कैसे आध्यात्मिक कमज़ोरी को पहचानें और दूर करें
यूनानी कथाओं के मुताबिक ट्रॉय शहर के विरुद्ध युद्ध में यूनानी योद्धाओं में सबसे बहादुर योद्धा ऐकिलीज़ था। कथा आगे बताती है कि जब ऐकिलीज़ बहुत छोटा था तब उसकी माँ ने एड़ी से पकड़कर उसे स्टिक्स नदी में डुबकी खिलाई थी, जिससे एड़ी को छोड़ उसका शरीर अमर बन गया था। इसी पर, यानी ऐकिलीज़ की एड़ी पर ट्रॉय के राजा प्रायम के बेटे पैरस ने तीर मारकर उसकी हत्या की थी।
मसीही लोग आध्यात्मिक लड़ाई में मसीह के सिपाही हैं। (२ तीमुथियुस २:३) प्रेरित पौलुस बताता है कि “हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।” जी हाँ, हमारे दुश्मन कोई और नहीं शैतान अर्थात् इब्लीस और उसके पिशाच हैं।—इफिसियों ६:१२.
बेशक यह एक-तरफा लड़ाई होती अगर हमें यहोवा परमेश्वर से सहायता नहीं मिलती। परमेश्वर के बारे में कहा गया है कि “यहोवा योद्धा है।” (निर्गमन १५:३) हमें आध्यात्मिक हथियार दिए गए हैं जिससे हम खूँखार दुश्मनों का सामना कर सकें। इसलिए प्रेरित पौलुस ने आग्रह किया: “परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्तियों के साम्हने खड़े रह सको।”—इफिसियों ६:११.
यहोवा परमेश्वर के द्वारा दिए गए सारे हथियार बेहतरीन हैं, इनको प्रयोग करके हर तरह के आध्यात्मिक हमले नाकाम किए जा सकते हैं। ज़रा उस लिस्ट पर ध्यान दीजिए जो पौलुस ने दी है: सत्य का कमरबंद, धार्मिकता की झिलम, पांवों में सुसमाचार के जूते, विश्वास की बड़ी ढाल, उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार। एक व्यक्ति को इससे अच्छे हथियार और कहाँ मिलेंगे? इन सब हथियारों को पहनकर, एक मसीही सिपाही के लिए विजय पाने की पूरी-पूरी सम्भावना है, चाहे कितना भी खतरा क्यों न हो।—इफिसियों ६:१३-१७.
जबकि यहोवा से मिले आध्यात्मिक हथियार बेहतरीन और हमारी सुरक्षा का स्रोत हैं, और हमें उन्हें कम महत्त्वपूर्ण नहीं समझना चाहिए। कथा के मुताबिक, हालाँकि ऐकिलीज़ अमर था, फिर भी उसकी एक कमज़ोरी उसे बहुत ही महँगी पड़ी, तो फिर, क्या ऐसा संभव है कि ऐकिलीज़ की उस कमज़ोरी की तरह हममें भी कोई आध्यात्मिक कमज़ोरी हो? अगर अचानक उस पर हमला हो जाए तो हमारी वह कमज़ोरी जानलेवा साबित हो सकती है।
अपने आध्यात्मिक हथियारों को जाँचिए
दो-बार ओलम्पिक स्वर्ण-पदक जीतनेवाला आईस-स्केटर, स्वास्थ्य के हिसाब से दिखने में एकदम तंदुरुस्त लगता था। एक दिन रिहर्सल के दौरान एकाएक गिर पड़ा और मर गया। थोड़े समय बाद द न्यू यॉर्क टाइम्स में गंभीरता से सोचने लायक यह खबर पढ़ने को मिली: “६,००,००० अमरीकियों को हर साल दिल का दौरा पड़ता है, जिनमें से आधों को इसके लक्षण पहले कभी दिखाई नहीं दिए।” इससे साफ पता चलता है कि हमारी तंदुरुस्ती सिर्फ इससे तय नहीं की जा सकती कि हम कैसा महसूस करते हैं।
यही बात हमारी आध्यात्मिक सेहत पर भी लागू होती है। बाइबल सलाह देती है: “जो समझता है, कि मैं स्थिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े।” (१ कुरिन्थियों १०:१२) बेशक, हमारे आध्यात्मिक हथियार सर्वोत्तम हैं फिर भी हम कमज़ोर पड़ सकते हैं। क्योंकि हम पैदाइश से पापी हैं, और हमारा पापी और असिद्ध स्वभाव बड़ी आसानी से हम पर हावी हो सकता है और परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के हमारे निश्चय को कमज़ोर बना सकता है। (भजन ५१:५) नेक इरादों के बावजूद धोखा देनेवाला हमारा मन ऊपर से अच्छे लगनेवाले तर्क और बहाने बनाकर हमें धोखा दे सकता है जिसकी वज़ह से हम आसानी से अपनी कमज़ोरियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और यह सोच बैठते हैं कि सब कुछ ठीक चल रहा है।—यिर्मयाह १७:९; रोमियों ७:२१-२३.
