बाल की उपासना—इस्राएलियों के लिए एक परीक्षा
करीब एक हज़ार साल तक एक आध्यात्मिक युद्ध चलता रहा। इस्राएलियों के लिए यह एक परीक्षा थी कि वे इस युद्ध में किसकी तरफ होंगे। इस युद्ध में एक तरफ था विश्वास और वफादारी तो दूसरी तरफ था अंधविश्वास से पैदा हुआ डर और लैंगिक रीति-रिवाज़। एक तरफ थी ज़िंदगी तो दूसरी तरफ मौत। एक तरफ थी यहोवा की उपासना तो दूसरी तरफ थी बाल की उपासना।
क्या ये इस्राएली अपने सच्चे परमेश्वर के वफादार बने रहेंगे जिसने उन्हें मिस्र से छुड़ाया था? (निर्गमन २०:२, ३) या क्या वे उसे छोड़कर कनानियों के मनपसंद देवता बाल की तरफ चले जाएँगे जिसने उनकी ज़मीन को उपजाऊ बनाने का वादा किया था?
हज़ारों साल पहले लड़ा गया यह आध्यात्मिक युद्ध आज हमारे लिए भी बहुत मायने रखता है। क्यों? क्योंकि जैसा पौलुस ने लिखा: “ये सब बातें, . . . हमारी चितावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।” (१ कुरिन्थियों १०:११) पुराने ज़माने में हुई इस लड़ाई के ज़रिए हमें भी एक चेतावनी दी गई है और इसकी अहमियत समझने के लिए पहले हमें यह जानना होगा कि बाल कौन था और उसकी उपासना में क्या-क्या होता था।
बाल कौन था?
इस्राएली जब करीब सा.यु.पू. १४७३ में कनान देश पहुँचे तब पहली बार वे बाल के संपर्क में आए। वहाँ उन्होंने देखा कि कनानी बहुत-से देवी-देवताओं को पूजते हैं जो मिस्र के देवी-देवताओं की तरह ही थे, बस उनके नाम अलग थे और उनके कुछ गुण अलग थे। बाइबल से पता चलता है कि बाल कनानियों का एक खास देवता था और खुदाई से मिली चीज़ें भी इसी बात का सबूत देती हैं। (न्यायियों २:११) वह कनानियों के लिए बहुत ज़्यादा मायने रखता था मगर वह उनका सबसे बड़ा देवता तो नहीं था। कनानी मानते थे कि बारिश, हवा और बादल पर उसका ज़ोर चलता है। इंसान और जानवरों को उसी की आशीष से बच्चे होते हैं, वही उन्हें मौत से बचा सकता है और फसल को बरबाद होने से भी वही रोक सकता है। और उन्हें डर था कि अगर बाल उनकी रक्षा न करे, तो दंड देनेवाला कनानी देवता मॉट उन पर भारी विपत्तियाँ ले आएगा।
बाल की उपासना लैंगिक रीति-रिवाज़ के बल पर ही चलती थी। उसकी उपासना से जुड़ी चीज़ें भी, जैसे कि पवित्र लाठें लैंगिकता की ओर संकेत करती थीं। कुछ पवित्र लाठें जिन्हें चट्टानों या पत्थरों से, लिंग के आकार में तराशा जाता था, वे बाल के लिंग को चित्रित करती थीं। और कुछ पवित्र लाठों को लकड़ी या पेड़ों से बनाया जाता था जो बाल की पत्नी अशेरा की योनि को चित्रित करती थीं।—१ राजा १८:१९.
