हमें परमेश्वर से प्यार करना, हमारे पापा-मम्मी ने सिखाया
एलीज़ाबेथ ट्रेसी की ज़ुबानी
जिन आदमियों ने पिस्तौल के दम पर कुछ घंटे पहले हमें परेशान कर रखा था, अब उन आदमियों ने हमारे पापा-मम्मी को कार से बाहर धकेल दिया। और वे मुझे और मेरी बड़ी बहन को कार की पिछली सीट पर छोड़कर चले गए। हम दोनों डरी-डरी-सी घबराई हुई सोच रही थीं, क्या हम अपने पापा-मम्मी को दोबारा देख सकेंगी। सन् १९४१ में अमरीका में अलाबामा राज्य के सॆल्मा शहर में, आखिर यह भयानक हादसा हमारे साथ ही क्यों हुआ? और क्या इस हादसे का ताल्लुक उस तालीम से था, जो हमारे पापा-मम्मी ने हमें दी थी?
जब मेरे दादा-दादी की मौत हुई तब मेरे पापा, डूई फाउंटन बहुत छोटे थे। इसलिए पापा को मेरी बूआ और फूफा ने टेक्सस के एक फॉर्म पर पाला। बाद में पापा ऑयल निकालनेवाली एक जगह पर नौकरी करने के लिए चले गए। १९२२ में २३ साल की उम्र में पापा ने टेक्सस की विनी नाम की एक सुन्दर लड़की से शादी कर ली। उसके बाद पापा ने अच्छी तरह से घर-गृहस्थी चलाने और परिवार बढ़ाने के बारे में प्लैनिंग करनी शुरू कर दी।
पूर्वी टेक्सस के टिम्बर-पेड़ों के इलाके में, एक छोटे-से गेरसन शहर के पास पापा ने एक सुन्दर-सा घर बनाया। और वहीं वे किस्म-किस्म की खेती करते, जिसमें कपास और मक्का भी शामिल थी। इसके अलावा वे पशुपालन भी करते थे। फिर मई १९२४ में मेरा बड़ा भाई डूई जूनियर पैदा हुआ, दिसम्बर १९२५ में मेरी बड़ी बहन एडवीना, और जून १९२९ में मैं पैदा हुई।
बाइबल की सच्चाई सीखना
चर्च ऑफ क्राइस्ट के सदस्य होने के नाते पापा-मम्मी सोचते थे कि उन्हें बाइबल के बारे में सब कुछ मालूम है। लेकिन १९३२ में, एक दिन मेरे पापा के बड़े भाई मोनरो फाउंटन के घर एक आदमी आया जिसका नाम जी. डब्लयू. कुक था। वह उनके घर वाचटावर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित डिलीवरैंस और गवर्मेंट नाम की दो किताबें छोड़कर चला गया। उन दिनों मोनरो अंकल जो सीख रहे थे उसे पापा-मम्मी को बताने के लिए बड़े उतावले रहते थे। इसलिए अकसर वे सुबह नाश्ते के वक्त हमारे घर वाचटावर मैगज़ीन लेकर आते, उसमें से एक-दो लेख पढ़ते, फिर “जानबूझकर” मैगज़ीन वहीं छोड़कर चले जाते, जिससे कि पापा-मम्मी बाद में उसे पढ़ सकें।
एक रविवार की सुबह अंकल ने पापा से बाइबल स्टडी करने के लिए पड़ोसी के घर चलने को कहा। उन्होंने पापा से कहा कि आप मेरे साथ चलिए, मिस्टर कुक बाइबल से आपके सब सवालों के जवाब दे सकते हैं। स्टडी के बाद पापा बड़े जोश के साथ घर लौटे, और हम सबसे कहने लगे: “मुझे आज अपने सब सवालों के जवाब मिल गए हैं। पहले तो मैं सोचता था कि मैं सब कुछ जानता हूँ, मगर जब मिस्टर कुक ने मुझे नरक, सोल (प्राण), ज़मीन के लिए परमेश्वर का मकसद, और परमेश्वर का राज्य उस मकसद को कैसे पूरा करेगा, इन सब बातों के बारे में बताया तो मुझे महसूस हुआ कि मैं तो बाइबल के बारे में कुछ भी नहीं जानता!”
