अभिदान नवीकरण की क्रिया आसान की गयी
प्रहरीदुर्ग और अवेक! का अभिदान करनेवालों को उनके अभिदान खत्म होने के बारे में दो तरीकों से इत्तला की जाती थी। पहला तरीका है, छपी हुई ‘अभिदान समाप्ति पर्ची’ के ज़रिए, जो कलीसिया अभिदान करनेवालों को देती है। अभिदान के नवीकरण के लिए अगर यह पर्ची इस्तेमाल की जाए तो बेहतर होगा।
दूसरा तरीका था, अभिदान नवीकरण फॉर्म जो पत्रिका के साथ अभिदान करनेवाले को सीधे भेजा जाता था। यह फॉर्म डालना तब बंद किया गया जब साहित्य वितरण की सरल व्यवस्था शुरू की गई। लेकिन, उन अभिदान करनेवालों को नवीकरण के फॉर्म अब भी भेजे जाएँगे जिन्हें ब्रेल में पत्रिकाएँ भेजी जाती हैं।
प्रकाशकों और पायनियरों को उकसाया जाता है कि निजी अभिदान करने के बजाय वे अपने लिए पत्रिकाओं की कॉपियाँ, कलीसिया को भेजी जानेवाली पत्रिकाओं से ही लें। इससे संस्था का काम और खर्च कुछ हद तक कम होगा।—अक्टूबर 15, 1999 का ‘भारत की सभी कलीसियाओं को’ लिखे खत के पेज 2 पर “प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के अभिदान के बारे में क्या?” के नीचे दी गयी जानकारी देखिए।
क्षेत्र से मिलनेवाले अभिदानों के लिए, इत्तला देने का खास तरीका होगा छपी हुई ‘अभिदान समाप्ति पर्ची,’ जो कलीसिया के ज़रिए बाँटी जाएगी। ये फॉर्म जैसे ही कलीसिया में आते हैं, इन्हें जल्द-से-जल्द उन प्रकाशकों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने ये अभिदान हासिल किए थे। अब जबकि अभिदान करनेवालों को पत्रिका के अंदर नवीकरण फॉर्म नहीं भेजा जाएगा इसलिए यह ज़रूरी है कि हम सच्चाई में दिलचस्पी लेनेवाले इन लोगों से फौरन मिलें। हमें यह तय करना चाहिए कि एक व्यक्ति को वाकई सच्चाई में दिलचस्पी है या नहीं और अगर उसे पत्रिकाएँ भेजना जारी रखें तो इससे उसे फायदा होगा या नहीं। अगर अभिदान जारी रखना है, तो अभिदान भेजने में होनेवाले डाकखर्च को बचाने के लिए हम उस व्यक्ति को अपने पत्रिका मार्ग में शामिल कर सकते हैं। इस तरह अभिदान का नवीकरण करने के बजाय अगर हम खुद जाकर हर अंक पेश करेंगे तो उस व्यक्ति की दिलचस्पी को भी बढ़ा पाएँगे। लेकिन अगर हमें लगता है कि खुद जाकर पत्रिकाएँ पहुँचाना व्यावहारिक नहीं है तो हम अभिदान का नवीकरण कर सकते हैं। जब आप नवीकरण करते हैं, तो अच्छा होगा कि आप उसी छपी हुई ‘अभिदान समाप्ति पर्ची’ को भेजें, इससे नवीकरण करने का काम ज़्यादा जल्दी होता है। जिन अभिदानों का नवीकरण किया जाता है वे हमेशा कलीसिया के ज़रिए ही भेजे जाने चाहिए।—हमारी राज्य सेवकाई (अँग्रेज़ी) नवंबर 1988, पेज 4 और फरवरी 1986, पेज 4 देखिए।
अगर अभिदान करनेवाले, बहुत दूर या ऐसे इलाकों में रहते हैं जहाँ पहुँचना मुश्किल है तो कलीसिया अभिदान समाप्ति पर्चियाँ डाक के ज़रिए भेज सकती है।
ये पत्रिकाएँ हमारे इन दिनों के लिए बहुत उपयोगी हैं और इस अंधकार से भरी दुनिया में ये सच्चाई की रोशनी फैलाती रहेंगी। हमें यकीन है कि सभी इस नए इंतज़ाम में सहयोग देंगे ताकि प्रहरीदुर्ग और अवेक! का अभिदान करनेवाले सभी लोगों को ये पत्रिकाएँ लगातार मिलती रहें और वे इनके एक भी अंक को न चूकें।