निजी दिलचस्पी दिखाइए—बिना किसी भेद-भाव के प्रचार कीजिए
प्रेरित यूहन्ना ने एक दर्शन में देखा कि एक स्वर्गदूत आकाश के बीच में उड़ रहा है और वह “हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को” सनातन सुसमाचार सुना रहा है। (प्रका. 14:6) क्या हम भी उस स्वर्गदूत की तरह बिना भेद-भाव के सभी जाति के लोगों को प्रचार करते हैं? हमें शायद एहसास न हो, मगर कुछ लोगों के बारे में हमारी सोच गलत या एक-तरफा हो सकती है। हम लोगों को जिस नज़र से देखते हैं, उसका असर हमारे खुशखबरी सुनाने के तरीके पर पड़ सकता है। इसलिए जब हम दूसरी जाति या भाषा के लोगों को प्रचार करते हैं, तो हमें उनके लिए सच्ची परवाह और सच्चा प्यार दिखाना चाहिए।
2 अपने प्रचार के इलाके के बारे में सोचिए: क्या आपके प्रचार के इलाके में दूसरे राज्य के लोग रहते हैं या ऐसे मुहल्ले हैं जहाँ सिर्फ दूसरी भाषा बोलनेवाले लोग रहते हैं? उनसे मिलने के लिए पहल कीजिए, और उन्हें जानने की कोशिश कीजिए। उनकी ज़रूरतें, पसंद-नापसंद क्या हैं? उन्हें किन बातों की चिंता और डर है और वे कैसी गलत धारणाएँ रखते हैं? इन बातों को ध्यान में रखकर अपनी पेशकश में फेरबदल करने की कोशिश कीजिए। (1 कुरि. 9:19-23) प्रेरित पौलुस की तरह, हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि अपने प्रचार के इलाके में हरेक को खुशखबरी सुनाना हमारा फर्ज़ है। इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो हमारी बिरादरी से नहीं हैं, जिनकी संस्कृति और भाषा अलग है या जो बहुत अमीर हैं।—रोमि. 1:14, NW, फुटनोट।
3 अगर घर-मालिक दूसरी भाषा बोलता है, तो उसे आप गवाही कैसे दे सकते हैं? सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार पुस्तिका का अच्छा इस्तेमाल करके। आप उन भाषाओं में कुछ ट्रैक्ट और ब्रोशर भी अपने साथ रख सकते हैं, जो आम तौर पर आपके प्रचार के इलाके में बोली जाती हैं। (जुलाई 2003 की हमारी राज्य सेवकाई के पेज 8, पैराग्राफ 2 और 4 देखिए।) इसके अलावा, कुछ प्रचारकों ने दूसरी भाषाओं में ‘नमस्ते’ बोलना और चंद शब्दों में सुसमाचार पेश करना सीखा है। आम तौर पर जब लोग देखते हैं कि कोई उनकी भाषा में उनसे बात करने की कोशिश करता है, तो उन्हें बहुत खुशी होती है। और नतीजा यह हो सकता है कि वे खुशखबरी सुनने में दिलचस्पी लें।
4 यहोवा की मिसाल पर चलिए: अलग-अलग जाति और भाषा के लोगों को सुसमाचार सुनाने से, हम अपने निष्पक्ष परमेश्वर, यहोवा की मिसाल पर चलते हैं। “वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।”—1 तीमु. 2:3,4.