हमारा घर दोस्तों और रिश्तेदारों का अड्डा बना रहता था। कोई-न-कोई आता ही रहता, फिर मिठाई, पॉपकॉर्न बनाए जाते और सब साथ मिलकर गाना गाते और मम्मी पियानो बजाती। मगर आगे चलकर धीरे-धीरे हमने, बाइबल पर बातचीत करना शुरू कर दिया। यह सच है कि उस वक्त हम बच्चों को वो सब बातें समझ नहीं आती थीं। मगर परमेश्वर और बाइबल के लिए पापा-मम्मी का प्यार देखकर, हम सब बच्चों ने भी परमेश्वर और उसके वचन से प्यार करना सीखा।
बाद में हमारे घर आनेवाले दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी हर हफ्ते बाइबल पर चर्चा करने के लिए, अपने घर के दरवाज़े खोल दिए। वहाँ अकसर हमारी बातचीत लेटेस्ट वाचटावर मैगज़ीन के लेखों पर होती थी। जब मीटिंग पड़ोसी शहर एप्लबी और नेकडोचज़ में होती तो हम धूप और बरसात की परवाह न करते हुए, अपनी फोर्ड कार पर सवार होकर मीटिंग के लिए चल देते।
उन्होंने जो सीखा उसके मुताबिक किया
पापा-मम्मी को यह समझने में ज़्यादा समय नहीं लगा कि अब उन्हें कुछ कदम उठाने की ज़रूरत है। क्योंकि परमेश्वर से प्यार करनेवालों का यह फर्ज़ बनता है कि जो उन्होंने सीखा है वह दूसरों को जाकर बताएँ। (प्रेरितों २०:३५) मगर दूसरों को जाकर बताने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है। और यह बात खासकर हमारे पापा-मम्मी के मामले में काफी हद तक सही थी क्योंकि वे बहुत शर्मीले और नम्र स्वभाव के थे। लेकिन परमेश्वर के लिए प्यार ने उन्हें बहुत हिम्मत दी, जिससे वे हमें भी यहोवा पर पूरी तरह से भरोसा करना सिखा सके। इसलिए अकसर पापा कहा करते थे: “मुझ किसान को यहोवा ने राज्य का प्रचारक बना दिया!” आखिरकार पापा-मम्मी ने अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया और इसे दिखाने के लिए १९३३ में टेक्सस के हॆनडरसन शहर के पास एक तलाब में बपतिस्मा लिया।
सन् १९३५ के शुरू में पापा ने वाचटावर सोसाइटी को एक खत लिखा जिसमें उन्होंने हमेशा की ज़िंदगी के बारे में मसीहियों की आशा को लेकर बहुत-से सवाल पूछे थे। (यूहन्ना १४:२; २ तीमुथियुस २:११, १२; प्रकाशितवाक्य १४:१, ३; २०:६) जवाब में पापा को सोसाइटी के प्रेसीडेंट जोसफ एफ. रदरफर्ड से खत मिला। उसमें पापा के सवालों के जवाब तो नहीं थे, इसके बजाए भाई रदरफर्ड ने, मई में यहोवा के साक्षियों की वॉशिंगटन डी. सी. में होनेवाली कनवैन्शन में, पापा को हाज़िर होने के लिए बुलाया।
‘नामुमकिन!’ पापा ने सोचा, ऐसा तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि एक तो फॉर्मों का काम था दूसरी तरफ करीब ६५ एकड़ भूमि पर सब्ज़ियाँ उगी हुई थी। जिन्हें इकट्ठा करके कनवैन्शन के समय तक मार्किट तक पहुँचाना था। मगर पापा की ये सब रूकावटें दूर हो गईं, कुछ समय बाद बाढ़ आई और हमारी फसल, खेत में लगी बाड़ और पुल को बहाकर ले गई। आखिरकार हम दूसरे साक्षियों के साथ मिलकर, जिन्होंने एक स्कूल-बस किराए पर ली थी, उत्तरपूर्व में १६०० कि. मी. दूर कनवैन्शन के लिए चल दिए।
