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  • आपकी आदत क्या है?
  • हमारी राज-सेव—2001
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  • एक-दूसरे का हौसला बढ़ाइए
हमारी राज-सेव—2001
km 5/01 पेज 4

आपकी आदत क्या है?

यहोवा की उपासना में मसीही सभाओं की बहुत बड़ी अहमियत है। प्रेरित पौलुस का हमें उकसाना लाज़िमी है कि हम एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कुछ लोगों को “आदत ही पड़ गयी है।” (तिरछे टाइप हमारे।)—इब्रा. 10:25, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

2 मसीही सभाओं में अपने भाइयों के साथ संगति करने के बारे में क्या आप भी पौलुस की तरह ही सोचते हैं? इस मामले में आपकी आदत क्या दिखाती है? क्या आप सभी मसीही सभाओं, यहाँ तक कि कलीसिया की बुक स्टडी में भी लगातार जाते हैं? या क्या फिर ऐसा है कि सभाओं में न जाने की आपको आदत पड़ गयी है? आपकी ज़िंदगी में सभाओं की क्या अहमियत है? क्या आप दूसरों को सभाओं में हाज़िर होने के लिए उकसाते हैं? क्या आप स्मारक में आनेवालों को हर सभा में आने के लिए उकसा रहे हैं?

3 रोज़मर्रा के कामों में हम चाहे कितने ही व्यस्त क्यों न हों, फिर भी पौलुस की सलाह को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। हालाँकि, यह बात समझ में आती है कि तबियत खराब होने की वजह से या ऐसे हालात की वजह से जिन पर एक मसीही का बस नहीं चलता, उसके लिए शायद कभी-कभार सभा में आना मुमकिन न हो, मगर यह उसकी आदत नहीं बननी चाहिए। (रोमि. 2:21) एक मसीही की शायद बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ होंगी, जिनमें मसीही सेवा से जुड़े कई काम भी हो सकते हैं। मगर फिर भी, उसे ज़्यादा ज़रूरी बातों पर ध्यान देना चाहिए। (फिलि. 1:10) सभाएँ भी उन बातों में शामिल हैं जो एक मसीही के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं और इनके बिना हम आध्यात्मिक रीति से खुशहाल नहीं रह सकते।

एक-दूसरे का हौसला बढ़ाइए

4 जब पौलुस ने रोमियों को खत लिखा तो उसने कहा कि वह उनसे मिलने को तरस रहा है। क्यों? ताकि वह उन्हें कोई आध्यात्मिक वरदान दे सके जिससे वे ‘स्थिर हो जाएँ।’ (रोमि. 1:11) उसे महसूस हुआ कि भाई-बहनों से मिलना-जुलना बहुत ज़रूरी है, जी हाँ बेहद ज़रूरी है क्योंकि उसने आगे कहा कि वे “एक दूसरे के विश्‍वास से प्रोत्साहित किए जाएं।” या जैसे रेफरेंस बाइबल के फुटनोट में लिखा है: “साथ-साथ प्रोत्साहित हों।” (रोमि. 1:12; NHT ) पौलुस, जो एक प्रेरित था, उसे भी मसीही भाई-बहनों से मिलकर हौसला पाने की ज़रूरत महसूस हुई।

5 उसी तरह, हमारी सभाओं में हमें एक-दूसरे को प्रेम और भले काम करने के लिए उकसाना चाहिए। एक अच्छी-सी मुस्कान और चंद प्यार-भरे शब्दों से लोगों का स्वागत करने से दूसरों पर अच्छा असर हो सकता है। हिम्मत बढ़ानेवाले जवाब सुनकर, सभा के कार्यक्रम में अच्छी तरह तैयार किए गए भागों से सीखकर, दूसरों को आध्यात्मिक तरक्की करते देखकर और भाइयों के बीच होने की खुशी महसूस करके ही हमारा हौसला बहुत बढ़ सकता है। दिन के आखिर में चाहे हम कितने ही थके-हारे क्यों न हों, आम तौर पर हम पाएँगे कि सभाओं में हाज़िर होने के बाद हम अच्छा महसूस करते हैं। मसीही भाई-बहनों की दोस्ती और प्यार पाकर हमें उस ‘दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ने’ का हौसला मिलता है। (इब्रा. 12:1) परमेश्‍वर के वचन को ध्यान से सुनने से, हम अपनी आशा को दृढ़ता से थामे रहेंगे और बिना डगमगाए इसे सबके सामने ज़ाहिर करेंगे। वाकई, सभाओं में आने से हमें बहुत-सी आशीषें मिलती हैं।

6 आज हमें पहले से कहीं ज़्यादा, अपने विश्‍वास पर टिके रहने और दूसरों को प्रेम और भले कामों के लिए उकसाने की ज़रूरत है। हमें एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए। हमें पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए कि सभाओं में लगातार आते रहने के लिए हम दूसरों का और स्मारक में हाज़िर होनेवालों का भी हौसला बढ़ाएँ और उनकी मदद करें। इस तरह, हम दूसरों के लिए अपना प्यार दिखाएँगे और मसीही सभाओं के लिए अपनी कदरदानी भी।

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