इसके अलावा हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ सही और गलत में अकसर उलझन रहती है। एक बात सही है या गलत यह इससे तय की जाती है कि वह व्यक्ति उसके बारे में खुद कैसा महसूस करता है। इस तरह की मनोवृत्ति को विज्ञापनों, मनपसंद मनोरंजन और समाचार-माध्यमों में बढ़ावा दिया जाता है। यह साफ है कि अगर हम सतर्क नहीं हैं तो हम भी वैसे विचारों को अपना सकते हैं, और हमारे आध्यात्मिक हथियार कमज़ोर पड़ने शुरू हो सकते हैं।
ऐसी खतरनाक स्थिति में जाकर फँसने के बजाए, हमें बाइबल की सलाह माननी चाहिए: “अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो।” (२ कुरिन्थियों १३:५) ऐसा करने पर हम देख पाएँगे कि हममें कहीं कोई कमज़ोरी तो पैदा नहीं हो गई। साथ-ही ज़रूरी कदम उठाकर उस कमज़ोरी को दूर कर सकेंगे, इससे पहले कि दुश्मनों को हमारी कमज़ोरियाँ दिख जाएँ और वे हम पर हमला कर दें। लेकिन हम अपनी जाँच कैसे करें? अपनी जाँच करते समय कौन-सी कुछ ऐसी बातें हैं जो हमें खुद में देखनी चाहिए?
लक्षणों को पहचानना
एक आम लक्षण जिससे आध्यात्मिक कमज़ोरी के बारे में पता चलता है, नियमित रूप से व्यक्तिगत अध्ययन करने में लापरवाही दिखाना है। कुछ लोग महसूस करते हैं कि उन्हें और ज़्यादा पढ़ना चाहिए मगर कुछ-न-कुछ ऐसा हो जाता है कि बस पढ़ ही नहीं पाते। आजकल, व्यस्त जीवन होने के कारण हम आसानी से ऐसी बुरी परिस्थिति में फँस सकते हैं। इससे भी बदतर बात तब होती है जब लोग सोचने लगते हैं कि वे उतने कमज़ोर नहीं पड़े हैं, क्योंकि समय मिलने पर वे बाइबल प्रकाशन पढ़ते हैं और कुछ मसीही सभाओं में भी जाते हैं।
ऐसा सोचना एक किस्म से खुद को धोखा देना है। मानो उस आदमी की तरह जो सोचता है कि वह इतना व्यस्त है कि बैठकर ठीक से खाना भी नहीं खा सकता, इसलिए यहाँ-वहाँ काम करते हुए थोड़ा-बहुत खा लेता है। वह शायद भूखों न मरे, लेकिन आज नहीं तो कल स्वास्थ्य-संबंधी समस्याएँ ज़रूर आएँगी। उसी तरह नियमित रूप से पौष्टिक भोजन किए बिना, हमारे आध्यात्मिक हथियार जल्द-ही कमज़ोर पड़ सकते हैं। लगातार दुनिया के विचारों और मनोवृत्ति की बम-वर्षा के कारण हम बड़ी आसानी से शैतान के खूनी-हमलों का शिकार बन सकते हैं।
आध्यात्मिक कमज़ोरी का एक और लक्षण है आध्यात्मिक लड़ाई में हरदम सचेत न रहना है। शान्ति के समय में सिपाही तनाव और युद्ध का खतरा महसूस नहीं करता। इसलिए वह सोचता है कि तैयार रहने की ज़रूरत नहीं है। मगर उसे एकदम से बुला लिया जाए तो वह शायद पूरी तरह से तैयार न हो। आध्यात्मिकता के बारे में भी ऐसा ही है। अगर हम हमेशा सतर्क नहीं रहते हैं तो हम पर होनेवाले हमलों से बचने के लिए हम तैयार नहीं होंगे।
