हटते। पिछले साल, ऐसे ही ३,१६,०९२ लोगों ने सबके सामने “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेकर अपने समर्पण का सबूत दिया।—मत्ती २८:१९.
१० इन नये मसीहियों में से ज़्यादातर को समर्पण के अनुसार जीने के लिए किसी दूर देश में जाना नहीं पड़ा। मगर, आध्यात्मिक अर्थ में कहा जा सकता है कि इन लोगों ने बहुत लंबा सफर तय किया है। मॉरिशस में रहनेवाली एलसी की मिसाल पर गौर कीजिए। वह एक जादूगरनी थी। सब उससे डरते थे। उसकी बेटी एक स्पेशल पायनियर के साथ बाइबल स्टडी करने लगी और इससे एलसी के लिए ‘अंधकार से ज्योति की ओर फिरने’ का रास्ता खुल गया। (प्रेरितों २६:१८) अपनी बेटी को इतनी दिलचस्पी लेते देख, एलसी बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक से स्टडी करने के लिए राज़ी हो गयी। हफ्ते में तीन बार उसके साथ स्टडी की जाती थी क्योंकि उसे ज़रूरत थी कि कोई लगातार उसकी हिम्मत बढ़ाता रहे। भूत-विद्या के कामों से उसे रत्ती भर भी खुशी नहीं मिली थी और उसकी अपनी बहुत-सी परेशानियाँ थीं। आखिरकार वह यह लंबा सफर तय करने में कामयाब हुई, यानी भूत-विद्या छोड़कर सच्ची उपासना करने लगी। जब लोग उसके पास अपनी परेशानियाँ लेकर आते थे तब वह उन्हें बताती थी कि सिर्फ यहोवा ही उन्हें किसी भी बला से बचाने की ताकत रखता है। एलसी अब बपतिस्मा लेकर एक साक्षी बन गयी है और उसके परिवार और जान-पहचानवालों में से १४ लोग सच्चाई में आ गए हैं।
११. यहोवा को समर्पण करनेवाले लोगों ने कौन-से बदलाव किए हैं?
११ पिछले साल जिन लोगों ने परमेश्वर की सेवा करने के लिए खुद को समर्पित किया था, उनमें से ज़्यादातर को शायद इतने बड़े बदलाव न करने पड़े हों। मगर इन सबमें एक बदलाव ज़रूर हुआ। ये सब आध्यात्मिक रूप से मरे हुए थे लेकिन अब जी उठे हैं। (इफिसियों २:१) हालाँकि वे अभी-भी इसी संसार में जी रहे हैं, मगर वे अब इस संसार के नहीं हैं। (यूहन्ना १७:१५, १६) अभिषिक्त मसीहियों की तरह, जिनका ‘स्वदेश स्वर्ग में है,’ वे भी इस संसार में “परदेशी और यात्री” हैं। (फिलिप्पियों ३:२०; १ पतरस २:११) उन्होंने अपने जीने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है और अब परमेश्वर के हिसाब से जीते हैं। इसकी सबसे बड़ी वज़ह यह है कि वे परमेश्वर से और अपने पड़ोसियों से बेहद प्यार करते हैं। (मत्ती २२:३७-३९) वे अपने स्वार्थ के लिए धन-दौलत और ऐशो-आराम के पीछे नहीं भागते, ना ही वे इस संसार में कामयाबी हासिल करना चाहते। इसके बजाय, वे वादा किए गए उस “नए आकाश और नई पृथ्वी” पर अपनी नज़र लगाए रहते हैं “जिन में धार्मिकता बास करेगी।”—२ पतरस ३:१३; २ कुरिन्थियों ४:१८.
१२. पिछले साल किए गए कौन-से काम इसका सबूत देते हैं कि यीशु ने अपनी उपस्थिति के दौरान ‘इस पृथ्वी पर विश्वास पाया’ है?
