परिवार के शेड्यूल में इकट्ठे प्रचार में जाना
जब यहोवा, बच्चों और नौजवानों के मुँह से अपनी बड़ाई सुनता है तो उसे बेहद खुशी होती है। (भज. 148:12, 13) यीशु के दिनों में तो “बालकों और दूध पीते बच्चों के मुंह से” भी परमेश्वर की “स्तुति” हुई। (मत्ती 21:15, 16) आज भी ऐसा ही हो रहा है। माता-पिताओ, आप अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं ताकि वे मसीही प्रचार के काम में जोश से यहोवा की महिमा कर सकें? जैसे ऊपर के लेख में कलीसिया की सभाओं के बारे में बताया है, वैसे ही प्रचार में भी आपकी मिसाल से बच्चों को मदद मिलेगी। ज़्यादातर माँ-बाप कैसा महसूस करते हैं, यह इस पिता की बात से देखा जा सकता है: “बच्चे वह नहीं करते जो आप उन्हें करने के लिए कहते हैं, बल्कि वही करते हैं जो वह आपको करते हुए देखते हैं!”
2 एक बहन की परवरिश परमेश्वर का भय माननेवाले माता-पिता ने की थी। वह याद करती है: “हम शनिवार की सुबह जब उठते थे, तो कभी यह नहीं पूछते थे कि क्या हम प्रचार में जा रहे हैं। हमें पता था कि हमें जाना है।” इसी तरह, जब आपका पूरा परिवार हर हफ्ते प्रचार के लिए जाया करेगा, तो आप अपने बच्चों के दिल में यह बात बिठाएँगे कि प्रचार करना कितना ज़रूरी है। इससे न सिर्फ बच्चों को आपको देखकर सीखने का मौका मिलता है, बल्कि इससे आप भी देख पाते हैं कि उनका रवैया, अदब-कायदा कैसा है और प्रचार में वे अपना हुनर बढ़ा रहे हैं या नहीं।
3 सिलसिलेवार ट्रेनिंग: बच्चों को प्रचार में मज़ा तभी आएगा जब वे खुद अच्छी तरह से प्रचार करने के लिए तैयार हों। जिस बहन का हवाला पहले दिया गया है, उसने यह भी कहा: “हम प्रचार में अपने माता-पिता के पीछे-पीछे यूँ ही नहीं चले जाते थे, जैसे मानो उनका कोई काम करने में हम उनके साथ जा रहे हैं। हमें पता था कि हमें भी प्रचार में शामिल होना चाहिए, फिर चाहे हम सिर्फ दरवाज़े की घंटी बजाएँ या फिर सिर्फ एक पर्चा पकड़ाएँ। हम शनिवार-रविवार के आने से पहले ही बहुत अच्छी तरह तैयारी करते थे और हमें पता रहता था कि क्या बोलना है।” हर हफ्ते कुछ मिनट निकालकर प्रचार की तैयारी करने से आप भी अपने बच्चों को ऐसी ट्रेनिंग दे सकते हैं। आप चाहें तो ऐसा पारिवारिक अध्ययन के दौरान या किसी और वक्त पर कर सकते हैं।
4 एक-साथ प्रचार करने से आपको अपने बच्चों के दिल में सच्चाई बिठाने का एक और अच्छा मौका मिलता है। एक मसीही पिता, पास की एक वादी के गाँव में ट्रैक्ट बाँटने के लिए अपने साथ अपनी बेटी को ले जाया करता था। एक तरफ का रास्ता 10 किलोमीटर था। उसकी बेटी कहती है: “पैदल चलते-चलते पिताजी ने बड़े प्यार से मेरे दिल में सच्चाई के बीज बोए।” (व्यव. 6:7) अगर आप प्रचार को अपने परिवार के हर हफ्ते के शेड्यूल में इस तरह अहमियत दें, तो हो सकता है कि आपको भी ऐसी ही आशीषें मिलें।