प्रचार का काम असरदार तरीके से कीजिए
आकाश अँधियारा हो रहा है और एक भयानक आवाज़ इतनी तेज़ होती जा रही है कि कान के परदे भी फट जाएँ। धुएँ-समान बादल नीचे उतरता है। आखिर यह है क्या? यह लाखों-करोड़ों टिड्डियों की ऐसी सेना है, जो ज़मीन को पूरी तरह बरबाद कर देने के लिए बढ़ती आ रही है! इस घटना का वर्णन भविष्यवक्ता योएल ने किया। यह घटना आज परमेश्वर के अभिषिक्त सेवकों और उनके साथी, बड़ी भीड़ के प्रचार काम की पूर्ति में हो रही है।
२ मई १, १९९८ की प्रहरीदुर्ग के पेज ११ का अनुच्छेद १९ कहता है: “परमेश्वर की टिड्डियों की आज की सेना ने मसीहीजगत के ‘नगर’ में अच्छी तरह गवाही दी है। (योएल २:९) . . . वे अभी-भी सभी बाधाएँ पार कर रहे हैं और यहोवा का संदेश घोषित करते हुए करोड़ों घरों में प्रवेश कर रहे हैं, सड़क पर लोगों से मिल रहे हैं, फोन पर उनसे बात कर रहे हैं और किसी भी संभव तरीके से उनसे मिल रहे हैं।” परमेश्वर द्वारा दिए गए इस काम में हिस्सा लेना क्या एक गौरव की बात नहीं?
३ टिड्डियों को केवल अपना पेट भरने से मतलब होता है, लेकिन हम यहोवा के सेवक अपनी चिंता नहीं बल्कि दूसरों के जीवन के लिए सच्ची चिंता करते हैं, उनके जीवन की जिन्हें हम प्रचार करते हैं। हम दूसरों को परमेश्वर के वचन में पाई जानेवाली शानदार सच्चाई सिखाना चाहते हैं और चाहते हैं कि वे ऐसे कदम उठाएँ जिनसे हमेशा-हमेशा के लिए उनका उद्धार हो सके। (यूह. १७:३; १ तीमु. ४:१६) इसीलिए हम असरदार और अच्छे तरीके से प्रचार का काम करना चाहते हैं। प्रचार करने का चाहे जो भी तरीका अपनाया जाए लेकिन हमें यह ध्यान रखना है कि उसे इस तरह से और ऐसे वक्त पर इस्तेमाल करें जिससे अच्छे नतीजे मिलें। “संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं,” इसलिए हम अपने प्रचार काम को जिस नज़रिए से लेते हैं और जिस तरीके से करते हैं उसकी जाँच करना बहुत ज़रूरी है ताकि हम इस काम में ज़्यादा-से-ज़्यादा सफल हो सकें।—१ कुरि. ७:३१.
४ जबकि हम लोगों से मिलने के अलग-अलग तरीके इस्तेमाल करते हैं, फिर भी घर-घर प्रचार करना, अब भी हमारे प्रचार का मुख्य तरीका है। क्या ऐसा हुआ है कि जब आप घर पर लोगों से मिलने जाते हैं तब वे घर पर नहीं होते या फिर सो रहे होते हैं? उस वक्त आप कितने निराश हो जाते हैं, क्योंकि आप उन्हें सुसमाचार नहीं सुना पाते! आप इस समस्या से कैसे निपट सकते हैं?
