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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 8/15 पेज 25-28

‘स्वर्ग के अन्‍न’ से लाभ पाना

यहोवा ने चमत्कार करके इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाया था। मगर कुछ ही समय बाद उनका अपने मुक्‍तिदाता, यहोवा पर से विश्‍वास कम हो गया। इसलिए, यहोवा ने उनको ४० साल तक सीनै के वीराने में भटकने की सज़ा दी। लेकिन इसके बावजूद भी यहोवा ने इस्राएलियों को और उनके साथ “मिली जुली हुई एक भीड़” को “बहुतायत से” खाने-पीने की चीज़ें दीं। (निर्गमन १२:३७, ३८) यह इंतज़ाम कैसे किया गया, इसके बारे में भजन ७८:२३-२५, (NHT) में कहा गया है कि यहोवा ने “आकाश के बादलों को आज्ञा दी, और स्वर्ग के द्वार खोले। उसने उनके खाने के लिए मन्‍ना बरसाया, और स्वर्ग से अन्‍न दिया। मनुष्यों ने स्वर्गदूतों की रोटी खाईं; उसने उनके लिए बहुतायत से भोजन भेजा।”

मूसा ने भी मन्‍ना खाया था, और इसलिए उसने बताया कि यह भोजन कितना लाजवाब और अलग किस्म का था। उसने लिखा कि भोर को “जब ओस की तह सूख गई तो . . . जंगल की धरती पर छोटे छोटे छिलके पाले के किनकों के समान भूमि पर पड़े थे। जब इस्राएलियों ने देखा तो आपस में कहने लगे, ‘यह क्या है?’” यानी वे अपनी इब्रानी भाषा में कहने लगे “मान हू?” शायद इसी से शब्द मन्‍ना आया और इस्राएलियों ने इस भोजन को यही नाम दिया। मूसा ने कहा: “वह धनिये के बीज के समान श्‍वेत था। उसका स्वाद शहद के बने पुए के समान था।”—निर्गमन १६:१३-१५, ३१, फुटनोट, NHT.

कुछ लोगों का कहना है कि मन्‍ना एक कुदरती चीज़ थी, मगर यह बात गलत है। इसके इंतज़ाम में किसी इंसान का हाथ नहीं था, और ना ही यह कोई कुदरती चीज़ थी। क्योंकि, इस्राएली जहाँ कहीं भी जाते और मौसम चाहे जो भी होता, उन्हें मन्‍ना मिलता था। मन्‍ना को अगर रात भर रखा जाता, तो इसमें कीड़े पड़ जाते थे और बदबू आने लगती थी। सब्त के दिन मन्‍ना नहीं मिलता था इसलिए हर परिवार को सब्त से पहलेवाले दिन दो गुना ज़्यादा मन्‍ना बटोरना पड़ता था। लेकिन तब वह खराब नहीं होता था। इसलिए उसे सब्त के दिन खाया जा सकता था। बेशक मन्‍ना का इंतज़ाम एक चमत्कार था।—निर्गमन १६:१९-३०.

भजन ७८ में “शूरवीरों” या ‘स्वर्गदूतों’ का ज़िक्र किया गया है जिससे लगता है कि यहोवा ने मन्‍ना का इंतज़ाम करने के लिए शायद स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया था। (भजन ७८:२५) इस्राएलियों को मन्‍ना चाहे जैसे भी मिला हो, उन्हें परमेश्‍वर का एहसान मानना चाहिए था, क्योंकि उसने उन पर दया की थी। लेकिन कई इस्राएलियों ने परमेश्‍वर का एहसान नहीं माना, जिसने उन्हें मिस्र की गुलामी से छुड़ाया था। अगर हम इस बात पर ध्यान न दें कि यहोवा ने हमारे लिए जो इंतज़ाम किए हैं, वे उसके प्यार और कृपा का सबूत हैं, तो हमारी नज़रों में उन इंतज़ामों की अहमियत कम हो सकती है, यहाँ तक हम एहसानफरामोश बन सकते हैं। सो, हम यहोवा के बहुत ही शुक्रगुज़ार हैं कि उसने इस्राएल के छुटकारे और उसके बाद हुई घटनाओं को “हमारी ही शिक्षा” के लिए बाइबल में दर्ज करवाया है।—रोमियों १५:४.