१२ कनान देश में इब्राहीम अपने परिवार के साथ अकेला था और उनकी रक्षा करनेवाला और उन्हें सहारा देनेवाला सिर्फ यहोवा था। लेकिन, हाल ही में बपतिस्मा पानेवाले ये ३,१६,०९२ मसीही अकेले नहीं हैं। ठीक जैसे यहोवा ने अपनी आत्मा के ज़रिये इब्राहीम को सहारा दिया था और उसे सँभाला था, उसी तरह वह इन्हें भी सहारा देता और उनकी देखभाल करता है। (नीतिवचन १८:१०) लेकिन, इसके अलावा वह उन्हें सहारा देने के लिए उमंग और जोश से भरी एक अंतर्राष्ट्रीय “जाति” का भी इस्तेमाल करता है। इस जाति की गिनती आज कई राष्ट्रों की आबादी से कहीं ज़्यादा है। (यशायाह ६६:८) पिछले साल, इस जाति के ५८,८८,६५० लोगों ने अपने पड़ोसियों को परमेश्वर के वादों के बारे में बताकर यह सबूत दिया है कि उनका विश्वास मुर्दा नहीं है। (मरकुस १३:१०) ज़रा अंदाज़ा लगाइए, उन्होंने इस काम में १,१८,६६,६६,७०८ घंटे बिताए! बस इसलिए कि सीखने की इच्छा रखनेवाले लोगों को ढूँढ सकें। नतीजा यह हुआ है कि विश्वासी बनने की इच्छा रखनेवाले ४३,०२,८५२ लोगों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया गया है। इस “जाति” के जोश का एक और सबूत यह है कि इसके ६,९८,७८१ लोगों ने पायनियर सेवा की, चाहे पूरे-समय के लिए हो या एकाध महीने के लिए। (यहोवा के साक्षियों के पिछले साल के काम की अधिक जानकारी पेज १२ से १५ में दी गई है।) ये सारे जीते-जागते सबूत उस सवाल का ज़ोरदार और ज़बरदस्त जवाब हैं जो यीशु ने पूछा था: “मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
परीक्षाओं के बावजूद वफादार
१३, १४. बताइए कि कनान में इब्राहीम और उसके परिवार को किन-किन मुसीबतों से गुज़रना पड़ा।
१३ कनान देश में इब्राहीम और उसका परिवार कई मुश्किलों से गुज़रा। एक बार उस देश में इतना भारी अकाल पड़ा कि वह मिस्र को जाने के लिए मजबूर हो गया। इसके अलावा, मिस्र के फिरौन ने और गरार (गाज़ा के पास) के राजा ने इब्राहीम की पत्नी, सारा को अपना बनाने की कोशिश की। (उत्पत्ति १२:१०-२०; २०:१-१८) इब्राहीम और लूत की भेड़-बकरियों के चरवाहों के बीच भी झगड़े हुए और इसकी वज़ह से दोनों घराने एक दूसरे से अलग हो गए। इब्राहीम अपने बारे में ही नहीं सोचता था, इसलिए उसने पहले लूत को अपने लिए जगह चुनने का मौका दिया। लूत ने अपने लिए यरदन का इलाका चुना और वहाँ जाकर रहने लगा। वह जगह अदन के बगीचे की तरह उपजाऊ और सुंदर थी।—उत्पत्ति १३:५-१३.
१४ इसके बाद, लूत कुछ राजाओं की आपसी लड़ाई में फँस गया। एक तरफ दूर देश एलाम का राजा और उसके साथी थे और दूसरी तरफ सिद्दीम की तराई के पाँच नगरों के राजा थे। एलाम के राजा और उसके साथियों ने मिलकर इन पाँचों राजाओं को हरा दिया और बहुत-कुछ लूट कर ले गए। वे लूत को भी उसकी सारी धन-दौलत के साथ ले गए। जब इब्राहीम को यह खबर मिली तो उसने साहस के साथ इन विदेशी राजाओं का पीछा किया और लूत के साथ उसके घराने को बचा लिया, साथ ही उसने उस इलाके के पाँचों राजाओं का लुटा हुआ धन भी हासिल कर लिया। (उत्पत्ति १४:१-१६) मगर, कनान देश में लूत के लिए यह आखिरी मुसीबत नहीं थी। वह किसी वज़ह से सदोम नगर के अंदर रहने लगा हालाँकि वह शहर घोर लैंगिक-बदचलनी के लिए बदनाम था।b (२ पतरस २:६-८) जब लूत को दो स्वर्गदूतों ने चेतावनी दी कि उस नगर का नाश होगा, तो वह अपनी पत्नी और बेटियों को लेकर वहाँ से भाग निकला। मगर, लूत की पत्नी ने स्वर्गदूतों के ठीक-ठीक आदेश को नहीं माना और इसकी वज़ह से वह नमक के ढेर में दफन हो गई। लूत की ऐसी दुर्दशा हुई कि उसे अपनी दो बेटियों के साथ सोअर की एक गुफा में पनाह लेनी पड़ी। (उत्पत्ति १९:१-३०) इन घटनाओं से इब्राहीम को बहुत ही दुःख हुआ होगा, खासकर इसलिए क्योंकि लूत कनान में उसके परिवार का एक हिस्सा बनकर आया था।
१५. इब्राहीम ने एक अनजान देश में यहाँ-वहाँ तंबुओं में रहते वक्त जिन मुसीबतों का सामना किया, उन सबके बावजूद उसने कौन-से निराशाजनक विचारों को मन में नहीं आने दिया?