बाल की उपासना की एक और खासियत यह थी कि उसके मंदिरों में वेश्यावृत्ति होती थी और बच्चों की बलि चढ़ाई जाती थी। (१ राजा १४:२३, २४; २ इतिहास २८:२, ३) द बाइबल एन्ड आर्कियोलॉजी नामक किताब कहती है: “कनानियों के मंदिर में स्त्री और पुरुष दोनों ही (‘पवित्र’ स्त्री और पुरुष) वेश्यावृत्ति करते थे और लोग हर तरह के घिनौने लैंगिक काम बेकाबू होकर करते थे। [कनानियों] का मानना था कि किसी-न-किसी तरह इन लैंगिक रिवाज़ों की वज़ह से ही उनकी फसल और उनके पशु फलते-फूलते थे।” हालाँकि धर्म के नाम पर इसे उचित ठहराया गया था, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि ऐसी अनैतिकता कनानी उपासकों की शारीरिक अभिलाषाओं को पूरा करती थी। पर सवाल यह है कि बाल उपासना ने इस्राएलियों के दिल को कैसे लुभाया?
इतना लुभावना क्यों?
शायद कई इस्राएली ऐसे धर्म को मानना ज़्यादा पसंद करते थे जिसमें उनसे बहुत ज़्यादा की माँग नहीं की जाती थी। अगर वे बाल की उपासना करते तो उन्हें व्यवस्था का पालन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती जैसे कि सब्त मनाना और उन पर कोई नैतिक पाबंदी भी नहीं रहती। (लैव्यव्यवस्था १८:२-३०; व्यवस्थाविवरण ५:१-३) शायद कनानियों की बढ़ती हुई धन-दौलत देखकर भी कुछ इस्राएलियों को यकीन हो गया था कि दौलतमंद होने के लिए उन्हें भी बाल को खुश करना चाहिए।
कनानियों के उपासना-स्थल पहाड़ों के टीलों पर पेड़ों के बीच होते थे जिन्हें ऊंचे स्थान कहा जाता था। लैंगिक रीति-रिवाज़ों को मानने के लिए वह माहौल बहुत ही लुभावना रहा होगा। इस्राएली लोग कनानियों के पवित्र स्थलों पर जाया करते थे मगर इससे उनका जी नहीं भरा इसलिए कुछ समय बाद उन्होंने अपने लिए खुद के ऊँचे स्थान बना लिए। “उन्हों ने [भी] . . . सब ऊंचे टीलों पर, और सब हरे वृक्षों के तले, ऊंचे स्थान, और लाठें, और अशेरा नाम मूरतें बना लीं।”—१ राजा १४:२३; होशे ४:१३.
लेकिन लोग बाल की उपासना खासकर अपनी शारीरिक अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए करते थे। (गलतियों ५:१९-२१) इसलिए यह कहना बस एक बहाना था कि वे अच्छी फसल और पशुओं की बरकत पाने के लिए बाल की उपासना करते हैं, असल में वे अपनी लैंगिक प्यास बुझाने के लिए ऐसा करते थे। वे तो लैंगिकता की पूजा करते थे। और यह बात खुदाई से मिली उन छोटी-छोटी मूर्तियों से साफ ज़ाहिर होती है जो लैंगिक अंगों को इतने बेहूदा तरीके से दर्शाती हैं जिससे कामुकता भड़क उठे। उनकी दावतें, नाच-गाने और संगीत भी कामुक कार्यों को और उकसाते थे।
हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि सर्दियों की शुरुआत में वो नज़ारा कैसा होता होगा। मौसम तो लुभावना होता ही है, ऊपर से जमकर दावत होती है, फिर शराब इसमें और भी रस घोल देती है और उपासक झूमकर नाचते लगते हैं। वे इसलिए नाचते हैं ताकि गर्मियों से सुस्त होकर सोया हुआ बाल जाग उठे और उनकी ज़मीन पर पानी बरसाए। वे लिंगों और पवित्र लाठों की चारों ओर घूम-घूमकर नाचते हैं। खासकर मंदिर में वेश्यावृत्ति करनेवालों का मटकना बहुत ही कामुक और उत्तेजक होता है। संगीत की धुन और वहाँ मौजूद लोग उन्हें और भी उकसाते हैं। और जब नाच खत्म होनेवाला होता है तब नाचनेवाले बाल के घर के एक कमरे में अनैतिक काम के लिए चले जाते हैं।—गिनती २५:१, २; निर्गमन ३२:६, १७-१९ से तुलना कीजिए; आमोस २:८.
