ज्ञान पुस्तक से शिष्य कैसे बनाएँ
सभी मसीहियों के लिए एक वांछनीय लक्ष्य है दूसरों को सच्चाई सिखाना एवं उन लोगों को शिष्य बनाना जो “अनन्त जीवन के लिए सही रीति से प्रवृत्त” हैं। (प्रेरि. १३:४८, NW; मत्ती २८:१९, २०) यहोवा के संगठन ने हमारे हाथों में एक अद्भुत औज़ार दिया है जिससे हम यह कार्य निष्पन्न करें—पुस्तक ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है। इसका शीर्षक गृह बाइबल अध्ययनों के महत्त्व को विशिष्ट करता है, क्योंकि अनन्त जीवन एकमात्र सच्चे परमेश्वर, यहोवा तथा उसके पुत्र, यीशु मसीह का ज्ञान लेने पर निर्भर करता है।—यूह. १७:३.
२ ज्ञान पुस्तक गृह बाइबल अध्ययन संचालित करने में प्रयोग करने के लिए अब संस्था का मुख्य प्रकाशन है। इसका प्रयोग करते हुए, हम सच्चाई को सरलता, स्पष्टता, एवं संक्षिप्तता के साथ सिखा सकते हैं। यह सिखाए जा रहे लोगों के हृदय तक पहुँचने में मदद करेगा। (लूका २४:३२) निस्संदेह, संचालक को उत्तम शिक्षा तकनीकों को प्रयोग करने की ज़रूरत है। यह अंतःपत्र ऐसे शिक्षा तरीक़ों के सम्बन्ध में सुझाव एवं अनुस्मारक देने के उद्देश्य से बनाया गया है जो प्रभावकारी साबित हुए हैं। समझदारी के साथ, एवं व्यक्तिगत स्थितियों के अनुसार, आप यहाँ जो पेश किया गया है उसमें से धीरे-धीरे कुछ अथवा सारे सुझावों को लागू करने में समर्थ होंगे। इस अंतःपत्र को सम्भालकर रखिए, और अकसर इसे देखिए। इसमें के अनेक मुद्दे, शिष्य बनाने के लिए ज्ञान पुस्तक का प्रयोग करने में अधिक प्रभावकारी बनने के लिए शायद आपकी मदद करें।
३ एक प्रगतिशील गृह बाइबल अध्ययन संचालित कीजिए: एक संभावित मसीही शिष्य एवं आध्यात्मिक भाई या बहन के रूप में विद्यार्थी में एक वास्तविक व्यक्तिगत रुचि लीजिए। स्नेहिल, मैत्रिपूर्ण, एवं उत्साही रहिए। एक अच्छा श्रोता होने के द्वारा, आप दूसरे व्यक्ति को—उसकी पृष्ठभूमि तथा जीवन की स्थिति को—जान सकते हैं, जो आपको यह समझने में मदद देगा कि आध्यात्मिक रूप से सर्वोत्तम सहायता कैसे करें। विद्यार्थी की ख़ातिर ख़ुद को उपलब्ध कराने के लिए इच्छुक रहिए।—१ थिस्स. २:८.