१५ क्या इब्राहीम ने कभी यह सोचा कि अगर मैं और लूत ऊर जैसे सुरक्षित नगर में अपने चाचा-ताउओं के साथ या हारान में अपने भाई नाहोर के साथ ही रहते तो ज़्यादा अच्छा होता? क्या कभी उसने ऐसा सोचा कि काश मैं यहाँ-वहाँ तंबुओं में रहने के बजाय किसी नगर की चारदीवारी के अंदर सुख-चैन से बस गया होता? क्या उसने कभी यहोवा से सवाल किया कि सब कुछ छोड़कर एक अनजान देश में इस तरह यहाँ-वहाँ भटकने में कौन-सी अक्लमंदी है? इब्राहीम और उसके परिवार के बारे में बात करते हुए, प्रेरित पौलुस ने कहा: “यदि वे उस देश के विषय सोचते जिस से वे निकले थे तो उन्हें लौट जाने का अवसर होता।” (इब्रानियों ११:१५) मगर, वे वापस नहीं लौटे। तकलीफों के बावजूद वे वहीं टिके रहे जहाँ यहोवा उन्हें रखना चाहता था।
आज धीरज धरना
१६, १७. (क) आज बहुत-से मसीही किन मुश्किल हालात से गुज़रते हैं? (ख) मसीही कैसा सही नज़रिया रखते हैं? और क्यों?
१६ आज के मसीही भी ऐसे ही हालात से गुज़रते हैं और धीरज धरते हैं। हालाँकि, सच्चे मसीहियों को परमेश्वर की सेवा करने से बहुत खुशी मिलती है, फिर भी इन अंतिम दिनों में जीना उनके लिए इतना आसान नहीं है। हालाँकि वे आध्यात्मिक परादीस में रहते हैं, फिर भी दूसरों की तरह उन पर भी महँगाई या पैसों की तंगी का बुरा असर होता है। (यशायाह ११:६-९) देशों की आपसी लड़ाइयों की वज़ह से इनमें से कई बेकसूर लोगों पर मुसीबतें आयी हैं। कुछ मसीहियों ने रोज़ी-रोटी कमाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है, फिर भी हालात की वज़ह से उनकी ऐसी दुर्दशा हो गयी है कि वे दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं। इसके अलावा, वे ऐसे माइनारिटी वर्ग हैं जिसे लोग पसंद नहीं करते, और इसलिए भी उन पर मुश्किलें आती हैं। वे ऐसे कई देशों में सुसमाचार का प्रचार करते हैं जहाँ लोग उनकी बिलकुल भी नहीं सुनते हैं और ना ही उनकी कदर करते हैं। कुछ और देशों में ‘कानून की आड़ में उत्पात मचानेवाले’ लोग उनके खिलाफ गंदी साज़िश करते हैं और इन ‘निर्दोष जनों को अपराधी कहते हैं।’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) (भजन ९४:२०, २१) ऐसे कुछ देशों में जहाँ मसीहियों को कोई खतरा नहीं है और जहाँ कुछ लोग उनके ऊँचे उसूलों की तारीफ करते हैं, वहाँ भी मसीही इस बात का खयाल रखते हैं कि चाहे वे स्कूल में हों या नौकरी कर रहे हों, वे हमेशा अपने साथियों से अलग नज़र आएँ। ये मसीही इब्राहीम की तरह हैं। जबकि इब्राहीम के आस-पास के ज्यादातर लोग नगरों में रहते थे, मगर वह उनके बीच तंबुओं में रहता था, और उनसे अलग नज़र आता था। जी हाँ, इस संसार के बीच में रहते हुए भी इस “संसार के नहीं” होना बहुत मुश्किल है।—यूहन्ना १७:१४.
