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  • हमारी राज-सेवा—2003
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हमारी राज-सेवा—2003
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नम्रता धारण करें

एक चरवाहे लड़के ने यहोवा पर भरोसा रखकर एक शक्‍तिशाली योद्धा को हराया। (1 शमू. 17:45-47) एक धनवान ने धीरज के साथ विपत्ति को सहा। (अय्यू. 1:20-22; 2:9, 10) परमेश्‍वर के बेटे ने अपनी सारी शिक्षा का श्रेय अपने पिता को दिया। (यूह. 7:15-18; 8:28) इन सभी उदाहरणों में हम देखते हैं कि उन्होंने खासकर नम्रता का गुण दिखाया। उसी तरह आज हम चाहे किसी भी परिस्थिति में हों, उनका सामना करने के लिए नम्रता दिखाना बहुत ज़रूरी है।—कुलु. 3:12.

2 प्रचार में: मसीही सेवक होने के नाते हम नम्रता के साथ हर तरह के लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं, और जाति, संस्कृति या धर्म को लेकर उनके साथ भेद-भाव नहीं करते। (1 कुरि. 9:22, 23) अगर कोई व्यक्‍ति रूखा है या गुस्से से राज्य के संदेश को ठुकरा देता है, तो हम भी उसी की तरह पेश नहीं आते बल्कि धीरज धरते हुए ऐसे लोगों की तलाश करते हैं जो सच्चाई को कबूल करेंगे। (मत्ती 10:11, 14) हम अपने ज्ञान या अपनी शिक्षा से लोगों की नज़रों में छाने की कोशिश नहीं करते, इसके बजाय हम उनका ध्यान परमेश्‍वर के वचन की तरफ खींचते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि हम चाहे जो भी बातें कहें वे लोगों को इतना कायल नहीं कर सकतीं, जितना कि बाइबल कर सकती है। (1 कुरि. 2:1-5; इब्रा. 4:12) यीशु के उदाहरण पर चलते हुए, हम हर चीज़ के लिए यहोवा को स्तुति देते हैं।—मर. 10:17, 18.

3 कलीसिया में: मसीहियों को ‘एक दूसरे की सेवा के लिये भी दीनता से कमर बान्धनी’ चाहिए। (1 पत. 5:5) अगर हम दूसरों को अपने से बड़ा समझेंगे तो हम उनकी सेवा करने के मौके ढूँढ़ेंगे, ना कि उनसे सेवा पाने की उम्मीद करेंगे। (यूह. 13:12-17; फिलि. 2:3, 4) हम ऐसा नहीं सोचेंगे कि हम किंगडम हॉल की सफाई जैसे काम नहीं करेंगे क्योंकि ये मेरे लायक नहीं हैं।

4 नम्रता ‘एक दूसरे की सह लेने’ में हमारी मदद करती है और इस तरह यह कलीसिया में शांति और एकता कायम रखती है। (इफि. 4:1-3) नम्रता हमें उन भाइयों के अधीन रहने में मदद देती है जिन्हें हमारी अगुवाई करने के लिए नियुक्‍त किया गया है। (इब्रा. 13:17) यह हमें उकसाती है कि हमें जो भी सलाह या ताड़ना दी जाए, उसे हम स्वीकार करें। (भज. 141:5) और नम्रता हमें कलीसिया में दिए जानेवाले हर काम को पूरा करने के लिए यहोवा से मदद लेने को प्रेरित करती है। (1 पत. 4:11) दाऊद की तरह हम मानते हैं कि सफलता हमारी अपनी काबिलीयत पर नहीं बल्कि परमेश्‍वर की आशीष पर निर्भर है।—1 शमू. 17:37.

5 हमारे परमेश्‍वर के सामने: सबसे खास बात यह है कि हमें ‘परमेश्‍वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहने’ की ज़रूरत है। (1 पत. 5:6) जब हम मुश्‍किल हालात से गुज़र रहे होते हैं, तब शायद हमारा मन परमेश्‍वर के राज्य से मिलनेवाली राहत के लिए तरसे। फिर भी, हम नम्रता के साथ धीरज धरते हैं और यहोवा के ठहराए समय का इंतज़ार करते हैं, जब वह अपने वादों को पूरा करेगा। (याकू. 5:7-11) खराई रखनेवाले अय्यूब की तरह हमें सबसे ज़्यादा इस बात की चिंता होती है कि ‘यहोवा का नाम धन्य बना रहे।’—अय्यू. 1:21.

6 भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने “अपने परमेश्‍वर के साम्हने अपने को दीन किया” और उसे परमेश्‍वर का अनुग्रह मिला, साथ ही सेवा करने के बहुत-से खास मौके भी। (दानि. 10:11, 12) आइए हम भी नम्रता धारण करें, क्योंकि हम जानते हैं कि “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।”—नीति. 22:4.

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