“अपने हृदय को दृढ़ करो”
“तुम्हें धीरज धरना अवश्य है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ।”—इब्रानियों १०:३६.
१, २. (क) पहली सदी में कई मसीहियों के साथ क्या हुआ? (ख) विश्वास आसानी से कमज़ोर क्यों पड़ सकता है?
सभी बाइबल लेखकों में से सिर्फ प्रेरित पौलुस ने ही सबसे ज़्यादा बार विश्वास का ज़िक्र किया है। और कई बार उसने ऐसे लोगों के बारे में बात की जिनका विश्वास या तो कमज़ोर पड़ गया था या मर गया था। मिसाल के तौर पर इनमें थे, हुमिनयुस और सिकन्दर जिनका “विश्वास रूपी जहाज डूब गया” था। (१ तीमुथियुस १:१९, २०) और देमास ने पौलुस को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वह ‘इस संसार के मोह में पड़’ गया था। (२ तीमुथियुस ४:१०, NHT) कुछ लोगों ने बाइबल के उसूलों के खिलाफ, गैर-ज़िम्मेदाराना काम किए और इस तरह “विश्वास से मुकर” गए थे। और कई लोग झूठे ज्ञान के बहकावे में आकर “विश्वास से भटक गए” थे।—१ तीमुथियुस ५:८; ६:२०, २१.
२ ये अभिषिक्त मसीही विश्वास की अपनी लड़ाई में इस तरह क्यों हार गए थे? विश्वास का मतलब है “आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण।” (इब्रानियों ११:१) हमें अनदेखी वस्तुओं पर यकीन करने के लिए विश्वास की ज़रूरत होती है। लेकिन जिन चीज़ों को हम देख सकते हैं, उन पर यकीन करने के लिए हमें विश्वास की ज़रूरत नहीं पड़ती। अनदेखे आध्यात्मिक धन के लिए मेहनत करने से ज़्यादा ज़मीन-जायदाद और पैसों के लिए मेहनत करना आसान लगता है। (मत्ती १९:२१, २२) “शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा” से जुड़ी बहुत-सी दिखनेवाली चीज़ें हमारे असिद्ध शरीर को लुभाने की ज़बरदस्त ताकत रखती हैं और हमारे विश्वास को कमज़ोर कर सकती हैं।—१ यूहन्ना २:१६.
३. एक मसीही को कैसा विश्वास रखने की ज़रूरत है?
३ इसके बावजूद पौलुस कहता है, “परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” मूसा ठीक ऐसा ही विश्वास रखता था। उसकी “आंखें फल पाने की ओर लगी थीं,” और “वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों ११:६, २४, २६, २७) एक मसीही को भी ठीक ऐसा ही विश्वास रखने की ज़रूरत है। और जैसे हमने पिछले लेख में देखा था, इब्राहीम ऐसे ही विश्वास की एक बेहतरीन मिसाल था।
विश्वास में इब्राहीम की मिसाल
४. इब्राहीम के विश्वास का उसकी ज़िंदगी पर क्या असर हुआ?
४ इब्राहीम जब ऊर देश में था, तब परमेश्वर ने उससे वादा किया कि वह एक वंश को जन्म देगा, जो सभी जाति के लोगों के लिए एक आशीष साबित होगा। (उत्पत्ति १२:१-३; प्रेरितों ७:२, ३) इसी वादे की बिनाह पर, इब्राहीम ने यहोवा की बात मानी और पहले हारान गया और वहाँ से कनान देश को गया। यहीं, यहोवा ने वादा किया कि वह इब्राहीम के वंश को कनान देश देगा। (उत्पत्ति १२:७; नहेमायाह ९:७, ८) लेकिन, यहोवा ने इब्राहीम से जो कुछ कहा था उसमें से ज़्यादातर बातें इब्राहीम की मौत के बाद पूरी होनेवाली थीं। मिसाल के तौर पर, इब्राहीम जीते-जी कनान देश के किसी भी हिस्से का मालिक नहीं बना—हाँ, उसने कब्रिस्तान के लिए मकपेला की गुफा ज़रूर खरीदी थी। (उत्पत्ति २३:१-२०) फिर भी, उसे यहोवा के वादे पर विश्वास था। इतना ही नहीं, उसका विश्वास आनेवाले “उस स्थिर नेववाले नगर” पर था “जिस का रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है।” (इब्रानियों ११:१०) यही विश्वास उसे ज़िंदगी भर सँभाले रहा।
५, ६. यहोवा के वादों पर इब्राहीम के विश्वास की परीक्षा कैसे हुई?