वे विश्वास से नहीं, रूप को देखकर चले
ऐसे कामुक कार्यों से प्रलोभित होकर ही नहीं पर डर के मारे भी कई इस्राएली बाल की उपासना करने लगे थे। जब इस्राएलियों का विश्वास यहोवा पर से उठ गया तो उन्हें मरे हुओं का डर और भविष्य का डर सताने लगा। साथ ही वे जादूगरी में दिलचस्पी लेने लगे इसलिए प्रेतात्मवाद में पड़ गए जिसमें बहुत ही घिनौने काम किए जाते थे। द इंटरनैशनल स्टैन्डर्ड बाइबल एनसाइक्लोपीडिया बताती है कि कनानी लोग अपने पूर्वजों की उपासना करने के लिए मरे हुओं की आत्मा को कैसे आदर देते थे: “पूर्वजों की कब्र पर या शमशान भूमि के पास अपने रिवाज़ के मुताबिक वे खूब खाते-पीते थे . . . और लैंगिक कार्य करते थे (शायद परिवार के सदस्य भी आपस में लैंगिक संबंध रखते थे) और उनका मानना था कि मरे हुए भी इसमें भाग ले रहे हैं।” प्रेतात्मवाद से जुड़े ऐसे घिनौने काम करने की वज़ह से इस्राएली अपने परमेश्वर यहोवा से और भी दूर होते गए।—व्यवस्थाविवरण १८:९-१२.
कुछ इस्राएलियों को मूर्तियों और उनसे संबंधित रीति-रिवाज़ भी भा गए क्योंकि वे विश्वास से चलने के बजाय रूप देखकर चलना ज़्यादा पसंद करते थे। (२ कुरिन्थियों ५:७) वे इस्राएली जो मिस्र से निकलकर आए थे उनको परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए मूर्ति की ज़रूरत पड़ी हालाँकि उन्होंने यहोवा के हाथों बड़े-बड़े चमत्कार देखे थे। (निर्गमन ३२:१-४) उसी तरह उनके कुछ वंशज़ भी नज़र आनेवाली किसी वस्तु की उपासना करना चाहते थे जैसे कि बाल की मूर्तियों की।—१ राजा १२:२५-३०.
जीत किसकी हुई?
यह आध्यात्मिक युद्ध तब शुरू हुआ था जब इस्राएली वादा किए हुए देश में पहुँचने से पहले, मोआब के मैदानों में थे। यह युद्ध सदियों तक ज़ारी रहा जब तक कि उन्हें गुलाम बनाकर बाबुल न भेज दिया गया। कभी वे इस पार होते तो कभी उस पार। कभी-कभी, ज़्यादातर इस्राएली यहोवा के वफादार रहते लेकिन बार-बार वे बाल की उपासना में लग जाते। इसकी एक खास वज़ह यह थी कि वे अपने आस-पास के मूर्तिपूजकों के साथ संगति करते थे।
इस्राएलियों ने कनानियों पर विजय पा ली मगर उसके बाद भी कुछ कनानी बहुत ही धूर्त तरीके से उनके खिलाफ लड़ते रहे। इस्राएलियों के अड़ोस-पड़ोस में रहते हुए उन्होंने उनके विजेताओं को उस देश के देवताओं को पूजने के लिए उकसाया। लेकिन गिदोन और शमूएल जैसे साहसी न्यायियों ने इसका विरोध किया। शमूएल ने लोगों को समझाया: “पराए देवताओं . . . को अपने बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो।” कुछ समय के लिए इस्राएलियों ने शमूएल की बात मानी और उन्होंने “बाल देवताओं और अश्तोरेत देवियों को दूर किया, और केवल यहोवा ही की अपासना करने लगे।”—१ शमूएल ७:३, ४; न्यायियों ६:२५-२७.