इस्राएलियों के लिए और आज मसीहियों के लिए सबक

यहोवा ने मन्‍ना का इंतज़ाम तीस लाख इस्राएलियों का सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं किया था। बल्कि, वह ‘उन्हें नम्र बनाना, और उनकी परीक्षा लेना’ चाहता था, ताकि उन्हें शुद्ध करे और सुधारे जिससे उन्हीं का भला हो। (व्यवस्थाविवरण ८:१६; यशायाह ४८:१७) अगर वे यहोवा के हाथों शुद्ध होते और सुधारे जाते तो वह उन्हें वादा किए गए देश में शांति और खुशहाली की आशीष देकर ‘अन्त में उनका भला ही’ करता।

उन्हें एक ज़रूरी बात सीखनी थी कि “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुंह से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है।” (व्यवस्थाविवरण ८:३) अगर परमेश्‍वर ने उन्हें मन्‍ना नहीं दिया होता तो वे भूख से तड़प-तड़पकर मर जाते और इस बात का उन्हें पूरा-पूरा एहसास था। (निर्गमन १६:३, ४) और जिन इस्राएलियों को इस बात का एहसास था, उन्हें हर दिन याद दिलाया गया कि वे यहोवा पर पूरी तरह निर्भर हैं। इस तरह उन्हें नम्र भी बनाया गया। और जब वे वादा किए गए देश में जाते, जहाँ खाने-पीने की बहुतायत होती, वे यहोवा को कभी नहीं भूलते और यह भी नहीं भूलते कि वे उसी पर निर्भर हैं।

इस्राएलियों की तरह मसीहियों को भी हमेशा यह एहसास होना चाहिए कि अपनी शारीरिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें यहोवा पर ही निर्भर होना है। (मत्ती ५:३; ६:३१-३३) शैतान ने जब एक बार यीशु की परीक्षा ली तो उसने जवाब में व्यवस्थाविवरण ८:३ में दी गई मूसा की बातें दोहराते हुए कहा: “लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।” (मत्ती ४:४) जी हाँ, यहोवा के सच्चे उपासकों के लिए उसका वचन भोजन की तरह है जिससे उन्हें जीने की ताकत मिलती है। और जब वे परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक उसके साथ-साथ चलते हैं और अपनी ज़िंदगी में उसके राज्य को पहला स्थान देते हैं तो इससे उन्हें फायदा होता है। इस तरह उनका विश्‍वास भी मज़बूत होता है।

यहोवा हम असिद्ध इंसानों से प्यार करता है, और इसलिए वह हमें कई चीज़ें देता है। लेकिन जब वे हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन जाती हैं, तो हमारी नज़रों में उनकी अहमियत कम हो सकती है। मिसाल के तौर पर, जब यहोवा ने चमत्कार करके इस्राएलियों को मन्‍ना दिया तब शुरू-शुरू में तो वे इसे देखकर हैरान हो गए और उनको बहुत खुशी हुई। लेकिन समय के बीतते कई लोग उसके बारे में शिकायत करने लगे। वे इतने बेकदर हो गए कि कुड़कुड़ाकर कहने लगे: “हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।” और इस तरह उन्होंने दिखाया कि वे “जीवते परमेश्‍वर से दूर” जाने लगे थे। (गिनती ११:६; २१:५; इब्रानियों ३:१२) उन्होंने जो किया वह ‘हमारी चितावनी के लिये है जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं।’—१ कुरिन्थियों १०:११.