५ यह बात खासकर, परमेश्वर के इस वादे से देखी जा सकती है कि इब्राहीम का वंश एक बड़ी जाति बनेगा। ऐसा होने के लिए ज़रूरी था कि इब्राहीम का एक बेटा हो। और बेटे की आशीष पाने के लिए इब्राहीम को बरसों इंतज़ार करना पड़ा। हम नहीं जानते कि तब उसकी उम्र कितनी थी जब पहली बार परमेश्वर ने उससे यह वादा किया था। और जब वह लंबा सफर तय करके हारान को गया, तब तक भी यहोवा ने उसे संतान नहीं दी थी। (उत्पत्ति ११:३०) हारान में भी वह काफी समय तक रहा और ‘काफी धन इकट्ठा किया और प्राणी प्राप्त किए।’ वहाँ से जब वह कनान देश को गया उस वक्त उसकी उम्र ७५ साल थी और सारा की ६५ साल। तब भी उनका कोई बेटा नहीं था। (उत्पत्ति १२:४, ५) जब सारा की उम्र ७५ के आस-पास थी, तब उसने सोचा कि वह काफी बूढ़ी हो चुकी है और इब्राहीम के लिए बच्चा नहीं जन सकती। इसलिए, उस समय की परंपरा के अनुसार उसने अपनी दासी हाजिरा, इब्राहीम को दी और उसने इब्राहीम के लिए एक बेटे को जन्म दिया। मगर जिस बेटे का वादा किया गया था, यह वह नहीं था। बाद में हाजिरा को और उसके बेटे इश्माएल को वहाँ से निकाल दिया गया। लेकिन जब इब्राहीम ने उनकी खातिर परमेश्वर से बिनती की, तब यहोवा ने इश्माएल को भी आशीष देने का वादा किया।—उत्पत्ति १६:१-४, १०; १७:१५, १६, १८-२०; २१:८-२१.
६ परमेश्वर के अपने ठहराए हुए समय पर—वादा किए जाने के बरसों-बरसों बाद—१०० साल के इब्राहीम और ९० साल की सारा के एक बेटा हुआ, जिसका नाम इसहाक रखा गया। वे दोनों क्या ही खुश हुए होंगे! ये बूढ़े पति-पत्नी मानो फिर से ज़िंदा हुए थे क्योंकि उनके “मरे हुए” शरीर ने एक जान को जन्म दिया था। (रोमियों ४:१९-२१) बरसों तक सब्र करना पड़ा मगर जब यह वादा पूरा हुआ तो इस सब्र का फल मीठा निकला।
७. विश्वास और धीरज के बीच क्या रिश्ता है?
७ इब्राहीम की मिसाल से हम सीखते हैं कि हमारा विश्वास बस कुछ ही पल के लिए नहीं होना चाहिए। पौलुस ने विश्वास और धीरज के बीच का रिश्ता बताया और लिखा: “तुम्हें धीरज धरना अवश्य है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ। . . . हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएं पर विश्वास करनेवाले हैं, कि प्राणों को बचाएं।” (इब्रानियों १०:३६-३९) कई लोगों ने इस प्रतिज्ञा का फल पाने के लिए लंबे अरसे तक इंतज़ार किया है। और कुछ लोगों ने तो इस इंतज़ार में ज़िंदगी बिता दी है। उनके पक्के विश्वास ने उन्हें संभाला है। और इब्राहीम की तरह वे यहोवा के ठहराए हुए समय पर इनाम ज़रूर पाएँगे।—हबक्कूक २:३.
परमेश्वर की सुनना
८. आज हम किन माध्यमों से परमेश्वर का वचन सुन सकते हैं, और इससे हमारा विश्वास पक्का क्यों होगा?