शाऊल और दाऊद के बाद सुलैमान का राज शुरू हुआ और वह अपने बुढ़ापे में पराये देवताओं को बलि चढ़ाने लगा। (१ राजा ११:४-८) इसी तरह इस्राएल और यहूदा के दूसरे राजा भी बलि चढ़ाने लगे और बाल के उपासक बन गए। लेकिन एलिय्याह, एलीशा और योशिय्याह जैसे वफादार भविष्यवक्ताओं और राजाओं ने बाल उपासना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। (२ इतिहास ३४:१-५) इसके अलावा, इस्राएल की प्रजा में भी ऐसे कई लोग थे जो यहोवा के वफादार रहे। अहाब और ईज़ेबेल के दिनों में जब बाल की उपासना अपने चरम पर थी तब सात हज़ार लोग ऐसे थे जिन्होंने ‘बाल के आगे घुटने नहीं टेके।’—१ राजा १९:१८.
जब यहूदी बाबुल से लौट आए उसके बाद बाल उपासना का कोई ज़िक्र नहीं होता। जैसे एज्रा ६:२१ में बताया गया है सभी लोगों ने ठान लिया था कि वे ‘अन्य जातियों की अशुद्धता से अलग होंगे ताकि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज कर सकें।’
बाल की उपासना से चेतावनियाँ
हालाँकि बाल की उपासना तब से बंद हो चुकी है लेकिन उस कनानी धर्म में और आज के मानव समाज में एक बात मिलती-जुलती है, वह है सेक्स की पूजा। इस संसार में हम अनैतिक कामों के प्रलोभन से घिरे हुए हैं। (इफिसियों २:२) “हमारा यह मल्लयुद्ध . . . इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।”—इफिसियों ६:१२.
शैतान की यह ‘आत्मिक सेना’ लैंगिक अनैतिकता को बढ़ावा देती है और लोगों को उसका दास बनाकर आध्यात्मिक रूप से अंधा कर देती है। (यूहन्ना ८:३४) आज के इस लापरवाह संसार में लैंगिक काम एक रिवाज़ मानकर तो नहीं किया जाता पर आत्म-संतुष्टि या खुद की इच्छा पूरी करने के लिए ज़रूर किया जाता है। और इन कामों में लोगों को फुसलाने का तरीका भी उतना ही लुभावना है। मनोरंजन, संगीत और विज्ञापन के ज़रिए हर घड़ी लोगों तक लैंगिकता के संदेश पहुँचाए जाते हैं। परमेश्वर के सेवक भी इसके हमले से नहीं बच पाते। दरअसल मसीही कलीसिया से बहिष्कृत होनेवाले ज़्यादातर लोग इन्हीं कामों में फँस गए थे। ऐसे अनैतिक विचारों को बारंबार ठुकराते रहने के बाद ही एक मसीही पवित्र रह सकता है।—रोमियों १२:९.
इसका सबसे बड़ा खतरा खासकर नौजवान साक्षियों को होता है क्योंकि उनको पसंद आनेवाली कई बातों को आज लैंगिक विचारों के साथ जोड़कर पेश किया जाता है। खतरा तब और भी बढ़ जाता है जब दूसरे नौजवान उन्हें ऐसे काम करने के लिए फुसलाने की कोशिश करते हैं। (नीतिवचन १:१०-१५ से तुलना कीजिए।) और इसीलिए बड़ी-बड़ी पार्टियों में कई लोग इस जाल में फँस गए हैं। जैसे पुराने ज़माने में बाल की उपासना के वक्त होता था, आज भी लोग संगीत, नाच-गाने और कामुक कार्यों में पूरी तरह मदमस्त हो जाते हैं।—२ तीमुथियुस २:२२.
