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  • संकट के समय में पौलुस की जीत

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  • संकट के समय में पौलुस की जीत
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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w99 5/1 पेज 30-31

उन्होंने यहोवा की इच्छा पूरी की

संकट के समय में पौलुस की जीत

पौलुस बड़ी मुसीबत में है। वह और उसके साथ दूसरे २७५ जन जिस जहाज़ पर सवार हैं वह भूमध्यसागर की सबसे बड़ी आँधी, यूरकुलीन में फँस गया है। तूफान इतना प्रचंड है कि न दिन में सूरज दिखता है और न रात को तारे। यात्रियों की जान के लाले पड़ रहे हैं। लेकिन पौलुस उन्हें दिलासा देता है और कहता है कि सपने में परमेश्‍वर की ओर से उसे यह बताया गया है: “तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, केवल जहाज की।”—प्रेरितों २७:१४, २०-२२.

तूफान में फँसे हुए जब १४वीं रात हुई तो मल्लाह पानी की थाह लेकर हैरान रह गये—पानी सिर्फ २० पुरसा गहरा है।a थोड़ा आगे बढ़कर वे फिर से थाह लेते हैं। अब पानी सिर्फ १५ पुरसा गहरा है। ज़मीन करीब है! लेकिन इस खुशखबरी के साथ-साथ एक मुश्‍किल भी है। रात को छिछले पानी में हचकोले खाकर जहाज़ पथरीली जगहों से टकरा सकता है और तहस-नहस हो सकता है। बुद्धिमानी दिखाते हुए मल्लाह लंगर डाल देते हैं। कुछ मल्लाह पानी में डोंगी उतारकर उसमें जाना चाहते हैं और समुद्र का जोखिम उठाना चाहते हैं।b लेकिन पौलुस उन्हें रोकता है। वह सूबेदार और सिपाहियों से कहता है: “यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम नहीं बच सकते।” सूबेदार पौलुस की बात मान लेता है और अब सभी २७६ यात्री बड़ी बेचैनी से भोर का इंतज़ार करते हैं।—प्रेरितों २७:२७-३२.

जहाज़ टूट गया

अगली सुबह, जहाज़ के यात्रियों को एक खाड़ी और उसका किनारा दिखता है। उनमें फिर से आशा की उमंग उठती है। मल्लाह लंगरों को खोल देते हैं और हवा के सामने अगला पाल चढ़ा देते हैं। जहाज़ किनारे की ओर आने लगता है—और इसमें शक नहीं कि लोग खुशी से चिल्ला उठते हैं।—प्रेरितों २७:३९, ४०.

लेकिन अचानक जहाज़ बालू में फँस जाता है। उससे भी बदतर तो यह है कि तेज़ लहरें जहाज़ की पिछाड़ी से टकराती हैं और उसके टुकड़े-टुकड़े कर देती हैं। सभी यात्रियों को जहाज़ छोड़ना पड़ेगा! (प्रेरितों २७:४१) लेकिन एक समस्या है। जहाज़ पर सवार बहुत से लोग—पौलुस भी—कैदी हैं। रोमी कानून के तहत जो सिपाही अपने कैदी को भागने देता है उसे वही सज़ा मिलती है जो उसके कैदी को मिलनेवाली थी। उदाहरण के लिए, यदि एक हत्यारा भाग जाता तो लापरवाह सिपाही को अपनी जान से कीमत चुकानी पड़ती।

ऐसे नतीजों से डरते हुए सिपाही सोचते हैं कि सभी कैदियों को मार डालें। लेकिन सूबेदार की पौलुस के साथ दोस्ती है सो वह उन्हें रोकता है। वह आज्ञा देता है कि जो तैर सकते हैं वे पानी में कूदकर तैरते हुए किनारे तक पहुँच जाएँ। जिनको तैरना नहीं आता वे पटरों पर या जहाज़ की दूसरी वस्तुओं के सहारे निकल जाएँ। टूटे जहाज़ के यात्री एक-एक करके जैसे-तैसे किनारे तक पहुँचते हैं। पौलुस की बात ठीक निकली, किसी की जान नहीं गयी!—प्रेरितों २७:४२-४४.