४ जब एक बार अध्ययन स्थापित हो जाए, तो यह सुझाया जाता है कि ज्ञान पुस्तक के अध्यायों का संख्या-क्रम में अध्ययन किया जाए। यह विद्यार्थी को सच्चाई की प्रगतिशील समझ प्राप्त करने देगा, क्योंकि यह पुस्तक बाइबल विषयों को सबसे तर्कसंगत अनुक्रम में विकसित करती है। अध्ययन को सरल एवं रुचिकर बनाए रखिए ताकि यह सजीव हो तथा आगे बढ़ता रहे। (रोमि. १२:११) विद्यार्थी की स्थिति एवं योग्यता पर निर्भर करते हुए, आपके लिए एकाध घंटे के एक सत्र में अधिकांश अध्याय पूरा करना शायद सम्भव हो, अध्ययन में जल्दबाज़ी किए बग़ैर। विद्यार्थी बेहतर प्रगति करेंगे जब शिक्षक एवं विद्यार्थी प्रत्येक सप्ताह अध्ययन के नियोजित समय का पालन करते हैं। अतः, अधिकांश लोगों के साथ, शायद इस पुस्तक के १९ अध्यायों को लगभग छः महीनों में ही पूरा करना सम्भव हो।
५ प्रत्येक सत्र का आरम्भ संक्षिप्त टिप्पणियों के साथ कीजिए जो विषय में रुचि उत्पन्न करती हैं। आप देखेंगे कि प्रत्येक अध्याय का शीर्षक उसका मूल विषय है, जिस पर ज़ोर दिए जाने की ज़रूरत है। प्रत्येक उपशीर्षक एक मुख्य मुद्दे को अलग करता है, एवं आपको अध्याय के मूल विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मदद देता है। ध्यान दीजिए कि ज़रूरत से ज़्यादा बात न करें। इसके बजाय, विद्यार्थी की अभिव्यक्तियों को निकलवाने की कोशिश कीजिए। विद्यार्थी पहले से जो जानता है, उस पर आधारित विशिष्ट संकेतक प्रश्न पूछना, उसे तर्क करने एवं सही निष्कर्ष पर पहुँचने में मदद देगा। (मत्ती १७:२४-२६; लूका १०:२५-३७; स्कूल गाइडबुक, अंग्रेज़ी, पृष्ठ ५१, अनुच्छेद १० देखिए।) ज्ञान पुस्तक की मुद्रित जानकारी से नज़दीकी से लगे रहिए। अतिरिक्त विवरण लाना मुख्य मुद्दों से विचलित कर सकता है या उन्हें धुँधला कर सकता है एवं अध्ययन को लम्बा बना सकता है। (यूह. १६:१२) यदि एक ऐसा सवाल उठाया जाता है जो अध्ययन किए जा रहे विषय से सम्बन्धित नहीं है, तो अधिकांश मामलों में आप उसे सत्र के अन्त में सम्बोधित कर सकते हैं। यह आपको विकर्षित हुए बिना सप्ताह के पाठ को पूरा करने की अनुमति देगा। विद्यार्थी को समझाइए कि धीरे-धीरे उसके अधिकांश व्यक्तिगत सवालों के जवाब अध्ययन करते समय मिल जाएँगे।—स्कूल गाइडबुक, पृष्ठ ९४, अनुच्छेद १४ देखिए।
६ यदि विद्यार्थी त्रियेक, प्राण के अमरत्व, नरकाग्नि, या इसी तरह के अन्य झूठे धर्म-सिद्धान्तों को मज़बूती से पकड़े रहता है, तथा ज्ञान पुस्तक में जो प्रस्तुत किया गया है वह उससे संतुष्ट नहीं होता, तो आप उसे रिज़निंग पुस्तक या कोई अन्य प्रकाशन दे सकते हैं जो उस विषय की चर्चा करता है। उसे बताइए कि आप उसके साथ उस विषय की चर्चा, जो वह पढ़ता है उसके बारे में उसके सोचने के बाद करेंगे।
७ अध्ययन को यहोवा के मार्गदर्शन एवं आशिष के लिए प्रार्थना के द्वारा आरम्भ तथा अन्त करना उस अवसर का सम्मान बढ़ाता है, व्यक्ति को आदरपूर्ण मनःस्थिति में रखता है, तथा सच्चे शिक्षक के रूप में यहोवा की ओर ध्यान आकर्षित करता है। (यूह. ६:४५) यदि विद्यार्थी अब भी तम्बाकू उपभोगी है, तो शायद अन्ततः आपको उससे अध्ययन के दौरान उससे दूर रहने के लिए कहने की ज़रूरत हो।—प्रेरि. २४:१६; याकू. ४:३.
