प्रकाशितवाक्य का संदेश—डरावना है या एक खुशखबरी?
“आज की हालत देखकर तो लगता है कि अपॉकलिप्स (दुनिया का अंत, कयामत) न सिर्फ बाइबल में बताई गई एक धारणा है बल्कि यह हकीकत होकर ही रहेगी।”—हावीयेर पेरस दे क्वेयार, युनाइटेड नेशन्स के भूतपूर्व सेक्रेट्री जनरल
इस जाने-माने शख्स ने “अपॉकलिप्स” का यह मतलब निकाला कि दुनिया का एक भयानक अंत होनेवाला है। आम लोग भी इस शब्द का यही मतलब निकालते हैं। फिल्मों, किताबों, पत्रिकाओं और अखबारों में भी अपॉकलिप्स की ऐसी ही तस्वीर खींची जाती है कि एक महा भयंकर सर्वनाश में पूरी दुनिया तहस-नहस हो जाएगी। लेकिन “अपॉकलिप्स” शब्द का असल में क्या मतलब है? और सबसे ज़रूरी सवाल यह है कि बाइबल की जिस किताब से अपॉकलिप्स या दुनिया के अंत की धारणा निकली है उस किताब में हमारे लिए कौन-सा संदेश है?
जैसा हमने पहले देखा है, “अपॉकलिप्स” की धारणा बाइबल की प्रकाशितवाक्य किताब से ली गई है। यह शब्द एक यूनानी शब्द से निकला है जिसका मतलब है, “बेनकाब करना” या “परदा हटाना।” तो फिर प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में किस बात पर से परदा हटाया गया है? क्या इसमें यही बताया गया है कि जल्द ही दुनिया पूरी तरह तबाह हो जाएगी और कोई इंसान नहीं बचेगा? एंस्टिट्यू द फ्रांस के इतिहासकार, शॉन दॆल्यूमो ऐसा नहीं सोचते। प्रकाशितवाक्य की किताब के बारे में जब उनकी राय पूछी गई, तो उन्होंने कहा: “दरअसल यह किताब हमारा हौसला बढ़ाती है और हममें एक उम्मीद पैदा करती है, लेकिन दुनिया के अंत के बारे में इसमें जो भविष्यवाणियाँ दी गई हैं, लोगों ने सिर्फ उन्हीं पर ज़्यादा ध्यान दिया है और फिर इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।”
प्रकाशितवाक्य के बारे में शुरू के ईसाइयों का नज़रिया
पहली-दूसरी सदी के “ईसाइयों” का प्रकाशितवाक्य की किताब और उसमें बताए गए मसीह के हज़ार साल के राज्य (मिलेनियम) के बारे में क्या नज़रिया था? इस बारे में इतिहासकार शॉन दॆल्यूमो आगे कहते हैं: “मेरे हिसाब से पहली कुछ सदियों के ईसाई, मसीह के हज़ार साल के राज्य में काफी हद तक विश्वास करते थे। . . . इसमें विश्वास करनेवालों में कुछ जानी-मानी हस्तियाँ भी थीं, जैसे एशिया माइनर के हाइरापोलिस के बिशप, पेपीअस, . . . पैलिस्टीन के संत जस्टिन जिन्हें करीब सन् १६५ में रोम में शहीद होना पड़ा, लायोन्स के बिशप, संत आइरीनिअस जिनकी सन् २०२ में मौत हो गई थी, टर्टूलियन, जो सन् २२२ में मर गए और . . . महान लेखक लैक्टैन्शियस।”
कहा जाता है कि पेपीअस को सा.यु. १६१ या १६५ में परगमम में मार डाला गया था। उनके बारे में कैथोलिक एंसाइक्लोपीडिया कहती है: “हाइरापोलिस के बिशप पेपीअस, संत यूहन्ना के शिष्य थे। वे मसीह के हज़ार साल के बहुत बड़े हिमायती थे। वे कहते थे कि उन्हें यह शिक्षा उन लोगों से मिली जो प्रेरितों के ज़माने में रहते थे। आइरीनिअस का कहना है कि चर्च के कुछ ‘पादरियों’ ने यह शिक्षा प्रेरित यूहन्ना से सीखी क्योंकि खुद यूहन्ना इसे मसीह की एक शिक्षा मानता था। इन पादरियों ने खुद यूहन्ना को देखा था और उसी से यह शिक्षा पाई थी। इस शिक्षा के मुताबिक, सबसे पहले मरे हुओं को फिर से जी उठाया जाएगा और फिर इसके बाद इस धरती पर यीशु मसीह का हज़ार साल का शानदार राज्य शुरू होगा। और इतिहासकार यूसेबियस का कहना है कि पेपीअस ने अपनी किताब में दावे के साथ कहा कि यह शिक्षा बाइबल के मुताबिक सच है।”