लेकिन, हम यह कैसे जानें कि हम बुरी परिस्थिति में फँस चुके हैं? हम अपने आप से कुछ सवाल पूछ सकते हैं जो स्थिति का सही जाएज़ा लेने में हमारी मदद करेंगे: क्या मुझे सेवकाई करने की उतनी ही इच्छा होती है जितनी कि बाहर सैर पर जाने की होती है? क्या मैं सभाओं की तैयारी करने में उतनी उत्सुकता दिखाता हूँ जितनी खरीदारी करने या टीवी देखने में दिखाता हूँ? मसीही बनने पर जिन लक्ष्यों और अवसरों को मैंने ठुकरा दिया था, क्या अब मैं उन पर फिर से सोचकर पछताने लगा हूँ? खुशहाल ज़िंदगी जीने के लिए दूसरे लोग जो तरक्की कर रहे हैं क्या मैं उनसे जलता हूँ? ये सवाल जाँच करने लायक हैं। इनसे यह पता करने में आसानी होगी कि कहीं आध्यात्मिक हथियारों में कोई कमज़ोरी तो नहीं आई।
क्योंकि हमारे सुरक्षा हथियार आध्यात्मिक हैं, इसलिए यह ज़रूरी है कि परमेश्वर की आत्मा हमारे जीवन में पूरी तरह काम करे। यह इस बात से देखा जा सकता है कि हमारे सभी कामों में परमेश्वर की आत्मा के फल किस हद तक दिखाई देते हैं। जब कोई कुछ ऐसा कर देता है या कह देता है जो आपको पसंद नहीं, तब क्या आप जल्दी से चिढ़ जाते या परेशान हो जाते हैं? क्या आपको सलाह स्वीकार करने में मुश्किल होती है, या क्या आप ऐसा महसूस करते हैं कि दूसरे हमेशा आपमें नुक्स ही निकालते हैं? क्या आप दूसरों की आशिषों और सफलताओं को देखकर बहुत जलते हैं? क्या आपको दूसरों के साथ, खासकर अपनी उम्र के लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने में परेशानी होती है? ईमानदारी से अपनी जाँच करने से हमें यह देखने में मदद मिलेगी कि क्या हमारे जीवन में आत्मा के फल उत्पन्न हुए हैं या शरीर के काम चुपके-चुपके हमारे जीवन में आ गए हैं।—गलतियों ५:२२-२६; इफिसियों ४:२२-२७.
आध्यात्मिक कमज़ोरी को दूर करने के लिए ज़रूरी कदम
आध्यात्मिक कमज़ोरी के लक्षणों को पहचानना एक बात है और उनका सामना करते हुए उन्हें दूर करने के लिए कदम उठाना दूसरी बात। दुख की बात है, बहुत से लोगों की यह प्रवृत्ति है कि वे बहाने बनाते हैं, सफाई देते हैं, समस्या को कम करके दिखाते हैं या फिर वे ये मानते ही नहीं कि कोई समस्या है। यह कितनी खतरनाक बात है—मानो युद्ध के लिए जा रहे हों और कुछ हथियार छोड़ दिए हों! ऐसी गलती शैतान को हम पर हमला करने का मौका देगी। इसलिए जब कभी हमें अपने अंदर कोई कमज़ोरी दिखती है तो तुरंत कदम उठाना चाहिए और उसे दूर करना चाहिए। इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?—रोमियों ८:१३; याकूब १:२२-२५.
हम क्योंकि आध्यात्मिक युद्ध में शामिल हैं—जिसमें मसीहियों को अपने दिलो-दिमाग पर नियंत्रण रखने की ज़रूरत है—इसलिए हमें अपनी ज्ञानेंद्रियों की जी-जान से रक्षा करने की कोशिश करनी चाहिए। याद रखिए, हमारे आध्यात्मिक हथियारों में हैं “धार्मिकता की झिलम,” यह हमारे दिल की रक्षा करती है, और “उद्धार का टोप,” यह हमारे दिमाग की रक्षा करता है। अब हमारी जीत या हार इस पर निर्भर करेगी कि हम कितनी कुशलतापूर्वक इन चीज़ों से लाभ उठाना सीखते हैं।—इफिसियों ६:१४-१७; नीतिवचन ४:२३; रोमियों १२:२.
