आप बुरी भावनाओं से कैसे लड़ सकते हैं?
क्या आपके मन में कभी बुरी भावनाएँ उठी हैं? दरअसल हर इंसान के मन में कभी-कभी बुरी भावनाएँ उठती हैं। आज दुनिया में जहाँ देखो वहाँ पैसों की तंगी और मारकाट मची हुई है साथ ही, हर तरफ बढ़-चढ़कर नाइंसाफी हो रही है। इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि ऐसे माहौल के चलते क्यों आज बेशुमार लोग निराशा, दोष और नाकाबिल होने की भावना से जूझ रहे हैं।
ऐसी भावनाएँ बड़ी खतरनाक हो सकती हैं। ये हमारे आत्म-विश्वास का गला घोंट सकती हैं, हमारी सोचने-समझने की ताकत कमज़ोर कर सकती हैं और हमारी खुशियाँ छीन सकती हैं। बाइबल कहती है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।” (नीतिवचन 24:10) मुश्किलों से भरी इस दुनिया में जीने के लिए हमें शक्ति और ताकत की ज़रूरत है। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम मन में उठनेवाली भावनाओं पर काबू रखें।a
इस मामले में बाइबल हमें बढ़िया मदद देती है। हमारा सृष्टिकर्ता और जीवन कायम रखनेवाला परमेश्वर यहोवा नहीं चाहता कि हम नाउम्मीदी या निराशा की भावना के बोझ तले दबकर चूर-चूर हो जाएँ। (भजन 36:9) इसलिए आइए ऐसे तीन तरीके देखें कि कैसे परमेश्वर का वचन हमें बुरी भावनाओं से लड़ने में मदद देता है।
यकीन रखिए, परमेश्वर आपकी परवाह करता है
कुछ लोग सोचते हैं कि परमेश्वर के पास हम अदना इंसानों की भावनाओं को समझने की ज़रा-भी फुरसत नहीं। क्या आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं? दरअसल बाइबल हमें दिलासा देती है कि हमारे जज़्बात सृष्टिकर्ता के लिए बहुत मायने रखते हैं। भजनहार कहता है, “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भजन 34:18) यह जानकर क्या ही सुकून मिलता है कि पूरे जहान का महाराजाधिराज और मालिक, मुसीबतों के समय हमारे करीब रहता है!
यहोवा परमेश्वर कठोर, रूखा या दूर-दूर रहनेवाला परमेश्वर नहीं। इसके बजाय, बाइबल कहती है, “परमेश्वर प्यार है।” (1 यूहन्ना 4:8) वह लोगों से प्यार करता है और उनकी तकलीफें समझता है। मिसाल के लिए, 3,500 साल पहले जब इसराएली मिसर की बँधुवाई में थे, तब उसने कहा, “निश्चय मैंने मिस्र में रहनेवाली अपनी प्रजा की पीड़ा को देखा है, और उनसे बेगार करानेवालों के कारण उनकी पुकार पर ध्यान दिया है, क्योंकि मैं उनके दुखों को जानता हूँ। अत: मैं उतर आया हूँ कि उनको मिस्रियों के हाथों से छुड़ाऊं।”—निर्गमन 3:7, 8, NHT.
यहोवा हमारे जज़्बात बखूबी समझता है। आखिर “उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं।” (भजन 100:3) इसलिए जब हमें लगता है कि हमारे करीबी हमें नहीं समझते, तब हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर हमें ज़रूर समझेगा। परमेश्वर का वचन कहता है, “यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।” (1 शमूएल 16:7) जी हाँ, दिल की गहराई में छिपी हमारी भावनाएँ भी यहोवा से छिपी नहीं हैं, वे उसके आगे खुली किताब की तरह हैं।
हमें बनानेवाला यहोवा परमेश्वर हमारी खामियाँ और गलतियाँ जानता है, लेकिन हम एहसानमंद हो सकते हैं कि वह हमें माफ भी करता है। परमेश्वर की प्रेरणा से लेखक दाविद ने लिखा, “जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:13, 14) हमें शायद खुद में सिर्फ खामियाँ ही नज़र आएँ, लेकिन परमेश्वर हमारी बुराइयों को एक तरफ कर हममें अच्छाइयाँ ढूँढ़ता है, बशर्ते हम अपने पापों के लिए दिल से पश्चाताप दिखाएँ।—भजन 139:1-3, 23, 24.