माल्टा में चमत्कार

इन थके-हारे लोगों को एक टापू पर शरण मिलती है जो माल्टा कहलाता है। वहाँ ‘अन्यभाषी लोग’ (NW) रहते हैं, अक्षरशः बर्बर (यूनानी, वारवारॉस) लोग।c लेकिन माल्टा के लोग वहशी नहीं हैं। इसके विपरीत, पौलुस का हमसफर लूका रिपोर्ट करता है कि उन्होंने “हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा था और जाड़े के कारण उन्हों ने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया।” माल्टा के लोगों के साथ-साथ पौलुस भी लकड़ियाँ बटोरकर आग पर रखता है।—प्रेरितों २८:१-३.

अचानक, एक साँप पौलुस के हाथ से लिपट जाता है! टापू पर रहनेवाले समझते हैं कि ज़रूर पौलुस हत्यारा होगा। शायद वे सोचते हैं कि शरीर के जिस अंग से व्यक्‍ति ने पाप किया है परमेश्‍वर उसी अंग पर हमला करके पापी को सज़ा देता है। लेकिन देखो! पौलुस साँप को झटककर आग में डाल देता है और लोग हैरान रह जाते हैं। लूका आँखों देखा हाल बताता है: “वे बाट जोहते थे, कि [पौलुस] सूज जाएगा, या एकाएक गिरके मर जाएगा।” टापूवासी अपना विचार बदलकर यह कहने लगते हैं कि पौलुस ज़रूर कोई देवता है।—प्रेरितों २८:३-६.

पौलुस अगले तीन महीने माल्टा में बिताता है और इस दौरान वह पुबलियुस के पिता को और बाकी बीमारों को चंगा करता है। पुबलियुस उस टापू का प्रधान था और उसने पौलुस का अतिथि-सत्कार किया था। इसके अलावा, पौलुस सत्य के बीज बोता है जिससे माल्टा के सत्कारशील निवासियों को बहुत आशिषें मिलती हैं।—प्रेरितों २८:७-११.

हमारे लिए सबक

अपनी सेवकाई के दौरान, पौलुस ने कई चुनौतियों का सामना किया। (२ कुरिन्थियों ११:२३-२७) यहाँ बताये गये वृत्तांत में वह सुसमाचार की खातिर कैदी था। ऊपर से उसे दूसरी मुसीबतें झेलनी पड़ीं जिनकी उसने अपेक्षा भी नहीं की थी: प्रचंड तूफान और फिर जहाज़ का टूटना। इतना कुछ सहते हुए भी पौलुस का यह दृढ़निश्‍चय कभी डगमगाया नहीं कि वह जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार करता रहेगा। अपने अनुभव से उसने लिखा: “हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों ४:१२, १३.

जीवन की समस्याओं के चलते कभी हमारा यह संकल्प कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिए कि हम सच्चे परमेश्‍वर के जोशीले सेवक बने रहेंगे! जब अचानक कोई समस्या आ जाती है, तो हम अपना बोझ यहोवा पर डाल देते हैं। (भजन ५५:२२) फिर हम धीरज धरते हैं और देखते हैं कि कैसे वह परीक्षा का सामना करने में हमारी मदद करता है। इस बीच, हम वफादारी से उसकी सेवा में लगे रहते हैं और यह भरोसा रखते हैं कि उसे हमारी चिंता है। (१ कुरिन्थियों १०:१३; १ पतरस ५:७) चाहे जो भी समस्या आये, विश्‍वास में अटल रहने के द्वारा संकट के समय हमारी भी जीत हो सकती है, जैसे पौलुस की हुई।

[फुटनोट]

a एक पुरसा को आम तौर पर चार हाथ या करीब १.८ मीटर माना जाता है।

b डोंगी एक छोटी नाव हुआ करती थी जिसे किनारे तक आने के लिए तब इस्तेमाल किया जाता था जब जहाज़ को तट से थोड़ी दूरी पर खड़ा किया जाता था। लगता है कि मल्लाह अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें दूसरों की परवाह नहीं थी जिन्हें जहाज़ को सँभालने के बारे में कुछ खास नहीं पता था।

c विल्फ्रॆड फंक की पुस्तक शब्द उद्‌गम (अंग्रेज़ी) कहती है: “यूनानी लोग अपनी भाषा को छोड़ बाकी भाषाओं को घटिया समझते थे, और कहते थे कि वे ‘वार-वार’ सुनायी पड़ती हैं और जो भी ये भाषाएँ बोलता था उन्हें वारवारॉस कहते थे।”

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