वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w04 11/1 पेज 13-18
  • सताए जाने पर भी खुश

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • सताए जाने पर भी खुश
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • धार्मिकता की खातिर ज़ुल्म सहना
  • मसीह की खातिर निंदा सहना
  • भविष्यवक्‍ताओं की तरह सताए जाने पर भी खुश
  • खुश रहने के ठोस कारण
  • प्रतिफल के बारे में सोचकर मगन होइए
  • धार्मिकता की खातिर ज़ुल्म सहना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2003
  • धार्मिकता के लिए सताए गए
    यहोवा के गवाह—विश्‍व भर में संयुक्‍त रूप से परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करते हैं
  • खुशी के लिए असल में क्या ज़रूरी है?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
  • ज़ुल्म सहने पर भी खुश रहिए
    हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा — सभा पुस्तिका—2022
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
w04 11/1 पेज 13-18

सताए जाने पर भी खुश

“खुश हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निंदा करेंगे और तुम्हें सताएँगे और तुम्हारे खिलाफ हर तरह की झूठी और बुरी बात कहेंगे।”—मत्ती 5:11.

1. यीशु ने सताए जाने और खुशी पाने के बारे में बात करते वक्‍त क्या आश्‍वासन दिया?

जब यीशु ने पहली बार अपने प्रेरितों को राज्य का प्रचार करने भेजा, तो उसने आगाह किया कि उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा। उसने कहा: “मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे।” (मत्ती 10:5-18, 22) मगर इससे पहले, यीशु ने पहाड़ी उपदेश में प्रेरितों और दूसरों को यकीन दिलाया कि ऐसे विरोध के बावजूद उनकी सच्ची खुशी कम नहीं होगी। दरअसल उसने कहा कि मसीहियों के नाते सताए जाने पर उन्हें खुशी मिलेगी! लेकिन यह कैसे हो सकता है?

धार्मिकता की खातिर ज़ुल्म सहना

2. यीशु और प्रेरित पतरस के मुताबिक, किस वजह से दुःख झेलने पर खुशी मिलती है?

2 यीशु ने खुशी पाने की आठवीं वजह बताते हुए कहा: “खुश हैं वे जो धार्मिकता की खातिर सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।” (मत्ती 5:10) दुःख झेलना अपने आप में कोई खुशी की बात नहीं है। प्रेरित पतरस ने लिखा: “यदि तुम ने अपराध करके घूसे खाए और धीरज धरा, तो इस में क्या बड़ाई की बात है? पर यदि भला काम करके दुख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्‍वर को भाता है।” उसने आगे कहा: “तुम में से कोई व्यक्‍ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुख न पाए। पर यदि मसीही होने के कारण दुख पाए, तो लज्जित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्‍वर की महिमा करे।” (1 पतरस 2:20; 4:15, 16) यीशु ने जो कहा, उसके मुताबिक किसी और वजह से नहीं बल्कि धार्मिकता की खातिर दुःख झेलने से खुशी मिलती है।

3. (क) धार्मिकता की खातिर सताए जाने का मतलब क्या है? (ख) शुरूआती मसीहियों पर ज़ुल्मों का क्या असर हुआ?

3 सच्ची धार्मिकता को मापने की कसौटी है, परमेश्‍वर की मरज़ी पर चलना और उसकी आज्ञाओं को मानना। तो धार्मिकता की खातिर दुःख झेलने का मतलब है, परमेश्‍वर के स्तरों या माँगों के खिलाफ जाने से इनकार करने की वजह से ज़ुल्म सहना। प्रेरितों ने यहूदी धर्म-गुरुओं के हाथों इसलिए ज़ुल्म सहा क्योंकि उन्होंने यीशु के नाम से प्रचार बंद करने से इनकार कर दिया था। (प्रेरितों 4:18-20; 5:27-29, 40) क्या इससे उनकी खुशी छिन गयी या उन्होंने प्रचार काम बंद कर दिया? हरगिज़ नहीं! इसके बजाय “वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे। और प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रुके।” (प्रेरितों 5:41, 42) इन ज़ुल्मों की वजह से उन्हें खुशी मिली और प्रचार के लिए उनके अंदर नया जोश भर आया। कुछ समय बाद, मसीहियों को रोमियों के हाथों भी अत्याचार सहना पड़ा, क्योंकि उन्होंने सम्राट की उपासना करने से इनकार कर दिया था।

4. मसीहियों के सताए जाने की कुछ वजह क्या हैं?