ठीक-से “धार्मिकता की झिलम” पहिनने के लिए ज़रूरी है कि हम लगातार अपनी जाँच करते रहें कि क्या हम अब भी धार्मिकता से प्यार और दुष्टता से बैर रखते हैं। (भजन ४५:७; ९७:१०; आमोस ५:१५) दुनिया के साथ-साथ क्या हमारे आदर्श भी गिरते जा रहे हैं? क्या अब हमें ऐसी बातों में मज़ा आने लगा है जिन्हें कभी हम बुरा समझते थे या पसंद नहीं करते थे, चाहे ऐसी बातें हमारी ज़िंदगी में हों, टीवी और फिल्म के परदों पर दिखाई जाती हों या किताबों में और मैगज़ीन में हों? धार्मिकता के प्रति प्यार हमें यह देखने में मदद करेगा कि दुनिया में जिसे स्वतंत्रता और आधुनिकता कहा जाता है, वह वास्तव में स्वच्छंद संभोग और अभिमान का धूर्त रूप है।—रोमियों १३:१३, १४; तीतुस २:१२.
“उद्धार का टोप” पहनने में यह बात शामिल है कि हम उन शानदार आशिषों को, जो आगे चलकर हमें मिलनेवाली हैं, अपने दिमाग में ताज़ा बनाए रखें। और इस संसार की चमक-दमक से खुद को विचलित न होने दें। (इब्रानियों १२:२, ३; १ यूहन्ना २:१६) ऐसे नज़रिए से यह मदद मिलेगी कि हम भौतिक फायदे या व्यक्तिगत लाभ को आध्यात्मिक बातों से आगे नहीं रखेंगे। (मत्ती ६:३३) सो हमें निश्चित करना है कि यह हथियार हमने ठीक से पहना है या नहीं। इसलिए ईमानदारी से हमें खुद से पूछना चाहिए: मैं अपने जीवन में क्या पाने की कोशिश कर रहा हूँ? क्या मेरे जीवन में खास आध्यात्मिक लक्ष्य हैं? उन तक पहुँचने के लिए मैं क्या कर रहा हूँ? चाहे हम शेष अभिषिक्त मसीही हों या असंख्य “बड़ी भीड़” का भाग, हमें पौलुस की नकल करनी चाहिए, जिसने कहा: “मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ। निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं।”—प्रकाशितवाक्य ७:९; फिलिप्पियों ३:१३, १४.
आध्यात्मिक हथियारों के बारे में पौलुस का विवरण इस सलाह के साथ समाप्त होता है: “हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिये जागते रहो, कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार बिनती किया करो।” (इफिसियों ६:१८) इससे पता चलता है कि किसी भी आध्यात्मिक कमज़ोरी को दूर करने या उससे बचने के लिए दो सकारात्मक कदम ज़रूरी हैं: परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाना, और संगी मसीहियों के साथ भी मज़बूत बंधन में बँधना।
जब हमारी यह आदत बन जाती है कि हम “हर प्रकार” से यहोवा से प्रार्थना करते हैं (अपने पापों को स्वीकार करने, माफी पाने के लिए निवेदन करने, निर्देशन माँगने, आशिषों के लिए धन्यवाद करने, दिल से स्तुति करने के द्वारा) और “हर समय” करते हैं (सबके सामने, अकेले में, व्यक्तिगत तौर पर, और अचानक से), तब हम यहोवा के करीब आते हैं। यही हमारे लिए सबसे बड़ी सुरक्षा होगी।—रोमियों ८:३१; याकूब ४:७, ८.
दूसरी ओर, हमें सलाह दी गई है कि “सब पवित्र लोगों के लिये,” यानी अपने संगी मसीहियों के लिए प्रार्थना करें। हम अपनी प्रार्थनाओं में उन आध्यात्मिक भाइयों को याद कर सकते हैं जो दूर-दूर जगहों पर रहते हैं और सताहट या दूसरी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। लेकिन उन मसीहियों के बारे में क्या जिनके साथ हम हर दिन काम और संगति करते हैं? अच्छा होगा कि हम उनके लिए भी प्रार्थना किया करें, जैसे यीशु ने भी अपने चेलों के लिए प्रार्थना की थी। (यूहन्ना १७:९; याकूब ५:१६) इस तरह प्रार्थना करने से हमारा रिश्ता एक दूसरे के साथ मज़बूत बनता है, साथ-ही हमें ताकत भी मिलती है कि “उस दुष्ट” के हमलों का सामना कर सकें।—२ थिस्सलुनीकियों ३:१-३.
