अपने बाइबल विद्यार्थी के हृदय तक पहुँचिए
क्या आप चाहते हैं कि आपका बाइबल विद्यार्थी उसके द्वारा सीखी हुई बातों पर कार्य करे? जो ज्ञान वो प्राप्त कर रहा है यदि उसे उससे लाभ पहुँचना है तो उसे ऐसा करना चाहिए। अपने बाइबल विद्यार्थी को कार्य करने की ओर प्रेरित करने के लिए, आपको उसके हृदय तक पहुँचना चाहिए। पिन्तेकुस्त के दिन सा.यु. ३३ में, प्रेरित पतरस के प्रोत्साहक भाषण ने लगभग ३,००० लोगों का ‘हृदय छेद दिया,’ जिन्होंने “(हृदय से, NW) उसका वचन ग्रहण किया” और उसी दिन उनको बपतिस्मा दिया गया। (प्रेरितों २:३७, ४१) आप अपने बाइबल विद्यार्थी के हृदय तक कैसे पहुँच सकते हैं?
२ अच्छी तरह तैयारी कीजिए: इतने विषय को पूरा करने का प्रयास न कीजिए जिससे कि जानकारी पर विद्यार्थी से तर्क करने के लिए थोड़ा ही समय उपलब्ध हो। पहले ही उन मुद्दों को निर्धारित कीजिए जिन्हें आप विशिष्ट करेंगे, और निश्चित कीजिए कि आप शास्त्रवचनों को समझते हैं और प्रभावकारी रूप से उन्हें लागू कर सकते हैं। उसकी पृष्ठभूमि के कारण जो सवाल विद्यार्थी के मन में उठ सकते हैं उन पर पहले ही विचार कीजिए। यदि आप अपने विद्यार्थी से भली-भाँति परिचित हैं, यह ज्ञान आपको ऐसी जानकारी के साथ तैयार रहने में सहायता करेगा जो विशेषकर उस पर ठीक बैठेगा।
३ यीशु के सिखाने के तरीक़े का अनुकरण कीजिए: यीशु ने कठिन मुद्दों को सरल करने के लिए और अपने विद्यार्थियों को अर्थ समझने में सहायता करने और एक स्थिति की भावना को महसूस करने के लिए दृष्टान्तों का उपयोग किया। (लूका १०:२९-३७) समान रूप से, अपने दृष्टान्तों को सरल रखने, उन्हें जीवन की सामान्य चीज़ों से लेने, और उन्हें विशेष रूप से विद्यार्थी की परिस्थितियों पर लागू करने के द्वारा आप अपने बाइबल विद्यार्थी के हृदय पर उत्तम शिक्षाओं की छाप छोड़ सकते हैं।
४ बाइबल विद्यार्थियों के हृदय तक पहुँचने के लिए सवाल विशेषकर सहायक होते हैं, जैसे यीशु ने अकसर प्रदर्शित किया। (लूका १०:३६) लेकिन यदि विद्यार्थी सिर्फ़ पुस्तक से जवाब पढ़ देता है तो उसी से संतुष्ट नहीं हो जाइए। संकेतक प्रश्नों के उपयोग से उसके मन को एक निष्कर्ष की ओर निर्देशित कीजिए जिस पर शायद उसने पहले विचार न किया हो। यह प्रक्रिया विद्यार्थी को सोच-विचार करने की योग्यता विकसित करने में भी सहायता करती है। एक विषय पर व्यक्तिगत रूप से वह क्या विश्वास करता है यह जानने के लिए दृष्टिकोण सवाल पूछिए। तब आप ऐसे क्षेत्रों को देख सकेंगे जहाँ सहायता की ज़रूरत है, और आप ज़्यादा विशिष्ट सहायता के साथ आगे कार्यवाही कर सकेंगे।
५ यदि एक बाइबल विद्यार्थी प्रगति नहीं कर रहा है, तो इसका कारण क्या है इस बारे में आपको उससे पूछताछ करने की ज़रूरत है। इसमें नियमित अध्ययन समय के बजाय किसी और समय पर भेंट करना सम्मिलित हो सकता है। वह कार्य करने के लिए क्यों हिचकिचाता है? क्या कोई शास्त्रीय मुद्दा है जो उसे समझ नहीं आया? क्या वह अपनी जीवन-शैली में कुछ समायोजन करने के लिए अनिच्छुक है? यदि एक बाइबल विद्यार्थी ‘दो विचारों पर लटके’ रहने का प्रयास कर रहा है, तो उसे ऐसा करने के ख़तरे को समझने में सहायता कीजिए।—१ राजा १८:२१.
६ प्रेरित पौलुस को यह महसूस हुआ कि दिलचस्पी रखनेवाले व्यक्तियों को बाइबल सत्य सिखाना प्राण-रक्षक कार्य है, और इसलिए उसने सभी मसीहियों को ‘अपने उपदेश की चौकसी रखने’ के लिए सलाह दी। (१ तीमु. ४:१५) जिनके साथ आप बाइबल अध्ययन संचालित करते हैं उन्हें बाइबल और संसार की घटनाओं के बारे में मात्र तथ्यों से अधिक ग्रहण करना है। उन्हें यहोवा और यीशु के बारे में यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना है और उनके साथ एक स्नेही व्यक्तिगत संबंध विकसित करने के लिए विद्यार्थियों की सहायता की जानी चाहिए। सिर्फ़ ऐसा करने से ही वे अपने विश्वास को कार्यों से प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित होंगे। (याकू. २:१७, २१, २२) जब एक विद्यार्थी के हृदय तक पहुँचा जाता है, वह ऐसे मार्ग का अनुकरण करने के लिए प्रेरित होगा जो यहोवा को आदर लाएगा और स्वयं उसके जीवन की रक्षा करेगा।—नीति. २:२०-२२.