८ शास्त्रवचनों, दृष्टान्तों, एवं पुनर्विचार प्रश्नों के साथ प्रभावकारी रूप से सिखाइए: चाहे उसने विषय का अध्ययन पहले कितनी ही बार क्यों न किया हो, एक कुशल शिक्षक विशिष्ट विद्यार्थी को मन में रखते हुए प्रत्येक पाठ का पुनर्विचार करेगा। यह विद्यार्थी की ओर से प्रश्नों की अपेक्षा करने में मदद करता है। प्रभावकारी रूप से सिखाने के लिए, अध्याय में मुख्य मुद्दों को स्पष्टता से समझिए। यह जानने के लिए शास्त्रवचनों को देखिए कि कैसे वे विषय से सम्बन्धित हैं, एवं यह निर्णय कीजिए कि अध्ययन के दौरान कौन-से शास्त्रवचन पढ़े जाने चाहिए। इस पर विचार कीजिए कि आप दृष्टान्तों एवं अध्याय के अन्त में पुनर्विचार प्रश्नों का प्रयोग करते हुए कैसे सिखा सकते हैं।
९ शास्त्रवचनों का प्रभावकारी प्रयोग करने के द्वारा, आप विद्यार्थी को यह समझने में मदद देंगे कि वह वास्तव में बाइबल का अध्ययन कर रहा है। (प्रेरि. १७:११) ज्ञान पुस्तक के पृष्ठ १४ के बक्स “अपनी बाइबल से परिचित होइए” का प्रयोग करते हुए उसे सिखाइए कि कैसे शास्त्रवचन ढूँढें। उसे दिखाइए कि पाठ में उद्धृत आयत को कैसे पहचानें। जैसे-जैसे समय अनुमति दे, उल्लिखित शास्त्रवचनों को देखिए एवं पढ़िए जो उद्धृत नहीं हैं। विद्यार्थी से यह टिप्पणी करवाइए कि कैसे वे जो अनुच्छेद में कहा गया है उसका समर्थन अथवा उसे स्पष्ट करते हैं। पाठ के मुख्य भागों पर ज़ोर दीजिए ताकि वह पाठ के मुख्य मुद्दों के कारणों को समझे। (नहे. ८:८) सामान्यतः, शिक्षक को चर्चा में पुस्तक में जो दिए गए हैं, उनसे ज़्यादा वचनों को जोड़ने की ज़रूरत नहीं है। बाइबल पुस्तकों के नाम तथा क्रम को जानने के महत्त्व पर टिप्पणी कीजिए। विद्यार्थी के लिए जून १५, १९९१ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २७-३० पढ़ना शायद सहायक हो। जब उचित हो, तब नया संसार अनुवाद (अंग्रेज़ी) के प्रयोग को प्रोत्साहित कीजिए। आप प्रगतिशील रूप से प्रदर्शित कर सकते हैं कि उसकी विभिन्न विशेषताओं का कैसे प्रयोग करें, जैसे कि उपांतिक संदर्भ एवं बाइबल शब्दों की अनुक्रमणिका।
१० थियोक्रॆटिक मिनिस्ट्री स्कूल गाइडबुक में अध्ययन ३४ समझाता है कि चित्र व्यक्ति की विचार-प्रणाली को प्रेरित करते हैं एवं नए विचारों को समझना आसान बना देते हैं। वे बौद्धिक आकर्षण को भावात्मक प्रभाव के साथ जोड़ते हैं, जिससे संदेश एक ऐसी शक्ति के साथ संचारित किया जाता है जो अकसर तथ्यों के सरल कथनों से सम्भव नहीं होता। (मत्ती १३:३४) ज्ञान पुस्तक में अनेक शिक्षाप्रद चित्र हैं जो सरल फिर भी शक्तिशाली हैं। उदाहरणार्थ, अध्याय १७ में प्रयोग किया गया एक दृष्टान्त इस बात की क़दर बढ़ाता है कि कैसे आध्यात्मिक अर्थ में यहोवा मसीही कलीसिया के द्वारा रोटी, कपड़ा, तथा मकान प्रदान करता है। ज्ञान पुस्तक के सुंदर चित्रमय दृष्टान्तों का प्रयोग भावनाओं को प्रेरित करने के लिए प्रभावकारी रूप से किया जा सकता है। पृष्ठ १८५ पर उपशीर्षक “हर्षपूर्ण पुनरुत्थान” के नीचे, अनुच्छेद १८ का प्रभाव शक्तिशाली होगा जब विद्यार्थी को फिर से पृष्ठ ८६ का चित्र देखने के लिए कहा जाता है। शायद यह उसे पुनरुत्थान को परमेश्वर के राज्य के अधीन एक वास्तविकता के तौर पर सोचने के लिए प्रेरित करे।
११ बाइबल विद्यार्थियों को प्रत्येक पाठ के साथ आध्यात्मिक प्रगति करने की ज़रूरत है। इस कारण, प्रत्येक अध्याय के अन्त में आनेवाले “अपने ज्ञान को जाँचिए” बक्स के पुनर्विचार प्रश्नों को पूछने से न चूकिए। शिक्षक को जो अध्ययन किया गया था उसके केवल सही उत्तर से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। इनमें से अनेक सवाल हृदय से एक व्यक्तिगत प्रतिक्रिया को निकालने के लिए रचे गए हैं। उदाहरणार्थ, पृष्ठ ३१ देखिए, जहाँ विद्यार्थी से पूछा गया है: “यहोवा परमेश्वर के कौन-से गुण आपको ख़ासकर आकर्षक लगते हैं?”—२ कुरि. १३:५.
