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▪ कलीसिया की सभाओं में किसको प्रार्थना करनी चाहिए?

कलीसिया की सभाओं में यहोवा से प्रार्थना करना हमारी उपासना का एक जरूरी भाग है। इसके अलावा यह बहुत बड़ा सम्मान और भारी ज़िम्मेदारी है। इसे ध्यान में रखते हुए, प्राचीनों को बहुत सोच-समझकर प्रार्थना के लिए भाइयों को चुनना चाहिए। सिर्फ बपतिस्मा-प्राप्त भाइयों को ही कलीसिया की तरफ से प्रार्थना करने के लिए चुना जाना चाहिए। ये भाई अच्छे उदाहरण हों, अनुभवी मसीही हों और कलीसिया में उनकी इज़्ज़त हो। इन भाइयों को गहरे आदर और श्रद्धा से प्रार्थना करनी चाहिए जिससे यहोवा परमेश्‍वर के साथ उनका करीबी रिश्‍ता साफ ज़ाहिर होगा। मई 15, 1987 की प्रहरीदुर्ग में “दूसरों के साम्हने नम्रता के साथ प्रार्थना करना” नामक लेख है। इसमें बहुत-से जरूरी सिद्धांत दिए हुए हैं जो कलीसिया की तरफ से सभाओं में प्रार्थना करनेवाले भाइयों की मदद कर सकते हैं।

प्राचीन किसी ऐसे भाई को प्रार्थना करने के लिए नहीं कहेंगे जिसका उदाहरण अच्छा न हो। ऐसे भाइयों को भी चुनना गलत होगा जो ज़्यादातर चिढ़चिढ़े रहते हैं, बेपरवाह हैं और प्रार्थना के ज़रिये दूसरों को ताने मारते हैं या किसी के खिलाफ बोलते हैं। (1 तीमु. 2:8) कलीसिया में कम उम्र के बपतिस्मा-प्राप्त भाई भी हो सकते हैं, मगर प्राचीनों को उनकी आध्यात्मिकता देखकर ही उन्हें कलीसिया की तरफ से प्रार्थना करने के लिए कहना चाहिए।—प्रेरि. 16:1, 2.

कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि क्षेत्र-सेवकाई की किसी सभा में प्रार्थना करने के लिए कोई योग्य भाई हाज़िर न हो। उस वक्‍त एक बपतिस्मा-प्राप्त बहन अपना सिर ठीक से ढककर प्रार्थना कर सकती है। अगर प्राचीनों को पहले से पता हो कि क्षेत्र-सेवकाई की किसी सभा में कोई भी योग्य भाई नहीं होगा, तो उन्हें पहले से एक काबिल बहन को प्रार्थना करने और अगुवाई करने के लिए कहना चाहिए।

पब्लिक टॉक से पहले ज़्यादातर चेयरमैन ही प्रार्थना करता है। जहाँ तक दूसरी सभाओं का सवाल है, अगर कलीसिया में बहुत से काबिल भाई हैं, तो शुरूआत और अंत की प्रार्थना के लिए ऐसे भाइयों को बुलाया जा सकता है जिन्होंने सभा की शुरूआत न की हो या आखिरी भाग पेश न किया हो। इसके अलावा, अगर किसी भाई को कलीसिया में प्रार्थना करने के लिए कहना है तो उसे पहले से बताया जाना चाहिए। ऐसा करने से वह प्रार्थना की अच्छी तैयारी कर सकेगा। फिर वह सभा के अनुसार, समझ के साथ और दिल की गहराइयों से प्रार्थना कर पाएगा।

सभा में की जानेवाली प्रार्थनाएँ बहुत लंबी नहीं होनी चाहिए। प्रार्थना करनेवाला भाई खड़ा होकर साफ शब्दों में और ऊँची आवाज़ से प्रार्थना करता है तो सब भाई-बहन अच्छी तरह सुन सकेंगे। इस तरह सभा में हाज़िर सभी भाई-बहन प्रार्थना सुनकर अंत में पूरे दिल से “आमीन” कह सकेंगे।—1 इति. 16:36; 1 कुरि. 14:16.

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