कनवैन्शन में “बड़ी भीड़” की साफ-साफ पहचान बताई गई थी, और यह भी बताया गया था कि “बड़े क्लेश” से सिर्फ “बड़ी भीड़” ही बचकर निकलेगी। यह सब सुनकर पापा-मम्मी की खुशी का ठिकाना न रहा। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) अमन-चैन के साथ बगीचे समान ज़मीन पर, हमेशा की ज़िंदगी की आशा से उन्हें जीवनभर हिम्मत मिलती रही। और वे हम बच्चों को भी समझाते रहे कि “सत्य जीवन को वश में कर लें।” इसका मतलब था हमेशा की ज़िंदगी, जो परमेश्वर यहोवा हमें देगा। (१ तीमुथियुस ६:१९; भजन ३७:२९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) उस कनवैन्शन के वक्त मैं सिर्फ पाँच साल की थी, मगर फिर भी अपने परिवार के साथ मुझे उस कनवैन्शन में बड़ा मज़ा आया।
कनवैन्शन से वापस आने के बाद हमने फिर से खेती की और फसल इतनी बढ़िया हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। इस बात से पापा-मम्मी को पक्का यकीन हो गया कि यहोवा पर पूरा भरोसा करने से वह एक दिन उसका फल ज़रूर देता है। फिर वे कुछ खास तरह से प्रचार करने के लिए तैयार हो गए जिसमें हर महीने उन्हें ५२ घंटे प्रचार करना था। उसके बाद अगली बुआई के मौसम में हमने अपना सब कुछ बेच दिया! पापा के पास २० × ८ फुट का ट्रॉली-घर था जिसे उन्होंने हम पाँचों के रहने के लिए बनाया था, उसे खींचने के लिए पापा ब्रैंड न्यू दो दरवाज़ेवाली फोर्ड सीडन कार खरीद लाए। अंकल मोनरो ने भी हमारी तरह किया और वे भी अपने ट्रॉली-घर में अपने परिवार के साथ रहने लगे।
हमें सच्चाई सिखाई
अक्टूबर १९३६ में पापा-मम्मी ने पायनियरिंग शुरू कर दी। और हम सब बच्चों ने भी पूर्वी टेक्सस के छोटे-छोटे इलाकों में प्रचार करना शुरू कर दिया। उस जगह शायद ही कभी किसी ने जाकर राज्य संदेश सुनाया होगा। फिर लगभग एक साल हम एक से दूसरे इलाके में प्रचार करते रहे, वाकई उस तरह रहने में हमें बड़ा मज़ा आया। हमेशा पापा-मम्मी ने अपनी बातों और उदाहरण से हमें सिखाया कि हमें भी पहली शताब्दी के मसीहियों की तरह होना चाहिए, जिन्होंने दूसरों को बाइबल सच्चाई सिखाने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था।
हमारी मम्मी ने घर को बिकने दिया, उनके इस बड़े त्याग को देखकर हमारे दिल में उनके लिए इज़्ज़त और भी बढ़ गई। मगर एक चीज़ मम्मी ने बिकने नहीं दी, वह उनकी सिलाई की मशीन थी। वाकई वह सिलाई मशीन बड़े काम की चीज़ थी। टेलरिंग के हुनर की वज़ह से मम्मी हमेशा हमें अच्छे-अच्छे कपड़े बनाकर पहनाया करती थी। और हर कनवैन्शन में हमें नए और बेहतरीन कपड़े पहनने को मिलते थे।
