दुनिया का अंत—क्यों फैली यह दहशत?
“बड़े लंबे अरसे से कट्टरपंथी ईसाई कहते आ रहे हैं कि बहुत ही जल्द कयामत आएगी, एक ऐसा वक्त जब दुनिया के कोने-कोने में गड़बड़ी, हलचल और तबाही ही तबाही होगी और कानून और व्यवस्था का नामो-निशान नहीं रहेगा।” टाइम मैगज़ीन में धर्म के विषय पर लेख लिखनेवाले डेमियन थॉम्पसन ने यूँ कहा। “अब यह देखकर इन कट्टरपंथियों को हैरानी हो रही है कि आज न सिर्फ आम जनता उनकी बात पर यकीन कर रही है, बल्कि कंप्यूटर प्रोग्रामर्स, बड़े-बड़े बिज़नसमैन और नेता भी उनकी बातों पर विश्वास करने लगे हैं यहाँ तक कि इस धारणा को फैला भी रहे हैं जबकि कुछ समय पहले यही लोग उनका मज़ाक उड़ाया करते थे।” थॉम्पसन ने इस बात पर ज़ोर देकर कहा कि सन् २००० में तमाम दुनिया के कंप्यूटर फेल हो जाने की दशहत लोगों में इस कदर बैठ गई है कि “धर्म में रत्ती भर दिलचस्पी नहीं रखनेवालों को भी आज उनकी बातों पर विश्वास होने लगा है कि २००० में ज़रूर कोई प्रलय होगा।” उन्हें डर है कि सन् २००० में कुछ ऐसी भयानक घटनाएँ होंगी जैसे, “लोगों में आतंक फैल जाएगा, सरकारें टूट जाएँगी, हवाई-जहाज़ बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों से टकरा जाएँगे और लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाएँगे, जिसकी वज़ह से काफी दंगे-फसाद और लूट-मार होगी और हाहाकार मचेगा।”
दहशत के इस आलम में “कयामत” का आतंक फैलानेवाले छोटे-छोटे धार्मिक पंथ कुछ ऐसे अजीबो-गरीब काम करने लगे हैं जिससे लोगों के दिल में बैठा खौफ परवान चढ़ता जा रहा है। मिसाल के लिए, जनवरी १९९९ में फ्रांस के अखबार, ला फीगारो में एक लेख आया था, “यरूशलेम और कयामत की आहट”। इसमें कहा गया: “[इस्राएली] पुलिस के मुताबिक करीब सौ से भी ज़्यादा लोग अपना घर-बार छोड़कर [इस्राएल देश के] जैतून पहाड़ पर या उसके आस-पास आकर बस गए हैं।” क्यों? “उनका मानना है कि २००० में मसीह जैतून पहाड़ पर वापस आएगा और फिर कयामत होगी। इसके बाद मसीह के हज़ार साल का राज शुरू होगा।”
“कयामत का प्रचार करनेवाले पंथ,” (“Doomsday Cults”) इस विषय पर १९९८ ब्रिटेनिका बुक ऑफ द इयर में एक खास रिपोर्ट दी गई है। इसमें ऐसे कई पंथों का ज़िक्र किया गया है जिनके सदस्यों ने या तो आत्म-हत्या कर ली या ऐसे अपराध में शामिल थे जहाँ बेकसूर लोगों को अपनी जान से हाथ धोने पड़े। इस रिपोर्ट में कुछ आत्म-हत्या करनेवाले पंथों का नाम दिया गया, जैसे ‘हैवॆन्स गेट,’ ‘पीपल्स टेम्पल,’ और ‘ऑर्डर ऑफ द सोलर टेम्पल्स।’ साथ ही ओम शिनरीक्यो (परम सत्य) पंथ, जिसने १९९५ में विषैली गैस से टोक्यो सबवे में १२ लोगों को मौत के घाट उतार दिया और हज़ारों को घायल कर दिया था। इस रिपोर्ट के आखिर में शिकागो यूनिवर्सिटी में धर्म के प्रोफेसर, मार्टिन ई. मार्टी ने लिखा: “सन् २००० की शुरूआत बहुत ही सनसनीखेज़ होगी। दुनिया के अंत के बारे में ज़रूर तरह-तरह की भविष्यवाणियाँ की जाएँगी और इससे जुड़े कई नए-नए गुट पैदा होंगे। इनमें से कुछ तो शायद खतरनाक काम भी कर बैठेंगे। इसलिए यह ऐसा वक्त होगा जिसका सामना करने के लिए हमें कमर कसकर तैयार रहना पड़ेगा।”
दुनिया का अंत, कयामत—यह धारणा कहाँ से आई?