4 हमारे ज़माने में यहोवा के साक्षियों को इसलिए सताया जाता है क्योंकि वे ‘राज्य का सुसमाचार’ सुनाने का काम बंद करने से इनकार करते हैं। (मत्ती 24:14) जब उनकी मसीही सभाओं पर रोक लगा दी जाती है, तो उन्हें सभाओं में इकट्ठा होने की बाइबल की आज्ञा तोड़ने के बजाय दुःख झेलना मंज़ूर होता है। (इब्रानियों 10:24, 25) उन्हें इसलिए भी सताया जाता है क्योंकि वे संसार का भाग बनने और खून का गलत इस्तेमाल करने से इनकार करते हैं। (यूहन्‍ना 17:14; प्रेरितों 15:28, 29) लेकिन इस तरह धार्मिकता के पक्ष में होने का अटल फैसला करने की वजह से परमेश्‍वर के लोगों को मन की शांति और बहुत खुशी मिली है।—1 पतरस 3:14.

मसीह की खातिर निंदा सहना

5. किस खास वजह से आज यहोवा के लोग सताए जाते हैं?

5 यीशु ने पहाड़ी उपदेश में खुशी की जो नौंवी वजह बतायी, वह भी ज़ुल्मों से ताल्लुक रखती है। उसने कहा: “खुश हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निंदा करेंगे और तुम्हें सताएँगे और तुम्हारे खिलाफ हर तरह की झूठी और बुरी बात कहेंगे।” (मत्ती 5:11) यहोवा के लोगों के सताए जाने की सबसे खास वजह यह है कि वे इस दुष्ट संसार से पूरी तरह अलग रहते हैं। यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, बरन मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है।” (यूहन्‍ना 15:19) उसी तरह, प्रेरित पतरस ने कहा: “इस से वे अचम्भा करते हैं, कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उन का साथ नहीं देते, और इसलिये वे बुरा भला कहते हैं।”—1 पतरस 4:4.

6. (क) किस वजह से अभिषिक्‍त जनों और उनके साथियों की निंदा की जाती और उन्हें सताया जाता है? (ख) क्या ऐसी निंदा की वजह से हमारी खुशी छिन जाती है?

6 जैसे कि हमने पहले देखा, शुरूआती मसीहियों को इसलिए सताया गया था क्योंकि उन्होंने यीशु के नाम से प्रचार बंद करने से इनकार कर दिया। मसीह ने अपने चेलों को यह काम सौंपा था: “तुम . . . पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों 1:8) मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों में से बचे हुए वफादार जन, अपने सच्चे साथियों यानी “बड़ी भीड़” की मदद से पूरे जोश के साथ यह काम पूरा कर रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 7:9) इसलिए शैतान “स्त्री” [यानी परमेश्‍वर के संगठन के स्वर्गीय हिस्से] की “शेष सन्तान” से जंग लड़ रहा है, “जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं।” (प्रकाशितवाक्य 12:9, 17) यहोवा के साक्षियों के नाते, हम यीशु की गवाही देते हैं जो आज परमेश्‍वर के राज्य में राजा की हैसियत से हुकूमत कर रहा है। यह सरकार उन सभी इंसानी सरकारों का नाश कर देगी जो परमेश्‍वर की धार्मिकता की नयी दुनिया के लिए रुकावट बनी हुई हैं। (दानिय्येल 2:44; 2 पतरस 3:13) यीशु की गवाही देने की वजह से हमारी निंदा की जाती है और हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, मगर हम इस बात से खुश हैं कि हम यह सब मसीह के नाम की खातिर झेल रहे हैं।—1 पतरस 4:14.

7, 8. दुश्‍मनों ने शुरूआती मसीहियों के बारे में कैसी झूठी बातें फैलायीं?

7 यीशु ने कहा कि उसके चेलों को तब भी खुश होना चाहिए जब लोग उसके कारण ‘उनके खिलाफ हर तरह की झूठी और बुरी बात कहते’ हैं। (मत्ती 5:11) शुरू के मसीहियों के साथ ऐसा ही हुआ। सामान्य युग 59-61 के बीच, जब प्रेरित पौलुस रोम में कैद था, तो वहाँ के यहूदी धर्म-गुरुओं ने मसीहियों के बारे में कहा: “हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें कहते हैं।” (प्रेरितों 28:22) पौलुस और सीलास पर यह इलज़ाम लगाया गया कि उन्होंने “कैसर की आज्ञाओं का विरोध” करके “जगत को उलटा पुलटा कर दिया” है।—प्रेरितों 17:6, 7.

