उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
उसने सूझ-बूझ से काम लिया
अबीगैल, जवान सेवक के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ते देख समझ गयी कि ज़रूर कुछ अनहोनी होनेवाली है। अबीगैल के घराने पर खतरे के काले बादल मँडरा रहे थे। करीब 400 सैनिक बढ़े चले आ रहे थे। उन्होंने उसके परिवार के सभी पुरुषों को मौत के घाट उतारने की कसम खा रखी थी। पर क्यों?
यह सब अबीगैल के पति, नाबाल की गलती का नतीजा था। उसने गुस्से से बात की थी और अपनी हेकड़ी दिखायी थी। मगर यह कोई नयी बात नहीं, उसकी फितरत ही ऐसी थी। पर इस बार उसने गलत आदमी से दुश्मनी मोल ली। वह आदमी एक सेनानी था। उसके वफादार फौजी लड़ने में माहिर थे और उस पर अपनी जान छिड़कते थे। नाबाल के एक जवान कारिंदे ने, जो शायद एक चरवाहा था, नाबाल की सारी बात सुन ली। वह दौड़ा-दौड़ा अबीगैल के पास गया। उसे पूरा भरोसा था कि उसकी मालकिन अपने घराने को बचाने के लिए कोई-न-कोई तरकीब ज़रूर ढूँढ़ निकालेगी। लेकिन भला एक अकेली औरत, हथियारों से लैस पूरी सेना के आगे क्या कर सकती थी?
यह जानने से पहले आइए अबीगैल के बारे में कुछ सीखें, जो कमाल की स्त्री थी। अबीगैल कौन थी? उसके घराने पर मुसीबतों का पहाड़ कैसे टूटा? उसने विश्वास की जो मिसाल रखी, उससे हम क्या सीख सकते हैं?
‘बुद्धिमान और दिखने में सुंदर’
अबीगैल और नाबाल की जोड़ी ऐसी थी मानो हंस और कौवे की जोड़ी हो। नाबाल को अबीगैल से ज़्यादा सुशील और गुणवंती पत्नी नहीं मिल सकती थी। और अबीगैल को नाबाल से बदतर पति नहीं मिल सकता था। माना नाबाल अमीर था, पर उसमें पैसों की गर्मी थी, इसलिए वह खुद को कुछ ज़्यादा ही बड़ा आदमी समझता था। मगर सवाल है कि दूसरे उसे किस नज़र से देखते थे? बाइबल पढ़ने पर आप पाएँगे कि उसकी जितनी निंदा की गयी है, उतनी किसी और किरदार की नहीं की गयी। उसके नाम का मतलब ही था, “मूर्ख” या “उजड्ड।” मगर उसे यह नाम दिया किसने? उसके माता-पिता ने? या फिर बाद में लोगों ने उसका व्यवहार देखकर उसे यह नाम दिया? उसका यह नाम कैसे भी पड़ा हो, सच तो यह था कि जैसा उसका नाम था, वैसे ही उसके गुण भी थे। वह “कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला” था। यही नहीं, वह एक पियक्कड़ था और दूसरों पर धौंस जमाता था। सभी उसे नापसंद करते और उसके नाम से थर-थर काँपते थे।—1 शमूएल 25:2, 3, 17, 21, 25.
लेकिन अबीगैल एकदम अलग थी। उसके नाम का मतलब था, “मेरे पिता ने खुद को आनंदित किया है।” सच, उसके जैसी खूबसूरत बेटी पाकर किस पिता का सीना गर्व से नहीं फूलेगा? मगर एक समझदार पिता यह भाँपकर और भी खुश होगा कि उसकी बेटी दिल से भी खूबसूरत है। अकसर देखा गया है कि जो व्यक्ति दिखने में सुंदर होता है, उसे खुद पर इतना गुमान होता है कि वह सूझ-बूझ, बुद्धि, हिम्मत और विश्वस जैसे गुण पैदा करने की ज़रूरत ही नहीं समझता। मगर अबीगैल ऐसी बिलकुल नहीं थी। बाइबल कहती है, वह ‘बुद्धिमान और दिखने में सुंदर थी।’—1 शमूएल 25:3, NHT.
