यहोवा के मार्ग पर चलते रहने का— हमारा संकल्प
“ईश्वरीय जीवन का मार्ग,” इस अधिवेशन की एक विशेषता थी, आखिरी भाषण में किया गया एक संकल्प। यह इस घोषणा के साथ शुरू हुआ था: “हम . . . पूरे दिल से इस बात को मानते हैं कि ईश्वरीय जीवन का मार्ग ही सबसे बेहतरीन जीवन मार्ग है।” उस संकल्प के कुछ खास मुद्दों को ज़रा फिर से याद कीजिए जिसके लिए हम सब ने कहा था, “हाँ!”
२ यह हमारा संकल्प है कि हम यहोवा के सामने शुद्ध रहेंगे और इस संसार से निष्कलंक रहेंगे। हम परमेश्वर की इच्छा को अपने जीवन में पहला स्थान देंगे। उसके वचन बाइबल को गाइड की तरह इस्तेमाल करते हुए हम दाएँ या बाएँ नहीं मुड़ेंगे इससे हम ये सबूत देंगे कि परमेश्वर का मार्ग दुनिया के किसी भी मार्ग से कहीं ज़्यादा बेहतर और श्रेष्ठ है।
३ आमतौर पर यह दुनिया ईश्वरीय जीवन के मार्ग का तिरस्कार करती है और ऐसा करने के परिणाम भी भुगतती है। (यिर्म. १०:२३) इसलिए हमें अपने महान उपदेशक यहोवा से शिक्षा लेते रहना चाहिए, जो कहता है: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशा. ३०:२१) बाइबल में बताया गया यहोवा का मार्ग, हर तरीके से श्रेष्ठ है। इस मार्ग पर चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि यहोवा हमें जो कुछ सिखाता है, हम उसका पूरा-पूरा लाभ उठाएँ।
४ यहोवा के सिखाने का बढ़िया प्रबंध: यहोवा हमें सिखाता है कि ज़िंदगी का असली मकसद क्या है और किस तरह जीने से हमारा सबसे ज़्यादा भला होगा। वह हमें सिखाता है कि हम अपने सोच-विचार, चालचलन और आध्यात्मिकता में कैसे अधिक सुधार करें। वह हमें सिखाता है कि अपने भाइयों, अपने परिवार और अपने साथियों के साथ कैसे शांति से रहें। ये सारी बातें वह हमें अपनी किताब बाइबल और अपने संगठन के ज़रिए सिखाता है।
५ इस मामले में हमारी कलीसिया की सभाएँ बहुत बड़ी अहमियत रखती हैं। जब हम पाँचों सभाओं में नियमित रूप से आते और भाग लेते हैं तो सुसमाचार प्रचार करने के लिए हमें पूरी-पूरी ट्रेनिंग मिलती है और मसीही जीवन जीने के लिए अच्छी शिक्षा मिलती है। (२ तीमु. ३:१६, १७) हमारा महान उपदेशक सम्मेलनों और अधिवेशनों के ज़रिए और भी ईश्वरीय शिक्षा देता है। अगर हमारी सेहत और हमारे हालात ऐसे हैं कि हम सभाओं में जा सकते हैं तो हमारी यह पूरी कोशिश होनी चाहिए कि सभा या सम्मेलनों के किसी भी भाग को कभी-भी न चूकें।
६ आइए हम पूरी मेहनत और लगन से हमेशा ईश्वरीय जीवन के मार्ग पर चलते रहें। इससे यहोवा की महिमा होगी और हमें अनंतकाल तक आशीषें मिलेंगी!—यशा. ४८:१७.