इसलिए जब हमें नाकाबिल होने की भावना आ घेरती है, तो हमें इससे लड़ना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि परमेश्वर हमें किस नज़र से देखता है!—1 यूहन्ना 3:20.
परमेश्वर के साथ गहरी दोस्ती कायम कीजिए
जिस तरह परमेश्वर हमें देखता है अगर हम भी खुद को उसी नज़र से देखें, तो हमें क्या फायदा होगा? इससे हमें बुरी भावनाओं पर काबू पाने के लिए अगला कदम उठाने में आसानी होगी। और वह कदम है, परमेश्वर के साथ गहरी दोस्ती कायम करना। क्या यह वाकई मुमकिन है?
एक प्यार करनेवाले पिता की तरह यहोवा परमेश्वर, हमारी मदद करने के लिए तैयार है ताकि हम उसके साथ एक गहरी दोस्ती कायम कर सकें। बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है, “परमेश्वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।” (याकूब 4:8) ज़रा सोचिए, कमज़ोर और पापी होने के बावजूद हम पूरे जहान के मालिक के साथ दोस्ती कर सकते हैं। यह क्या ही अनोखी बात है!
बाइबल में परमेश्वर ने अपने बारे में बहुत-सी जानकारी दर्ज़ करवायी है। इसे पढ़कर हम जान सकते हैं कि वह असल में कैसा शख्स है। हर दिन बाइबल पढ़ने से, हम परमेश्वर के मनभावने गुणों के बारे में सीख सकते हैं।b जब हम सीखी बातों पर मनन करेंगे, तो हम खुद को यहोवा के और भी करीब महसूस करेंगे। यही नहीं, हम परमेश्वर को और भी बेहतर ढंग से समझ पाएँगे कि वह सचमुच एक प्यार करनेवाला और दयालु पिता है।
बाइबल से सीखी बातों पर मनन करने से हमें और भी कई फायदे होते हैं। हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के और भी करीब आते हैं। वह कैसे? हम उसके विचार अपने दिलो-दिमाग में उतार पाते हैं और उसके मुताबिक खुद को सुधारते हैं। यही नहीं, हमें इससे सांत्वना और मार्गदर्शन भी मिलता है। बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करना तब और भी ज़रूरी होता है, जब हम परेशान और बेचैन करनेवाली भावनाओं के भँवर में फँसे होते हैं। भजनहार यूँ कहता है, “जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।” (भजन 94:19) वाकई परमेश्वर का वचन हमें दिलासा दे सकता है। अगर हम नम्रता से बाइबल की सच्चाइयों को कबूल करें, तो धीरे-धीरे हमारे अंदर से बुरी भावनाएँ खत्म हो जाएँगी और हम परमेश्वर से मिलनेवाली शांति और सुकून महसूस करेंगे। जिस तरह एक प्यार करनेवाला पिता अपने रोते हुए बच्चे को पुचकार कर शांत करता है, उसी तरह यहोवा हमें तसल्ली देता है।
परमेश्वर के साथ दोस्ती कायम करने का एक और तरीका है, प्रार्थना में उससे रोज़ बात करना। बाइबल हमें यकीन दिलाती है, “हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” (1 यूहन्ना 5:14) हमें चाहे किसी भी तरह की चिंता-फिक्र सता रही हो, हम प्रार्थना में परमेश्वर से मदद माँग सकते हैं। अगर हम उसके आगे अपना दिल खोलकर रख दें, तो हमें मन की शांति मिलेगी। प्रेषित पौलुस ने लिखा, “हर बात में प्रार्थना और मिन्नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर को बताते रहो। और परमेश्वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्ति से कहीं ऊपर है, मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।”—फिलिप्पियों 4:6, 7.
