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  • अच्छा सुननेवाला बनिए
  • हमारी राज-सेव—2001
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हमारी राज-सेव—2001
km 1/01 पेज 1

अच्छा सुननेवाला बनिए

ध्यान से सुनने के लिए खुद को प्रशिक्षित करना ज़रूरी है। इसके अलावा सुननेवालों के दिल में यह इच्छा भी होनी चाहिए कि वे सुनायी जा रही बातों से कुछ सीखना चाहते हैं, और उसका फायदा उठाना चाहते हैं। इसीलिए यीशु ने कहा था, “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो।”—लूका 8:18.

2 खासकर सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के दौरान हम किस तरह सुनते हैं, यह बात बहुत मायने रखती है। हमें ऐसे मौकों पर पूरा मन लगाकर सुनना चाहिए। (इब्रा. 2:1) नीचे कुछ सुझाव दिए हैं जो मसीही सभाओं में ध्यान से सुनने के लिए हमारी मदद करेंगे।

▪ सभाओं की अहमियत समझिए। ये सभाएँ एक ऐसा मुख्य ज़रिया है, जहाँ हम “विश्‍वास-योग्य और बुद्धिमान भण्डारी” के ज़रिए ‘यहोवा द्वारा सिखलाए’ जाते हैं।—लूका 12:42; यशा. 54:13.

▪ पहले से तैयारी कीजिए। सभाओं में जिन विषयों पर चर्चा होनेवाली है, उन्हें पहले से पढ़कर आइए। साथ में अपनी बाइबल और विषय से संबंधित किताबें भी लाइए।

▪ सभाओं के दौरान ध्यान से सुनने का खास प्रयत्न कीजिए। आस-पास बैठे लोगों से बात नहीं करनी चाहिए और न ही यह देखना चाहिए कि दूसरे क्या कर रहे हैं। ऐसे ख्याल भी मन में मत आने दीजिए कि सभा खत्म होने के बाद क्या करना है, या किसी और निजी मामले के बारे में मत सोचिए क्योंकि इससे भी ध्यान भटक सकता है।

▪ जिस विषय पर चर्चा हो रही है, उसकी मन-ही-मन जाँच कीजिए। खुद से पूछिए: ‘यह मुझ पर कैसे लागू होता है? मैं इसे अपनी ज़िंदगी में जल्द-से-जल्द कैसे अमल में ला सकता हूँ?’

▪ शास्त्रवचनों और मुख्य मुद्दों को संक्षिप्त में लिखिए। इससे चर्चा किए जा रहे विषय पर आपका ध्यान लगा रहेगा, साथ ही कभी ज़रूरत पड़ने पर ये मुद्दे तुरंत आपको याद आएँगे।

3 अपने बच्चों को ध्यान से सुनना सिखाइए: बच्चों को परमेश्‍वर के वचन के बारे में सिखाए जाने की ज़रूरत है। (व्यव. 31:12) पुराने ज़माने में जब व्यवस्था पढ़ी जाती थी, तब परमेश्‍वर के लोगों में “जितने सुनकर समझ सकते थे,” उन सभों को वे बातें ध्यान से सुननी थीं। (नहे. 8:1-3) अगर माता-पिता सभाओं में पूरी तरह तल्लीन होकर और ध्यान से सुनेंगे तो ज़ाहिर है कि बच्चे भी वैसा ही करेंगे। इसलिए बच्चों का ध्यान बँटाने के लिए सभाओं में कोई खिलौना या फिर ड्रॉइंग बुक लाना अक्लमंदी नहीं है। बच्चों को बेवजह बार-बार टॉयलेट ले जाने से भी हम उनमें सुनने की अच्छी आदत नहीं बनने देते। जैसा कि हम जानते हैं कि “लड़के के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है,” इसलिए माता-पिताओं को अपनी तरफ से खास कोशिश करनी चाहिए ताकि उनके बच्चे सभाओं में चुपचाप बैठकर कार्यक्रम ध्यान से सुनें।—नीति. 22:15.

4 एक अच्छा सुननेवाला बनकर हम साबित करेंगे कि हम सचमुच में अक्लमंद हैं और ‘अपना ज्ञान बढ़ाना’ चाहते हैं।—नीति. 1:5; ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

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