१२ अध्ययन की तैयारी करने के लिए विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कीजिए: वह विद्यार्थी जो पाठ को पहले से पढ़ता है, उत्तर चिन्हित करता है, तथा उन्हें अपने शब्दों में कैसे व्यक्त करें यह सोचता है, वह अधिक तेज़ आध्यात्मिक प्रगति करेगा। अपने उदाहरण एवं प्रोत्साहन के द्वारा, आप उसे अध्ययन की तैयारी करने के लिए प्रशिक्षित कर सकते हैं। उसे अपनी पुस्तक दिखाइए, जिसमें आपने मुख्य शब्दों तथा वाक्यांशों को चिन्हित अथवा रेखांकित किया है। समझाइए कि मुद्रित प्रश्नों के ठीक-ठीक उत्तर कैसे ढूँढें। एकसाथ एक अध्याय की तैयारी करना विद्यार्थी के लिए सहायक हो सकता है। अपने शब्दों में ख़ुद को व्यक्त करने के लिए उसे प्रोत्साहित कीजिए। केवल तब यह स्पष्ट हो जाता है कि क्या वह विषय को समझता है। यदि वह पुस्तक से अपना उत्तर पढ़ता है, तो आप उसके सोच-विचार को यह पूछने के द्वारा प्रेरित कर सकते हैं कि वह किसी और व्यक्ति को अपने शब्दों में वह मुद्दा कैसे समझाएगा।
१३ अपनी साप्ताहिक तैयारी के भाग के रूप में, विद्यार्थी को उल्लिखित शास्त्रवचनों को देखने का प्रोत्साहन दीजिए, क्योंकि अध्ययन के दौरान शायद उन सभी को पढ़ने का वक़्त न हो। अपने पाठों के लिए जो मेहनत वह कर रहा है उसकी सराहना कीजिए। (२ पत. १:५; एक बाइबल अध्ययन में अधिक कैसे सीखें इसके लिए दोनों, शिक्षक एवं विद्यार्थी द्वारा जो किया जा सकता है, उस पर अतिरिक्त सुझावों के लिए अगस्त १, १९९३, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ २१-२२ देखिए।) इस प्रकार, वह विद्यार्थी कलीसिया सभाओं के लिए तैयारी करने एवं अर्थपूर्ण टिप्पणियाँ देने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। वह यह सीखेगा कि अच्छी व्यक्तिगत अध्ययन आदतों को कैसे विकसित करें जो उसे ज्ञान पुस्तक के अपने व्यक्तिगत बाइबल अध्ययन के समाप्त होने के बाद सच्चाई में उन्नति करना जारी रखने के लिए सज्जित करेंगी।—१ तीमु. ४:१५; १ पत. २:२.
१४ विद्यार्थियों को यहोवा के संगठन की ओर निर्देशित कीजिए: यह एक शिष्य बनानेवाले की ज़िम्मेदारी है कि विद्यार्थी की रुचि को यहोवा के संगठन की ओर निर्देशित करे। विद्यार्थी आध्यात्मिक प्रौढ़ता की ओर अधिक तेज़ी से उन्नति करेगा यदि वह संगठन को पहचानता एवं उसकी क़दर करता है और उसका भाग बनने की ज़रूरत को समझता है। हम चाहते हैं कि वह परमेश्वर के लोगों के साथ संगति करने में आनन्द पाए तथा राज्यगृह में हमारे साथ होने की आस देखे, जहाँ वह आध्यात्मिक एवं भावात्मक सहारा पा सकता है जो मसीही कलीसिया पेश करती है।—१ तीमु. ३:१५.