8 रोमी साम्राज्य के अधीन रहनेवाले मसीहियों के बारे में इतिहासकार, के. एस. लॉटूरेट ने कहा: “मसीहियों पर तरह-तरह के इलज़ाम लगाए गए। झूठे धर्म की रस्मों में हिस्सा न लेने की वजह से उन पर नास्तिक होने का ठप्पा लगा दिया गया। वे समाज के ज़्यादातर कामों से दूर रहते थे, जैसे झूठे धर्म के त्योहारों में हिस्सा नहीं लेते और बिरादरी के बाकी लोगों के साथ मनोरंजन की जगहों पर नहीं जाते थे . . . इसलिए उन्हें इंसानियत के दुश्‍मन कहकर उनकी नुक्‍ताचीनी की जाती थी। . . . कहा जाता था कि इनके आदमी-औरत रात को एक जगह मिलते और . . . नीच लैंगिक काम करते हैं। . . . [मसीह की मौत का स्मारक] मनाने के लिए सिर्फ विश्‍वासी एक-साथ इकट्ठे होते थे, इसलिए यह अफवाह फैलायी गयी कि मसीही नियमित तौर पर इकट्ठे होकर किसी शिशु का बलिदान चढ़ाते और उसका लहू और मांस खाते हैं।” इसके अलावा, शुरूआती मसीहियों पर देश-द्रोही होने का भी आरोप लगाया गया क्योंकि उन्होंने सम्राट की उपासना करने से इनकार कर दिया था।

9. पहली सदी के मसीहियों पर जब गलत इलज़ाम लगाए गए, तो उन्होंने कैसा रवैया दिखाया, और आज के हालात कैसे हैं?

9 ऐसे झूठे इलज़ामों की वजह से शुरूआती मसीहियों ने राज्य की खुशखबरी सुनाने का काम बंद नहीं किया। सामान्य युग 60-61 में पौलुस यह कह सका कि ‘सुसमाचार सारे जगत में फल लाता और बढ़ता जा रहा है’ और इसका प्रचार “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” किया गया है। (कुलुस्सियों 1:5, 6, 23) आज भी ऐसा ही हो रहा है। पहली सदी के मसीहियों की तरह, यहोवा के साक्षियों पर भी गलत इलज़ाम लगाए जा रहे हैं। फिर भी, राज्य का संदेश सुनाने का काम बढ़ता जा रहा है और इस काम में हिस्सा लेनेवालों को बहुत खुशी मिल रही है।

भविष्यवक्‍ताओं की तरह सताए जाने पर भी खुश

10, 11. (क) यीशु ने खुशी की नौवीं वजह बताने के बाद क्या कहा? (ख) नबियों को क्यों सताया गया? उदाहरण दीजिए।

10 यीशु ने खुशी की नौ वजह बताने के बाद, आखिर में कहा: “आनन्दित . . . होना क्योंकि . . . उन्हों ने उन भविष्यद्वक्‍ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।” (मत्ती 5:12) यहोवा ने बगावती इस्राएल को चेतावनी देने के लिए जिन नबियों को भेजा था, उनके साथ बुरा सलूक किया गया और कई बार तो उन पर अत्याचार भी किए गए। (यिर्मयाह 7:25, 26) प्रेरित पौलुस ने इस सच्चाई को पुख्ता करते हुए लिखा: ‘अब और क्या कहूँ? क्योंकि समय नहीं रहा, कि भविष्यद्वक्‍ताओं का वर्णन करूं जो विश्‍वास ही के द्वारा ठट्ठों में उड़ाए जाने और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए।’—इब्रानियों 11:32-38.

11 दुष्ट राजा आहाब और उसकी पत्नी ईज़बेल के राज में, यहोवा के कई नबियों को तलवार के घाट उतारा गया। (1 राजा 18:4, 13; 19:10) भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह को काठ में डाल दिया गया और बाद में दलदलवाले गड्ढे में फेंक दिया गया। (यिर्मयाह 20:1, 2; 38:6) भविष्यवक्‍ता दानिय्येल को सिंहों की मान्द में डाल दिया गया। (दानिय्येल 6:16, 17) मसीह से पहले के इन सभी नबियों को इसलिए सताया गया क्योंकि उन्होंने यहोवा की शुद्ध उपासना की पैरवी की थी। कई नबियों पर यहूदी धर्म-गुरुओं ने ज़ुल्म ढाए। यीशु ने शास्त्रियों और फरीसियों को “भविष्यद्वक्‍ताओं के घातकों की सन्तान” कहा।—मत्ती 23:31.

12. हम यहोवा के साक्षी, पुराने ज़माने के भविष्यवक्‍ताओं की तरह ज़ुल्म सहना क्यों एक सम्मान की बात समझते हैं?