भाई हॆरमन जी. हॆनशल जब अपने परिवार के साथ हमारे इलाके में आए थे, तो वे अपने साथ वाचटावर सोसाइटी का ट्रक लाए थे। मुझे आज भी याद है कि उसमें साउंड सिस्टम लगा हुआ था। उस ट्रक को वे भीड़-भाड़वाली जगह में खड़ा कर देते और फिर रिकार्ड किए हुए छोटे-छोटे भाषण प्ले करते। उसके बाद ज़्यादा जानकारी देने के लिए वे खुद लोगों के पास जाते। उस समय हॆरमन का बेटा मिलटन करीब १६ या १७ बरस का था, और उससे दोस्ती करके मेरे भाई को बड़ा मज़ा आया। आज मिलटन वाचटावर सोसाइटी का प्रेज़ीडॆंट है।
१९३७ में कॉलम्बस के ओहायो शहर में एक कनवैनशन हुई जिसमें एडवीना का बपतिस्मा हुआ और उसी कनवैनशन में पापा-मम्मी को भी स्पेशल पायनियर बनकर सेवा करने की आशीष मिली। उन दिनों स्पेशल पायनियरिंग करने के लिए प्रचार में २०० घंटे बिताने पड़ते थे। जब मैं बीते दिनों के बारे में सोचती हूँ तो मुझे महसूस होता है कि मम्मी के उदाहरण से मैंने बहुत कुछ सीखा है। और इसलिए आज मैं अपने पति की मदद कर पाती हूँ जिससे मेरा पति मसीही ज़िम्मेदारियों को आराम से निभा सके।
उन दिनों पापा जब बाइबल स्टडी कराने के लिए लोगों के घर जाते तो हम बच्चों को भी अपने साथ ले जाते थे। वहाँ पापा हमसे बाइबल के वचन पढ़वाते साथ-ही कुछ आसान सवालों के जवाब भी पूछते। इस तरह हमारा अच्छा उदाहरण उन लोगों के बच्चों को दिखाते। इसका नतीजा यह हुआ कि जिन बच्चों को स्टडी कराई गई थी उनमें से ज़्यादातर आज वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। बेशक मज़बूत बुनियाद की वज़ह से हम बच्चों को भी मदद मिली जिससे कि हम परमेश्वर से हमेशा प्यार करते रहे।
जैसे-जैसे हमारा भाई बड़ा होता गया उसे इतनी छोटी-सी जगह में दो बहनों के साथ रहने में परेशानी महसूस होने लगी। फिर १९४० में उसने अलग रहने का फैसला किया और एक साक्षी के साथ पायनियरिंग सेवा करने लगा। बाद में भैया ने ऑडरी बॆरन से शादी कर ली। पापा-मम्मी से उसे भी बहुत कुछ सीखने को मिला जिसकी वज़ह से ऑडरी उनसे बेहद प्यार करने लगी। फिर १९४४ में जब भैया ने सच्चाई पर चलने की वज़ह से युद्ध में भाग लेने से इनकार कर दिया तो उसे कैद हो गई, और भाभी हमारे साथ उस छोटे-से ट्राली-घर में रहने के लिए आ गई।
१९४१ में मिसौरी के सैंट लूईस शहर में एक बहुत बड़ी कनवैनशन हुई। उसमें ५ से १८ साल के बच्चों को फ्रंट साइड पर एक अलग हिस्से में बिठाया गया। और भाई रदरफर्ड ने उनसे बात की। एडवीना और मैंने उनकी एकदम साफ और मीठी आवाज़ सुनी थी। वे इतने प्यार से बात कर रहे थे जैसे एक पिता अपने बच्चों से बात करता है। उन्होंने माता-पिताओं को जोश दिलाते हुए कहा: “आज यीशु मसीह अपनी वाचा के लोगों को इकट्ठा करके ज़ोर देते हुए कह रहा है कि अपने बच्चों को सच्चाई की राह पर चलना सिखाइए और उन्हें घर पर रखकर सच्चाई सिखाते हुए बड़ा कीजिए!” खुशी की बात है कि हमारे पापा-मम्मी ने वैसा ही किया।