उनके उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं? यह कि हम बाइबल की शिक्षाओं को या विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास की ओर से किए गए इंतज़ामों को कभी मामूली बात न समझें या हमारी नज़रों में उनकी अहमियत को कभी कम न होने दें। (मत्ती २४:४५) अगर हम यहोवा के वरदानों को मामूली समझने लगेंगे या उनसे ऊबने लगेंगे, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता भी कमज़ोर होने लगेगा।

यहोवा हमें एक साथ ढेर सारी नई-नई और सनसनीखेज़ बातें नहीं सिखाता। इसके बजाय, वह अपने वचन के बारे में हमें धीरे-धीरे नई समझ देता है, क्योंकि वह जानता है कि इसी में हमारी भलाई है। (नीतिवचन ४:१८) इससे हमें सीखी हुई बातें अच्छी तरह समझने में और उन पर अमल करने में आसानी होती है। यहोवा की तरह ही यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाया। वह “उन की समझ के अनुसार” उन्हें परमेश्‍वर का वचन समझाता था।—मरकुस ४:३३. यूहन्‍ना १६:१२ से तुलना करें।

परमेश्‍वर के इंतज़ामों के लिए अपनी कदरदानी बढ़ाइए

यीशु एक ही बात को बार-बार दोहराकर समझाता था। किसी बात को, जैसे बाइबल के किसी उसूल को, हम शायद सुनते ही समझ लें। लेकिन इसे ज़हन में उतारने और इसे “नये [मसीही] मनुष्यत्व” का एक हिस्सा बनाने में शायद ज़रा वक्‍त लगेगा, खासकर अगर दुनिया के पुराने तौर-तरीके हमारे अंदर घर कर गए हैं। (इफिसियों ४:२२-२४) यह बात यीशु के शिष्यों के बारे में बिलकुल सच थी। उन्हें अपने घमंड पर काबू पाकर नम्रता पैदा करनी थी। यीशु को उन्हें नम्रता के बारे में कई बार सिखाना पड़ा। इसी बात को उसने हर बार अलग-अलग तरीकों से सिखाया ताकि यह बात उनके ज़हन में उतरे और आखिर में ऐसा ही हुआ।—मत्ती १८:१-४; २३:११, १२; लूका १४:७-११; यूहन्‍ना १३:५, १२-१७.

यीशु की इस मिसाल पर चलते हुए आज मसीही सभाओं में और वॉच टावर संस्था की किताबों में जब कोई विषय दोहराया जाता है तो उसके पीछे एक मकसद होता है और उस विषय को एक अलग अंदाज़ से पेश किया जाता है। यहोवा ने इनका इंतज़ाम इसलिए किया है क्योंकि वो हमसे प्यार करता है। सो आइए हम इस्राएलियों की तरह न हों जो मन्‍ना खाकर ऊब गए थे। हम परमेश्‍वर के इंतज़ामों की दिल से कदर करें और वह हमें जो देता है उसे लेने में हम कभी बोरियत न महसूस करें। जब यहोवा किसी बात को बार-बार दोहराता है, तो हमें बिना कुड़कुड़ाए उन पर अमल करना चाहिए। तभी हम अच्छे गुण पैदा कर पाएँगे। (२ पतरस ३:१) अगर हम ऐसा सही नज़रिया रखें, तो बेशक इससे ज़ाहिर होगा कि हम परमेश्‍वर के वचन को ‘समझ’ रहे हैं और यह हमारे दिलो-दिमाग में पूरी तरह समा रहा है। (मत्ती १३:१५, १९, २३) इस बारे में भजनहार दाऊद ने एक बढ़िया मिसाल रखी। हालाँकि उसे तरह-तरह का आध्यात्मिक भोजन नहीं मिला जो आज हमें मिलता है, फिर भी उसने कहा कि यहोवा की व्यवस्था “मधु से और टपकनेवाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं”!—भजन १९:१०.

अनंत जीवन देनेवाला “मन्‍ना”

यीशु ने यहूदियों से कहा, “जीवन की रोटी मैं हूं। तुम्हारे बापदादों ने जंगल में मन्‍ना खाया और मर गए। . . . जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है।” (यूहन्‍ना ६:४८-५१) असल रोटी या मन्‍ना से न तो अनंत जीवन मिला था और न ही मिल सकता है। लेकिन जो यीशु के छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास करते हैं, उन्हें आगे चलकर अनंत जीवन की आशीष मिलेगी।—मत्ती २०:२८.

यीशु की छुड़ौती पर विश्‍वास करनेवाले ज़्यादातर लोगों को एक बगीचे-जैसी सुंदर पृथ्वी पर अनंत जीवन मिलेगा। इन लोगों की एक “बड़ी भीड़” आनेवाले उस “बड़े क्लेश” से बच निकलेगी, जिसमें दुनिया की सारी बुराइयों का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा। जब इस्राएली मिस्र से रवाना हुए थे, तो उनके साथ परदेशियों की “मिली जुली हुई एक भीड़” भी थी, जो आज की “बड़ी भीड़” को सूचित करती है। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १४; निर्गमन १२:३८) और इस्राएली लोग आज जिन लोगों को सूचित करते हैं, उन्हें और भी बढ़िया इनाम मिलता है। उनकी गिनती १,४४,००० है। प्रेरित पौलुस ने कहा कि ये लोग परमेश्‍वर के आत्मिक इस्राएल हैं और उनका इनाम है स्वर्ग के जीवन के लिए दोबारा जिलाया जाना। (गलतियों ६:१६; इब्रानियों ३:१; प्रकाशितवाक्य १४:१) वहाँ यीशु उन्हें एक खास तरह का मन्‍ना देगा।

“गुप्त मन्‍ना” का मतलब

पुनरुत्थान पाने के बाद यीशु ने आत्मिक इस्राएल के लोगों से कहा कि “जो जय पाए, उस को मैं गुप्त मन्‍ना में से दूंगा।” (प्रकाशितवाक्य २:१७) यह लाक्षणिक गुप्त मन्‍ना हमें उस मन्‍ना की याद दिलाता है जिसे मूसा ने यहोवा के कहे अनुसार वाचा के पवित्र संदूक में सोने के एक मर्तबान में रखा था। यह संदूक तंबू के परम-पवित्र स्थान में रखा जाता था, और इसलिए वह दिखाई नहीं देता था, मानो उसे गुप्त में रखा गया हो। संदूक के अंदर, यादगार के लिए रखा गया यह मन्‍ना कभी खराब नहीं हुआ। इसलिए यह एक ऐसे भोजन की निशानी थी जो कभी खराब नहीं होती। (निर्गमन १६:३२; इब्रानियों ९:३, ४, २३, २४) सो, १,४४,००० लोगों को गुप्त मन्‍ना देकर यीशु इस बात की गारंटी देता है कि वे परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्रों की हैसियत से अमरत्व पाएँगे और अविनाशी होंगे।—यूहन्‍ना ६:५१; १ कुरिन्थियों १५:५४.

भजनहार ने कहा: “जीवन का सोता तेरे [यहोवा के] ही पास है।” (भजन ३६:९) इस बुनियादी सच्चाई को मूसा के समय दिया गया मन्‍ना और लाक्षणिक मन्‍ना कितनी अच्छी तरह साबित करते हैं! परमेश्‍वर ने जो मन्‍ना पुराने ज़माने के इस्राएलियों को दिया, जो लाक्षणिक मन्‍ना, यानी यीशु का शरीर हमारी खातिर दिया, और जो गुप्त मन्‍ना वह यीशु के ज़रिए १,४४,००० को देता है, इन सबसे हमें यही याद दिलाया जाता है कि हमारी ज़िंदगी पूरी तरह यहोवा पर निर्भर है। (भजन ३९:५, ७) इसलिए आइए हम नम्रता से कबूल करें और हमेशा याद रखें कि हम पूरी तरह यहोवा पर निर्भर हैं। तब यहोवा ‘अन्त में हमारा भला करेगा।’—व्यवस्थाविवरण ८:१६.

[पेज 26 पर तसवीरें]

अनंत जीवन के लिए सभी इंसान उस “जीवन की रोटी” पर निर्भर हैं जो “स्वर्ग से उतरी” है

[पेज 28 पर तसवीर]

हर मीटिंग में हाज़िर होकर हम दिखाते हैं कि जब यहोवा हमें कोई बात याद दिलाता है, तो हम उसकी कदर करते हैं

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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