दरअसल यह धारणा बाइबल की आखिरी किताब प्रकाशितवाक्य से ली गई है। इस किताब को अँग्रेज़ी में अपॉकलिप्स भी कहते हैं। इस किताब को पहली सदी के आखिर में लिखा गया था। यह किताब भविष्यवाणियों से भरी हुई है और इसमें ज़्यादातर लाक्षणिक भाषा का इस्तेमाल करके कयामत के समय होनेवाली भयंकर घटनाओं का ब्यौरा दिया गया है। इसलिए बाद में अँग्रेज़ी शब्द, “अपॉकलिप्टिक” बाइबल की किताबों के अलावा ऐसे प्राचीन साहित्य के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा जिनमें इसी तरह की लाक्षणिक भाषा का इस्तेमाल करके भविष्य में होनेवाली भयानक घटनाओं और दुनिया के अंत के बारे में बताया गया है। इन किताबों को तो बाइबल की प्रकाशितवाक्य की किताब के काफी पहले लिखा गया था। ऐसे साहित्य में पाई जानेवाली लाक्षणिक भाषा और काल्पनिक किरदार फारस के ज़माने में और उससे भी पहले इस्तेमाल हुआ करते थे। द ज्यूइश एंसाइक्लोपीडिया बताती है कि “इन [यहूदी] किताबों में दिए गए ज़्यादातर काल्पनिक किरदार, बाबुल की पौराणिक कथाओं से लिए गए थे।”
कयामत के बारे में यहूदियों ने सा.यु.पू. दूसरी सदी की शुरूआत से लेकर दूसरी सदी के आखिर तक ढेरों किताबें लिखी। उन्होंने ये किताबें क्यों लिखी थीं, यह समझाते हुए, एक बाइबल विद्वान लिखता है: “यहूदी मानते थे कि दो युग हैं। एक है, वह युग जो चल रहा है और दूसरा वह जो आनेवाला है। अभी जो युग चल रहा है वह बहुत ही बिगड़ चुका है . . . इसलिए इसका अंत हो जाएगा। जबकि आनेवाला युग एक स्वर्णयुग होगा। तब चारों तरफ अमन-चैन होगा, खुशियों की बहार होगी और हर कोई परमेश्वर के मार्ग पर चलेगा . . . लेकिन क्या कोई है जो इस बिगड़े युग को बदलकर एक स्वर्णयुग ला सके? उनका मानना था कि इसे लाना किसी इंसान के बस की बात नहीं है, बल्कि सिर्फ परमेश्वर ही ऐसा कर सकता है। . . . वे कहते थे कि जिस दिन परमेश्वर ऐसा करेगा वह दिन प्रभु का दिन होगा। कयामत की वह घड़ी बहुत ही खौफनाक होगी, जब हर तरफ तबाही मचेगी और इंसाफ किया जाएगा। इस भयंकर महाक्लेश के बाद ही स्वर्ण-युग का जन्म होगा। कयामत के बारे में लिखी किताबों में ऐसी घटनाओं की जानकारी दी गई है।”
क्या प्रकाशितवाक्य (बाइबल) में बताए गए कयामत से हमें डरना चाहिए?
बाइबल के प्रकाशितवाक्य किताब में बताया गया है कि बहुत जल्द ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बड़े दिन की लड़ाई’ होगी। इस लड़ाई को अरमगिदोन कहा जाता है। इस लड़ाई में दुष्टों का नाश किया जाएगा और उसके बाद हज़ार साल का एक युग शुरू होगा (जिसे मिलेनियम भी कहा जाता है)। इस युग के दौरान शैतान को कैद कर दिया जाएगा और यीशु मसीह लोगों का इंसाफ करेगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६; २०:१-४) लेकिन मध्य युगों के दौरान कुछ लोगों ने बाइबल की इन भविष्यवाणियों का गलत मतलब निकाला था। कैथोलिक “संत” ऑगस्टिन (सा.यु. ३५४-४३०) ने बताया था कि जिस दिन यीशु मसीह पैदा हुआ था उसी दिन से उसके हज़ार साल का शासन शुरू हो चुका है और जब ये हज़ार साल पूरे होंगे तब वह न्याय करेगा। लेकिन उसने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया कि हज़ार साल की शुरूआत और अंत के बारे में प्रकाशितवाक्य की किताब क्या बताती है। इसलिए जब ऑगस्टिन द्वारा बताए गए १००० साल पूरे होने को आए, तो लोगों के मन में घबराहट पैदा होने लगी। इतिहासकार इस बारे में एकमत नहीं हैं कि लोगों में यह डर किस कदर समाया हुआ था। लेकिन एक बात तो पक्की है कि ऑगस्टिन की भविष्यवाणी बिलकुल झूठी साबित हुई क्योंकि दुनिया का अंत नहीं हुआ।
उसी तरह आज भी कई लोगों में यह दशहत फैली हुई है कि २००० या २००१ में दुनिया का भयानक तरीके से अंत होगा, चाहे वे धर्म को माननेवाले हों या उसमे रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं रखनेवाले हों। लेकिन क्या वाकई ऐसा कुछ होगा? और बाइबल के प्रकाशितवाक्य की किताब में दुनिया के अंत के बारे में जो बताया गया है क्या उससे हमें डरना चाहिए या क्या वह हमारे लिए खुशखबरी है? इसे जानने के लिए अगले लेख पढ़िए।
[पेज 4 पर तसवीर]
मध्य युगों के दौरान भी लोगों को डर था कि दुनिया का अंत होगा जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ
[चित्र का श्रेय]
© Cliché Bibliothèque Nationale de France, Paris
[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]
Maya/Sipa Press