तो इससे हमें शुरू के ईसाइयों के बारे में क्या पता चलता है? क्या प्रकाशितवाक्य की किताब ने उनमें डर पैदा किया या क्या इसने मसीह के हज़ार साल के राज्य (मिलेनियम) पर उनका विश्वास इतना मज़बूत किया कि वे उसका इंतज़ार करने लगे थे? इस किताब से मसीह के हज़ार साल के राज्य पर उनका विश्वास इतना मज़बूत हुआ कि इतिहासकार उन लोगों को ख़ीलियस्त कहते हैं, यानी मिलेनियम में विश्वास करनेवाले। दिलचस्पी की बात है कि ख़ीलियस्त एक यूनानी शब्द ख़िलियती से लिया गया है, जिसका मतलब है हज़ार साल। तो इससे पता चलता है कि ज़्यादातर ईसाई, यीशु मसीह के हज़ार साल के राज्य पर विश्वास करते थे और मानते थे कि उस राज्य में इस दुनिया को बेहद खूबसूरत बना दिया जाएगा। और इस हज़ार साल के राज्य का साफ-साफ ज़िक्र बाइबल में सिर्फ प्रकाशितवाक्य की किताब या अपॉकलिप्स में मिलता है। (२०:१-७) तो इससे साफ ज़ाहिर होता है कि प्रकाशितवाक्य ने शुरू के मसीहियों में दहशत नहीं फैलाई थी बल्कि उन्हें एक खुशहाल ज़िंदगी की आशा दी थी। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में चर्च के इतिहास के प्रोफेसर, सीसल कादू ने अपनी किताब, दि अर्ली चर्च एंड द वर्ल्ड में लिखा: “शुरू में काफी समय तक चर्च में मिलेनियम की शिक्षा दी जाती थी और इस शिक्षा को काफी हद तक लोग मानते थे। यहाँ तक कि बड़े-बड़े विद्वान भी यह शिक्षा दिया करते थे। लेकिन वक्त के गुज़रते इस शिक्षा पर से लोगों का विश्वास हटने लगा।”
मिलेनियम की शिक्षा को क्यों ठुकराया गया
तो इतिहास गवाह है कि शुरू के ज़्यादातर मसीही विश्वास करते थे कि पृथ्वी पर मसीह हज़ार साल के लिए राज करेगा, तो फिर यह कैसे हुआ कि ‘वक्त के गुज़रते मिलेनियम की शिक्षा पर से लोगों का विश्वास हटने लगा?’ विद्वान रॉबर्ट माउंस इसका जवाब देते हैं, “अफसोस की बात है कि मिलेनियम पर विश्वास करनेवाले कुछ लोग मसीह के हज़ार साल के राज्य को लेकर उल्टी-सीधी बातें सोचने लगे। वे यह सोचने लगे कि हज़ार साल के दौरान हमें हर तरह का ऐशो-आराम मिलेगा और हमारी काम-वासना भी पूरी होगी।” उनके इस गलत सोच-विचार की वज़ह से कुछ लोगों ने इस शिक्षा का खंडन किया और आगे चलकर इसे पूरी तरह ठुकरा दिया। लेकिन कितना अच्छा होता अगर वे मिलेनियम की आशा को ठुकराने के बजाय उन लोगों के सोच-विचार को सुधारते, जो इसका गलत मतलब निकालने लगे थे।
मिलेनियम की शिक्षा के खिलाफ जो लोग थे, उन्होंने इस शिक्षा को जड़ से उखाड़ने के लिए बहुत ही घटिया तरीके अपनाए। ऐसा ही एक तरीका दूसरी सदी के आखिरी सालों और तीसरी सदी की शुरूआत में रोमन कैथोलिक पादरी केयस ने अपनाया था। डीक्सयोनैर द तेओलोज़ी कातोलीक के मुताबिक उसने “इस शिक्षा को गलत साबित करने के लिए प्रकाशितवाक्य और संत यूहन्ना के सुसमाचार की किताब को बाइबल का एक हिस्सा मानने से ही साफ-साफ इंकार कर दिया।” डीक्सयोनैर आगे कहती है कि सिकंदरिया के तीसरे सदी के बिशप, दियुनुसियुस ने भी इस शिक्षा के खिलाफ बातें लिखीं। उसने भी “बेझिझक कहा कि संत यूहन्ना का प्रकाशितवाक्य, बाइबल का एक हिस्सा बिलकुल भी नहीं है। उसने इसलिए ऐसा कहा क्योंकि अगर संत यूहन्ना की किताब, प्रकाशितवाक्य ही गलत साबित हो जाए तो कोई भी मिलेनियम की शिक्षा को सही साबित नहीं कर सकता।” लेकिन इन विद्वानों ने मिलेनियम की शिक्षा का जिस तरीके से जमकर विरोध किया उससे यह साफ ज़ाहिर होता है कि उस वक्त एक ऐसी बुरी हवा चल रही थी जिसका उनपर ज़बरदस्त असर हुआ था।