उस कनवैनशन में हमें एक नई बुकलेट मिली जिसका नाम जीहोवाज़ सर्वेंटस् डीफैंडिड था। इस बुकलेट में अमरीका के सुप्रीम कोर्ट और दूसरे कोर्ट केसों के बारे में बताया गया था जो यहोवा के साक्षियों ने जीते थे। फिर पापा ने उस बुकलेट से फैमली स्टडी कराई। उस वक्त हमें ऐसा कोई एहसास नहीं था कि कुछ समय बाद हमारे साथ कोई हादसा होगा। लेकिन जब सॆल्मा अलबामा में हमारे साथ वह हादसा हुआ तो उस बुकलेट से हमने जो सीखा था उससे हमें बहुत मदद मिली।
सॆल्मा में एक गुट से हमला
उस भयंकर हादसे की सुबह पापा लैटर की एक-एक कॉपी शेरिफ़, मेयर और सॆल्मा के पुलिस चीफ को दे आए थे। उस लैटर में लिखा था कि संविधान के हिसाब से हमें प्रचार करने का अधिकार है और हमें कानूनी सुरक्षा भी दी जाएगी। मगर उन लोगों ने हमें ज़बरदस्ती शहर से बाहर निकाल देने का फैसला किया।
दोपहर हो चुकी थी, तभी पाँच आदमी हथियार लिए हुए हमारे ट्राली-घर में घुस आए और उन्होंने मुझे, मेरी मम्मी और बड़ी बहन को हिलने तक नहीं दिया। फिर वे घर का चप्पा-चप्पा छानने लगे कि कहीं उन्हें कोई खतरनाक चीज़ मिल जाए जिससे वे हम पर इल्ज़ाम लगाकर हमें फँसा सकें। पापा गाड़ी के बाहर थे। पापा को उन्होंने हुक्म दिया कि ट्राली का हुक कार में लगाएँ, पापा पर उन्होंने पिस्तौल से निशाना साधा हुआ था। मगर मुझे कोई डर नहीं लग रहा था। बल्कि मुझे तो लग रहा था कि हमारे साथ मज़ाक हो रहा है। और ये आदमी सोच रहे हैं कि हम कोई खतरनाक लोग हैं। इसलिए हम दोनों बहनों को बहुत हँसी आ रही थी। मगर जब पापा ने उड़ती नज़र से हमें घूरा तो हमारी हँसी गायब हो गई।
जब हम चलने को तैयार हुए तो वे आदमी एडवीना और मुझे अपने साथ उनकी कार में ले जाना चाहते थे। पापा ने उनसे खुलकर एकदम साफ-साफ कह दिया, ऐसा करने से “पहले तुम्हें मेरी लाश पर से जाना होगा!” फिर कुछ बातचीत के बाद, हमारे परिवार को एक साथ सफर करने के लिए कहा गया, और वे लोग हथियार लिए हुए अपनी कार में हमारे पीछे-पीछे आए। शहर से बाहर निकलकर करीब २५ किलोमीटर का सफर करने के बाद उन्होंने हमें हाईवे पर कार रोकने के लिए इशारा किया। फिर पापा-मम्मी को कार से बाहर धकेल दिया और अपने साथ ले गए। वे आदमी बारी-बारी से पापा-मम्मी को समझा रहे थे: “छोड़ दो इस धर्म को, फिर से खेती करो, और अपनी लड़कियों को अच्छी तरह बड़ी करो!” पापा ने उनसे बहुत तर्क किए लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ।
आखिरकार एक आदमी ने कहा: “जाओ यहाँ से, और अगर फिर कभी तुम इस डेलिस काउनटी में नज़र आए, तो तुम में से एक भी ज़िंदा नहीं बचेगा”!