12 आज हम यहोवा के साक्षी भी अकसर सताए जाते हैं क्योंकि हम पूरे जोश के साथ राज्य की खुशखबरी सुनाते हैं। हमारे दुश्‍मन हम पर यह इलज़ाम लगाते हैं कि हम “ज़बरदस्ती लोगों का धर्म बदलते हैं।” लेकिन हम जानते हैं कि गुज़रे ज़माने में भी यहोवा के वफादार उपासकों को ऐसी ही निंदा सहनी पड़ी थी। (यिर्मयाह 11:21; 20:8, 11) तब के वफादार भविष्यवक्‍ताओं को जिस वजह से दुःख झेलना पड़ा, उसी वजह से दुःख उठाना हम एक सम्मान की बात समझते हैं। शिष्य याकूब ने लिखा: “हे भाइयो, जिन भविष्यद्वक्‍ताओं ने प्रभु के नाम से बातें कीं, उन्हें दुख उठाने और धीरज धरने का एक आदर्श समझो। देखो, हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं।”—याकूब 5:10, 11.

खुश रहने के ठोस कारण

13. (क) हम ज़ुल्मों की वजह से निराश क्यों नहीं होते? (ख) हमें दृढ़ बने रहने में क्या बात मदद देती है, और इससे क्या साबित होता है?

13 हम ज़ुल्मों की वजह से बिलकुल निराश नहीं होते, बल्कि हमें इस बात से सांत्वना मिलती है कि हम भविष्यवक्‍ताओं, शुरूआती मसीहियों और यीशु मसीह के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। (1 पतरस 2:21) हमें बाइबल की आयतों से गहरा संतोष मिलता है, मसलन प्रेरित पतरस के इन शब्दों से: “हे प्रियो, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है। फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य हो; क्योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्‍वर का आत्मा है, तुम पर छाया करता है।” (1 पतरस 4:12, 14) हम अपने तजुर्बे से जानते हैं कि हम ज़ुल्मों के दौर में इसलिए दृढ़ रह पाते हैं क्योंकि यहोवा की आत्मा हम पर काम करती है और हमें मज़बूत करती है। पवित्र आत्मा की मदद इस बात का सबूत है कि यहोवा की आशीष हम पर है, और इससे हमें बड़ी खुशी मिलती है।—भजन 5:12; फिलिप्पियों 1:27-29.

14. धार्मिकता की खातिर सताए जाने पर हमें किन वजहों से खुशी मिलती है?

14 धार्मिकता की खातिर विरोध सहने और सताए जाने पर खुशी मिलने की एक और वजह यह है कि हम ईश्‍वरीय भक्‍ति के साथ जीनेवाले सच्चे मसीही साबित होते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:12) यह जानकर हमें बेइंतिहा खुशी मिलती है कि परीक्षाओं के वक्‍त हमारे वफादार रहने से शैतान की इस चुनौती को एक और जवाब मिलता है कि यहोवा के सेवक सिर्फ स्वार्थ के लिए उसकी सेवा करते हैं। (अय्यूब 1:9-11; 2:3, 4) हम इस बात से मगन होते हैं कि यहोवा की धार्मिकता की हुकूमत को बुलंद करने में हमारा भी हिस्सा है, फिर चाहे यह बहुत छोटा ही क्यों न हो।—नीतिवचन 27:11.

प्रतिफल के बारे में सोचकर मगन होइए

15, 16. (क) यीशु ने ‘आनन्दित और मगन होने’ की क्या वजह बतायी? (ख) अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए स्वर्ग में कैसा फल रखा हुआ है, और उनके साथी यानी ‘अन्य भेड़’ वर्ग के लोगों को भी किस वजह से फल मिलेगा?

15 पुराने ज़माने के नबियों की तरह बदनामी सहने और सताए जाने के बावजूद खुश होने की एक और वजह यीशु ने बतायी। उसने खुशी की नौंवी वजह बताने के बाद कहा: “आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है।” (मत्ती 5:12) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्‍वर का बरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।” (रोमियों 6:23) जी हाँ, हमें मिलनेवाला “बड़ा फल” जीवन है, और यह ऐसी कोई मज़दूरी नहीं है जिसे हम खुद कमा सकें। यह बिना दाम के मिलनेवाला एक तोहफा है। यीशु ने कहा कि यह फल “स्वर्ग में” है क्योंकि इसे देनेवाला यहोवा है।