१५ ब्रोशर यहोवा के गवाह—विश्व भर में संयुक्त रूप से परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं लोगों को उस एकमात्र दृश्य संगठन से परिचित कराने के लिए बनाया गया है जिसे यहोवा अपनी इच्छा पूरी करने के लिए आज प्रयोग कर रहा है। जब एक बार अध्ययन स्थापित हो जाए, तो क्यों न विद्यार्थी को एक प्रति पेश करें? बिलकुल शुरू से, विद्यार्थी को सभाओं के लिए आमंत्रित करते रहिए। समझाइए कि वे कैसे संचालित की जाती हैं। आप उसे आनेवाले जन भाषण का शीर्षक बता सकते हैं या वह लेख दिखा सकते हैं जिसकी चर्चा प्रहरीदुर्ग अध्ययन में की जाएगी। सम्भवतः आप उसे राज्यगृह दिखाने ले जा सकते हैं जब एक सभा नहीं हो रही है, ताकि एक नयी जगह में पहली बार जाने के बारे में उसकी किसी भी परेशानी को कम किया जा सके। शायद आप सभाओं के लिए परिवहन पेश करने में समर्थ हों। जब वह उपस्थित होता है, तो उसका स्वागत कीजिए एवं उसे निश्चिन्त महसूस करवाइए। (मत्ती ७:१२) अन्य साक्षियों से उसका परिचय करवाइए, जिनमें प्राचीन भी शामिल हैं। यह आशा की जाती है कि वह कलीसिया को अपना आध्यात्मिक परिवार समझने लगेगा। (मत्ती १२:४९, ५०; मरकुस १०:२९, ३०) आप उसके लिए एक लक्ष्य रख सकते हैं, जैसे प्रत्येक सप्ताह एक सभा में उपस्थित होना, एवं प्रगतिशील रूप से लक्ष्य को ऊँचा कर सकते हैं।—इब्रा. १०:२४, २५.
१६ जैसे-जैसे ज्ञान पुस्तक से गृह बाइबल अध्ययन आगे बढ़ता है, उन भागों पर ज़ोर दीजिए जो सभाओं में कलीसिया के साथ नियमित संगति की ज़रूरत को विशिष्ट करते हैं। ख़ासकर पृष्ठ ५२, ११५, १३७-९, १५९, और साथ ही अध्याय १७ पर ध्यान दीजिए। यहोवा के संगठन के लिए क़दरदानी की स्वयं अपनी गहरी भावनाओं को व्यक्त कीजिए। (मत्ती २४:४५-४७) स्थानीय कलीसिया के एवं सभाओं में आप जो सीखते हैं उसके बारे में सकारात्मक रूप से बात कीजिए। (भज. ८४:१०; १३३:१-३) यह अच्छा होगा यदि वह विद्यार्थी संस्था के प्रत्येक वीडियो देख सके, और यहोवा के साक्षी—नाम के पीछे संगठन से शुरू करे। इस पर अतिरिक्त जानकारी के लिए कि संगठन की ओर रुचि को कैसे निर्देशित करें, अप्रैल १, १९८५, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ १८-२२, तथा अप्रैल १९९३ हमारी राज्य सेवकाई अंतःपत्र देखिए।
१७ दूसरों को साक्ष्य देने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित कीजिए: लोगों के साथ अध्ययन करने में हमारा लक्ष्य है ऐसे शिष्य बनाना जो यहोवा के लिए साक्ष्य देते हैं। (यशा. ४३:१०-१२) इसका अर्थ यह है कि शिक्षक को विद्यार्थी को प्रोत्साहित करना चाहिए कि बाइबल से जो वह सीख रहा है उसके बारे में दूसरों को बताए। यह सिर्फ़ इतना-सा पूछने से किया जा सकता है: “आप यह सच्चाई अपने परिवार को कैसे समझाएँगे?” अथवा “यह बात एक मित्र को साबित करने के लिए आप कौन-सा शास्त्रवचन प्रयोग करेंगे?” ज्ञान पुस्तक में मुख्य स्थानों पर ज़ोर दीजिए जहाँ साक्ष्य देने का प्रोत्साहन दिया गया है, जैसे कि पृष्ठ २२, ९३-५, १०५-६, और साथ ही अध्याय १८। जब उचित हो, तब अनौपचारिक रूप से दूसरों को साक्ष्य देने में इस्तेमाल करने के लिए विद्यार्थी को कुछ ट्रैक्ट दिए जा सकते हैं। सुझाइए कि अपने अध्ययन में वह अपने परिवार के सदस्यों को बैठने के लिए आमंत्रित करे। क्या उसके मित्र भी अध्ययन करना चाहेंगे? उससे कहिए कि जो लोग रुचि दिखाते हैं उनसे आपका सम्पर्क करवाए।