अन्त में, प्रेरित पतरस की प्रेममय सलाह हमें अच्छी तरह याद रखनी चाहिए: “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिये संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है।” (१ पतरस ४:७, ८) अपनी और दूसरों की कमियाँ हमारे दिलो-दिमाग में आसानी से बैठ सकती हैं और बाधा या ठोकर का कारण बन सकती हैं। शैतान हमारी इस कमज़ोरी के बारे में अच्छी तरह जानता है। उसकी एक गंदी चाल है फूट डालो और राज करो। इसलिए हमें तुरंत ऐसे पापों को एक-दूसरे के प्रति गहरे प्रेम से ढाँपने की ज़रूरत है जिससे हम “शैतान को अवसर” न दें।—इफिसियों ४:२५-२७.
अभी आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बने रहिए
जब आप देखते हैं कि आपके बाल बिगड़ गए हैं या आपकी टाई टेड़ी हो गई है, तब आप क्या करते हैं? अकसर तो यही होता होगा कि आप जल्द-से-जल्द इन्हें ठीक करने की कोशिश करते होंगे। शायद ही कोई होगा जो ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देगा, यह सोचते हुए कि शारीरिक बातों की क्या चिंता करनी। मगर जब हमारी आध्यात्मिक कमज़ोरियों की बात आती है तो हमें उन पर भी तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है। शारीरिक कमी को दूर नहीं किया तो शायद लोग हमें पसंद न करें, लेकिन आध्यात्मिक कमी को अगर दूर नहीं किया तो यहोवा हमें नापसंद कर सकता है।—१ शमूएल १६:७.
यहोवा ने प्रेमपूर्वक मदद मुहय्या की हुई है जिससे हम किसी भी आध्यात्मिक कमज़ोरी को जड़ से खत्म कर सकते हैं और आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बने रह सकते हैं। मसीही सभाओं, बाइबल प्रकाशनों, प्रौढ़ और चिंता करनेवाले संगी मसीहियों के द्वारा, वह हमें लगातार याद दिलाता रहता है कि हमें क्या करना चाहिए। अब हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम उसकी सलाह को सुनें और उस पर अमल करें। ऐसा करने में मेहनत लगती है, साथ-साथ आत्म-अनुशासन की भी ज़रूरत पड़ती है। मगर याद रखिए कि प्रेरित पौलुस ने बड़ी ईमानदारी से क्या कहा: “मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है। परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।”—१ कुरिन्थियों ९:२६, २७.
तो फिर, सावधान रहिए, ऐकिलीज़ की एड़ी के जैसे अपने अंदर कभी आध्यात्मिक कमज़ोरी को पैदा न होने दीजिए। इसके बजाए आइए हम नम्रता और जोश के साथ अभी अपनी जाँच करें और देखें कि हममें कोई आध्यात्मिक कमज़ोरी तो नहीं। अगर है तो उसे दूर करने के लिए ज़रूरी कदम उठाएँ।
[पेज 19 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो।” —२ कुरिन्थियों १३:५.
[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“प्रार्थना के लिये सचेत रहो। सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।”ப —१ पतरस ४:७, ८.
[पेज 20 पर बक्स/तसवीर]
पने आप से पूछिए . . .
◆ क्या मैं सभाओं की तैयारी करने में उतनी उत्सुकता दिखाता हूँ जितनी खरीदारी करने या टीवी देखने में दिखाता हूँ?
◆ खुशहाल ज़िंदगी जीने के लिए दूसरे लोग जो तरक्की कर रहे हैं क्या मैं उनसे जलता हूँ?
◆ जब कोई कुछ ऐसा कर देता है या कह देता है जो मुझे पसंद नहीं तब क्या मैं जल्दी से चिढ़ जाता या परेशान हो जाता हूँ?
◆ क्या मुझे सलाह स्वीकार करने में मुश्किल होती है या क्या मैं ऐसा महसूस करता हूँ कि दूसरे हमेशा मुझमें नुक्स ही निकालते हैं?
◆ क्या मुझे दूसरों के साथ मिल-जुलकर रहने में परेशानी होती है?
◆ दुनिया के साथ-साथ क्या मेरे आदर्श भी गिरते जा रहे हैं?
◆ क्या मेरे जीवन में खास आध्यात्मिक लक्ष्य हैं?
◆ इन आध्यात्मिक लक्ष्यों को पाने के लिए मैं क्या कर रहा हूँ?
[पेज 18 पर चित्रों का श्रेय]
Achilles: From the book Great Men and Famous Women; Roman soldiers and page 21: Historic Costume in Pictures/Dover Publications, Inc., New York