अगर आप रोज़ाना बाइबल पढ़ें, सीखी बातों पर मनन करें और प्रार्थना करें, तो बेशक आप स्वर्ग में रहनेवाले पिता के साथ एक करीबी रिश्ता कायम कर पाएँगे। इस रिश्ते की बदौलत आप बुरी भावनाओं पर जीत हासिल कर पाएँगे। बुरी भावना से लड़ने में और क्या बात आपकी मदद कर सकती है?
भविष्य की पक्की आशा पर आँखें टिकाए रखिए
जब हम पर कोई बड़ी मुश्किल आती है, तब हम अच्छी बातों पर ध्यान लगा सकते हैं। कैसे? परमेश्वर ने हमें भविष्य की एक पक्की आशा दी है। प्रेषित पतरस ने इस शानदार आशा के बारे में चंद शब्दों में यूँ बताया, “हम परमेश्वर के वादे के मुताबिक एक नए आकाश और नयी पृथ्वी का इंतज़ार कर रहे हैं, जहाँ न्याय का बसेरा होगा।” (2 पतरस 3:13) इस आयत का क्या मतलब है?
शब्द “नए आकाश” का मतलब है, एक नयी सरकार यानी स्वर्ग में परमेश्वर का राज जिसका राजा यीशु मसीह है। “नयी पृथ्वी” का मतलब है, धरती पर एक नया समाज जो उन लोगों से बना है जिन पर परमेश्वर की मंज़ूरी है। इस नयी सरकार के अधीन यह नया समाज उन सारी चीज़ों से निजात पाएगा, जिनसे बुरी भावनाएँ उठती हैं। उस वक्त जीनेवाले वफादार इंसानों के बारे में बाइबल भरोसा दिलाती है कि परमेश्वर “उनकी आँखों से हर आँसू पोंछ देगा, और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।”—प्रकाशितवाक्य 21:4.
वाकई इन शब्दों से दिल में खुशी की लहर दौड़ उठती है। इसलिए बाइबल सच्चे मसीहियों को दी परमेश्वर की इस आशा को “सुखद आशा” कहती है। (तीतुस 2:13) अगर हम आनेवाले शानदार कल के बारे में परमेश्वर के वादों पर मनन करें और सोचें कि क्यों ये वादे भरोसेमंद और सच हैं, तो हम बुरी भावनाओं से लड़ पाएँगे।—फिलिप्पियों 4:8.
बाइबल में उद्धार की आशा की तुलना टोप से की गयी है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:8) प्राचीन समय में, एक सैनिक बिना टोप के मैदाने-जंग में जाने की सोच भी नहीं सकता था। क्योंकि वह जानता था कि टोप उसे हलके-फुलके झटकों से और जलते हुए तीरों के हमलों से सुरक्षा देगा। जिस तरह टोप, सिर की रक्षा करता है, उसी तरह आशा दिमाग की हिफाज़त करती है। अगर हम उन बातों पर सोचें, जिनसे हमारी आशा मज़बूत होती है, तो हमें निराशा और डर की भावना को मन से निकालने में मदद मिलेगी।
जी हाँ, बुरी भावनाओं पर जीत हासिल की जा सकती है। और आप भी ऐसा कर सकते हैं! इसलिए मनन कीजिए कि परमेश्वर आपको किस नज़र से देखता है, उसके करीब बने रहिए और भविष्य की शानदार आशा पर आँखें टिकाए रखिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो आप ज़रूर वह दिन देख पाएँगे जब बुरी भावनाएँ हमेशा के लिए मिटा दी जाएँगी।—भजन 37:29. (w10-E 10/01)
[फुटनोट]
a जो लोग घोर हताशा के शिकार हैं, उन्हें काबिल डॉक्टर से सलाह-मशविरा करना चाहिए।—मत्ती 9:12.
b जनवरी 1, 2010 की प्रहरीदुर्ग में बाइबल पढ़ाई का एक असरदार और आसान शेड्यूल दिया गया है।
[पेज 9 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“मैं उनके दुखों को जानता हूँ।” निर्गमन 3:7, 8, NHT
[पेज 10 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।” भजन 94:19
[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“परमेश्वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्ति से कहीं ऊपर है, . . . तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।” फिलिप्पियों 4:7
[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]
आयतें जो यहोवा पर हमारा यकीन बढ़ाती हैं
“यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य [है]।”—निर्गमन 34:6.
“यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।”—2 इतिहास 16:9.
“यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।”—भजन 34:18.
“हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है।”—भजन 86:5.
“यहोवा सभों के लिये भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है।”—भजन 145:9.
“मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़कर कहूंगा, मत डर, मैं तेरी सहायता करूंगा।”—यशायाह 41:13.
“वह कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है।”—2 कुरिंथियों 1:3.
“ऐसी हर बात में हम अपने दिलों को परमेश्वर के प्यार का यकीन दिलाएँगे जिसमें हमारा दिल हमें दोषी ठहराता है, क्योंकि परमेश्वर हमारे दिलों से बड़ा है और सारी बातें जानता है।”—1 यूहन्ना 3:19, 20.
[पेज 12 पर बक्स/तसवीरें]
बुरी भावनाओं पर काबू पानेवाले
“मेरे पिता शराबी थे और उन्होंने मेरा जीना दुश्वार कर रखा था। लंबे समय से लाचारी की भावना मुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रही थी। लेकिन जब मैं यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने लगी, तो मैंने सीखा कि परमेश्वर ने इंसानों को धरती पर हमेशा की ज़िंदगी देने का वादा किया है। यह जानकर मेरा रोम-रोम खुशी से खिल उठा। देखते-देखते बाइबल पढ़ना मेरी आदत बन गयी। मैं हमेशा अपने पास बाइबल रखती हूँ। और जब भी बुरी भावनाएँ मुझ पर हावी होने लगती हैं, तो मैं बाइबल खोलकर दिलासा देनेवाली आयतें पढ़ती हूँ। परमेश्वर के मनभावने गुणों के बारे में पढ़ने से मुझे यकीन हो जाता है कि मैं उसकी नज़रों में बहुत अनमोल हूँ।”—तैंतीस साल की कविता।c
“मुझे शराब, गाँजा, कोकेन, क्रैक कोकेन की लत थी और मैं नशे के लिए गोंद सूँघता था। मेरे पास जो भी था, मैंने करीब-करीब सबकुछ गवाँ दिया था। नौबत यहाँ तक आ गयी कि मुझे दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़े। लेकिन यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू करने के बाद, मेरी पूरी ज़िंदगी ही बदल गयी। मैंने परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता कायम किया। हालाँकि आज भी मुझे दोष और नाकाबिल होने की भावना से लड़ना पड़ता है, लेकिन मैंने यहोवा पर भरोसा रखना सीखा है जो दया और अटल-कृपा का परमेश्वर है। मुझे यकीन है कि परमेश्वर मुझे अपनी बुरी भावनाओं पर काबू करने की ताकत देता रहेगा। बाइबल सच्चाई सीखना मेरी ज़िंदगी का अब तक का सबसे अच्छा अनुभव रहा है।”—सैंतीस साल का पुनीत।
“बचपन में मैं खुद की तुलना अपने बड़े भाई से करती थी। मैं खुद को हमेशा उससे कमतर समझती थी। आज भी मैं असुरक्षित महसूस करती हूँ और मुझे अपनी काबिलीयतों पर भरोसा नहीं। लेकिन मैंने ठान लिया है कि मैं अपनी इस लड़ाई में हार नहीं मानूँगी। मैं हमेशा यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना करती हूँ और वह मुझे नाकाबिल होने की भावनाओं से उभरने में मदद देता है। इस बात से मुझे सुकून मिलता है कि परमेश्वर सच में मुझसे प्यार करता है और मेरी परवाह करता है!”—पैंतालीस साल की सुमित्रा।
[फुटनोट]
c कुछ नाम बदल दिए गए हैं।