१८ ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल एवं सेवा सभा में उपस्थित होने के द्वारा, संभावित शिष्य अतिरिक्त प्रशिक्षण तथा प्रेरणा प्राप्त कर सकता है जो उसे सुसमाचार का एक प्रकाशक बनने में मदद देगी। जब वह स्कूल में दाख़िल होने अथवा एक बपतिस्मा-रहित प्रकाशक बनने में रुचि दिखाता है, तब आवर मिनिस्ट्री (अंग्रेज़ी) पुस्तक के पृष्ठ ९८ एवं ९९ में दिए गए सिद्धान्त लागू होंगे। यदि उसके जीवन का एक पहलू उसे योग्य बनने से रोकता है, तो आप संस्था के प्रकाशनों में सहायक विषय ढूँढ सकते हैं जो उस मामले से सम्बन्धित है एवं उसके साथ बाँट सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक विद्यार्थी को शायद तम्बाकू अथवा अन्य नशीली दवाओं की लत पर क़ाबू पाने में दिक्क़त हो। रीज़निंग (अंग्रेज़ी) पुस्तक ठोस शास्त्रीय कारण बताती है कि क्यों मसीही ऐसी हानिकारक आदतों से दूर रहते हैं, एवं पृष्ठ ११२ पर यह एक ऐसा तरीक़ा बताती है जो दूसरों को इससे मुक्त होने के लिए मदद करने में सफल साबित हुआ है। उस मामले के बारे में उसके साथ प्रार्थना कीजिए, एवं उसे मदद के लिए अपनी निर्भरता यहोवा पर बनाना सिखाइए।—याकू. ४:८.
१९ क्या एक व्यक्ति जन सेवकाई में भाग लेने के लिए योग्य बनता है, यह निर्धारित करने के लिए अपनायी जानेवाली कार्य-विधि जनवरी १५, १९९६, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ १६, अनुच्छेद ६ में दी गयी है। जब एक विद्यार्थी योग्य बनता है, तो उसे क्षेत्र सेवा में अपने पहले दिन के वास्ते उसे तैयार करने के लिए एक अभ्यास सत्र संचालित करना सहायक होगा। एक सकारात्मक रूप से, लोगों की प्रतिक्रियाओं एवं विरोधों की चर्चा कीजिए जो आपके क्षेत्र में सामान्य हैं। यदि संभव हो तो उसकी शुरूआत पहले घर-घर की सेवकाई से कीजिए, एवं प्रगतिशील रूप से उसे सेवकाई के अन्य पहलुओं में प्रशिक्षित कीजिए। यदि आप अपनी प्रस्तुति छोटी एवं सरल रखें, तो उसके लिए नक़ल करना आसान होगा। प्रेरक एवं प्रोत्साहक रहिए, कार्य में आनन्द प्रदर्शित कीजिए, ताकि वह आपकी आनन्दित मनोवृत्ति से अवगत हो एवं उसे प्रतिबिम्बित करे। (प्रेरि. १८:२५) एक नए शिष्य का लक्ष्य सुसमाचार का एक नियमित, उत्साही प्रकाशक बनना होना चाहिए। सम्भवतः आप उसे सेवा के लिए एक व्यावहारिक समय-सारणी बनाने में मदद दे सकते हैं। दूसरों को साक्ष्य देने की अपनी क्षमता में उसे प्रगति करने के लिए, आप उसे सुझा सकते हैं कि वह प्रहरीदुर्ग के अगस्त १५, १९८४, पृष्ठ १५-२५ (अंग्रेज़ी); जुलाई १५, १९८८, पृष्ठ ९-२० (अंग्रेज़ी); मार्च १, १९९२, पृष्ठ १०-१५; और जनवरी १, १९९४, पृष्ठ १६-२१ के अंक पढ़े।
२० विद्यार्थियों को समर्पण और बपतिस्मे के लिए प्रेरित कीजिए: एक सत्हृदयी विद्यार्थी के लिए ज्ञान पुस्तक के अध्ययन से उतना सीखना सम्भव होना चाहिए जिससे वह परमेश्वर के प्रति समर्पण करे एवं बपतिस्मे के लिए योग्य बने। (प्रेरि. ८:२७-३९; १६:२५-३४ से तुलना कीजिए।) परन्तु, इससे पहले कि एक व्यक्ति समर्पण करने के लिए प्रेरित होगा, उसे यहोवा के लिए श्रद्धा विकसित करने की ज़रूरत है। (भज. ७३:२५-२८) सम्पूर्ण अध्ययन के दौरान, यहोवा के गुणों के लिए क़दर विकसित करने के अवसरों को ढूँढिए। परमेश्वर के लिए स्वयं अपनी गहरी भावनाओं को व्यक्त कीजिए। विद्यार्थी को यहोवा के साथ एक स्नेहिल, व्यक्तिगत रिश्ता विकसित करने के बारे में सोचने के लिए मदद दीजिए। यदि वह सचमुच परमेश्वर को जानने एवं उससे प्रेम करने लगता है, तो वह उसकी सेवा वफ़ादारी से करेगा, क्योंकि ईश्वरीय भक्ति का सम्बन्ध हम यहोवा के बारे में एक व्यक्ति के रूप में कैसा महसूस करते हैं उससे है।—१ तीमु. ४:७, ८; स्कूल गाइडबुक, पृष्ठ ७६, अनुच्छेद ११ देखिए।