भजनहार ने पूछा, “जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे?” उसने जवाब दिया, “तेरे [यहोवा के] वचन के अनुसार सावधान रहने से।” (भजन ११९:९) जैसे परमेश्वर की व्यवस्था में, इस्राएलियों को कनानियों के साथ संगति करने से मना किया था, वैसे ही बाइबल हमें होशियार करती है कि मूर्खों की संगति करने में कौन-से खतरे होते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३२, ३३) जब एक युवा किसी लैंगिक प्रलोभन को ना कहता है तो वह साबित कर देता है कि वह सयाना है क्योंकि लैंगिक बातें भले ही उसे लुभाएँ पर वह जानता है कि यह नैतिक रूप से उसके लिए हानिकारक है। वफादार एलिय्याह की तरह हम भी अपना फैसला दुनिया की राय के मुताबिक नहीं करेंगे।—१ राजा १८:२१; मत्ती ७:१३, १४ से तुलना कीजिए।
दूसरी चेतावनी यह है कि हमें अपने विश्वास को कभी कमज़ोर नहीं होने देना चाहिए जो एक ‘उलझानेवाला पाप’ है। (इब्रानियों १२:१) ऐसा लगता है कि कई इस्राएली यहोवा पर तो विश्वास रखते थे, साथ ही अपने फसल की सुरक्षा और रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाल पर आस लगाते थे। शायद उन्हें लगा कि यहोवा का जो मंदिर है वह बहुत दूर यरूशलेम में है और उसकी व्यवस्था का पालन करना भी मुमकिन नहीं है। दूसरी तरफ बाल की उपासना करना बहुत ही आसान था। वे अपने घरों की छत पर ही बाल के लिये धूप जला सकते थे। (यिर्मयाह ३२:२९) शायद ऐसे ही कुछ रिवाज़ों में भाग लेकर या यहोवा के नाम पर बाल को बलि चढ़ाकर वे धीरे-धीरे बाल की उपासना में बहक गए।
हम कैसे अपना विश्वास खोकर धीरे-धीरे जीवते परमेश्वर से दूर होने के खतरे में पड़ सकते हैं? (इब्रानियों ३:१२) सभाओं और सम्मेलनों के लिए जो कदरदानी हममें पहले थी वो धीरे-धीरे कम हो सकती है। और यह ‘समय पर [आध्यात्मिक] भोजन’ के यहोवा के प्रबंध पर भरोसे की कमी दिखाता है। (मत्ती २४:४५-४७) नतीजा यह होता है कि हम कमज़ोर पड़ जाते हैं और फिर शायद “जीवन के वचन को दृढ़ता से थामे” नहीं रह पाएँ या हो सकता है कि हम पूरे दिल से यहोवा की बात न मानें और रुपया-पैसा कमाने में या अनैतिक कामों में लग जाएँ।—फिलिप्पियों २:१६, NHT; भजन ११९:११३ से तुलना कीजिए।
अपनी वफादारी बनाए रखना
इसमें दो राय नहीं कि आज भी एक आध्यात्मिक युद्ध चल रहा है। क्या हम यहोवा के वफादार रहेंगे या क्या हम बहककर इस संसार के लोगों की तरह लापरवाही से ज़िंदगी जीने लगेंगे? अफसोस की बात है कि जैसे इस्राएली कनानियों के घृणित कामों की ओर खिंचे चले गए थे आज कुछ मसीही स्त्री और पुरुष भी गंदे कामों में फँस गए हैं।—नीतिवचन ७:७, २१-२३ से तुलना कीजिए।
यूँ आध्यात्मिक रूप से हार जाने से बचा जा सकता है, अगर हम मूसा की तरह ‘अनदेखे को मानो देखते हुए दृढ़’ रहें। (इब्रानियों ११:२७) बेशक हमें अपनी तरफ से “विश्वास के लिये पूरा यत्न” करना पड़ेगा। (यहूदा ३) लेकिन अगर हम अपने परमेश्वर और उसके सिद्धांतों को वफादारी से मानते रहें तो हम जल्द देख सकेंगे कि झूठी उपासना का नामो-निशान हमेशा-हमेशा के लिए मिट गया है। ठीक जैसे बाल की उपासना पर यहोवा की उपासना की जीत हुई उसी तरह हम यकीन रख सकते हैं कि वो दिन दूर नहीं जब “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”—यशायाह ११:९.
[पेज 31 पर तसवीर]
गीज़र में, बाल की उपासना में उपयोग की गई पवित्र लाठों का खंडहर
[पेज 28 पर चित्र का श्रेय]
Musée du Louvre, Paris