16 अभिषिक्‍त मसीहियों को ‘जीवन का मुकुट’ दिया जाता है, यानी वे स्वर्ग में मसीह के साथ रहने के लिए अमर जीवन पाते हैं। (याकूब 1:12, 17) और धरती पर जीने की आशा रखनेवाले ‘अन्य भेड़’ वर्ग के लोग यहाँ फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी विरासत में पाने की आस लगाए हुए हैं। (यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 21:3-5) अभिषिक्‍त जनों और ‘अन्य भेड़ों’ को मिलनेवाला “फल” ऐसा है जिसे वे खुद कमा नहीं सकते। दोनों वर्गों को यहोवा के ‘बड़े अनुग्रह’ की वजह से प्रतिफल मिलता है, जिसके लिए प्रेरित पौलुस ने अपनी कदरदानी ज़ाहिर करते हुए कहा: “परमेश्‍वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो।”—2 कुरिन्थियों 9:14, 15.

17. ज़ुल्मों के दौर में हम क्यों खुश और “मगन” हो सकते हैं?

17 प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को, जिनमें से कुछ बहुत जल्द सम्राट नीरो के हाथों बेरहमी से सताए जानेवाले थे, यह लिखा: “हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्‍न होती है। और आशा से लज्जा नहीं होती।” पौलुस ने यह भी कहा: “आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो।” (रोमियों 5:3-5; 12:12) चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर, मगर परीक्षा के दौरान वफादार रहने से हमें जो इनाम मिलेगा, वह किसी भी चीज़ से लाख गुना अनमोल है। हमें सदा तक जीते हुए राजा यीशु मसीह के अधीन, अपने प्यारे पिता यहोवा की सेवा और स्तुति करने की आशा मिली है। इस बारे में सोचने से हमें इतनी गहरी खुशी मिलती है कि उसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। हम वाकई ‘मगन होते’ हैं।

18. जैसे-जैसे अंत करीब आ रहा है, हम दुनिया के देशों से क्या उम्मीद कर सकते हैं, और यहोवा क्या करेगा?

18 कुछ देशों में यहोवा के साक्षियों को बहुत सताया गया है, और आज भी सताया जा रहा है। यीशु ने जगत के अंत की भविष्यवाणी में सच्चे मसीहियों को यह कहकर आगाह किया: “मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे।” (तिरछे टाइप हमारे; मत्ती 24:9) जैसे-जैसे अंत करीब आ रहा है, शैतान दुनिया के देशों को यहोवा के लोगों के खिलाफ अपनी नफरत उगलने के लिए भड़काएगा। (यहेजकेल 38:10-12, 14-16) यह इस बात की निशानी होगी कि यहोवा के कार्यवाही करने का समय आ पहुँचा है। “मैं अपने को महान और पवित्र ठहराऊंगा और बहुत सी जातियों के साम्हने अपने को प्रगट करूंगा। तब वे जान लेंगी कि मैं यहोवा हूं।” (यहेजकेल 38:23) इस तरह यहोवा अपने महान नाम को पवित्र करेगा और अपने लोगों को ज़ुल्मों से छुड़ाएगा। इसलिए “धन्य है वह मनुष्य, जो . . . स्थिर रहता है।”—याकूब 1:12.

19. ‘परमेश्‍वर के बड़े दिन’ का इंतज़ार करते हुए हमें क्या करना चाहिए?

19 आज जब ‘परमेश्‍वर का बड़ा दिन’ पहले से कहीं ज़्यादा करीब है, तो आइए हम मगन हों क्योंकि हम यीशु के नाम की खातिर “निरादर होने के योग्य तो ठहरे” हैं। (2 पतरस 3:10-13; प्रेरितों 5:41) यहोवा की धार्मिकता की नयी दुनिया में इनाम पाने का इंतज़ार करने के साथ-साथ, आइए हम शुरूआती मसीहियों की तरह “मसीह” और उसके राज्य के बारे में ‘उपदेश करने और सुसमाचार सुनाने से कभी न रुकें’।—प्रेरितों 5:42; याकूब 5:11.

दोबारा विचार करने के लिए सवाल

• धार्मिकता की खातिर दुःख झेलने का मतलब क्या है?

• शुरूआती मसीहियों पर ज़ुल्मों का क्या असर हुआ?

• यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा के साक्षियों को पुराने ज़माने के नबियों की तरह सताया जा रहा है?

• जब हमें सताया जाता है, तो हम “आनन्दित और मगन” क्यों हो सकते हैं?

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

“खुश हो तुम जब लोग . . . तुम्हारी निंदा करेंगे और तुम्हें सताएँगे”

[चित्र का श्रेय]

जेल में एक समूह: Chicago Herald-American

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें