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कौन हमारा संदेश सुनेगा?

जैसे मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ, लोगों के पास जानकारी की भरमार है, जिसमें से अधिकांश तुच्छ और भ्रामक भी है। परिणामस्वरूप, कई लोग अभिभूत महसूस करते हैं, और उन्हें परमेश्‍वर के राज्य के विषय में संदेश सुनने के लिए प्रेरित करना हमारे लिए एक चुनौती बन जाता है। वे समझते नहीं कि उन पर परमेश्‍वर के वचन को सुनने का क्या ही सकारात्मक प्रभाव हो सकता है।—लूका ११:२८.

२ हम आनंदित होते हैं कि संसार के कई भागों में, हज़ारों लोग इस संदेश को सुन रहे हैं और गृह बाइबल अध्ययन के हमारे प्रस्ताव को स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन, अन्य क्षेत्रों में प्रतिक्रिया लगभग इतनी जानदार नहीं है। सेवकाई में जो भेंट हम करते हैं उनमें से कई भेंटों के सकारात्मक परिणाम नहीं होते हैं, और हम शायद सोचें कि कौन हमारा संदेश सुनेगा।

३ हमें निराश हो जाने के प्रति सतर्क रहना चाहिए। पौलुस ने समझाया: “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा। फिर . . . वे उसका नाम क्योंकर लें . . . जिस की नहीं सुनी . . .? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? . . . जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (रोमि. १०:१३-१५) यदि हम परिश्रम से राज्य के बीज बोते हैं, तो परमेश्‍वर उसे सत्हृदयी लोगों में बढ़ाएगा।—१ कुरि. ३:६.

४ कुंजी है नियमित पुनःभेंट करना: उन क्षेत्रों में जहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ ही लोग हमारे संदेश को सुनते हैं, हमें जो भी दिलचस्पी मिलती है उसे विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्‍यकता है, चाहे हम साहित्य दे पाते हैं या नहीं। ऐसा निष्कर्ष निकालने की जल्दबाज़ी क्यों करें कि कुछ भी निष्पन्‍न नहीं होगा? जब हम बीज बोते हैं, हम नहीं जानते कि वह कहाँ सफल होगा। (सभो. ११:६) चाहे संक्षेप में ही सही, यदि हम शास्त्र से कुछ बाँटने के लिए तैयार होकर लौटते हैं, तो हम व्यक्‍ति के हृदय तक पहुँचने में समर्थ हो सकते हैं। हम एक ट्रैक्ट छोड़ सकते हैं या सामयिक पत्रिकाएँ पेश कर सकते हैं। आख़िरकार, हम एक बाइबल अध्ययन प्रदर्शित करने में समर्थ हो सकते हैं। हम यह देखकर सुखद रूप से विस्मित होंगे कि यहोवा हमारे प्रयासों पर कितनी आशीष देता है।—भज. १२६:५, ६.

५ एक महिला के पास जिसने थोड़ी दिलचस्पी दिखायी थी, एक ट्रैक्ट छोड़ा गया। वह उसके बाद दो महीने तक घर पर नहीं मिली, और तब वह बात करने के लिए बहुत व्यस्त थी। वही ट्रैक्ट उसके पास दोबारा छोड़ा गया। घर पर उस तक पहुँचने के लिए प्रकाशक के लगातार प्रयासों के बावजूद, उससे संपर्क करने में और तीन महीने लगे, तब यह पता चला कि वह बीमार थी। अगले सप्ताह बहन ने पुनः भेंट की, और ट्रैक्ट के बारे में एक संक्षिप्त वार्तालाप शुरू हुआ। जब बहन अगले सप्ताह लौटी, उस महिला ने राज्य संदेश में निष्कपट दिलचस्पी व्यक्‍त की। अपने जीवन में परिस्थितियों के बदलाव ने उसे उसकी आध्यात्मिक ज़रूरत का बोध करवाया। एक बाइबल अध्ययन शुरू किया गया, और उसके बाद उसने हर सप्ताह उत्साहपूर्वक अध्ययन किया।

६ जैसे किसी भी उस चीज़ के लिए जिसे हम बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, चाहे फूल, सब्ज़ियाँ, या राज्य संदेश में दिलचस्पी हो, जुताई की आवश्‍यकता है। उसके लिए समय, परिश्रम, एक परवाह करनेवाली मनोवृत्ति और हार न मानने के दृढ़-संकल्प की ज़रूरत होती है। पिछले साल, तीन लाख से अधिक लोगों का बपतिस्मा हुआ जिनमें राज्य के बीज ने जड़ पकड़ी थी! यदि हम प्रचार करते रहते हैं, तो हमें निश्‍चित रूप से कई और लोग मिलेंगे जो हमारा संदेश सुनेंगे।—गलतियों ६:९ से तुलना कीजिए।

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