प्रोफेसर नॉर्मन कोन ने अपनी किताब पर्स्यूट ऑफ द मिलेनियम में लिखा: “मिलेनियम की बात को नकारने की कोशिश पहली बार तीसरी सदी में की गई थी। तब पुराने ज़माने के एक बहुत ही मशहूर बाइबल विद्वान, ऑरिजन ने यह समझाना शुरू किया कि हज़ार साल का राज्य इस धरती पर नहीं बल्कि स्वर्ग में होगा। उसने कहा कि इंसान की आत्मा, मरने के बाद स्वर्ग जाकर वहाँ मसीह के राज्य की आशीषों का आनंद लेगी।” ऐसा कहकर उसने बाइबल की शिक्षा में यूनानी फिलॉसफी मिला दी जबकि बाइबल में साफ-साफ कहा गया है कि मसीही हज़ार साल के दौरान पृथ्वी पर ही रहेंगे और यहीं उनको आशीषें मिलेंगी। इस के बारे में कैथोलिक लेखक लेओन ग्री ने लिखा: “ईसाइयों पर यूनानी फिलॉसफी का इतना ज़बरदस्त असर पड़ा कि . . . वक्त के गुज़रते मसीह के हज़ार साल के राज्य की शिक्षा का नामो-निशान ही मिट गया।”
“चर्च में अब लोगों को कोई भी आशा नहीं दी जाती”
ऑगस्टिन के समय तक सच्ची मसीहियत बस नाम के लिए रह गई थी। और, ऑगस्टिन ने इसमें भी यूनानी फिलॉसफी का ज़हर घोल दिया था। इस तरह सच्ची मसीहियत में मिलावट करने में ऑगस्टिन का सबसे बड़ा हाथ था जबकि वह उस वक्त एक बहुत बड़ा पादरी था। दरअसल वह खुद शुरू-शुरू में मिलेनियम की शिक्षा का बहुत बड़ा हिमायती था, लेकिन आगे चलकर उसने यह मानने से साफ-साफ इंकार कर दिया कि मसीह हज़ार साल के लिए पृथ्वी पर राज्य करेगा। उसने प्रकाशितवाक्य के २०वें अध्याय को तोड़-मरोड़कर कुछ मन-गढ़ंत अर्थ निकाला और उसके सही मतलब को लोगों से छिपाकर रखा।
इसके बारे में द कैथोलिक एंसाइक्लोपीडिया कहती है: ‘ऑगस्टिन इस बात पर अटल रहा कि प्रकाशितवाक्य के २०वें अध्याय में जिस हज़ार साल का ज़िक्र किया गया है वे सचमुच के हज़ार साल नहीं हैं बल्कि यह संख्या सिर्फ लाक्षणिक है। मानव इतिहास के छः हज़ार साल के पूरा होने के बाद जो एक हज़ार साल का सब्त होगा वह असल में अनंत जीवन को सूचित करता है और प्रकाशितवाक्य के २०वें अध्याय में जिस पहले पुनरुत्थान का ज़िक्र है, उसका मतलब है बपतिस्मा पाने के बाद एक व्यक्ति का परमेश्वर की नज़र में पुनर्जन्म होना।’ द न्यू एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका कहती है: “ऑगस्टिन ने मसीह के हज़ार साल के राज्य के बारे में तोड़-मरोड़कर जो शिक्षा पेश की उसी को कैथोलिक चर्च ने अपने धर्म-सिद्धांत के तौर पर कबूल कर लिया . . . ऑगस्टिन के विचारों को बाद में लूथरन, कैल्विनिस्ट और एंग्लिकन जैसे प्रोटेस्टेंट चर्चों ने भी अपना लिया।” इस तरह मसीह के हज़ार साल के राज्य के ज़रिए मिलनेवाली आशीषों से ईसाईजगत के सभी लोगों को अनजान रखा गया।