८ इब्राहीम के पक्के विश्वास की चार वज़ह थीं। और ये हमारे विश्वास को भी मज़बूत बना सकती हैं। पहली बात, जब कभी यहोवा ने इब्राहीम से बात की तब उसने ध्यान लगाकर सुना और अपना यह “विश्वास” दिखाया कि ‘परमेश्वर है।’ इस तरह, वह यिर्मयाह के समय के यहूदियों की तरह नहीं था, जो यहोवा को मानते तो थे, मगर उसके वचनों पर विश्वास नहीं करते थे। (यिर्मयाह ४४:१५-१९) आज यहोवा अपने प्रेरित वचन, बाइबल के ज़रिए हमसे बात करता है। इस वचन के बारे में पतरस ने कहा कि “वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में [यानी, “तुम्हारे हृदयों में”] . . . प्रकाश देता रहता है।” (२ पतरस १:१९) जब हम ध्यान लगाकर बाइबल पढ़ते हैं, तब ‘विश्वास की बातों से, हमारा पालन-पोषण होता है।’ (१ तीमुथियुस ४:६; रोमियों १०:१७) इसके अलावा, इन अंतिम दिनों में “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमें ‘समय पर आध्यात्मिक भोजन’ दे रहा है, यानी बाइबल के उसूलों को लागू करने में और बाइबल की भविष्यवाणियों को समझने में हमारी मदद कर रहा है। (मत्ती २४:४५-४७) इन माध्यमों से यहोवा का वचन सुनना बेहद ज़रूरी है और इनके बिना पक्का विश्वास हासिल करना नामुमकिन है।
९. हम यह कैसे दिखाएँगे कि हम मसीहियों को दी गयी आशा पर सचमुच विश्वास रखते हैं?
९ इब्राहीम के विश्वास का उसकी आशा के साथ गहरा संबंध था। ‘उस ने आशा रखकर विश्वास किया, कि वह बहुत सी जातियों का पिता होगा।’ (रोमियों ४:१८) यही दूसरी बात है जो पक्का विश्वास रखने में हमारी मदद कर सकती है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” प्रेरित पौलुस ने कहा: “हम परिश्रम और यत्न इसी लिये करते हैं, कि हमारी आशा उस जीवते परमेश्वर पर है।” (१ तीमुथियुस ४:१०) अगर हम सचमुच मसीहियों को दी गयी आशा पर विश्वास रखते हैं, तो हम सारी ज़िंदगी अपने जीने के ढंग से इस बात का सबूत देते रहेंगे, जैसे इब्राहीम ने दिया था।
परमेश्वर से बात करना
१०. किस तरह की प्रार्थना हमारे विश्वास को मज़बूत करेगी?
१० इब्राहीम ने परमेश्वर के साथ बातें कीं, और यह तीसरी बात थी जिसने उसके विश्वास को मज़बूत किया। हम भी आज प्रार्थना के वरदान के ज़रिए यहोवा के साथ बातें कर सकते हैं और यीशु मसीह के नाम से उससे प्रार्थना कर सकते हैं। (यूहन्ना १४:६; इफिसियों ६:१८) यीशु ने लगातार प्रार्थना करते रहने की ज़रूरत पर ज़ोर देने के लिए एक दृष्टांत बताया था। और उसके बाद ही उसने यह सवाल पूछा था: “मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?” (लूका १८:८) विश्वास मज़बूत करनेवाली प्रार्थना, बगैर सोचे-समझे नहीं की जाती और रटी-रटायी नहीं होती। यह सोच-समझकर और दिल से की जाती है। मिसाल के तौर पर, दिल से प्रार्थना करना बहुत ही ज़रूरी होता है, जब हमें कोई बड़ा फैसला करना पड़ता है या जब हम बेहद परेशान होते हैं।—लूका ६:१२, १३; २२:४१-४४.
११. (क) जब इब्राहीम ने परमेश्वर के सामने अपना दिल खोल दिया, तब उसे कैसे मज़बूती मिली? (ख) हम इब्राहीम के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं?
११ जब इब्राहीम की उम्र ढलती जा रही थी और यहोवा ने अभी तक उसे वादा किया हुआ वंश नहीं दिया था, तब उसने अपनी चिंता परमेश्वर को बतायी। इस पर, यहोवा ने उसे फिर से यकीन दिलाया। इसका नतीजा क्या हुआ? इब्राहीम ने “यहोवा पर विश्वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना।” तब यहोवा ने अपने वचनों पर विश्वास दिलाने के लिए उसे एक चिन्ह दिया। (उत्पत्ति १५:१-१८) इसी तरह, अगर हम भी प्रार्थना में यहोवा के सामने अपना दिल खोल दें, और यहोवा के वचन बाइबल में उसके यकीन दिलानेवाली बातों को मानें, और पूरे विश्वास के साथ उसकी आज्ञा मानें, तब यहोवा हमारे विश्वास को भी मज़बूत करेगा।—मत्ती २१:२२; यहूदा २०, २१.