५ सोच-समझकर काम लीजिए और फेरबदल करने के लिए तैयार रहिए: पहली सदी में, इस्राएल के मछुआरे रात में मछली पकड़ने जाते थे। भला रात में क्यों? जबकि यह समय काम का नहीं बल्कि सोने का था फिर भी ज़्यादा-से-ज़्यादा मछली पकड़ने का यह सबसे बढ़िया वक्त था। इस वक्त वे काम में ज़्यादा-से-ज़्यादा सफल होते थे। इस काम के बारे में बताते हुए जून १५, १९९२ की प्रहरीदुर्ग कहती है: ‘हमें भी अपने क्षेत्र को अच्छी तरह समझना चाहिए ताकि हम उस वक्त मछुआई के लिए जाएँ जब अधिकांश लोग अपने घर में हों और हमारी सुनना चाहें।’ रिहायशी इलाकों में लोगों के रोज़मर्रा के जीवन को अगर ध्यान से देखें तो यह पता चलता है कि शनिवार और रविवार को सुबह जल्दी जाने से लोग शायद घर पर मिल जाएँ, लेकिन अकसर उस वक्त वे हमारी नहीं सुनते। अगर आपके इलाके में ऐसा ही होता है तो क्या आप लोगों के पास किसी और वक्त पर जा सकते हैं, सुबह थोड़ी देर से या फिर दोपहर के वक्त? अपनी सेवकाई में अच्छा और असरदार होने का और पड़ोसियों के लिए चिंता दिखाने का यह बढ़िया तरीका है, साथ ही यह हमारे मसीही प्रेम का सबूत भी है।—मत्ती ७:१२.
६ फिलिप्पियों ४:५ में प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है कि हमें ‘अपनी कोमलता [समझदारी] सब मनुष्यों पर प्रगट’ करनी चाहिए। जैसा इस ईश्वरप्रेरित वचन में कहा गया है, जोश और उमंग के साथ-साथ हमें सोच-समझकर प्रचार का काम करना चाहिए। हमें ‘लोगों के साम्हने और घर घर सिखाने से कभी झिझकना’ नहीं चाहिए, बस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घर-घर की सेवकाई बेवक्त न करें बल्कि ऐसे वक्त पर करें जब हम सफलता पा सकें। (प्रेरि. २०:२०) पहली सदी के उन इस्राएली मछुआरों की तरह हम उस समय पर ‘मछुआई’ करेंगे जब हम ज़्यादा-से-ज़्यादा सफल हो सकें न कि अपनी सहूलियत के समय पर।
७ तो क्या हम अपने वक्त और तरीके में कुछ तबदीलियाँ कर सकते हैं? शनिवार और रविवार को फील्ड सर्विस की सभा अकसर सुबह ९:०० या ९:३० बजे की जाती है जिसके तुरंत बाद भाई-बहन घर-घर की सेवकाई के लिए क्षेत्र में निकल जाते हैं। बहरहाल, कुछ कलीसिया के प्राचीनों ने ग्रूप को घर-घर की सेवकाई में भेजने से पहले, उन्हें सड़क गवाही, व्यापारिक क्षेत्र या पुनःभेंट जैसे अलग-अलग तरीके से प्रचार करने के लिए कहा है। दूसरी कलीसियाओं ने फील्ड सर्विस की सभा का समय सुबह देर से रखा है—१०:००, ११:०० या १२:०० बजे। इसके बाद ग्रूप सीधे घर-घर की सेवकाई के लिए निकल जाता है और लगभग तीन-चार बजे तक प्रचार करता है। कुछ क्षेत्रों में सुबह प्रचार के लिए जाने के बजाय दोपहर को तीन-चार बजे निकलना शायद ज़्यादा अच्छा हो। ऐसे फेरबदल करने से घर-घर की सेवकाई में बहुत ज़्यादा सफलता पायी जा सकती है।
८ समझदार और व्यवहार-कुशल बनिए: जब हम लोगों से घर-घर जाकर मिलते हैं तो हमारे संदेश को लोग अलग-अलग ढंग से लेते हैं। कुछ घरवालों को हमारा संदेश पसंद आता है तो कुछ को नहीं और कई ऐसे हैं जो शायद बहस करें या झगड़े पर भी उतर आएँ। रीज़निंग फ्रॉम द स्क्रिपचर्स के पेज ७ पर हमें याद दिलाया गया है कि जो लोग बहस और झगड़ा करते हैं और सच्चाई के लिए आदर नहीं दिखाते हैं, उनसे हम “बहस जीतना” नहीं चाहेंगे। अगर व्यक्ति झगड़ा करता है तो हमारा वहाँ से निकल जाना ही अच्छा होगा। लोगों की मर्ज़ी के खिलाफ बात करने या अपना विचार मनवाने के द्वारा हम कभी-भी उन्हें खीज नहीं दिलाना चाहेंगे। हम ज़बरदस्ती लोगों को अपना संदेश नहीं सुनाते। यह समझदारी की बात नहीं होगी और इससे दूसरे साक्षियों पर समस्या आ सकती है या फिर प्रचार के काम पर ही इसका बुरा असर पड़ सकता है।
९ क्षेत्र में काम शुरू करने से पहले टॆरिट्री कार्ड देख लेना अक्लमंदी की बात होगी ताकि यह मालूम किया जा सके कि किन घरों के पते दिए गए हैं, जहाँ जाने के लिए मना किया गया है। अगर क्षेत्र में ऐसे घर हैं तो वहाँ काम करनेवाले हर प्रकाशक को पहले से ही इसकी जानकारी दे देनी चाहिए। और जब तक कि सर्विस ओवरसियर न कहे, किसी को भी अपनी मर्ज़ी से वहाँ नहीं जाना चाहिए।—जनवरी १९९४ की हमारी राज्य सेवकाई का प्रश्न बक्स देखिए।
१० अगर हम समझदारी से काम लें तो घर-घर की सेवकाई में हम ज़्यादा असरदार हो सकते हैं। जब आप किसी के घर पहुँचते हैं तो सब कुछ ध्यान से देखिए। क्या सारे पर्दे या खिड़कियाँ बंद हैं? क्या अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही? तो हो सकता है कि सब सो रहे हों। अगर हम बाद में आकर घरवाले से मिलें तो शायद हमारी बातचीत के अच्छे नतीजे निकलें। सो, उस वक्त के लिए घर का नंबर लेकर वहाँ से चले जाना ही अच्छा होगा। क्षेत्र छोड़ने से पहले एक बार फिर उस घर पर जा सकते हैं या अपने लिए एक नोट लिख सकते हैं कि इस घर पर दोबारा आना है।
११ इसके बावजूद भी कभी ऐसा हो सकता है कि हम अनजाने में ही किसी को जगा दें या परेशान कर दें। वह शायद चिढ़ा हुआ या गुस्से में भी नज़र आए। अब हम क्या करेंगे? नीतिवचन १७:२७ सलाह देता है: ‘समझवाला पुरुष शान्त रहता है।’ हम उनसे माफी माँग सकते हैं कि हमने गलत समय पर आकर उन्हें तकलीफ दी है, पर बेशक हम अपनी सेवकाई के लिए माफी नहीं माँगते। हम किसी और समय पर आने के बारे में नम्रता से उनसे पूछ सकते हैं, जिस समय उन्हें कोई परेशानी न हो। कोमल स्वर में बात करके जब हम दिल से उनके लिए परवाह दिखाते हैं तो अकसर व्यक्ति शांत हो जाता है। (नीति. १५:१) अगर घरवाला कहता है कि वह हमेशा रात की शिफ्ट में काम करता है तो टॆरिट्री कार्ड में इसका एक नोट लिखकर रखा जा सकता है ताकि अगली बार सही समय पर भेंट की जा सके।
१२ अपने क्षेत्र को अच्छी तरह पूरा करने में भी समझदार होना ज़रूरी है। जब हम पहली बार घरों में जाते हैं तो कई घरों में लोग नहीं मिलते। उनसे मिलने के लिए हमें थोड़ा और प्रयास करने की ज़रूरत है ताकि हम उन्हें उद्धार का संदेश दे सकें। (रोमि. १०:१३) देखा गया है कि लोगों से मिलने की कोशिश में कभी-कभी प्रकाशक दिन में एक ही घर के कई चक्कर काटते हैं। जब आस-पड़ोस के लोग यह देखते हैं तो उन्हें बुरा लग सकता है और वे शायद सोचें कि यहोवा के साक्षी हमारे इलाके में ‘जब देखो तब चले आते हैं।’ ऐसे में क्या किया जाए?
१३ समझदारी से काम लीजिए। जब आप ऐसे घर पर दोबारा जाते हैं जहाँ पहले कोई नहीं मिला था, तो क्या किसी तरह पता चल सकता है कि घर में अब कोई आ गया है? अगर दरवाज़े पर चिट्ठियाँ या पर्चे नज़र आते हैं तो ज़ाहिर है कि व्यक्ति अभी भी नहीं आया है और ऐसे में जाकर मिलने की कोशिश करना व्यर्थ होगा। शाम के वक्त या ऐसे ही अलग-अलग समय पर की गई कई कोशिशों के बावजूद अगर व्यक्ति नहीं मिलता तो उस घर पर टेलिफोन से बात की जा सकती है। अगर यह भी संभव नहीं तो ट्रैक्ट या हैंडबिल दरवाज़े पर इस तरह छोड़ देना चाहिए ताकि दूसरों की नज़र उस पर न पड़े और ऐसा उन क्षेत्रों में करें जिन्हें कई बार अच्छी तरह से पूरा किया जा चुका है। या फिर जब अगली बार उसी क्षेत्र में काम किया जाता है तब उस व्यक्ति से मिलना ठीक रहेगा।
१४ अगर मौसम खराब है तो ऐसे वक्त पर देर तक बात करके घरवाले को दरवाज़े पर खड़ा रखना ठीक नहीं। और अगर अंदर बुलाया जाता है तो ध्यान रखिए कि गंदे पाँव लेकर घर में न जाएँ। जब कुत्ते भौंकते हैं तब भी सावधान रहिए। किसी अपार्टमैंट में प्रचार करते समय ज़ोर-ज़ोर से बात करके आस-पड़ोस के लोगों को परेशान मत कीजिए और न ही अपने मौज़ूद होने का ढिंढ़ोरा पीटिए।
१५ अच्छे इंतज़ाम और सभ्यता से काम लें: अगर हम अच्छा इंतज़ाम करें तो बड़ा ग्रूप बनाकर क्षेत्र में नहीं जाएँगे जो सबकी नज़रों में आ जाए। कुछ घरवाले शायद डर ही जाएँ जब ढेर सारे लोग अपनी-अपनी गाड़ियों के साथ उनके घर के सामने जमा हो जाते हैं। हम उन्हें यह महसूस नहीं कराना चाहते कि मानो हम उनके इलाके पर हमला करने आए हैं। फील्ड सर्विस की सभा में ही क्षेत्र में काम करने की हिदायतें देकर लोगों की जोड़ियाँ बना देना अच्छा होगा। एक परिवार या प्रकाशकों के छोटे समूह से वहाँ के लोग इतने नहीं घबराएँगे और काम करते वक्त भी ग्रूप को सँभालना आसान होगा।
१६ माता-पिता को क्षेत्र में काम करते वक्त अपने बच्चों के चालचलन पर भी निगाह रखनी चाहिए, अच्छे इंतज़ाम में यह भी शामिल है। बच्चे जब बड़ों के साथ किसी दरवाज़े पर पहुँचते हैं तो उन्हें अदब से पेश आना चाहिए। उनको यूँ ही इधर-उधर घूमने या मस्ती करने नहीं देना चाहिए ताकि वे बेकार में वहाँ के लोगों का या आने-जानेवालों का ध्यान न खिंचे।
१७ चाय और सॉफ्ट ड्रिंक के लिए ब्रेक लेने में भी समझदारी और संतुलन दिखाने की ज़रूरत है। जून १९९५ की हमारी राज्य सेवकाई के पेज ३ पर कहा गया है: ‘जब हम क्षेत्र सेवा में भाग ले रहे हैं, तब चाय-पानी पीने में बहुत समय बरबाद करने से हम बहुमूल्य समय खो सकते हैं। लेकिन, जब मौसम खराब हो तब ब्रेक लेना हमें ताज़गी देगा और कार्य ज़ारी रखने में मदद देगा। अनेक भाई सेवकाई के लिए अलग रखे गए समय के दौरान लोगों को गवाही देते रहने में व्यस्त रहना पसंद करते हैं और रुककर भाइयों के साथ चाय-पानी पीने में वक़्त ज़ाया नहीं करना चाहते।’ चाय-कॉफी पीने के लिए रुकना एक निजी फैसला है, फिर भी यह देखा गया है कि कभी-कभी भाई-बहनों का एक बड़ा समूह चाय की दुकान या रॆस्तराँ में जमा हो जाता है। चाय मिलने में समय तो लगता ही है, भीड़ देखकर दूसरे ग्राहक भी घबरा सकते हैं। ऐसे में कभी-कभी सुबह क्षेत्र-सेवा में हुए अनुभवों के बारे में ज़ोर-ज़ोर से चर्चा की जाती है, इससे लोगों को बुरा लग सकता है और हमारी सेवकाई का असर कम पड़ सकता है। अगर प्रकाशक समझदारी से काम लें तो वे इस तरह भीड़ जमा नहीं करेंगे और बिना वज़ह सेवकाई का समय बरबाद नहीं करेंगे।
१८ कई भाई-बहनों को उन जगहों पर जाकर बात करने से अच्छे नतीजे मिले हैं, जहाँ लोग मिल सकते हैं जैसे कि सड़क पर, गाड़ी खड़ी करने की जगहों पर और ऐसी जगहों पर जहाँ भीड़ हो। यहाँ पर भी हम अच्छी गवाही देना चाहेंगे न केवल अपनी बातों से बल्कि समझदारी दिखाकर भी। इसलिए हर कलीसिया के प्रकाशकों को यह मालूम होना चाहिए कि उनके क्षेत्र की सीमा कहाँ तक है ताकि अलग-अलग कलीसिया के प्रकाशक आकर शॉपिंग-सेंटर, दुकानों या पेट्रोल पंप के सामने, बस स्टॉप या रेलवे स्टेशन के आने-जाने के रास्तों पर भीड़ लगाकर राहगीरों को परेशान न करें या ऐसी जगहों पर काम करनेवालों को तंग न करें। जब तक कि क्षेत्र में मदद के लिए दूसरी कलीसिया की सर्विस कमीटी द्वारा कोई खास प्रबंध नहीं किया जाता, हम अच्छे इंतज़ाम और सभ्यता से प्रचार करने के लिए अपने ही नियुक्त क्षेत्र में काम करेंगे।—२ कुरिन्थियों १०:१३-१५ से तुलना कीजिए।
१९ कुछ कलीसियाओं के पास ऐसी बहुत-सी जगह हैं जहाँ सार्वजनिक गवाही दी जा सकती है, ऐसी जगहों को एक टॆरिट्री बना दिया गया है। फिर इसका टॆरिट्री कार्ड एक प्रकाशक को या एक समूह को दे दिया जाता है। इससे क्षेत्र को अच्छी तरह से पूरा किया जा सकता है और एक ही वक्त पर एक ही क्षेत्र में काम करने के लिए बहुत ज़्यादा प्रकाशक भी जमा नहीं होते। यह १ कुरिन्थियों १४:४० में दिए सिद्धांत के अनुरूप है: “सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएं।”
२० हम यहोवा का नाम धारण करनेवाले सेवक हैं इसलिए उसके प्रतिनिधि होने के नाते हमारी वेश-भूषा हमेशा अच्छी और गरिमायुक्त होनी चाहिए। प्रचार के काम में जो भी सामान हम इस्तेमाल करते हैं उसमें भी हमें इसी बात का ध्यान रखना चाहिए। फटे-पुराने बैग और मुड़े हुए पन्नोंवाली गंदी बाइबल से राज्य संदेश पर बुरा असर पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि कपड़े और साज-सृंगार “लोगों को काफी कुछ बता देते हैं कि हम कौन हैं और क्या हैं और हमारा स्तर क्या है।” इसलिए हमारी वेश-भूषा न तो गंदी हो न ही बेढंगी और न ही तड़क-भड़कवाली। इसके बजाय इसे हमेशा “सुसमाचार के योग्य” होना चाहिए।—फिलि. १:२७. १ तीमुथियुस २:९, १० से तुलना कीजिए।
२१ पहले कुरिन्थियों ९:२६ में प्रेरित पौलुस ने कहा: “मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।” पौलुस की तरह हमने भी यह निश्चय किया है कि हम असरदार और अच्छे तरीके से प्रचार करेंगे ताकि सेवकाई में सफल हो सकें। आज जब हम यहोवा की “टिड्डियों की सेना” में मिलकर जोश के साथ काम करते हैं तो आइए हम मसीही विवेक और समझ का इस्तेमाल करते हुए अपने क्षेत्र में सभी को उद्धार का संदेश सुनाएँ।