इतना ही नहीं, स्विट्ज़रलैंड के धर्म-विज्ञानी, फ्रैद्रीक दे रूशमौंन के मुताबिक ऑगस्टिन ने “मिलेनियम की शिक्षा को ठुकराकर चर्च को बहुत ही भारी नुकसान पहुँचाया। उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए, चर्च में एक झूठी शिक्षा फैला दी और ईसाइयों को पृथ्वी पर जीने की आशा से अनजान रखा।” इस बात को मानते हुए जर्मन धर्म-विज्ञानी एडॉल्फ हार्नॉक ने भी कहा कि मिलेनियम की शिक्षा को लोग “पुराने ज़माने से मानते आए थे और हमेशा से यह उनकी आशा रही थी।” चर्च ने इसे ठुकराकर आम जनता से एक ऐसी शिक्षा छीन ली जिसे वे “आसानी से समझ सकते थे” और उन्हें एक ऐसी शिक्षा थमा दी “जिसे समझना उनके बस की बात नहीं थी।” इसका असर आज भी देखा जा सकता है क्योंकि आज कई देशों में चर्च खाली पड़े हैं। यह इस बात का ठोस सबूत है कि आज लोगों को ऐसी शिक्षाओं की ज़रूरत है जिन्हें वे समझ सकें और जिससे उन्हें भविष्य के लिए आशा भी मिले।
बाइबल के विद्वान, जॉर्ज बीज़लीमरी ने अपनी किताब, हाइलाइट्स ऑफ द बुक ऑफ रॆवलेशन में लिखा: “ऑगस्टिन ने मिलेनियम की शिक्षा को जड़ से मिटाने की ज़ोरदार कोशिश की और कुछ गुटों ने इस शिक्षा को दोबारा अपना लिया है। इसकी वज़ह से कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट चर्च ने मिलेनियम की शिक्षा को ठुकरा दिया है। जब उनसे पूछा गया कि इस दुनिया में इंसान को भविष्य की कैसी आशा है, तो चर्चों का जवाब था: कोई भी आशा नहीं। जब मसीह वापस आएगा, तो यह दुनिया तबाह हो जाएगी और कुछ लोगों को स्वर्ग पहुँचाया जाएगा और बाकी लोगों को नरक में डाल दिया जाएगा, इस तरह बीती हुई बातों की याद खत्म हो जाएगी। . . . चर्च में अब लोगों को कोई भी आशा नहीं दी जाती।”
मिलेनियम की शानदार आशा अब भी कायम है!
जहाँ तक यहोवा के साक्षियों का सवाल है उन्हें पूरा यकीन है कि मसीह का हज़ार साल का राज्य हकीकत बन जाएगा और इस सिलसिले में किए गए सभी वादे ज़रूर पूरे होंगे। फ्रांस के एक टीवी कार्यक्रम में “सन् २०००: कयामत का खौफ” इस विषय पर फ्रैंच इतिहासकार, शॉन दॆल्यूमो का इंटरव्यू लिया गया। उसमें उन्होंने कहा: “मिलेनियम के बारे में यहोवा के साक्षियों का नज़रिया बाइबल के मुताबिक बिलकुल सही है। वे विश्वास करते हैं कि बहुत जल्द एक महाप्रलय होगा और उसके बाद हज़ार साल का एक राज्य शुरू होगा जिसमे खुशहाली ही खुशहाली होगी।”
प्रेरित यूहन्ना ने इसी खुशहाली को एक दर्शन में देखा और प्रकाशितवाक्य में इसका वर्णन किया। उसने लिखा: “मैं ने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा . . . फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते हुए सुना, कि देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा। और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:१, ३, ४.
आज यहोवा के साक्षी दुनिया-भर में सभी लोगों को बाइबल से यही आशा देने के काम में जुटे हुए हैं। अगर आप भी इस बारे में ज़्यादा जानना चाहते हैं तो उन्हें आपकी मदद करने में बेहद खुशी होगी।
[पेज 6 पर तसवीर]
पेपीअस ने दावा किया कि उसे मसीह के हज़ार साल के राज्य की शिक्षा उन लोगों से मिली जो प्रेरितों के ज़माने में रहते थे
[पेज 7 पर तसवीर]
टर्टूलियन मिलेनियम की शिक्षा में विश्वास करता था
[चित्र का श्रेय]
© Cliché Bibliothèque Nationale de France, Paris
[पेज 7 पर तसवीर]
“मिलेनियम की शिक्षा को ठुकराकर [ऑगस्टिन ने] चर्च को बहुत ही भारी नुकसान पहुँचाया”
[पेज 8 पर तसवीर]
प्रकाशितवाक्य में वादा किया गया है कि हमें एक खूबसूरत पृथ्वी पर ज़िंदगी मिलेगी