आज कुछ लोग शायद सोचें, ‘अगर अबीगैल बुद्धिमान थी, तो उसने एक निकम्मे आदमी से शादी क्यों की?’ याद रखिए कि पुराने ज़माने में घर के बड़े-बुज़ुर्ग रिश्ता तय करते थे। या अगर लड़का-लड़की अपनी मरज़ी से जीवन-साथी चुनते, तो उन्हें अपने माता-पिता की रज़ामंदी ज़रूर लेनी पड़ती थी। तो क्या इसका मतलब यह है कि अबीगैल के माता-पिता ने नाबाल की दौलत-शोहरत देखकर अपनी बेटी का हाथ उसके हाथ में दे दिया? क्या उन्हें लगा कि अपनी बेटी को गरीबी के दलदल से बाहर निकालने का यही एक रास्ता है? वजह चाहे जो भी हो, एक बात तय है कि दौलतमंद होने के बावजूद नाबाल एक अच्छा पति हरगिज़ नहीं था।
इस किस्से से एक सबक यह मिलता है, समझदार माता-पिताओं को अपने बच्चों के मन में यह बात बिठानी चाहिए कि शादी आदर की बात मानी जाए। उन्हें न तो अपने बच्चों को पैसा और रुतबा देखकर शादी करने की नसीहत देनी चाहिए, न ही कच्ची उम्र में डेटिंग करने का उन पर दबाव डालना चाहिए। क्योंकि इस उम्र में वे बड़ों की ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल नहीं होते। (1 कुरिंथियों 7:36) लेकिन अबीगैल के लिए अब ये सब सोचने का वक्त नहीं था। नाबाल से उसकी शादी की चाहे जो भी वजह रही हो, उसने ठान लिया था कि वह एक अच्छी पत्नी बनकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाएगी और मुश्किल हालात में भी खुश रहने की कोशिश करेगी।
“उसने उन्हें गाली देकर भगा दिया”
नाबाल ने अभी-अभी अबीगैल के लिए एक और परेशानी खड़ी कर दी। उसने जिस शख्स की बेइज़्ज़ती की, वह कोई और नहीं बल्कि दाविद था। दाविद, यहोवा परमेश्वर का वफादार सेवक था। यहोवा ने शमूएल नबी के ज़रिए उसका अभिषेक किया था, ताकि शाऊल के बाद वह राजा बने। (1 शमूएल 16:1, 2, 11-13) जब शाऊल को इस बारे में पता चला, तो वह जल-भुन गया। दाविद को जान से मार डालने के लिए वह हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गया। इसलिए दाविद भाग खड़ा हुआ और अपने 600 वफादार फौजियों के साथ वीराने में जाकर रहने लगा।
नाबाल माओन में रहता था, मगर शायद पास के कसबे कार्मेल में उसकी ज़मीन थी।a यह कसबा काफी ऊँचाई पर था और उसमें हरे-हरे घास के मैदान दूर-दूर तक फैले हुए थे। इसलिए भेड़ों को चराने के लिए यह बहुत बढ़िया जगह थी। नाबाल के पास 3,000 भेड़ें थीं। मगर आस-पास का इलाका पूरा जंगल था। दक्षिण में पारान नाम का वीराना था। पूरब का रास्ता, खारे ताल की तरफ जाता था। यह रास्ता बंजर इलाके से गुज़रता था, जिसमें घाटियाँ और गुफाएँ भरी पड़ी थीं। इन्हीं इलाकों में दाविद और उसके आदमी बड़ी मुश्किल से अपना गुज़र-बसर कर रहे थे। अपना पेट भरने के लिए उन्हें शिकार करना पड़ता था। उन्हें और भी कई तकलीफें झेलनी पड़ती थीं। ऐसे में उनकी मुलाकात अकसर रईस नाबाल के जवान चरवाहों से हो जाती थी।
ये मेहनती फौजी, इन चरवाहों के साथ कैसे पेश आते थे? वे चाहते तो जब-तब भेड़ों को मारकर खा सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, वे भेड़-बकरियों और चरवाहों के लिए आड़ बनकर उनकी हिफाज़त करते रहे। (1 शमूएल 25:15, 16) भेड़ और चरवाहों को कई खतरों का सामना करना पड़ता था। उस ज़माने में जंगली जानवर बहुत हुआ करते थे। ऊपर से इसराएल की दक्षिण सरहद पास थी, इसलिए दूसरे देशों के चोर-डाकू अकसर हमला बोल देते थे।b
वीराने में इतने सारे लोगों का पेट भरना, दाविद के लिए एक भारी ज़िम्मेदारी रही होगी। इसलिए उसने नाबाल से मदद लेने की सोची। उसने समझ से काम लेते हुए एक सही दिन चुना और नाबाल के पास अपने दस दूत भेजे। वह दिन ऊन कतरने का समय था और उस दिन लोग दरियादिली दिखाते और जश्न मनाते थे। दाविद ने अपने आदमियों को यह भी सिखाया कि उन्हें नाबाल से किस तरह बात करनी है। उसने सोच-समझकर शब्द चुने और बड़ी नम्रता से गुज़ारिश की और उसे आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल किया। यहाँ तक कि उसने खुद को नाबाल का बेटा दाविद कहा। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि वह दिखा सके कि नाबाल उससे उम्र में बड़ा है और वह उसकी इज़्ज़त करता है। इस पर नाबाल ने क्या किया?—1 शमूएल 25:5-8.
उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया! जवान सेवक ने, जिसका ज़िक्र लेख की शुरूआत में किया गया है, अबीगैल को बताया कि “उसने उन्हें गाली देकर भगा दिया।” (आर.ओ.वी.) नाबाल एक नंबर का कंजूस-मक्खीचूस था। उसने चिल्ला-चिल्लाकर कहा कि वह अपना अनमोल रोटी-पानी और हलाल किए माँस, दाविद के आदमियों पर नहीं लुटाएगा। उसने दाविद के बारे में भी भला-बुरा कहा, मानो वह कोई मामूली इंसान हो। उसने उसकी तुलना एक भगोड़े नौकर से की। नाबाल की राय शायद राजा शाऊल जैसी थी, जो दाविद से नफरत करता था। नाबाल और शाऊल, दोनों में ही परमेश्वर का नज़रिया नहीं था। मगर परमेश्वर यहोवा, दाविद से बहुत प्यार करता था। उसकी नज़र में वह कोई बगावती सेवक नहीं, बल्कि आगे चलकर बननेवाला राजा था।—1 शमूएल 25:10, 11, 14.
जब दाविद के दूतों ने आकर सारा हाल कह सुनाया, तो वह तिलमिला उठा। उसने आदेश दिया: “अपनी अपनी तलवार बान्ध लो”! फिर वह भी हथियार बाँधकर अपने 400 आदमियों को लेकर निकल पड़ा। उसने कसम खाई कि वह नाबाल के घराने के सभी पुरुषों को मौत के घाट उतार देगा। (1 शमूएल 25:12, 13, 21, 22) दाविद का गुस्सा होना लाज़िमी था, मगर गुस्सा उतारने का उसका तरीका गलत था। बाइबल कहती है: “इंसान के क्रोध करने का नतीजा वह नेकी नहीं होता जिसकी माँग परमेश्वर करता है।” (याकूब 1:20) मगर अब अबीगैल अपने घराने को बचाने के लिए क्या कर सकती थी?
“धन्य है तेरी बुद्धिमानी!”
दरअसल, अबीगैल बिगड़े हालात को सुधारने का पहला कदम उठा चुकी थी। यानी उसने जवान सेवक की बात सुनी। जवान सेवक ने नाबाल के बारे में कहा: “वह तो ऐसा दुष्ट है कि उस से कोई बोल भी नहीं सकता।”c (1 शमूएल 25:17) नाबाल का घमंड उसे ले डूबा। वह खुद को बड़ा आदमी समझता था, इसलिए दूसरों की सुनना उसे नागवार था। इस तरह का अक्खड़पन आज हर कहीं देखने को मिलता है। लेकिन सेवक जानता था कि अबीगैल अपने पति से बिलकुल अलग है, वह उसकी बात ज़रूर सुनेगी। तभी तो वह उसके पास समस्या लेकर गया।
अबीगैल ने फौरन अपना दिमाग लड़ाया और कदम उठाया। बाइबल कहती है: “अबीगैल ने फुर्ती से” काम किया। इस ब्यौरे में अबीगैल के लिए यह क्रिया, “फुर्ती” चार बार इस्तेमाल की गयी है। उसने दाविद और उसके आदमियों के लिए ढेर सारी चीज़ें बाँधी। जैसे रोटी, दाख-मदिरा, भेड़ों का माँस, भूना हुआ अनाज, किशमिश और अंजीर की टिकियाँ। इससे साफ है, अबीगैल को अच्छी तरह पता था कि घर में क्या है और उसने अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बखूबी निभायी। वाकई, अबीगैल पर उस गुणवंती पत्नी का ब्यौरा बिलकुल सही बैठता है, जो बाइबल की एक और किताब नीतिवचन में दिया गया है। (नीतिवचन 31:10-31) उसने पहले सारा सामान अपने कुछ नौकरों के हाथ भिजवा दिया, फिर वह अकेली पीछे-पीछे आयी। “परन्तु उस ने अपने पति नाबाल से कुछ न कहा।”—1 शमूएल 25:18, 19.
तो क्या इसका मतलब यह है कि अबीगैल अपने पति के मुखियापन के खिलाफ जा रही थी? जी नहीं। नाबाल ने यहोवा के अभिषिक्त सेवक के साथ ऐसी दुष्टता की, जिससे उसके घराने के सभी मासूम लोगों की जान पर बन आयी। ऐसे में अगर अबीगैल सूझ-बूझ से काम नहीं लेती, तो क्या वह अपने पति के दोष में साझेदार नहीं होती? वैसे भी ऐसे हालात में उसका फर्ज़ बनता था कि वह अपने पति से बढ़कर परमेश्वर की बात माने।
थोड़े ही समय में अबीगैल, दाविद और उसके आदमियों के पास जा पहुँची। एक बार फिर उसने फुर्ती से काम लिया। जैसे ही उसने दाविद को देखा, वह अपने गधे से नीचे उतर गयी और दाविद के आगे सिजदा किया। (1 शमूएल 25:20, 23) फिर उसने दाविद से सच्चे दिल से बात की और अपने पति और घराने के लिए रहम की भीख माँगी। आखिरकार, उसने ऐसा क्या कहा जिससे दाविद पर इतना गहरा असर हुआ?
दाविद के आदमियों के साथ जो कुछ हुआ, उसका सारा इलज़ाम अबीगैल ने अपने सिर ले लिया और दाविद से माफी माँगी। उसने कबूल किया कि उसका पति वाकई अपने नाम के मुताबिक मूर्ख है। यह कहकर उसने शायद दाविद को सुझाया कि ऐसे आदमी के मुँह लगना, उसकी शान के खिलाफ है। उसने दाविद पर भरोसा जताया कि वह यहोवा का नुमाइंदा है और “यहोवा की ओर से लड़ता है।” उसने यह भी ज़ाहिर किया कि उसे मालूम है, यहोवा ने दाविद और उसके राज करने के अधिकार के बारे में क्या वादा किया है। उसने कहा: ‘यहोवा [ज़रूर] तुझे इस्राएल पर प्रधान ठहराएगा।’ इसके अलावा, उसने कहा कि दाविद ऐसा कुछ न करे, जिससे वह खून का दोषी ठहरे या बाद में उसे “पछताना” पड़े। (1 शमूएल 25:24-31) है ना उसके शब्द सलोने और दिल को छू लेनेवाले!
फिर दाविद ने क्या किया? उसने अबीगैल से मिले तोहफे कबूल किए और कहा: “धन्य हो इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसने आज के दिन तुझ को मुझ से भेंट करने भेजा! धन्य है तेरी बुद्धिमानी! और तू स्वयं धन्य हो, जिसने आज के दिन मुझे खून बहाने से . . . रोका है।” (NHT) दाविद ने अबीगैल की हिम्मत की दाद दी। साथ ही, अबीगैल ने जिस फुर्ती से काम किया, उसकी भी दाविद ने तारीफ की। उसने कबूल किया कि अबीगैल ने उसे ऐसा काम करने से रोका जिससे वह खून का दोषी ठहर सकता था। उसने अबीगैल से कहा: “अपने घर कुशल से जा।” उसने बड़ी नम्रता के साथ यह भी कहा: “मैं ने तेरी बात मानी है।”—1 शमूएल 25:32-35.
“मैं आपकी दासी हूँ”
इसके बाद, दाविद और अबीगैल अपने-अपने रास्ते चले गए। घर लौटने के बाद, अबीगैल ने दाविद से हुई अपनी मुलाकात के बारे में सोचा। उसने यह भी गौर किया कि राजा दाविद और उसके अक्खड़ पति के बीच ज़मीन-आसमान का फर्क है। मगर वह इन्हीं बातों पर देर तक नहीं सोचती रही। हम पढ़ते हैं: “तब अबीगैल नाबाल के पास लौट गई।” जी हाँ, उसका इरादा अब भी पहले की तरह पक्का था कि वह पत्नी की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाएगी। उसे नाबाल को बताना था कि उसने दाविद और उसके आदमियों को क्या-क्या तोहफे दिए। आखिरकार, पति होने के नाते उसे जानने का हक जो था। अबीगैल को अपने पति को यह भी बताना था कि कैसे उन पर आनेवाला खतरा टल गया। क्यों? क्योंकि अगर नाबाल को यह बात किसी तीसरे से पता चलती, तो यह बड़े शर्म की बात होती। लेकिन नाबाल कुछ सुनने-समझने की हालत में नहीं था। क्योंकि वह राजाओं की तरह दावत उड़ा रहा था और शराब के नशे में धुत्त था।—1 शमूएल 25:36.
अबीगैल ने एक बार फिर सूझ-बूझ से काम लिया और सुबह होने का इंतज़ार करने लगी। क्योंकि तब तक उसके पति का नशा उतर जाता और वह उसकी बात समझ पाता। पर यह अबीगैल के लिए खतरे से खाली नहीं था, क्योंकि तैश में आकर नाबाल कुछ भी कर सकता था। फिर भी अबीगैल पीछे नहीं हटी, बल्कि हिम्मत जुटाकर उसके पास गयी और सबकुछ बता दिया। अबीगैल को पक्का यकीन था कि उसका पति गुस्से से फट पड़ेगा, यहाँ तक कि उस पर हाथ भी उठाएगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसके बजाय, नाबाल धम-से बैठ गया और बिलकुल भी हिला-डुला नहीं।—1 शमूएल 25:37.
आखिरकार, नाबाल को क्या हो गया था? “उसके मन का हियाव जाता रहा, और वह पत्थर सा सुन्न हो गया।” हो सकता है उसे स्ट्रोक हो गया हो। और 10 दिन बाद उसने दम तोड़ दिया। मगर उसकी मौत सिर्फ स्ट्रोक की वजह से नहीं हुई। बाइबल कहती है: “यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा, कि वह मर गया।” (1 शमूएल 25:38) यहोवा ने अपने धर्मी स्तरों के मुताबिक नाबाल को सही सज़ा दी। इस तरह, अबीगैल की भयानक रात की सहर हो गयी। आज परमेश्वर किसी चमत्कार के ज़रिए मामलों में दखलअंदाज़ी नहीं करता। फिर भी यह कहानी एक ज़बरदस्त यादगार है कि परमेश्वर ऐसे मामलों को अनदेखा नहीं करता, जिनमें परिवार का कोई सदस्य दूसरों पर धौंस जमाता है या उन पर ज़ुल्म ढाता है। वह अपने समय पर हर मामले का इंसाफ करेगा।
अबीगैल को एक और आशीष मिलनेवाली थी। वह क्या? जब दाविद को पता चला कि नाबाल की मौत हो चुकी है, तो उसने अबीगैल के पास शादी का प्रस्ताव भेजा। इस पर अबीगैल ने कहा: ‘मैं आपकी दासी हूँ। मैं अपने स्वामी के सेवकों के पैरों को धोने को तैयार हूँ।’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) दाविद की पत्नी बनने के खयाल से वह घमंड से नहीं भरी, बल्कि नम्र बनी रही। यहाँ तक कि उसने दाविद के सेवकों की दासी बनने की बात कही! और एक बार फिर वह दाविद से मुलाकात करने के लिए फुर्ती से तैयार हो गयी।—1 शमूएल 25:39-42.
यह कोई राजा-रानी की कहानी नहीं, जिसमें शादी के बाद दाविद और अबीगैल की ज़िंदगी फूलों की सेज बन गयी। इसके बजाय, उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए होंगे। क्योंकि दाविद की पहले ही एक पत्नी थी, अहिनोअम। और उस ज़माने में दो बीवियाँ एक ही छत के नीचे रहती हों, तो ऐसे हालात खासकर वफादार स्त्रियों के लिए चुनौती-भरे हो सकते थे। यही नहीं, उस वक्त दाविद राजा भी नहीं बना था, तो ज़ाहिर-सी बात है कि उसके आगे कई मुश्किलें और बाधाएँ आयी होंगी। फिर भी एक पत्नी के नाते, अबीगैल ज़िंदगी की डगर में दाविद का साथ देती रही और उसकी मदद करती रही। आगे चलकर अबीगैल ने एक बेटे को जन्म दिया। इस दौरान उसने जाना कि उसका पति दाविद उस पर जान छिड़कता और उसकी हिफाज़त करता है। एक मौके पर जब अबीगैल को अगवा कर लिया गया, तो दाविद ने उसे छुड़ाया। (1 शमूएल 30:1-19) इस तरह, दाविद यहोवा परमेश्वर की मिसाल पर चला, जो सूझ-बूझ से काम लेनेवाली, साहसी और वफादार स्त्रियों से प्यार करता और उनकी कदर करता है। (w09 07/01)
[फुटनोट]
a यह मशहूर कार्मेल पर्वत नहीं था, क्योंकि वह तो दूर उत्तर में था। बल्कि यह दक्षिण के वीराने के पास का एक कसबा था।
b दाविद को शायद लगा हो कि इलाके के ज़मीनदारों और उनके मवेशियों की देखभाल करना, यहोवा परमेश्वर की सेवा करना है। वह क्यों? उन दिनों यहोवा का मकसद था कि अब्राहम, इसहाक और याकूब के वंशज उस देश में रहें। इसलिए विदेशी हमलावरों और लूटमारों से उनकी हिफाज़त करना, पवित्र सेवा का एक पहलू था।
c जवान सेवक ने जिन इब्रानी शब्दों का इस्तेमाल किया, उनका शाब्दिक अर्थ है “बलियाल [निकम्मेपन] का बेटा।” बाइबल के दूसरे अनुवादों में यह वाक्य इस तरह लिखा गया है कि नाबाल “किसी की भी सुनने के लिए तैयार नहीं,” इसलिए “उससे बात करना फिज़ूल है।”
[पेज 15 पर तसवीर]
अबीगैल अपने पति की तरह नहीं थी, बल्कि वह दूसरों की ध्यान से सुनती थी
[पेज 16 पर तसवीर]
अबीगैल ने दाविद के साथ नम्रता और हिम्मत से बात की। उसने समझ से भी काम लिया