२१ विद्यार्थी के हृदय तक पहुँचने की कोशिश कीजिए। (भज. ११९:११; प्रेरि. १६:१४; रोमि. १०:१०) उसे यह देखने की ज़रूरत है कि सच्चाई उसे व्यक्तिगत रूप से कैसे प्रभावित करती है एवं यह निर्णय करने की कि जो उसने सीखा है उसका उसे क्या करना चाहिए। (रोमि. १२:२) क्या वह उस सच्चाई पर वास्तव में विश्वास करता है जो उसे हर सप्ताह प्रस्तुत की जाती है? (१ थिस्स. २:१३) उस लक्ष्य के साथ, आप विवेकपूर्ण दृष्टिकोण प्रश्न पूछने के द्वारा विद्यार्थी के हृदय की बात जान सकते हैं, जैसे कि: आपको इसके बारे में कैसा लगता है? आप अपनी ज़िन्दगी में इसे कैसे लागू कर सकते हैं? उसकी टिप्पणियों से आप समझ सकते हैं कि उसके हृदय तक पहुँचने के लिए कहाँ अधिक मदद की ज़रूरत है। (लूका ८:१५; स्कूल गाइडबुक, पृष्ठ ५२, अनुच्छेद ११ देखिए।) ज्ञान पुस्तक के पृष्ठ १७२ और १७४ के चित्रों के शीर्षक पूछते हैं: “क्या आपने प्रार्थना में परमेश्वर को समर्पण किया है?” और “कौन-सी बात आपको बपतिस्मा लेने से रोकती है?” ये विद्यार्थी को कार्य करने के लिए प्रभावकारी रूप से प्रेरित कर सकते हैं।
२२ जब एक बपतिस्मा-रहित प्रकाशक बपतिस्मा प्राप्त करने की इच्छा रखता है तो जो कार्य-विधि अपनायी जानी चाहिए, वह जनवरी १५, १९९६, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ १७, अनुच्छेद ९ में बतायी गयी है। ज्ञान पुस्तक व्यक्ति को “बपतिस्मा प्राप्त करने की इच्छा रखनेवालों के लिए सवाल” के जवाब देने के लिए सज्जित करने के उद्देश्य से लिखी गयी थी। ये सवाल आवर मिनिस्ट्री पुस्तक के परिशिष्ट में पाए जाते हैं, जिनका पुनर्विचार प्राचीन उसके साथ करेंगे। यदि आपने ज्ञान पुस्तक में मुद्रित सवालों के जवाबों पर ज़ोर दिया है, तो विद्यार्थी को उसके बपतिस्मे की तैयारी में प्राचीनों द्वारा संचालित किए गए प्रश्न सत्रों के लिए सुसज्जित होना चाहिए।
२३ गृह बाइबल अध्ययन समाप्त करनेवालों की मदद कीजिए: यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि जिस समय तक एक व्यक्ति ज्ञान पुस्तक का अध्ययन समाप्त करता है, तब तक परमेश्वर की सेवा करने में उसकी निष्कपटता एवं रुचि की गहरायी स्पष्ट हो चुकी होगी। (मत्ती १३:२३) इसी कारण पुस्तक का अन्तिम उपशीर्षक पूछता है, “आप क्या करेंगे?” अन्तिम अनुच्छेद विद्यार्थी को परमेश्वर के साथ जो सम्बन्ध उसने विकसित कर लेना चाहिए था उस पर, जो ज्ञान उसने पाया है उसे लागू करने की ज़रूरत पर, और यहोवा के लिए अपने प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए जल्द-से-जल्द कार्य करने की ज़रूरत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अनुरोध करते हैं। जो ज्ञान पुस्तक समाप्त कर लेते हैं उनके साथ अतिरिक्त प्रकाशनों का अध्ययन करने का कोई प्रबन्ध नहीं है। उस विद्यार्थी को जो परमेश्वर के ज्ञान के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने से चूक जाता है, कृपालु एवं स्पष्ट रूप से समझाइए कि उसे आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने के लिए क्या करना चाहिए। आप समय-समय पर उससे सम्पर्क बनाए रख सकते हैं, तथा वे क़दम उठाने का मार्ग खुला रख सकते हैं जो अनन्त जीवन की ओर ले जाते हैं।—सभो. १२:१३.
