प्रश्न पेटी
▪ कलीसिया को कोई प्रस्ताव प्रस्तुत करने में कौनसी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए?
स्थानीय प्राचीन समूह कलीसिया पर प्रभाव करनेवाले अनेक मामलों पर निर्णय लेता है। निर्णय लेने में, ये ज़िम्मेदार भाई बाइबल के सिद्धांत और साथ ही संस्था द्वारा दिए सुझाव या निर्देशन के ज़रिये मार्गदर्शित होते हैं। तथापि, कई ऐसे निर्णय हैं जिन में कलीसिया भाग लेती है, जिस के लिए एक प्रस्ताव आवश्यक है। ये मामले मिलने के बेहतर स्थान प्राप्त करना, ज़मीन ख़रीदना, राज्य सभागृह बाँधना या उसको नया रूप देना, राज्य हितों को बढ़ाने के लिए संस्था को अंशदान भेजना, इत्यादि बातों को सम्मिलित कर सकते हैं। मामूली परिचालन ख़र्च के लिए प्रस्ताव ज़रूरी नहीं है, पर सभी बड़े या ग़ैर-मामूली ख़र्च कलीसिया द्वारा प्रस्ताव के रूप में मंज़ूर किए जाने चाहिए।
प्रस्ताव कैसे तैयार और प्रस्तुत किए जाते हैं? कलीसिया और राज्य कार्य के हित में जो बेहतर है उसे ग़ौर करते हुए, इस मामले पर प्राचीन समूह अच्छी तरह से विचार-विमर्श करता है। सहमत हो जाने के बाद, एक प्राचीन, संभवतः कलीसिया की सेवा कमेटी का एक सदस्य, एक लिखित प्रस्ताव तैयार करेगा जिस में प्राचीनों की सिफ़ारिशों को साफ़-साफ़ बताया गया है। सेवा सभा के दौरान सुसंगत तथ्य और प्रस्तावित प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा। अगर कुछ साफ़ नहीं है, तो इस मामले को सँभालनेवाला प्राचीन कलीसिया के सदस्यों को सवाल पूछने का मौक़ा देगा। अगर एक मुख्य निर्णय शामिल है, तो प्राचीन कलीसिया को मत देने से पहले विचार करने के लिए एक या दो सप्ताह की मोहलत दे सकते हैं। अगर कलीसिया प्रस्ताव को बिना अधिक विचार-विमर्श किए स्वीकार करना चाहती है, तो सभापति प्रस्ताव के पक्ष में रहनेवालों को और प्रस्ताव के विरुद्ध रहनेवालों को अपने हाथ दिखाने की माँग करेगा। अगर अधिकांश समर्पित और बपतिस्मा-प्राप्त प्रचारक प्रस्ताव के पक्ष में हैं, तो फिर प्राचीन स्वीकार किए गए मामला पर आगे बढ़ सकते हैं।
उन मामलों को छोड़कर जहाँ क़ानूनी आवश्यकताएँ दूसरे ढंग से माँग करती हैं, सब समर्पित और बपतिस्मा-प्राप्त प्रचारकों को प्रस्ताव में प्रस्तुत किए गए मामलों पर मत देने दिया जाएगा।
जब निगम मामले, राज्य सभागृह के क़र्ज़, इत्यादि, पर ग़ौर किया जा रहा है, निगम की क़ानूनी ज़रूरतों और उपनियम का अनुपालन करने के लिए संसदीय प्रक्रिया को इस्तेमाल करने की ज़रूरत होगी। (भारत में यह सिर्फ़ वहाँ लागू होगा जहाँ कलीसिया ने ज़मीन, राज्य सभागृह, इत्यादि, के अधिकार-पत्र पर स्वामित्व रखने के लिए क़ानूनी स्थानीय संस्थाएँ बनायी हैं।) उदाहरण के लिए, कभी-कभी यह ज़रूरी होता है कि उस भाई का नाम लिखा जाए जिसने प्रस्ताव अपनाने का प्रावेदन किया और उस भाई का नाम भी जिसने इस प्रावेदन का समर्थन किया, और इसके अलावा कितने व्यक्तियों ने इसके पक्ष में या विरुद्ध मत दिया। अगर यह संसदीय प्रक्रिया आवश्यक नहीं, तो फिर कलीसिया के विचार करने के पश्चात इस मामले पर मत देने की माँग करना काफ़ी होगा। हर हालत में अपनाए गए लिखित प्रस्तावों को ज़िम्मेदार प्राचीनों द्वारा कलीसिया के रिकार्डों के साथ फ़ाइल करने से पहले दिनांकित किया तथा उन पर दस्तखत किया जाना चाहिए।