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हमारी राज-सेवा—1997
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“अपना भरसक करो”

जब हमने अपने आप को यहोवा के प्रति समर्पित किया, तो हमने उसे अपना सर्वोत्तम देने का वायदा किया था। उचित रूप से, प्रेरित पतरस ने प्रथम-शताब्दी मसीहियों को, यहोवा के सामने अच्छी स्थिति बनाए रखने के लिए अपना भरसक करने को प्रोत्साहित किया। (२ पत. १:१०, NW) यहोवा को प्रसन्‍न करने के लिए, हम आज उसकी सेवा में निश्‍चित ही अपना भरसक करना चाहते हैं। इसमें क्या शामिल है? जैसे-जैसे यहोवा के साथ हमारा संबंध गहरा होता जाता है और हम उन सब बातों पर मनन करते हैं जो उसने हमारे लिए की हैं, वैसे-वैसे हमारा हृदय हमें प्रेरित करता है कि हम उसकी सेवा में हमेशा अपना भरसक करें। हम अपनी सेवकाई की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहते हैं, और जहाँ हो सके उसकी मात्रा को भी बढ़ाना चाहते हैं।—भज. ३४:८; २ तीमु. २:१५.

२ सेवकाई में ज़्यादा करने के इच्छुक एक युवा भाई ने पाया कि परमेश्‍वर के वचन के नियमित अध्ययन से यहोवा के लिए उसकी क़दरदानी बढ़ी और उसमें ज़्यादा जोश पैदा हुआ। इस बात ने उसे पायनियर सेवा के लिए आवेदन देने को प्रेरित किया। एक बहन को अजनबियों से बात करने में मुश्‍किल होती थी, लेकिन उसने रीज़निंग (अंग्रेज़ी) किताब से कुछ प्रस्तुतियों का अभ्यास किया और जल्द ही उसे अपनी सेवकाई में अधिक सफलता मिलने लगी। वह एक दंपति के साथ बाइबल अध्ययन संचालित करने में समर्थ हुई, जिन्होंने बाद में सच्चाई को अपना लिया।

३ आप जो कर सकते हैं उसमें आनंदित होइए: हम में से कुछ लोग ख़राब स्वास्थ्य, पारिवारिक विरोध, ग़रीबी, या क्षेत्र में उदासीनता जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं। कई दूसरी समस्याएँ, जो इन अंतिम दिनों में सर्वसामान्य हैं, शायद हमारी सेवा में रुकावट बनें। (लूका २१:३४, NW फुटनोट; २ तीमु. ३:१) क्या इसका यह अर्थ है कि हम यहोवा के प्रति अपने समर्पण में विफल हो गए हैं? नहीं, यदि हम उसकी सेवा में अपना भरसक कर रहे हैं।

४ दूसरे जो कर सकते हैं, उसके आधार पर अपने आपको आँकना समझदारी की बात नहीं है। इसके बजाय, शास्त्रवचन हमें प्रोत्साहित करते हैं कि हम “अपने ही काम को जांच” कर देखें। उस हद तक सेवा करना, जिस हद तक हम व्यक्‍तिगत तौर पर कर सकते हैं, यहोवा को प्रसन्‍न करता है और हमें “गर्व करने का अवसर” देता है।—गल. ६:४ NHT; कुलु. ३:२३, २४.

५ ऐसा हो कि हम पतरस के शब्दों का पालन करें और ‘यत्न करें कि हम शान्ति से उसके साम्हने निष्कलंक और निर्दोष ठहरें।’ (२ पत. ३:१४) ऐसी भावना हमें सुरक्षित महसूस कराएगी और मन की वैसी शांति देगी जो केवल यहोवा दे सकता है।—भज. ४:८.

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