२४ एक नए शिष्य को, जो सच्चाई को अपनाता है एवं बपतिस्मा प्राप्त करता है, उसे अपने ज्ञान और समझ में काफ़ी बढ़ना होगा ताकि विश्वास में पूरी तरह स्थिर बन जाए। (कुलु. २:६, ७) ज्ञान पुस्तक को समाप्त करने के पश्चात् उसके गृह बाइबल अध्ययन को जारी रखने के बजाय, आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ होने के लिए जिस किसी व्यक्तिगत सहायता की उसे ज़रूरत हो, उसे वह प्रदान करने के लिए आप अपने आपको उपलब्ध करा सकते हैं। (गल. ६:१०; इब्रा. ६:१) अपनी तरफ़ से, वह अपनी समझ को रोज़ बाइबल पढ़ने के द्वारा, प्रहरीदुर्ग एवं ‘विश्वासयोग्य दास’ के अन्य प्रकाशनों का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करने के द्वारा, सभाओं के लिए तैयारी करने और उनमें उपस्थित होने के द्वारा, एवं संगी विश्वासियों के साथ सच्चाई की चर्चा करने के द्वारा पूर्ण कर सकता है। (मत्ती २४:४५-४७; भज. १:२; प्रेरि. २:४१, ४२; कुलु. १:९, १०) उसका आवर मिनिस्ट्री पुस्तक पढ़ना एवं जो उसमें लिखा है उसे लागू करना, अपनी सेवकाई को सम्पूर्णतः निष्पन्न करने के लिए उसके ईश्वरशासित रूप से संगठित बनने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।—२ तीमु. २:२; ४:५.
२५ सिखाने की कला विकसित कीजिए: हमें ‘लोगों को चेला बनाने और सिखाने’ की नियुक्ति दी गयी है। (मत्ती २८:१९, २०) क्योंकि सिखाने की कला शिष्य बनाने से अटूट रूप से जुड़ी हुई है, हम शिक्षकों के रूप में सुधार करने की कोशिश करना चाहते हैं। (१ तीमु. ४:१६; २ तीमु. ४:२) सिखाने की कला कैसे विकसित करें, इस पर अतिरिक्त सुझावों के लिए, आप शायद निम्नलिखित पढ़ना चाहें: स्कूल गाइडबुक में “सिखाने की कला विकसित करना” और “अपने श्रोताओं के हृदय तक पहुँचना,” अध्ययन १० और १५; अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी), खण्ड २ में “शिक्षक, शिक्षा;” और प्रहरीदुर्ग लेख “अग्नि-प्रतिरोधी चीजों से निर्माण करना,” और “जब आप सिखाते हैं, तब हृदय तक पहुंचे” क्रमशः अप्रैल १, एवं मई १, १९८५; “क्या आप शास्त्र से प्रभावकारी रूप से तर्क करते हैं?,” मार्च १, १९८६ (अंग्रेज़ी); और “शिष्य बनाने में आनन्द कैसे पाएँ,” फरवरी १५, १९९६.
२६ जैसे-जैसे आप ज्ञान पुस्तक का प्रयोग करते हुए शिष्य बनाने का प्रयास करते हैं, हमेशा प्रार्थना कीजिए कि यहोवा, वह व्यक्ति जो ‘बढ़ाता’ है, राज्य सुसमाचार के साथ मानवी हृदय तक पहुँचने में आपके प्रयासों पर आशिष देगा। (१ कुरि. ३:५-७) ऐसा हो कि आप दूसरों को उस ज्ञान को समझने, उसकी क़दर करने, एवं उस पर कार्य करना सिखाने का आनन्द अनुभव करें, जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है!