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  • हमारी राज-सेवा—2004
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हमारी राज-सेवा—2004
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अपनी एहसानमंदी दिखाइए

हालाँकि आज हम “कठिन समय” में जी रहे हैं, फिर भी हमारे पास यहोवा को धन्यवाद देने के कई कारण हैं। (2 तीमु. 3:1) सबसे ज़्यादा हम इस बात के लिए यहोवा के एहसानमंद हैं कि उसने अपना बेटा एक अनमोल वरदान के रूप में हमें दे दिया। (यूह. 3:16) इसके अलावा, हम बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन का आनंद उठा रहे हैं, जबकि झूठे धर्मों के लोग आध्यात्मिक मायने में भूखे-प्यासे हैं। (यशा. 65:13) हम संसार भर में फैली एक बिरादरी का हिस्सा हैं। और हमें सच्ची उपासना को दूर-दूर तक फैलाने का रोमांचक काम मिला है। (यशा. 2:3, 4; 60:4-10, 22) जब यहोवा ने हमें इतनी सारी आशीषें दी हैं, तो हम उनके लिए एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं?—कुलु. 3:15, 17.

2 तन-मन से और मगन होकर सेवा करना: दान के बारे में चर्चा करते हुए, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।” (2 कुरि. 9:7) यह सिद्धांत परमेश्‍वर की सेवा पर भी लागू होता है। हमारी एहसानमंदी, सच्चाई के लिए हमारी धुन, मसीही सभाओं में हमारे मुस्कराते चेहरों, प्रचार काम में हमारे जोश, साथ ही परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में हमारी खुशी से ज़ाहिर होती है।—भज. 107:21, 22; 119:14; 122:1; रोमि. 12:8, 11.

3 प्राचीन इस्राएलियों को दी गयी व्यवस्था में, कुछेक बलिदानों के बारे में यह नहीं बताया गया था कि उन्हें परमेश्‍वर को कितना चढ़ाना है। हरेक उपासक, ‘उस आशीष के अनुसार जो यहोवा ने उसे दी हो’ बलिदान अर्पित करके अपना एहसान ज़ाहिर कर सकता था। (व्यव. 16:16, 17) उसी तरह आज, एहसानमंदी से भरा दिल हमें उभारेगा कि हम अपने हालात के मुताबिक जितना ज़्यादा हो सके, उतना प्रचार और चेले बनाने का काम करें। गर्मियों के महीनों में हमें अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करने के ज़्यादा मौके मिलते हैं। कुछ लोग नौकरी या स्कूल में मिलनेवाले ब्रेक के दौरान प्रचार में ज़्यादा घंटे बिताते हैं, यहाँ तक कि ऑक्ज़लरी पायनियर सेवा भी करते हैं। क्या आप इस साल गर्मियों में ज़्यादा सेवा कर सकते हैं?

4 एहसानमंदी से भर जाना: यहोवा को धन्यवाद देने का एक खास तरीका है, प्रार्थना करना। (1 थिस्स. 5:17, 18) परमेश्‍वर का वचन हमसे आग्रह करता है कि हमारे दिलों में “धन्यवाद की प्रार्थना उमड़ती” रहे। (कुलु. 2:7, बुल्के बाइबल) हम चाहे जितने भी व्यस्त हों या भारी तनाव में हों, हमें हर रोज़ अपनी प्रार्थना में यहोवा को धन्यवाद कहना नहीं भूलना चाहिए। (फिलि. 4:6) जी हाँ, अपनी सेवा और अपनी प्रार्थनाओं के ज़रिए आइए हम “परमेश्‍वर का बहुत धन्यवाद” करते रहें।—2 कुरि. 9:12.

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