१७ तो क्या हमें इस बात का दुःख है कि हमने परमेश्वर को अपना समर्पण किया है? क्या हमें अफसोस है कि हम भी बाकी लोगों की तरह इस संसार का भाग क्यों नहीं बने रहे? क्या हम पछताते हैं कि हमने यहोवा की सेवा की खातिर अपना सब कुछ छोड़ दिया है? नहीं, बिलकुल नहीं! जो हम छोड़ चुके हैं उसके लिए नहीं तरसते। इसके बजाय, हम यह जानते हैं कि चाहे हमने कितने ही बड़े-बड़े त्याग क्यों न किए हों, हमारी नज़र में ये त्याग उन आशीषों के सामने कुछ भी नहीं हैं जो हमें आज मिल रही हैं और जो भविष्य में मिलेंगी। (लूका ९:६२; फिलिप्पियों ३:८) और दूसरी बात, क्या आज दुनिया के लोग खुश हैं? सच तो यह है कि बहुत-से लोग ज़िंदगी के उन्हीं सवालों के जवाब ढूँढ रहे हैं जिन्हें हम पा चुके हैं। वे लोग बाइबल में लिखी परमेश्वर की सलाह को नहीं मानते, जैसे हम मानते हैं, और इसीलिए उन पर मुसीबतें आती हैं। (भजन ११९:१०५) कई लोग ज़िंदगी-भर ऐसी सच्ची दोस्ती और संगति के लिए तरसते रहते हैं जिनका मज़ा हम अपने मसीही भाई-बहनों के बीच लेते हैं।—भजन १३३:१; कुलुस्सियों ३:१४.
१८. जब मसीही इब्राहीम जैसा साहस दिखाते हैं तब इसका नतीजा क्या होता है?
१८ हाँ, हमें कभी-कभी इब्राहीम की तरह ही साहस दिखाना पड़ेगा, जैसे उसने लूत को पकड़कर ले जानेवालों का पीछा करने में साहस दिखाया था। और जब हम ऐसा साहस दिखाते हैं तो यहोवा हमें कामयाबी देता है। मिसाल के तौर पर, उत्तरी आयरलैंड में अलग-अलग पंथों के बीच खून-खराबा होता रहता है और उनमें नफरत की आग भड़कती रहती है। ऐसे में वहाँ के वफादार मसीहियों को बड़े साहस की ज़रूरत होती है कि किसी भी पंथ का पक्ष न लें। इस तरह, वे वैसा ही करते हैं जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा था: “शक्तिशाली और साहसी बन! भयभीत मत हो! निराश मत हो! जहां-जहां तू जाएगा, वहां-वहां मैं, तेरा प्रभु परमेश्वर, तेरे साथ रहूंगा।” (यहोशू १:९, न्यू हिंदी बाइबल; भजन २७:१४) कई सालों से उनके साहस को देखकर लोगों के दिल में उनके लिए इज़्ज़त पैदा हो गयी है और वे उस देश के सभी पंथों में बिना डरे प्रचार कर पाते हैं।
१९. मसीही क्या करना कभी नहीं छोड़ेंगे, और वे यहोवा की हिदायतों के मुताबिक चलकर पूरे भरोसे के साथ क्या आस लगाए रहेंगे?
१९ हमें हमेशा यकीन रखना चाहिए कि अगर हम हर हालत में यहोवा की हिदायतों को मानें, तो इससे यहोवा की महिमा होगी, और हमें भी हमेशा-हमेशा के लिए फायदा होगा। चाहे जो भी दिक्कतें आएँ या चाहें जो भी कुरबानियाँ करनी पड़ें, हम यहोवा की सेवा करना कभी नहीं छोड़ेंगे। हम अपने मसीही भाई-बहनों के साथ संगति करना कभी नहीं छोड़ेंगे, और पूरे भरोसे के साथ उस अनंत जीवन की आस लगाए रहेंगे जिसका वादा परमेश्वर ने किया है।
[फुटनोट]
a लूत के पिता यानी इब्राहीम के भाई के मरने के बाद, इब्राहीम ने शायद अपने भतीजे लूत को गोद ले लिया था।—उत्पत्ति ११:२७, २८; १२:५.
b कुछ लोग कहते हैं कि लूत को चार राजाओं के साथ लूट लिया गया था, इसलिए वह नगर के अंदर रहने लगा। शायद उसने सोचा कि नगर की चारदीवारी में रहना ज़्यादा सुरक्षित होगा।
क्या आपको याद है?
◻ पक्का विश्वास क्यों बहुत ही ज़रूरी है?
◻ इब्राहीम ने कैसे दिखाया कि उसका विश्वास पक्का था?
◻ समर्पण करनेवाले लोग अपनी ज़िंदगी में कौन-से बदलाव करते हैं?
◻ हम किसी भी मुश्किल के बावजूद परमेश्वर की सेवा करने में क्यों खुश हैं?
[पेज 7 पर तसवीर]
इब्राहीम प्रतिज्ञा का वारिस होने के लिए अपने जीने के तरीके को पूरी तरह बदलने के लिए तैयार था
[पेज 9 पर तसवीर]
सबूत दिखाते हैं कि यीशु ने अपनी उपस्थिति के दौरान ‘इस पृथ्वी पर विश्वास पाया’ है