१२, १३. (क) यहोवा की हिदायतों को मानने से इब्राहीम को कैसे आशीषें मिलीं? (ख) क्या करने से हमारा विश्वास पक्का होगा?
१२ जब इब्राहीम ने यहोवा की हिदायतों को माना तब उसने उसकी मदद की। यह चौथी बात थी जिससे इब्राहीम के विश्वास को मज़बूती मिली। जब इब्राहीम ने लूत को छुड़ाने के लिए हमलावर राजाओं का पीछा किया, तब यहोवा ने उसे जीत दिलायी। (उत्पत्ति १४:१६, २०) जब इब्राहीम उसी देश में एक परदेशी होकर रहा जो उसके वंश को मिलनेवाला था तब यहोवा ने उसे बहुत धन-दौलत दी। (उत्पत्ति १४:२१-२३ से तुलना कीजिए।) जब इब्राहीम का सेवक इसहाक के लिए अच्छी पत्नी ढूँढने निकला तब यहोवा ने उसके काम को सफल किया। (उत्पत्ति २४:१०-२७) जी हाँ, यहोवा ने “सब बातों में [इब्राहीम] को आशीष दी।” (उत्पत्ति २४:१) इसकी वज़ह से उसका विश्वास इतना मज़बूत हुआ और यहोवा परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता इतना गहरा हुआ कि यहोवा ने उसे “मेरे मित्र” कहा।—यशायाह ४१:८, NHT; याकूब २:२३.
१३ क्या आज हम ऐसा पक्का विश्वास रख सकते हैं? हाँ, ज़रूर। अगर हम भी इब्राहीम की तरह यहोवा की आज्ञा मानकर उसे आज़माएँ, तो वह हमें भी आशीष देगा और इससे हमारा विश्वास भी पक्का होगा। इसकी मिसाल देखने के लिए, १९९८ सेवा वर्ष की रिपोर्ट पर नज़र डालिए। यह रिपोर्ट दिखाती है कि सुसमाचार सुनाने की परमेश्वर की आज्ञा को मानने से कई लोगों को कमाल की आशीषें मिली हैं।—मरकुस १३:१०.
आज विश्वास का सबूत
१४. यहोवा ने राज्य समाचार क्र. ३५ बाँटने के काम पर कैसे आशीष दी?
१४ अक्तूबर १९९७ में हमने दुनिया भर में राज्य समाचार क्र. ३५ बाँटा था। लाखों भाई-बहनों के जोश और उमंग की वज़ह से हमें इस काम में शानदार कामयाबी मिली। घाना में जो हुआ वह दुनिया भर में इस कामयाबी की सिर्फ एक छोटी-सी मिसाल है। वहाँ चार भाषाओं में करीब २५ लाख ट्रैक्ट बाँटे गए जिसकी वज़ह से करीब २,००० लोग बाइबल स्टडी के लिए राज़ी हुए। साइप्रस में राज्य समाचार बाँट रहे दो साक्षियों ने देखा कि एक पादरी उनके पीछे-पीछे आ रहा है। कुछ दूर चलने के बाद भाइयों ने उसे भी राज्य समाचार की एक कॉपी दी। लेकिन उसे पहले ही एक कॉपी मिल चुकी थी और उसने भाइयों से कहा: “इसकी बातों का मुझ पर बहुत ही असर हुआ है और इसीलिए मैं उन लोगों को बधाई देना चाहता था जिन्होंने इसे लिखा है।” डॆनमार्क में राज्य समाचार की १५ लाख कॉपियाँ दी गयीं और इसके अच्छे नतीजे निकले। पब्लिक रिलेशंस में काम करनेवाली एक महिला ने कहा: “इस ट्रैक्ट का संदेश सभी लोगों के लिए है। यह समझने में बहुत आसान है और यह आपके दिल को छू लेता है और आप में और भी जानने की इच्छा पैदा करता है। इसमें जो भी लिखा है वह बिलकुल सही है!”
१५. कौन-से अनुभव दिखाते हैं कि हर जगह लोगों तक सुसमाचार पहुँचाने की कोशिश पर यहोवा ने आशीष दी है?