इस तरह हमारा उनसे पीछा छूटा और हमने चैन की साँस ली। सचमुच हमारा पूरा परिवार बच गया। फिर हम लगातार कुछ घंटे सफर करते रहे, बाद में हमने रात बिताने के लिए गाड़ी एक जगह पर खड़ी कर दी। क्योंकि हमने उन लोगों की कार का लाइसेंस प्लेट का नम्बर नोट कर लिया था। और पापा ने बिना देर किए वह सब वाचटावर सोसाइटी को बता दिया था, इसलिए कुछ ही महीनों में पुलिस ने उन लोगों को ढूँढ़ निकाला और गिरफ्तार कर लिया।
गिलियड मिशनरी स्कूल जाना
न्यू यार्क, साउथ लेनसिंग से, १९४६ में एडवीना के पास वाचटावर स्कूल ऑफ गिलियड की ७वीं क्लास से ग्रेजुवेशन करने का निमंत्रण आया। स्कूल में एक इंस्ट्रक्टर का नाम एल्बर्ट श्रोडर था। उन्होंने एडवीना के अच्छे गुणों के बारे में अपने एक पुराने पायनियर साथी बिल एलरॉड को बताया। उस वक्त वह बॆथॆल में, यहोवा के साक्षियों का विश्व-मुख्यालय ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में सेवा कर रहा था।a बाद में एडवीना और बिल को मिलवाया गया, और एडवीना के ग्रेजुवेशन के लगभग एक साल बाद उन दोनों की शादी हो गई। उन्होंने कई साल फुल टाइम सर्विस की जिसमें पाँच साल उनकी बॆथॆल सेवा थी। फिर एक दिन १९५९ में भाई श्रोडर गिलियड की ३४वीं क्लास में आए। और सबको खुशखबरी देते हुए बोले मेरा पक्का दोस्त पिता बन गया, उसे जुड़वाँ बच्चे हुए हैं।
इस दौरान मैं पापा-मम्मी के साथ मिसीसिप्पी के मरीडियन शहर में सेवा कर रही थी। और हमारे पास १९४७ में गीलियड की ११वीं क्लास से ग्रेजुवेशन करने का निमंत्रण आ गया। इस बात से हम सबको बड़ा ताज़्जुब हुआ, क्योंकि नियम के हिसाब से मेरी उम्र बहुत कम थी और पापा-मम्मी की उम्र बहुत ज़्यादा। दरअसल हमारे मामले में छूट दी गई थी। इस तरह उस स्कूल से हमें बाइबल की गहरी बातें सीखने की बेहतरीन आशीष मिली।
पापा-मम्मी के साथ मिशनरी सेवा करना
ग्रेजुवेशन करने के बाद हमें मिशनरी सेवा के लिए साउथ अमरीका के कॉलम्बिया राज्य में जाने को कहा गया। मगर हम एक साल से ज़्यादा समय यानी दिसंबर १९४९ तक वहाँ नहीं जा सके थे। जब हम बोगोंटा मिशनरी होम पहुँचे, तो वहाँ पहले से ही तीन मिशनरी रह रहे थे। शुरू-शुरू में पापा को लगा कि स्पैनिश सीखना उनके बस की बात नहीं है, बल्कि लोगों को अंग्रेज़ी सिखा देना आसान होगा! सच में हमें बहुत-सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। मगर आशीषें, ओह! बेहिसाब थीं। वहाँ १९४९ में सौ से भी कम साक्षी थे, मगर आज कॉलम्बिया में एक लाख से भी ज़्यादा साक्षी हैं!