१५ सन् १९९८ में, लोगों के घर-घर जाने के अलावा जहाँ कहीं वे मिल सकते थे वहाँ उन्हें प्रचार करने की कोशिश की गयी थी। कोत-दे-वार में एक मिशनरी पति-पत्नी बंदरगाहों पर खड़े ३२२ जहाज़ों में गए। उन्होंने २४७ किताबें, २,२८४ पत्रिकाएँ, ५०० ब्रोशर, और सैकड़ों ट्रैक्ट दिए। इसके अलावा उन्होंने कुछ विडियो-टेप भी दिए, ताकि जहाज़ पर रहनेवाले लोग सफर में उन्हें देख सकें। कनाडा में एक साक्षी एक गराज में गया। उस गराज के मालिक ने इस संदेश में काफी दिलचस्पी दिखायी और भाई वहाँ पर करीब साढ़े चार घंटे रहा। उन्होंने कुल मिलाकर सिर्फ एक ही घंटा चर्चा की थी क्योंकि बार-बार ग्राहक आ रहे थे। नतीजा यह हुआ कि रात के १० बजे उसके साथ स्टडी करने का इंतज़ाम किया गया। लेकिन कभी-कभी स्टडी १२ बजे से पहले शुरू नहीं हो पाती थी और रात के २ बजे तक चलती थी। इतनी रात गए स्टडी कराना मुश्किल तो था, लेकिन इसके नतीजे बहुत अच्छे निकले। उस आदमी ने फैसला किया कि वह रविवार को दुकान बंद रखेगा ताकि सभाओं में जा सके। जल्द ही उसने और उसके परिवार ने अच्छी प्रगति की।
१६. कौन-से अनुभव दिखाते हैं कि माँग ब्रोशर और ज्ञान पुस्तक प्रचार और सिखाने के काम में बहुत ही असरदार औज़ार हैं?
१६ ब्रोशर परमेश्वर हमसे क्या माँग करता है? और किताब ज्ञान जो अनंत जीवन की ओर ले जाता है अब भी प्रचार करने और सिखाने के काम में बहुत ही असरदार औज़ार साबित हो रहे हैं। इटली में बस का इंतज़ार कर रही एक नन को राज्य समाचार की एक कॉपी दी गयी। अगले दिन फिर से उससे मिला गया और तब उसने माँग ब्रोशर लिया। उसके बाद हर दिन बस स्टॉप पर ही उसके साथ १०-१५ मिनट बाइबल स्टडी की जाती थी। करीब डेढ़ महीने बाद उसने अपना कॉन्वॆन्ट छोड़कर ग्वाटेमाला में अपने घर जाने का फैसला किया ताकि वहाँ स्टडी जारी रख सके। मलावी में, कट्टर ईसाई महिला, लॉबीना अपनी बेटियों से नाखुश थी क्योंकि वे यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल स्टडी करने लगी थीं। फिर भी, जब कभी उसकी बेटियों को मौका मिलता, वे उसे बाइबल की सच्चाइयाँ बताती। जून १९९७ में ज्ञान पुस्तक उसके हाथ लगी और उसके शीर्षक को देखकर उसमें दिलचस्पी जागी। जुलाई में वह बाइबल स्टडी करने के लिए राज़ी हो गयी। अगस्त में वह एक ज़िला अधिवेशन के लिए आयी और उसने पूरे कार्यक्रम को बड़े ध्यान से सुना। उस महीने के अंत तक उसने अपना चर्च छोड़ दिया और एक बपतिस्मा-रहित प्रकाशक बन गयी। और नवंबर १९९७ में उसका बपतिस्मा हो गया।
१७, १८. संस्था के विडियो से लोगों को आध्यात्मिक बातों को “देखने” में कैसे मदद मिली है?
१७ संस्था के विडियो ने कई लोगों को आध्यात्मिक बातों को “देखने” में मदद की है। मॉरिशस में एक आदमी ने अपने चर्च में एकता न होने की वज़ह उसे छोड़ दिया। एक मिशनरी ने उसे यहोवा के साक्षियों की एकता दिखाने के लिए युनाइटॆड बाय डिवाइन टीचिंग विडियो दिखाया। उससे प्रभावित होकर उस आदमी ने कहा: “आप यहोवा के साक्षी तो अभी से नई दुनिया में पहुँच गए हो!” वह बाइबल स्टडी करने के लिए राज़ी हो गया। जापान में एक बहन ने अपने पति को, जो साक्षी नहीं था, एक विडियो दिखाया जिसका नाम था जेहोवाज़ विटनेसस्—दि ऑर्गनाइज़ेशन बिहाइंड द नेम, उसे इतना अच्छा लगा कि उसने नियमित बाइबल स्टडी करने के लिए हाँ कर दी। युनाइटॆड बाय डिवाइन टीचिंग विडियो देखने के बाद वह भी एक यहोवा का साक्षी बनना चाहता था। द बाइबल—अ बुक ऑफ फैक्ट एण्ड प्रॉफसी के तीनों विडियो देखकर उसे अपनी ज़िंदगी में बाइबल के सिद्धांतों को लागू करने में मदद मिली। आखिर में उसने जॆहोवाज़ विट्नॆसॆज़ स्टैंड फर्म अगेंस्ट नाज़ी असॉल्ट देखा और उसे समझ में आया कि यहोवा अपने लोगों को शैतान के हमलों को सहने की शक्ति देता है। उस आदमी ने अक्तूबर १९९७ में बपतिस्मा ले लिया।
१८ पिछले सेवा वर्ष में यहोवा के साक्षियों को ऐसे कई अनुभव हुए। ये सभी अनुभव दिखाते हैं उनका विश्वास मुर्दा नहीं है और यहोवा उनके कामों पर आशीष देकर उनके विश्वास को और भी मज़बूत कर रहा है।—याकूब २:१७.
आज विश्वास बढ़ाना
१९. (क) कैसे हम आज बहुत-सी बातों में इब्राहीम से बेहतर स्थिति में हैं? (ख) यीशु की बलिदानी मृत्यु को याद करने के लिए पिछले साल कितने लोग इकट्ठा हुए थे? (ग) पिछले साल किन देशों में शानदार स्मारक उपस्थिति थी? (पेज १२ से १५ का चार्ट देखिए।)
१९ हम आज बहुत-सी बातों में इब्राहीम से बेहतर स्थिति में हैं। हम जानते हैं कि यहोवा ने इब्राहीम से जितने भी वादे किए थे, उन सब को पूरा भी किया। हम जानते हैं कि इब्राहीम के वंशजों को कनान का देश मिला, और वे आगे चलकर वाकई एक बड़ी जाति बन गए। (१ राजा ४:२०; इब्रानियों ११:१२) इसके अलावा, इब्राहीम के हारान देश छोड़ने के कुछ १,९७१ साल बाद उसकी नस्ल से निकले, यीशु को यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने पानी में बपतिस्मा दिया। इसके फौरन बाद खुद यहोवा ने उसे पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देकर अभिषिक्त किया। इस तरह वह पूरे आध्यात्मिक मायनों में इब्राहीम का “वंश” यानी मसीह बन गया। (मत्ती ३:१६, १७; गलतियों ३:१६) सा.यु. ३३ के निसान १४ को यीशु ने अपनी जान देकर उन लोगों के लिए छुड़ौती दी जो उस पर विश्वास करते। (मत्ती २०:२८; यूहन्ना ३:१६) अब लाखों-लाख लोग उसके द्वारा खुद को धन्य कर सकते थे। और पिछले साल निसान १४ को उसके इसी प्रेम के बेहतरीन काम को याद करने के लिए १,३८,९६,३१२ लोग इकट्ठा हुए। कितना बड़ा सबूत कि यहोवा वादा करके निभाता है!
२०, २१. (क) पहली सदी में सभी जाति के लोगों ने इब्राहीम के वंश के द्वारा कैसे खुद को धन्य किया, और आज कैसे सभी जाति के लोग खुद को धन्य कर रहे हैं?