पाँच साल बोगोंटा में सेवा करने के बाद पापा-मम्मी को कॉली शहर भेज दिया गया। फिर मैंने कॉलम्बिया में ही एक साथी मिशनरी रॉबर्ट ट्रेसीb से १९५२ में शादी कर ली। उसके बाद हम १९८२ तक कॉलम्बिया में रहे। फिर हमें सेवा के लिए मेक्सिको भेज दिया गया, यहाँ हम अब तक सेवा कर रहे हैं। इस बीच १९६८ में पापा-मम्मी की सेहत खराब होने की वज़ह से उन्हें अमरीका लौटना पड़ा। मगर ठीक होने पर उन्होंने फिर से अलाबामा के मोबील शहर के पास स्पेशल पायनियरिंग शुरू कर दी।
पापा-मम्मी की देखभाल करना
जैसे-जैसे साल गुज़रते गए, पापा-मम्मी कमज़ोर होते गए और उन्हें मदद की ज़रूरत पड़ने लगी। उन्होंने सोसाइटी से गुज़ारिश की इसलिए उन्हें एडवीना और बिल के पास अलाबामा के ऐथेंस शहर में पायनियर के तौर पर भेज दिया गया। लेकिन मेरे बड़े भाई ने सोचा कि अच्छा यही होगा कि पूरा परिवार साउथ कैरोलाइना में पास-पास रहे। इसलिए बिल ग्रीनवुड में जाकर बस गया और पापा-मम्मी को अपने पास रख लिया। इस इंतज़ाम से हमारी चिंता दूर हो सकी, और कॉलम्बिया में मैं और रॉबर्ट मिशनरी सेवा ज़ारी रख सके।
लेकिन १९८५ में पापा को दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद से वे न तो बात कर पाते थे, और न ही बिस्तर से उठ सकते थे। इसलिए हमारे पूरे परिवार ने इकट्ठे होकर बातचीत की जिससे पापा-मम्मी की अच्छी तरह देखभाल की जा सके। आखिरकार फैसला यह हुआ कि अब से ऑडरी का काम पापा का ख्याल रखना होगा, रॉबर्ट और मैं हर हफ्ते चिट्ठी लिखेंगे और हिम्मत बढ़ानेवाले अनुभव भेजेंगे, साथ ही जब भी मुमकिन हो सकेगा तब हम समय निकालकर उनसे मिलने आया करेंगे।
आखिरी बार जब मैं पापा से मिलने गई थी, उसकी याद मुझे आज भी है। पापा बोल नहीं पाते थे, मगर जब हमने उन्हें बताया कि हम मैक्सिको लौट रहे हैं, तो न जाने कैसे उन्होंने पूरी ताकत लगाते हुए बड़े प्यार से कहा, “अलविदा!” इससे हम सब समझ गए कि इस अन्तिम घड़ी में पापा की यही दिली-ख्वाहिश है कि हमने जो मिश्नरी सेवा शुरू की है उसे हम करते रहें। जुलाई १९८७ में पापा इस दुनिया में नहीं रहे, और उसके नौ महीने बाद मम्मी भी चल बसीं।
हम तीनों भाई-बहन अपने पापा-मम्मी के बारे में जैसा महसूस करते हैं उसके बारे में मुझे अपनी विधवा बहन से एक चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था: “मुझे पापा-मम्मी से जो मसीही सच्चाई मिली है उस पर मैं गर्व करती हूँ, और मुझे पलभर के लिए भी कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि काश! हमारे पापा-मम्मी हमें दूसरी तरह पालते-पोसते तो अच्छा होता। उदासी के समय जब मैं पापा-मम्मी के दृढ़ विश्वास, त्याग और पूरी तरह से यहोवा पर भरोसा रखने के अच्छे उदाहरण को याद करती हूँ तो मुझे बहुत मदद मिलती है।” एडवीना अपनी बात खतम करते हुए कहती है: “मैं यहोवा का लाख-लाख धन्यवाद करती हूँ कि उसने हमें बहुत अच्छे पापा-मम्मी दिए। हमारे पापा-मम्मी ने अपनी बातों और उदाहरण से हमें सिखाया कि अगर हम अपनी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में लगाएँ तो हम भी उनकी तरह खुश रह सकते हैं।”
[फुटनोट]
a मार्च १, १९८८ की द वाचटावर के ११ और १२ पेज देखिए।
b मार्च १५, १९६० की द वाचटावर के पेज १८९-९१ देखिए।
[पेज 22, 23 पर तसवीरें]
फाउंटन परिवार: (बाँए से दाँए) डूई, एडवीना, विनी, एलीज़ाबेथ, डूई जूनियर (बड़ा भाई); दाँए: एलीज़ाबेथ और डूई जूनियर हॆनशल के साउंड ट्रक के बोनट पर खड़े हुए (१९३७); नीचे दाँए: १६ साल की उम्र में एलीज़ाबेथ बोर्ड लटकाकर प्रचार करती हुई