२० पहली सदी में सभी जातियों में से कई लोगों ने इब्राहीम के इस वंश पर विश्वास किया और परमेश्वर के अभिषिक्त पुत्र, यानी ‘परमेश्वर के’ नए आत्मिक ‘इस्राएल’ के सदस्य बन गए। सदस्य बननेवालों में सबसे पहले जन्मजात इस्राएली लोग थे। (गलतियों ३:२६-२९; ६:१६; प्रेरितों ३:२५, २६) उनके पास निश्चय था कि वे परमेश्वर के राज्य में संगी शासक बनकर स्वर्ग में अमर आत्मिक जीवन जीएँगे। लेकिन सिर्फ १,४४,००० लोगों को यह आशीष मिलती, जिनमें से कुछ लोग अब भी ज़िंदा हैं। (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०; ७:४) और पिछले साल ८,७५६ लोगों ने स्मारक में दाखमधु और रोटी लेकर इस विश्वास को ज़ाहिर किया कि वे इन १,४४,००० लोगों में से हैं।
२१ आज कुछ को छोड़कर लगभग सभी यहोवा के साक्षी उस “बड़ी भीड़” के हैं जिसके बारे में प्रकाशितवाक्य ७:९-१७ में भविष्यवाणी की गयी थी। क्योंकि वे यीशु के द्वारा खुद को धन्य करते हैं, इसलिए उनके पास इस पूरी दुनिया में फैले एक सुंदर बाग में हमेशा-हमेशा तक जीने की आशा है। (प्रकाशितवाक्य २१:३-५) १९९८ में प्रचार कार्य में ५८,८८,६५० लोगों ने भाग लिया, यह वाकई साबित करता है कि यह भीड़ सचमुच “बड़ी” है। रूस और युक्रेन में पहली बार १,००,००० से ज़्यादा प्रकाशकों को रिपोर्ट करते देखना कितना रोमांचक था। अमरीका की रिपोर्ट भी बेमिसाल थी। अमरीका ने अगस्त में १०,४०,२८३ प्रकाशकों की रिपोर्ट की! ये उन १९ देशों में से सिर्फ तीन देश हैं जिन्होंने पिछले साल १,००,००० से ज़्यादा प्रकाशकों की रिपोर्ट की।
वह आशा जो जल्द ही पूरी होगी
२२, २३. (क) आज हमें अपने दिल को दृढ़ क्यों करना चाहिए? (ख) हम पौलुस द्वारा बताए गए अविश्वासियों के बजाय इब्राहीम की तरह कैसे बन सकते हैं?
२२ स्मारक में जितने लोग उपस्थित हुए थे, उन सभी को याद दिलाया गया कि हम यहोवा की प्रतिज्ञाओं की पूर्ति के किस समय में जी रहे हैं। सन् १९१४ में यीशु को परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य का राजा बनाया गया, और राज्य अधिकार के साथ उसकी उपस्थिति शुरू हुई। (मत्ती २४:३; प्रकाशितवाक्य ११:१५) जी हाँ, इब्राहीम का वह वंश अब स्वर्ग में राज्य कर रहा है! याकूब ने अपने दिनों के मसीहियों को लिखा था: “धीरज धरो, और अपने हृदय को दृढ़ करो, क्योंकि प्रभु का शुभागमन [उपस्थिति] निकट है।” (याकूब ५:८) हाँ, जो उपस्थिति उस समय निकट थी हमारे समय में कब की शुरू हो चुकी है! यह आज अपने हृदय को और ज़्यादा दृढ़ करने का क्या ही बेहतरीन कारण है!
२३ आइए हम हमेशा बाइबल की स्टडी और दिल से प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर के वादों में अपने भरोसे को लगातार बढ़ाते रहें। आइए हम हमेशा यहोवा की आशीष पाते रहें और उसकी आज्ञाओं को मानते रहें। तब हम इब्राहीम की तरह होंगे, और उन लोगों की तरह नहीं जिनके बारे में पौलुस ने बताया था कि उनका विश्वास कमज़ोर पड़कर आखिर में मर गया था। कोई भी चीज़ हमें अपने सबसे पवित्र विश्वास से अलग नहीं कर सकेगी। (यहूदा २०) हमारी दुआ है कि यहोवा के सभी सेवकों के लिए यही बात सच साबित हो, न सिर्फ १९९९ में बल्कि हमेशा तक।
क्या आप जानते हैं?
◻ आज हम यहोवा की बातें कैसे सुन सकते हैं?
◻ परमेश्वर से दिल से प्रार्थना करने के क्या फायदे होते हैं?
◻ अगर हम यहोवा के निर्देशों को पूरी तरह मानें, तो हमारा विश्वास कैसे पक्का होगा?
◻ आपको वार्षिक रिपोर्ट (पेज १२ से १५) की कौन-सी बातें खासकर पसंद आयीं?
[पेज 12-15 पर चार्ट]
संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की १९९८ सेवा वर्ष रिपोर्ट
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
[पेज 16 पर तसवीर]
अगर हम यहोवा की बातें सुनेंगे, तो उसके वादों में हमारा भरोसा पक्का होगा
[पेज 18 पर तसवीर]
जब हम प्रचार काम में हिस्सा लेते हैं तब हमारा विश्वास और मज़बूत होता है